विश्व के जिन देशों की स्थिति बहुत
चिंताजनक बनी हुई है उनमें सीरिया का स्थान पहली पंक्ति में है। हाल के वर्षों में
इस देश में जितनी तबाही हुई है, वैसी
बहुत कम देखी गई है। इस देश के विभिन्न समुदायों के लोग आपसी भाईचारे से रहते आए
हैं, पर हाल के समय में यहां गृह युध्द ने
देश को बर्बादी की कगार पर पहुंचा दिया है।
इस समय सबसे बड़ी जरूरत यहां अमन-शांति
स्थापित करने की है। इसके लिए एक बड़ी उम्मीद के रूप में सामने आई थी जेनेवा में
हाल की शांति र्वात्ता। दुनिया के अमनपसंद लोगों की निगाहें इस र्वात्ता पर लगी
थीं पर इस शांति वार्ता से न तो स्थाई शांति की कोई राह निकली है व न पीड़ितों को
राहत पंहुचाने की।
वैसे तमाम चिंताजनक स्थितियों के बीच
हाल के समय में दो बातें उम्मीद जमाने वाली भी हुई हैं। पहली तो यह है कि अमेरिका
या नाटो के संभावित हमले का खतरा फिलहाल टल गया है। एक समय इस हमले की संभावना
बहुत बढ़ गई थी और इसकी तैयारी भी हो चुकी थी। इसे अमनपसंद प्रयासों की सफलता ही
माना जाएगा कि यह हमला टल सका। अब ऐसे हमले की संभावना कम है।
इससे जुड़ी हुई दूसरी आशाजनक बात यह हुई
है कि अमेरिका व पश्चिमी देशों में अब यह समझ नीति निर्धारण करने वालों तक भी
पंहुच रही है कि सीरिया के विद्रोहियों में ऐसे कट्टरपंथी तत्त्व अधिक शक्तिशाली
हैं जो अल कायदा जैसी सोच से जुड़े हुए हैं और जो अमेरिका व उसके पश्चिमी मित्रों
को भी क्षति पंहुचा सकते हैं। ऐसे समाचार भी आए हैं कि अमेरिका के जो नागरिक इन
कट्टरपंथियों के साथ लड़ने के लिए आए थे उनका ही उपयोग अमेरिका के विरुध्द ये लड़ाकू
कर सकते हैं। इस तरह के समाचार मिलने पर अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में सीरिया
के विद्रोहियों को सहायता देने के औचित्य पर पुनर्विचार करना जरूरी हो गया है।
अब तो सीरिया में ऐसी स्थिति स्पष्ट
होती जा रही है कि सरकार से लड़ने वाले जो विद्रोही हैं वे स्वयं दो गुटों में
विभाजित हो रहे हैं। वैसे तो विद्रोही दल बहुत से है पर मुख्य सोच के आधार पर इनको
दो गुटों में बांटा जा सकता है। पहला गुट वह है जो बेहद कट्टरपंथी सोच का है, जो अल कायदा जैसी सोच का है व जिसे
सऊदी अरब या उसके सहयोगियों से अधिक सहायता मिली है। दूसरे गुट में कट्टरता अधिक
नहीं है व इसे तुर्की से अधिक तकनीकी रही है (हालांकि अब तुर्की भी कुछ पीछे हटता
नजर आ रहा है)।
पश्चिमी देशों ने पहले इस अंतर को समझे
बिना सीरिया में राष्ट्रपति बशर-अल-असद की सरकार का विरोध करने वाले सब
विद्रोहियों को साझे रूप से सहायता दी पर इस सहायता का अधिक लाभ उन कट्टरपंथी
तत्वों ने उठाया जो इन विद्रोहियों में पहले से अधिक शक्तिशाली थे। जब इन
कट्टरपंथी तत्वों के हाथ में पश्चिमी देशों की सहायता से प्राप्त अधिक विध्वंसक
हथियार पंहुचने लगे तो इन विद्रोहियों ने अन्य गुटों को किनारे कर अपनी शक्ति बढ़ा
ली। इस स्थिति में पश्चिमी देशों को भी अपनी आत्मघाती नीति पर पुनर्विचार करना
पड़ा। फि र भी सऊदी अरब से इस तरह के प्रयास निरंतर किए जा रहे हैं कि अमेरिका व
फ्रांस जैसे देश सीरिया की सरकार के प्रति फिर से अधिक आमक हो जाएं जबकि रूस असद
के सबसे महत्वपूर्ण मित्र की भूमिका निभा रहा है। एक बात पूरी तरह स्पष्ट है कि
सबसे कट्टरपंथी लड़ाकुओं की सहायता न तो सीरिया के हित में है और व विश्व स्तर पर
अमन-शांति के हित में है। ऐसे लड़ाकू ताकतवर हुए तो इसके पड़ौसी देश इराक की भी
क्षति ही होगी। अत: इन कट्टरपंथी विद्रोहियों को बाहरी सहायता पर तुरंत रोक लगनी
चाहिए।
इस समय सबसे बड़ी जरूरत यह है कि सीरिया
में गृहयुध्द के कारण जो लाखों लोगों का जीवन तबाह हुआ है उन्हें तुरंत राहत
पंहुचाने के अनुकूल स्थितियां उत्पन्न की जाएं। अनुमान है कि जबसे गृहयुध्द जैसी
स्थितियां सीरिया में बनी हैं यहां लगभग एक लाख लोग मारे गए हैं और लगभ सत्तर लाख
विस्थापित हुए हैं। देश में अधिकांश लोगों के लिए खाद्य व स्कूली शिक्षा भी उपलब्ध
नहीं हो पा रही है। अत: सीरिया के लोगों को राहत देने के लिए वहां अमन-शांति का
माहौल बनाना बहुत जरूरी है।
अत: राष्ट्रपति असद को महत्वपूर्ण
सुधारों की घोषणा करनी चाहिए जिससे सभी असंतुष्ट नागरिकों को अपनी समस्याओं के लिए
समुचित लोकतांत्रिक अवसर मिले। साथ में सभी विद्रोही गुटों को शान्ति समझौते के
लिए आगे आनी चाहिए। जो ऐसा नहीं करते हैं उनकी विदेशीबाहरी सहायता पर कड़ाई से रोक
लगनी चाहिए।
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