बांग्लादेश में चुनाव बाद की हिंसा
थमने का नाम नहीं ले रही है। इस हिंसा के सबसे अधिक शिकार हिंदू हो रहे हैं।
बांग्लादेश में पिछले माह आम चुनाव हुआ था। उसके बाद कट्टरपंथियों के हमले में ढाई
सौ लोग हताहत हुए हैं। एक बांग्ला दैनिक के मुताबिक इस दौरान अल्पसंख्यकों के पांच
सौ घरों में आग लगाई गई है। बांग्लादेश के हिंदू व बौद्धों की सबसे अधिक आबादी
दौचंगा, मेहरपुर, जेसोर और डोनाइडाह जिलों में है और उन पर हमले भी वहीं हो रहे हैं।
एक समाचार पत्र में प्रकाशित खबर का शीर्षक है-चंपातला में सिर्फ रुदन। इसमें
बताया गया है कि चुनाव के बाद किस तरह जमात-ए-इस्लामी तथा बांग्लादेश नेशनलिस्ट
पार्टी के समर्थकों ने जेसोर जिले के चंपातला में हिंदू परिवारों पर अत्याचार किए
और महिलाओं के साथ ज्यादती की। कालीगंज, टाला और कलरवा में प्राय: सभी हिंदुओं के घरों को आग लगा दी गई।
1बांग्लादेश के कट्टरपंथी इसलिए भी अल्पसंख्यकों से इस समय चिढ़े हैं, क्योंकि उनके चुनाव बहिष्कार के बावजूद
अल्पसंख्यकों ने मतदान में हिस्सा लिया। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक अवामी लीग के
समर्थक माने जाते हैं, इसीलिए
जमात-ए-इस्लामी तथा बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के कट्टरपंथियों के निशाने पर वे
ही हैं। बांग्लादेश में हिंदू नागरिकों की आबादी आज सवा करोड़ है और उसमें 72 लाख
वोटर हैं, जो तीन सौ में 22 से 25 प्रतिशत संसदीय
सीटों पर अहम भूमिका अदा करते हैं और इन्हीं संसदीय क्षेत्रों में उन पर जुल्म
ढाया जाता है। जिस तरह 2014 में उन पर जुल्म ढाया जा रहा है उसी तरह का जुल्म 1992
में भी किया गया था। तब बांग्लादेश में हिंदुओं के 28 हजार घरों, 2200 वाणिज्यिक उद्यमों और 3600
मंदिरों को क्षतिग्रस्त किया गया था। हिंदुओं पर अत्याचार रोकने के लिए तत्कालीन
प्रधानमंत्री खालिदा जिया ने कोई कोशिश नहीं की थी। 2001 के संसदीय चुनाव के दौरान
भी अल्पसंख्यकों पर जमकर हमले हुए। हर बार की तरह इस बार भी कट्टरपंथियों के हमले
से बचने के लिए हजारों बांग्लादेशी हिंदू भागकर पश्चिम बंगाल के उत्तारी 24 परगना, नदिया, दक्षिण दिनाजपुर में आश्रय लिए हुए हैं। उस पार से जो हिंदू इस पार आ
गए वे कभी नहीं लौटे। बांग्लादेश के हिंदू शरणार्थी भी बंगाल और अन्यत्र आकर
सम्मानपूर्वक रह लेते हैं, दिहाड़ी मजदूरी करते हैं, फेरी लगाते हैं, रिक्शा खींचते हैं और तरह-तरह के काम कर पैसा कमाकर जीवन काटते हैं, किंतु उस पार लौटने की सपने में भी
नहीं सोचते। 1बांग्लादेश के लेखक सलाम आजाद ने अपनी किताब में जो आंकड़े दिए हैं वे
भयावह तस्वीर पेश करते हैं। सलाम आजाद ने लिखा है कि कट्टरपंथी संगठनों के
अत्याचार से तंग आकर 1974 से 1991 के बीच प्रतिदिन औसतन 475 लोग यानी हर साल एक
लाख 73 हजार 375 हिंदू हमेशा के लिए बांग्लादेश छोड़ने को बाध्य हुए। यदि उनका
पलायन नहीं हुआ होता तो आज बांग्लादेश में हिंदू नागरिकों की आबादी सवा तीन करोड़
होती। 1941 में पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी 28 प्रतिशत थी, जो 1951 में 22 प्रतिशत, 1961 में 18.5 प्रतिशत, 1974 में 13.5 प्रतिशत, 1981 में 12.13 प्रतिशत, 1991 में 11.6 प्रतिशत, 2001 में 9.6 प्रतिशत और 2011 में घटकर
