आसन्न आम चुनाव
के मद्देनजर महंगाई
में थोड़ी कमी
आने की खबर
से जहां केंद्र
सरकार ने कुछ
राहत की सांस
ली होगी, वहीं
औद्योगिक उत्पादन में लगातार
तीन महीने गिरावट
का क्रम जारी
रहने से उसे
मायूसी हाथ लगी
है। आइआइपी यानी
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में
गिरावट का सिलसिला
पिछले साल अक्तूबर
में शुरू हुआ
था। बुधवार को
जारी सरकारी आंकड़ों
के मुताबिक आइआइपी
दिसंबर में 0.6 फीसद गिरा
है। इससे पहले,
नवंबर में 1.3 फीसद
की कमी दर्ज
हुई थी। लगातार
तीन महीने तक
गिरावट का क्रम
बने रहने से
जाहिर है कि
औद्योगिक क्षेत्र सुस्ती की
चपेट में है।
इसका यह भी
मतलब है कि
बाजार में मांग
बढ़ नहीं पा
रही है। सबसे
ज्यादा गिरावट मैन्युफैक्चरिंग यानी
विनिर्माण के क्षेत्र
में दिखती है।
चूंकि आइआइपी में
मैन्युफैक्चरिंग पचहत्तर फीसद वजन
रखता है, इसलिए
इसमें गिरावट दर्ज
होने का आइआइपी
के ग्राफ पर
ज्यादा असर पड़ता
है। मैन्युफैक्चरिंग रोजगार
का बड़ा स्रोत
है, इसलिए भी
इसमें कमी ज्यादा
चिंताजनक है। विनिर्माण
क्षेत्र में उत्पादन
1.6 फीसद सिकुड़ा है, इससे
पहले नवंबर में
इसमें साढ़े तीन
फीसद की गिरावट
आई थी।
चाहे आइआइपी
का ग्राफ हो
या महंगाई का,
उसका ऊपर-नीचे
होना आधार यानी
बीते वित्तवर्ष के
उसी महीने के
आंकड़ों के बरक्स
तय होता है।
अगर आधार अधिक
हो तो वृद्धि
दर्ज होने की
बहुत कम संभावना
रहती है। इसी
तरह आधार कम
हो तो बढ़ोतरी
की उम्मीद बढ़
जाती है। यह
गौरतलब है कि
दिसंबर, 2012 में औद्योगिक
उत्पादन की वृद्धि
दर केवल 0.6 फीसद
रही थी। इसलिए
दिसंबर 2013 में वृद्धि
की काफी गुंजाइश
थी। पर ऐसा
नहीं हुआ। आधार
बहुत नीचे रहने
पर भी आइआइपी
में सुधार न
हो पाना औद्योगिक
क्षेत्र का निराशाजनक
प्रदर्शन ही कहा
जाएगा। केवल विद्युत
उत्पादन के आंकड़े
संतोषजनक कहे जा
सकते हैं। बिजली
उत्पादन में दिसंबर
में साढ़े सात
फीसद की वृद्धि
हुई, जबकि इससे
पहले के महीने
में यह आंकड़ा 6.30
फीसद था। दिसंबर
2012 में बिजली उत्पादन में
5.2 फीसद की बढ़ोतरी
हुई थी। यानी
एक साल पहले
की उसी समयावधि
की तुलना में
भी विद्युत क्षेत्र
में सुधार दर्ज
हुआ है। लेकिन
क्या यह सुधार
कायम रह पाएगा?
यह सवाल इसलिए
उठता है कि
रिलायंस से हुए
करार के मुताबिक
एक अप्रैल से
प्राकृतिक गैस की
कीमत दोगुनी हो
जाएगी। इससे गैस
इस्तेमाल करने वाली
बिजली कंपनियों की
उत्पादन लागत एक
झटके में काफी
बढ़ जाएगी। पहले
से खस्ताहाल राज्यों
के बिजली बोर्डों
के लिए उतनी
महंगी बिजली खरीदना
बहुत मुश्किल होगा।
बहरहाल, आइआइपी में
गिरावट के बरक्स
महंगाई में आई
थोड़ी कमी ने
जहां राहत दी
है, वहीं यह
उम्मीद भी जगाई
है कि अब
रिजर्व बैंक ब्याज
दरों में कुछ
नरमी का फैसला
कर सकता है।
महंगाई पर काबू
पाने की चिंता
में रिजर्व बैंक
लगातार कई बार
रेपो दरों में
वृद्धि कर चुका
है। पर पिछली
मौद्रिक समीक्षा जारी करते
समय रिजर्व बैंक
के गवर्नर रघुराम
राजन ने भरोसा
दिलाया था कि
रेपो दरों में
और वृद्धि नहीं
की जाएगी। देखना
है कि अगली
मौद्रिक समीक्षा में रेपो
दरें यथावत रहती
हैं या उनमें
कुछ कटौती भी
होगी? केंद्रीय सांख्यिकी
संगठन के ताजा
आंकड़ों के मुताबिक
जनवरी में खुदरा
महंगाई 9.87 फीसद रही,
जबकि दिसंबर में
वह 8.79 फीसद रही
थी। महंगाई में
आई इस कमी
के पीछे सबसे
ज्यादा हाथ खाने-पीने की
चीजों के दामों
में कुछ नरमी
का है। पर
शीतऋतु में ऐसा
अमूमन होता आया
है। इसलिए हो
सकता है खाद्य
पदार्थों के मद
में मिली राहत
मौसमी साबित हो।
अप्रैल से लागू
होने वाली गैस
की बढ़ी कीमतों
ने महंगाई बढ़ने
की नई आशंका
पैदा की है।
इस सरकारी फैसले
की काट मौद्रिक
नीति कैसे कर
पाएगी!
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