रिजर्व बैंक ने एक बार फिर रेपो दरों
में इजाफा कर दिया है। अलबत्ता सीआरआर यानी नकद आरक्षित अनुपात को रिजर्व बैंक ने
इस बार भी यथावत रखा है। तीसरी तिमाही समीक्षा के साथ आई मौद्रिक नीति ने कमोबेश
सभी को थोड़ा चौंकाया है। उद्योग जगत ने तो इस पर खुल कर निराशा भी जाहिर की है। जब
भी रेपो दर बढ़ाई जाती है तो उसके पीछे महंगाई पर काबू पाने की चिंता होती है। हैरत
की बात यह है कि दिसंबर में यह तर्क अधिक लागू होता था, क्योंकि नवंबर में महंगाई दर पिछले
चौदह महीनों में सबसे ज्यादा थी। मगर दिसंबर में, जब रेपो दरों में बढ़ोतरी को अवश्यंभावी माना जा रहा था, रिजर्व बैंक ने उन्हें यथावत रखा। अब
जबकि पिछले दिनों महंगाई में कुछ नरमी के आंकड़े आ चुके थे, यह उम्मीद की जा रही थी कि इस बार
रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कमी करेगा, या कम से कम उनमें कोई इजाफा नहीं करेगा। मगर इस बार भी रिजर्व बैंक
ने सबको हैरत में डाल दिया।
चौथाई फीसद की बढ़ोतरी के साथ रेपो दर
आठ फीसद और रिवर्स रेपो दर सात फीसद हो गई है। लिहाजा, यह अंदेशा जताया जा रहा है कि इस
बढ़ोतरी से मकान,
वाहन
आदि के लिए बैंकों से मिलने वाले कर्ज महंगे हो जाएंगे, लोगों को बैंक-ऋणों पर मासिक किस्त पहले
से ज्यादा चुकानी होगी। पर रिजर्व बैंक ने यह आश्वासन दिया है कि नीतिगत दरों में
और सख्ती की संभावना नहीं है। रेपो दरों में ताजा बढ़ोतरी को लेकर भले अचरज जताया
गया हो, पर यह इतने आश्चर्य की बात नहीं है।
अगले आम चुनाव में तीन महीने ही रह गए हैं। ऐसे में महंगाई को लेकर केंद्र सरकार
की फिक्र का असर रिजर्व बैंक पर भी रहा होगा। नवंबर में खुदरा महंगाई करीब ग्यारह
फीसद थी। दिसंबर में थोड़ी कमी दर्ज होने के बावजूद यह साढ़े नौ फीसद और दस फीसद के
बीच थी, जो
कि
चिंताजनक स्तर ही कहा जाएगा। दूसरे, पिछले महीने जो कमी दर्ज हुई वह मौसमी भी साबित हो सकती है, क्योंकि यह मुख्य रूप से सब्जियों के
दामों में आए उतार के कारण थी। जबकि अन्य उपभोक्ता मदों में राहत का कोई रुझान
नहीं दिखा है। दूसरे, रिजर्व
बैंक ने अपने आकलन में पाया है कि थोक महंगाई सूचकांक के गैर-खाद्य मदों में मांग
का दबाव बना हुआ है। इसलिए नीतिगत दरों में चौथाई फीसद की बढ़ोतरी से निवेश और
बाजार को लेकर ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है। पर यह आकलन सही है तो फिर
मौजूदा वित्तवर्ष में विकास दर के पांच फीसद से नीचे रहने के रिजर्व बैंक के
अनुमान से उसकी संगति कैसे बैठती है?
रिजर्व बैंक का मानना है कि इस साल के
अंत तक महंगाई दर औसतन आठ फीसद रहेगी। यानी खुद उसके अनुमान के मुताबिक उस पर
महंगाई की फिक्र करने का दबाव बना रहेगा। फिर, उसने यह भी कहा है कि आगे से केवल उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी खुदरा
बाजार की कीमतों को ही मौद्रिक समीक्षा का आधार बनाया जाएगा। यह निर्णय
स्वागत-योग्य है,
क्योंकि
आम लोगों का वास्ता खुदरा बाजार से ही होता है, थोक बाजार से नहीं। पर ऐसे में मौद्रिक नीति की समीक्षा पर महंगाई की
चिंता का दबाव पहले से कहीं अधिक होगा। यह स्थिति मुद्रास्फीति नियंत्रण और विकास
दर में से किसे प्राथमिकता दी जाए, हमेशा बनी रहने वाली इस दुविधा से रिजर्व बैंक को छुटकारा नहीं दिला
सकेगी। पर असल बात यह है कि मौद्रिक कवायद की अपनी सीमाएं हैं। चाहे महंगाई पर
काबू पाना हो या निवेश के लिए उपयुक्त माहौल बनाना, इसकी ज्यादा उम्मीद सरकार से की जानी चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें