सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

तीसरा मोर्चा

16वीं लोकभा के चुनाव में तीसरा मोर्चा गठित करने के लिए राजनीतिक दलों ने प्रयास शुरू किया है। इनकी मंशा या कहें राजनीतिक इच्छा है कि देश को कांग्रेस-भाजपा से परे राजनीति में तीसरा मोर्चा की जरूरत है। देश में यद्यपि दो दलीय राजनीतिक प्रणाली नहीं है लेकिन पहले कांग्रेस और फिर भाजपा-नीत तथा कांग्रेस नीत गठबंधन सरकारें केन्द्र में चलती रही हैं और अब यह माना जाने लगा है कि देश में ये ही दो गठबंधन पारी-पारी से शासन करेंगे। अन्य दलों को इनके साथ जुड़कर सरकार का अंग बनना है, इनकी नीतियों को मन से या बेमन से ही मंजूर करना है और इन बड़े दलों की नीतियों के पक्ष में या विपक्ष में मत देना है। मतलब अन्य दलों को सरकार में रहना है तो इनके साथ चलना है और विपक्ष में रहना है तो भी बड़े दल के साथ ही रहना है। इस तरह देश के अन्य दल एक तरह से इन बड़े दलों के ''बंधुआ'' हो गए हैं। लोकसभा या रायसभा में विपक्ष का मतलब बड़ा दल है और यह बडा दल सदन की कार्रवाई में बाधा डालता है तो अन्य दलों के न चाहते हुए भी सदन स्थगित हो जाता है। सदन के बाहर कहते हैं कि सदन चलेगा अथवा नहीं, यह बड़ा दल जाने, हम तो छोटे दल हैं। हकीकत यह है कि ये छोटे दल अपने दम पर अपने क्षेत्र की जनता से ताकत प्राप्त कर सदन में पहुंचे हैं। लेकिन सदन में वर्चस्ववादी मानसिकता वाले बड़े दलों के कारण इनकी आवाज सुनी नहीं जाती। इस तरह बड़े दल अपने अस्तित्व के लिए इनकी आवाज तो दबाते हैं, एक तरह से इनका राजनीतिक शोषण करते हैं और इन पर मनोवैज्ञानिक दबाव भी बनाते हैं- ये सोचें कि ये 'छोटे दल' हैं। इस तरह बड़े दलों का यह सामंती रवैया छोटे दलों की प्रतिभा को कुंद करता है, इनके समग्र व्यवहार को खिलने नहीं देते। इन्हें अपना पिछलग्गू ही बनाए रखते हैं। इसी में इन बड़े दलों का अस्तित्व बना रहता है। यह तो ऐसा ही है कि राजा की सवारी ढोने के लिए प्रजा को सामने लाया जाता रहा या राजा शिकार पर निकलता तो हांका पाड़ने प्रजा को आगे आना पड़ता था।

तीसरा मोर्चा मात्र सत्ता प्राप्त करने या कांग्रेस-भाजपा को सत्ता से हटाने के उद्देश्य से ही बने, ऐसा नहीं है। यह सोचना कि तीसरा मोर्चा सत्ता प्राप्ति के लिए बनाया जा रहा है, तीसरा मोर्चा की राजनीतिक अवधारणा के पवित्र उद्देश्य को नकारना है। तीसरा मोर्चा की जरूरत को जनता न समझे, जनता को इस समझ से दूर रखने का यह एक भयानक षड़यंत्र है और इस षड़यंत्र में मीडिया, बड़े दल शामिल हो रहे हैं। ये सब केन्द्र में एक पार्टी की सरकार या बड़े दल के अंतर्गत बनने वाली किसी सरकार के पक्ष में सोचते हैं, प्रचार करते हैं। इस तरह सोचने वाले तीसरा मोर्चा की राजनीतिक अवधारणा को सत्ता प्राप्ति की लालसा तक सीमित कर उसके उभार को बाधित करते हैं। वैसे भी मान लो तीसरा मोर्चा केन्द्र की सत्ता में काबिज होने के लिए गठित किया जा रहा है तो क्या बुरा है। ऐसा प्रयास करनेवाले दल कौन-सा अपराध कर रहे हैं। दरअसल तीसरा मोर्चा के गठन के लिए प्रयास करने वाले एक निर्णायक लड़ाई के लिए ही तीसरा मोर्चा गठित करने भिड़े हैं। 1991 के बाद देश में जिस तरह की नवउदारवादी आर्थिक नीतियां लागू की गईं और उसे कांग्रेस तथा भाजपा सरकारों ने अपने-अपने शासनकाल में लागू करने में जोर लगाया और यह ध्यान रखा कि इसमें ढिलाई न हो, इसके कारण देश में गैरबराबरी बढ़ी और भयानक भ्रष्टाचार बढ़ा। जनता परेशान है, लेकिन जनता की परेशानी दूर करने की वैकल्पिक नीतियां प्रस्तुत करने की राजनैतिक-इच्छा दोनों ही दलों की नहीं है क्योंकि अब दोनों ही दल वैश्विक आर्थिक दबाव और साम्रायवादी आर्थिक नीतियों के पैरोकार बन गए हैं। इनसे जनता को किस तरह छुटकारा मिले? देश की बदहाली के लिए चिंतित तथा उसे दूर करने के लिए वैकल्पिक नीतियों से लैस दल देश में हैं, उनकी विचारधारा राष्ट्रीय स्तर पर फैली है। लेकिन एक राजनीतिक दल के रूप में अपनी सीमित पहुंच के कारण केन्द्र में अपने अकेले की संख्या पर सरकार नहीं बना सकते, इसका यह मतलब नहीं कि जनता को इस नवउदारवादी आर्थिक नीतियों के शोषण का शिकार होने के लिए छोड़ दिया जाए। अगर केन्द्र में अकेले नहीं आ सकते तो अन्य छोटे दलों को साथ लेकर सत्ता पर काबिज दलों को हटाने का जरूरी राजनीतिक कर्म तो किया ही जा सकता है। समय की यह मांग है। इस समय जो चुप बैठेगा या तटस्थ रहेगा या निष्क्रिय रहेगा या केवल अपनी ही सोचेगा वह देश की जनता के साथ राजनीतिक धोखा करेगा। अत: जो दल इस समय तीसरा मोर्चा बनाने भिड़े हैं वे जनता को बड़े संकट से उबारने के बडे क़र्म में लगे हैं।

