मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

ईरान के साथ समझौता जरूरी

ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर जब तेहरान और अन्य प्रमुख देशों के बीच अंतरिम समझौते पर दस्तखत हुए तो अपेक्षाएं बहुत बढ़ गई थीं। हालांकि, पिछले हफ्ते ये अपेक्षाएं धुंधलाती नजर आईं। पहले तो ईरानी अधिकारियों ने कड़े बयान दिए। फिर इजरायल के प्रधानमंत्री ने लगभग हर मुमकिन समझौते के लिए अपना विरोध दोहरा दिया। इतना ही नहीं अमेरिका के कई प्रभावशाली सीनेटरों ने ईरान पर नए प्रतिबंध लगाने की धमकी दी है, किंतु इसका यह अर्थ नहीं कि तेहरान के साथ कोई अंतिम समझौता मुमकिन ही नहीं है। हां, इसका यह मतलब जरूर है कि तेहरान और पश्चिमी देश, दोनों को इस बारे में रचनात्मक रूप से सोच-विचार शुरू कर देना चाहिए कि दोनों के बीच मौजूद खाई को कैसे पाटा जाए और कैसे उनके सामने अपने देश में खड़ी अड़चन का सामना किया जाए।


ईरान के जिन बयानों ने इतना ध्यान आकर्षित किया है वे विदेश मंत्री और राष्ट्रपति दोनों की ओर से आए हैं। विदेश मंत्री जाविद जरीफ ने सीएनएन के जिम शूटो को जो बताया वह उसके बिल्कुल विपरीत था, जिसका दावा वाशिंगटन बार-बार कर रहा था। उन्होंने कहा, 'ईरान किसी चीज को ध्वस्त करने पर सहमत नहीं हुआ है।' बाद में मुझे सीएनएन पर ही दिए इंटरव्यू में राष्ट्रपति हसन रोहानी ने भी साफ किया कि ईरान उसका कोई भी मौजूदा सेंट्रीफ्यूज (यूरेनियम संवद्र्धन में उपयोगी उपकरण) नष्ट नहीं करेगा। उन्होंने मुझे भी संकेत दिया कि ईरान अराक स्थित भारी पानी के रिएक्टर को बंद नहीं करेगा।


पश्चिमी देशों के साथ ईरान के विवाद का एक बिंदु यह भी है, क्योंकि पश्चिम को लगता है कि वहां  बम बनाने लायक प्यूटोनियम का उत्पादन संभव है। किसी स्वीकार्य समझौते को लेकर ईरान और अमेरिका के बीच दृष्टिकोण में मूलभूत फर्क है। रोहानी के इंटरव्यू और ईरानी अधिकारियों के साथ मेरी बातचीत से मुझे ईरानी दृष्टिकोण का अंदाज लगा है। ईरान दुनिया को इस बात का आश्वासन और सबूत भी देगा कि उसका परमाणु कार्यक्रम सैनिक नहीं, नागरिक उद्देश्यों के लिए है। इसका मतलब यह है कि ईरान इसकी सारी परमाणु सुविधाओं के गहन निरीक्षण की इजाजत देगा जैसी अब तक कभी दी नहीं गई। यह प्रक्रिया तो शुरू हो भी चुकी है। अंतरिम समझौते में ईरान के सेंट्रीफ्यूज बनाने वाले कारखानों, खदानों और मिलों के अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण की बात कही गई है। पिछले हफ्ते, एक दशक में पहली बार अंतरराष्ट्रीय निरीक्षकों ने ईरानी खदानों में प्रवेश किया।


किंतु ईरानी अधिकारी अपने परमाणु कार्यक्रम पर कोई भी पाबंदी स्वीकार न करने पर डटे हुए हैं। वे प्राय: इस बात पर जोर देते हैं कि ईरान के साथ परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत करने वाले किसी अन्य देश की तरह व्यवहार किया जाए। उनके कहने का मतलब  यह है कि उन्हें बिजली उत्पादन के लिए यूरेनियम संवद्र्धन का पूरा हक है। वास्तविकता तो यह है कि परमाणु अप्रसार संधि यूरेनियम संवद्र्धन के बारे में विशेष रूप से कुछ नहीं कहती। परमाणु बिजलीघरों वाले कई देश यूरेनियम संवद्र्धन नहीं करते जबकि कुछ अन्य देश ऐसा करते हैं। इसलिए ईरान के इस दावे का तार्किक आधार है कि यूरेनियम संवद्र्धन अब तक तो स्वीकार्य गतिविधि रही है। संधि में एक ही मानदंड लगाया गया है कि सारा परमाण्विक उत्पादन 'शांतिपूर्ण उद्देश्यों' के लिए होना चाहिए।


