गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

पेटेंट व्यवस्था में बदलाव जरूरी

भारतीय मूल के सत्यानडेला को माइक्रोसाफ्ट कम्पनी का मुख्य अधिकारी नियुक्त किया गया है। यह प्रसन्नता का विषय है। माइक्रोसाफ्ट कम्पनी साफ्टवेयर को पेटेंट संरक्षण दिलाने में अग्रणी है। यह कम्पनी साफ्टवेयर पर अपना एकाधिकार बनाना चाहती है। माइक्रोसाफ्ट जैसी साफ्टवेयर कम्पनियों द्वारा बिजनेस साफ्टवेयर अलायन्स की स्थापना की गई है। इस संगठन का कहना है कि साफ्टवेयर की तस्करी से कम्पनियों को प्रतिवर्ष 11 अरब डालर का नुकसान लग रहा है। सरकार भी दो अरब डालर के राजस्व से वंचित हो रही है। इसी प्रकार के तर्क अमरीका जैसे अमीर देशों की सरकारें देती आई हैं। इन सभी का कहना है कि तस्करी रोकने से साफ्टवेयर कम्पनियों को लाभ अधिक होगा, वे नये उत्पादों के सृजन में निवेश कर सकेंगे और जनता को नये उत्पाद हासिल होंगे जिनके उपयोग से उनका कल्याण हासिल होगा। जैसे माइक्रोसाफ्ट ने विंडोज् एक्सपी बनाया। इसके उपयोग से करोड़ों लोग रिसर्च, लेखन, मूवी बनाना इत्यादि कर रहे हैं। यदि माइक्रोसाफ्ट के शुरुआती विंडोज् 93 की तस्करी होती तो कम्पनी को लाभ न्यून होते और विन्डोज्  एक्सपी का ईजाद नहीं हो पाता। तब करोड़ों लोगों को घटिया विन्डोज् 93 साफ्टवेयर से काम करना पड़ता और उनका कल्याण बाधित होता।

इस तर्क में आंशिक सत्य है। सच यह है कि सृजन पर कम्पनियों का एकाधिकार नहीं होता है। सामान्यजन भी सृजन करते हैं। विन्डोज् ा की तरह मुफ्त मिलने वाला एक साफ्टवेयर है जिसका नाम है लाइनक्स। इसे ओपन सोर्स कहा जाता है। कोई भी व्यक्ति इस साफ्टवेयर को इंटरनेट से डाउनलोड करके इसका उपयोग कर सकता है। इस साफ्टवेयर का आंतरिक प्रोग्राम ओपन यानि सर्वोपलब्ध होता है। व्यक्ति इसके प्रोग्राम में अपनी जरूरत के अनुसार परिवर्तन कर सकता है। साफ्टवेयर इंजीनियरों द्वारा लाइनक्स का ही उपयोग अधिक किया जाता है। लाइनक्स में वे अपनी जरूरत के अनुसार परिवर्तन कर सकते हैं। जैसे यदि आप चाहें कि विन्डोज् ा द्वारा एक फोल्डर में से फाइलों को छांटकर कापी किया जाए तो आप ऐसा परिवर्तन स्वयं नहीं कर सकते हैं। जबकि लाइनक्स में आप ऐसा प्रोग्राम जोड़ सकते हैं। आज लाइनक्स उपयोग करने वालों का एक विशाल अंतरराष्ट्रीय समुदाय बन गया है। ये लोग लाइनक्स के प्रोग्राम में सुधार करते हैं और एक-दूसरे को मुफ्त उपलब्ध कराते हैं।

प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है कि पेटेंटीकरण से सृजन में तीव्रता आती है। जैसे विन्डोज् ा के 93, 95, 97, एक्सपी प्रोग्राम लगभग 2-2 वर्ष के अंतराल से बाजार में आये और प्रत्येक प्रोग्राम पिछले से उन्नत था। इतनी तीव्रता से लाइनक्स में सृजन नहीं हुआ प्रतीत होता है। परन्तु विन्डोज् ा एक्सपी के बाद माइक्रोसाफ्ट द्वारा सृजन में ठहराव आ गया है। विन्डोज् ा 7, विस्टा एवं 8 में विशेष सुधार नहीं हुआ है और ये प्रोग्राम बाजार में पिट गये हैं। ऐसे में पेटेंट जनकल्याण के लिये पूर्णतया हानिप्रद हैं। माइक्रोसाफ्ट स्वयं विन्डोज में सुधार नहीं कर पा रही है और पेटेंटीकृत होने के कारण दूसरे लोग भी इसमें सुधार नहीं कर पा रहे हैं।

