सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

यूक्रेन का राजनीतिक संकट

यूक्रेन में पिछले कई महीनों से सरकार विरोधी प्रदर्शनों और हिंसक झड़पों के बाद प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति कार्यालय पर कब्जा कर लिया और संसद ने इसके साथ ही 25 मई को नए चुनावों का ऐलान कर लिया है। इधर दो सालों से जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री यूलिया तेमाशेन्का रिहा होने के बाद अस्वस्थता के बावजूद राजनीतिक रूप से सक्रिय हो गई हैं। इस तेजी से बदलते घटनाक्रम ने यूक्रेन के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। संसद के फैसले को सत्ताच्युत राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच ने मानने से इन्कार कर दिया है। यानुकोविच संभवत: इस वक्त देश के पूर्वी हिस्से में खारकोव शहर में छिपे हुए हैं और उन्होंने वहींसे संसद के निर्णय को गलत बताते हुए इसकी तुलना 1930 में नाजियों द्वारा किए गए व्यवहार से की है, जिसमें अवैध तरीकों से नाजी सेना ने जर्मनी आस्ट्रिया पर कब्जा कर लिया था। यूक्रेन के वर्तमान राजनीतिक संकट के पीछे नाजीवादी सोच भले हो, लेकिन इससे इन्कार नहींकिया जा सकता कि पूर्वी यूरोप के इस देश में पूंजीवादी ताकतों की साजिश ने अपना काम कर दिखााया है। 1991 में सोवियत संघ से टूटकर वर्तमान यूक्रेन का निर्माण हुआ, लेकिन रूस से इसकी निकटता बरकरार रही। देश के पूर्वी भाग के लोग अधिकतर रूसी भाषा बोलने वाले हैं, रूस के समर्थक हैं, जबकि पश्चिमी हिस्से के लोग यूक्रेनी भाषा बोलने वाले कैथोलिक इसाई हैं और यूरोपीय यूनियन के समर्थक हैं। निर्वतमान राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच रूस के समर्थक माने जाते रहे हैं, जबकि यूलिया तेमाशेन्का पर यूरोपीय यूनियन का प्रभाव है। यूक्रेन में विपक्ष बार-बार यह मांग करता रहा कि देश को यूरोपीय यूनियन के करीब ले जाया जाए और रूस से दूरियां बढ़ाई जाएं, इसके विपरीत यानुकोविच का कहना था कि रूस हमारा पड़ोसी है और मित्र है, उसे ऐसे ही नहींछोड़ा जा सकता। जब यानुकोविच ने यूरोपीय यूनियन के साथ मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने वाले व्यापार आर्थिक समझौते पर दस्तखत नहींकिए और इसकी जगह रूस से 15 बिलियन डालर का ऋण सब्सिडी वाली गैस लेना मंजूर किया तो इस शांत देश में हिंसा भड़काने का एक अच्छा अवसर पूंजीवादी ताकतों को मिल गया। यूक्रेनी जनता में यह भय पैदा किया गया कि देश के आर्थिक हालात अच्छे नहींहैं और इस समझौते को करने से स्थितियां और बिगड़ेंगीं। गत वर्ष नवंबर से प्रारंभ हुआ विरोध धीरे-धीरे हिंसात्मक होता गया और सौ के करीब लोगों की जान इसमें चली गई। इस बीच अमरीका सहित पश्चिम यूरोप के कई देशों ने मामले में दखल देना प्रारंभ किया। तीन यूरोपीय विदेश मंत्री मध्यस्थता कराने यूक्रेन पहुंचे, ब्रिटेन ने यूक्रेन के राजदूत को तलब किया और अमरीका ने यूक्रेन के 20 वरिष्ठ अधिकारियों पर मानवाधिकार हनन का आरोप लगाते हुए उन पर वीजा प्रतिबंध की घोषणा की है। फिलहाल जो स्थिति है, उसमें किस तरह निष्पक्ष चुनाव संपन्न होते हैं, कहना कठिन है।


राजनीतिक विचारधाराओं के साथ-साथ देश के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से में मतभेद जिस तेजी से बढ़ रहा है, उससे यह आशंका बलवती होती है कि यूक्रेन विभाजन की ओर बढ़ रहा है। इससे आगे भी राजनीतिक अस्थिरता उथल-पुथल का दौर जारी रह सकता है। अमरीका की सहानुभूति विक्टर यानुकोविच के विरोधियों के साथ है। रूस पर अपने पूर्व अंग पड़ोसी देश में राजनीतिक स्थिरता शांति कायम करने के साथ-साथ यूरोपीय यूनियन से सौहार्द्रपूर्ण संबंध बनाए रखने की दोहरी चुनौती है। रूस की किसी भी सीमा में अशांति रहे, यह उसके हित में कतई नहींहै। अगर यूक्रेन में नयी सरकार आती है तो इससे रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन के यूरेशियन यूनियन निर्माण का स्वप्न बिखर सकता है। पूर्व सोवियत संघ के सदस्य देशों के साथ 2015 तक यूरेशियन यूनियन का गठन पुतिन की क्षेत्रीय रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। इस संघ में यूक्रेन नींव के पत्थर की तरह हो सकता था। यूरोपियन यूनियन के बरक्स यूरेशियन यूनियन खड़ा होता तो यूरोप के साथ-साथ वैश्विक राजनीतिक, आर्थिक समीकरण भी बदलते, लेकिन फिलहाल इन सारी संभावनाओं पर रोक लग गई है। यूक्रेन में राजनीति का ऊंट अब किस करवट बैठेगा, इसका इंतजार सब को है।

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