तीसरा मोर्चा क्यों जरूरी है, इस पर विचार किया जाना चाहिए। जब भी तीसरा मोर्चा की बात उठती है और वह कोई आकार लेने की स्थिति में आता है, त्यों ही बड़े राजनीतिक दलों, मीडिया, कार्पोरेट और राजनीति का इसी ढर्रे में तथा इसी व्यवस्था में चलने देने के पक्षधरों के पेट का पानी डोलने लगता है। उनके पेट में मरोड़ शुरू हो जाती है और बुध्दि में एेंठन उठती है। वे एक साथ उठ खड़े होते हैं और चिल्लाने लगते हैं कि देखो फिर तीसरा मोर्चा का तमाशा आ रहा है। तीसरा मोर्चा के गठन को ही गैरजरूरी बताने में जुट जाते हैं और यह भी कहने लगते हैं कि तीसरा मोर्चा बन नहीं सकता। जनता जरूर कुछ आशा भरी नजरों से देखती है। 2009 और 2014 में काफी फर्क है। आज उदारवादी आर्थिक नीतियों का दुष्परिणाम सामने है। जनता महंगाई भोग रही है और घोर भ्रष्टाचार देखती रही है। सरकार निजीकरण की ओर तेजी से बढ़ रही है। कार्पोरेट हित साधने में लगी है सरकार। अरबपतियों की संख्या बढ़ी है और गरीबी-अमीरी के बीच खाई यादा चौड़ी हुई है। सरकार तथा व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण राजनीति के प्रति जनता में अरुचि पैदा हो गई है और इसका लाभ उठाकर गैरराजनीतिक आंदोलन बढ़े हैं तथा सत्ता में आ गए हैं जो जनता को यादा भ्रमित कर रहे हैं। देश में बिचौलियों की समृध्दि बढ़ी है। सरकार की विफलताओं के कारण जनता में घोर निराशा है।


तीसरा मोर्चा को लेकर कई तरह की शंकाएं पैदा की जा रही हैं। इससे एक तो यह कि ये क्षेत्रीय दल अपने-अपने रायों में आपस में लड़ते हैं अत: केन्द्र में एक साथ नहीं बैठ सकते और इनकी बनी सरकार यादा दिन नहीं चल सकती। इनके बीच ही प्रधानमंत्री के कई दावेदार हैं। लेकिन विचार करने की बात है कि जब से केन्द्र में गठबंधन सरकारें बनने लगी हैं, ये सरकारें भी एक तरह से क्षेत्रीय-छाया में बनी सरकारें रही हैं। क्षेत्रीय दलों का सहयोग लेकर बनी सरकारों ने क्षेत्रीय दलों को मनमाफिक पोर्टफोलियो दिए और उनकी पसंद या कहें उनके द्वारा नामित व्यिक्त को ही केबिनेट में लिया।  बहरहाल, तीसरा मोर्चा- एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम बना सकता है। विदेश नीति पर एक आम सहमति बन सकती है- तीसरा मोर्चा भी वैश्विक सोच पैदा कर सकता है। उसमें भी राजनीति के अच्छे जानकार हैं। ऐसा क्यों माना जाए कि वैश्विक समझ केवल भाजपा और कांग्रेस के पास ही है। दरअसल केन्द्र में तीसरा मोर्चा की सरकार हमारे फेडरल स्टक्चर को यादा मजबूत करेगी। उसे मौका दिया जाए वह अपनी सार्थकता सिध्द करे, यह चैलेन्ज रहेगा तो तीसरा मोर्चा सही अर्थों में जनवादी सरकार देगा। तीसरा मोर्चा पर आगे चर्चा जारी रहेगी। विविधा के बीच आम सहमति ''तीसरा मोर्चा'' की विशेषता है।

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