अंतिम समझौते के बारे में अमेरिकी दृष्टिकोण बिलकुल अलग है, जो इस अवधारणा से निकला है कि ईरान को यह भरोसा पैदा करने के लिए विशेष कदम उठाने चाहिए कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण कार्यों के लिए है। इसके तहत ईरान को यूरेनियम की छोटी प्रतीकात्मक मात्रा को 5 फीसदी स्तर (इससे परमाणु शस्त्र बनाने लायक यूरेनियम बनाने में काफी वक्त लगेगा) तक संवद्र्धित करने की अनुमति होगी। इसके अलावा ईरान को इसके हजारों मौजूदा सेंट्रीफ्यूज नष्ट करने होंगे और भारी पानी वाला इसका रिएक्टर बंद करना होगा। दरअसल, वाशिंगटन की मंशा नागरिक कार्यक्रम को सैन्य कार्यक्रम में बदलने का वक्त (लीड टाइम) बढ़ाना है।


दोनों पक्षों को अपनी आधारभूत चिंताओं पर गहराई से विचार करना होगा। ईरानी अधिकारियों को यह समझना होगा उनके देश के साथ अलग व्यवहार किया जा रहा है पर उसकी वजह अच्छी है। ईरान ऐसा कार्यक्रम चला रहा है, जो संदेहास्पद है। बहुत थोड़ी बिजली पैदा करने के लिए बहुत ज्यादा निवेश किया गया है। फिर उसने पूर्व में अपने कार्यक्रम को लेकर दुनिया को धोखा भी दिया है। दूसरी ओर वाशिंगटन को यह समझना होगा कि परमाणु ठिकानों के निरीक्षण पर अपेक्षा से ज्यादा रियायत मिलेगी, लेकिन ईरान के मौजूदा कार्यक्रम को वापस लेने पर बहुत कम रियायतें मिलने की उम्मीद है। यदि यह छह से नौ माह का लीड टाइम सुनिश्चित करा सके तो यह महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी, क्योंकि यदि तेहरान परमाणु निरीक्षकों को निकाल बाहर करे तो स्थिति एक पल में बदल जाएगी और वाशिंगटन को प्रतिक्रिया की कार्रवाई के लिए छह माह की जरूरत नहीं होगी।


ऐसे रचनात्मक समझौते हैं, जो दोनों पक्षों के अंतर को मिटा सकते हैं। जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के कॉलिन कार्ल और जोसेफ सरीनसीओनी इन्हीं मुद्दों पर काम करते हैं। उन्होंने ध्यान दिलाया कि सेंट्रीफ्यूज को नष्ट किए बिना बंद किया जा सकता है। वास्तविकता तो यह है कि ईरान में 19,800 से ज्यादा सेंट्रीफ्यूज स्थापित हैं, लेकिन आधे से भी कम कार्यरत हैं। सहमति के ऐसे बिंदुओं का पहले ही पता लगा लिया गया है। ईरान ने हमेशा कहा है कि वह मौजूदा 20 फीसदी संशोधित यूरेनियम को देश से बाहर नहीं भेजेगा, किंतु अंतरिम समझौते में वह इसे निष्क्रिय करने पर सहमत हुआ है। इसी तरह ईरान अपने भारी पानी के रिएक्टर को हल्के जल के संयंत्र में बदलकर इसे जारी रख सकता है।



रोहानी और जरीफ से मिलने के बाद मुझे यकीन हो गया कि वे मध्यमार्गी हैं और ईरान को दुनिया के साथ जोडऩा चाहते हैं। (मसलन, रोहानी ने मुझे संकेत दिया कि अगले कुछ महीनों में ग्रीन मूवमेंट के नेताओं को रिहा कर दिया जाएगा)। हालांकि मुझे यह भी यकीन है कि कई घरेलू विरोधियों के कारण वे दबाव में काम कर रहे हैं। यही बात ओबामा प्रशासन के बारे में भी कही जा सकती है। बेहतर होगा कि दोनों पक्ष जिनेवा में कुछ न कुछ हल निकलने की उम्मीद रखने की बजाय अंतिम समझौते के लिए अपने यहां जमीन तैयार करें। यदि ऐसा हुआ तो जो भी समझौता होगा वह उनके अपने देशों में भी स्वीकार्य होगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कुल पेज दृश्य