ओपन सोर्स से सृजन धीमा हो तो भी पेटेंट के पक्ष में तर्र्क स्थापित नहीं होता है। अंतिम कसौटी जनकल्याण की है। हमें ज्ञात है कि विन्डोज़ 93 से एक्सपी तक पहुंचने में मइोसाफ्ट को लगभग 10 वर्ष लगे थे। मान लीजिये कि पेटेंट के अभाव में इसी सृजन में 25 वर्ष लगते। 15 वर्ष तक जनकल्याण से जनता वंचित हो जाती। परन्तु इन्हीं 15 वर्षों में विन्डोज् ा 93 का बड़े पैमाने पर फैलाव होता चूंकि वह मुफ्त रहता। अत: विषय बनता है केन्द्रीकरण बनाम फैलाव का। पेटेंट व्यवस्था में कम संख्या में लोगों को उत्तम उत्पाद शीघ्र मिल जाता है। अरबों लोग वंचित रहें परन्तु कुछ को बहुत कुछ उपलब्ध हुआ जैसे सपाट मैदान में कुतुबमीनार खड़ी है।  इसके विपरीत ओपन व्यवस्था राजघाट स्थित गांधीजी की समाधि जैसी होती है। इसमें फैलाव यादा होता है। जनकल्याण का मापदण्ड 'जन' यानि आम जनता है। इनका कल्याण तो ओपन साफ्टवेयर से ही हासिल होगा।

मेरे आकलन में साफ्टवेयर की नकल से जनकल्याण यादा हासिल होता है चूंकि सृजनात्मक प्रयासों का फैलाव होता है। यही बात हार्डवेयर पर लागू होती है। आज भारत में मदरबोर्ड की मरम्मत की जाती है। दूसरे देशों में इसका ज्ञान नहीं है। सर्वर जैसे उपकरण विकासशील देशों में सस्ते बनाए जा सकते हैं। इस प्रकार के तमाम सुधारों से आज समाज वंचित है। अत: वर्तमान पेटेंट व्यवस्था में बदलाव जरूरी है।

प्रश्न उठता है कि लाइनक्स जैसे ओपन साफ्टवेयर का अधिक उपयोग क्यों नहीं हो रहा है? यदि यह मुफ्त है और इसमें सुधार किया जा सकता है तो लोग इसका उपयोग क्यों नहीं कर रहे हैं? यह प्रश्न डॉक्टर और मरीज जैसा है। डॉक्टर के पास जानकारी होती है कि बीपी का नाप कैसे किया जाए। वह सस्ते परन्तु जटिल मरक्यूरी के उपकरण का उपयोग कर सकता है। परन्तु सामान्य नागरिक के लिए इलेक्ट्रानिक मशीन ही सुलभ होती है। इसी प्रकार साफ्टवेयर इंजीनियर मुफ्त लाइनक्स का उपयोग कर पाते हैं जबकि सामान्य नागरिक को विन्डोज् माफिक पड़ता है।
अर्थ हुआ कि सामान्य नागरिक तक उन्नत तकनीक को पहुंचाने का कार्य कम्पनियों द्वारा किया जा सकता है। इस मात्र के लिए पेटेंट संरक्षण देना चाहिए। लेकिन संरक्षण का यह उचित स्तर क्या हो इसे निर्धारित करना कठिन है। इसलिए सुझाव है कि पेटेंट कानून को डब्लूटीओ से बाहर कर देना चाहिए। बौध्दिक सम्पदा की नकल करने का अधिकार देना या न देना यह देशों के विवेक पर छोड़ देना चाहिए। कुछ देश पेटेंट अपनायेंगे। इनसे इन हाउस सृजन एवं तकनीकों का सरलीकरण होगा। दूसरे देश नकल करने की स्वीकृति देंगे। इससे तकनीकों का विस्तार एवं उत्पादों का फैलाव होगा। दोनों के सम्मिलित प्रभाव से वैश्विक स्तर पर जनकल्याण हासिल होगा।


सत्या नडेला ने कहा है कि वे नये उत्पादों को बनाने पर विशेष ध्यान देंगे। इस भावना का स्वागत करना चाहिए। परन्तु नये उत्पादों को बनाने का उद्देश्य क्या है? उद्देश्य इसे सस्ते में बेचकर और इसकी नकल करने की छूट देकर इन उत्पादों का फैलाव करना और जनहित हासिल करना है अथवा उद्देश्य इनपर पेटेंट कानून का शिकंजा कसकर जनता को महंगा माल बेचकर लाभ कमाना है और जनता को इनमें सुधार करने से वंचित करना है। नडेला जैसे भारतीय अप्रवासियों के लिये विदेशों में ऊंचे पद पर पहुंचना छोटी चुनौती है। बड़ी चुनौती मेजबान देश की आसुरी संस्कृति को तोड़कर नई दैवी संस्कृति को स्थापित करना है। नडेला जिस कम्पनी के मुख्याधिकारी बने हैं उसका अभी तक का चरित्र आसुरी रहा है। माइक्रोसाफ्ट ने नये उत्पाद बनाए हैं और सूचना क्रान्ति लाई है परन्तु साथ-साथ इस क्रान्ति पर कम्पनी का शिकंजा कसे रखने का भी प्रयास किया है। माइक्रोसाफ्ट के चरित्र का परिवर्तन करना ही नडेला की चुनौती है।  

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