8.2 प्रतिशत हो गई। सलाम आजाद ने लिखा है कि बांग्लादेश के हिंदुओं के पास तीन ही
रास्ते हैं-या तो वे आत्महत्या कर लें या मतांतरण कर लें या पलायन कर जाएं। बांग्लादेश
में शत्रु अर्पित संपत्तिकानून, देवोत्तार संपत्तिपर कब्जे ने अल्पसंख्यकों को कहीं का नहीं छोड़ा है।
इसके अलावा उस पार हिंदुओं को भारत का समर्थक या एजेंट, काफिर कहकर प्रताड़ित किया जाता है। इसे
बांग्लादेश से हिंदुओं को भगाने के जेहाद के रूप में भी देखा जा सकता है। जिस तरह
वहां के कट्टरपंथी तत्व हिंदुओं और बौद्धों पर आक्त्रमण कर रहे हैं उसका मकसद देश
को अल्पसंख्यकों से पूरी तरह खाली कराना है। पंथनिरपेक्षता के पैरोकार इस मामले पर
क्यों खामोश हैं?
क्या
यह दुखद नहीं कि मौजूदा प्रधानमंत्री शेख हसीना भी वहां अल्पसंख्यकों की रक्षा
नहीं कर पा रही हैं? जो
लोग बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के विरोधी थे, जिन्होंने मुक्ति संग्राम लड़ने वाले तीस लाख लोगों को मार डाला, तीन लाख महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया, तीन हजार भारतीय सैनिकों को मार डाला
उसी जमाते इस्लामी के लोग साल भर से अराजकता फैलाने में जुटे हैं। जमाते इस्लामी
के कट्टरपंथियों ने मुक्ति संग्राम के दौरान सौ से ज्यादा बुद्धिजीवियों को मार
डाला था। यदि बांग्लादेश को आजादी मिलने में और हफ्ता भर की देरी होती तो बचे हुए
बुद्धिजीवियों को भी उन्होंने मार दिया होता। 1अब जमाते इस्लामी के वही कट्टरपंथी
बचे हुए हिंदुओं को खत्म कर देना चाहते हैं। वे बांग्लादेश को एक दूसरा पाकिस्तान
बनाना चाहते हैं। अब सवाल यह है कि बांग्लादेश के हिंदू क्या करें? रास्ता कैसे निकलेगा? इसका जवाब यही है कि रास्ता तभी
निकलेगा जब बांग्लादेश में सांप्रदायिक राजनीति को निषिद्ध किया जाए। राष्ट्र सबका
है, चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान। कहने की
जरूरत नहीं कि आज सबसे बड़ी चिंता दुनिया में हर जगह बहुसंख्यक द्वारा अल्पसंख्यक
का सांप्रदायिक उत्पीड़न है। कहीं भी सांप्रदायिक उत्पीड़न के शिकार निरीह लोग ही
हैं। इस समय दुनिया कट्टरता के जिस खतरे से जूझ रही है उसका सामना यदि सही तरह
नहीं किया गया तो स्थितियां और अधिक बिगड़ेंगी। अमेरिका जिस तरीके से कट्टरता को
समाप्त करना चाहता है उससे सहमत नहीं हुआ जा सकता। उसके तरीके से भी निरीह लोग ही
मारे जाते हैं। इराक और अफगानिस्तान में दुनिया इसे देख चुकी है।
IAS Charisma is a brainchild of Dr. Kumar Ashutosh, a Ph.D. in History, PGDM(Marketing) and Double M.A.(History and Philosophy), an IAS aspirant himself, he cleared IAS Mains twice and faced IAS interview before starting on this journey of guiding future IAS aspirants to help them in tackling with the problems that he had to face during IAS preparation. IAS Charisma is an endeavor to light a candle for IAS aspirants who sometimes get lost in commercialization of education.
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