सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

101 वीं विज्ञान कांग्रेस

भारत में विज्ञान व वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए 1914 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस की स्थापना हुई थी। भारत तब अंग्रेजों का गुलाम था और अशिक्षा, अंधविश्वास, सामाजिक कुरीतियों से जकड़ा हुआ था। लेकिन बीते सौ सालों में भारत ने विज्ञान के क्षेत्र में निरंतर प्रगति की है। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियों के साथ हाल का मंगल अभियान ऐसी कामयाबी है जिस पर हर भारतीय को नाज है। इसके अलावा विज्ञान की लगभग सभी शाखाओं में भारतीय वैज्ञानिक उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं, शोध कार्य भी हो रहे हैं, किंतु समाज में वैज्ञानिक सोच का जिस तेजी से प्रसार होना चाहिए था और विज्ञान के प्रति विद्यार्थियों का जो झुकाव होना चाहिए था, वह नहींहो पाया है। भारतीय विज्ञान कांग्रेस के शताब्दी वर्ष मेंइस मुद्दे पर गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। हाल ही में जम्मू विश्वविद्यालय में संपन्न 101वींविज्ञान कांग्रेस में उद्धाटन वक्तव्य में प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह ने कहा कि हमारे देश में विज्ञान की शिक्षा पर काफी यादा ध्यान दिए जाने की जरूरत है। अगले कुछ वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश करने वाली सबसे बड़ी जनसंख्या हमारे देश में होगी। इसीलिए हमें उनको सही रास्ते पर ले जाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। यह रास्ता उन्हें उत्पादक रोजगार की तरफ ले जाएगा। हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि हम्ारे युवा वर्ग विज्ञान को अपना करियर बनाएं। ऐसा करने के लिए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि यह काम इतना आकर्षक बन जाए कि वे ऐसा ही करें। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री लगातार दसवींबार विज्ञान कांग्रेस को संबोधित कर रहे थे। हर बार की तरह उन्होंने इस बार भी विज्ञान में निवेश को बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि इसे जीडीपी का 2 प्रतिशत करने की आवश्यकता है। भारत जैसे निरंतर प्रगतिशील देश में विज्ञान के क्षेत्र में जितना निवेश किया जाएगा, उससे कहींअधिक हासिल होगा। सरकार इस दिशा में काम भी कर रही है। जीडीपी का 2 प्रतिशत विज्ञान को देने का कार्य तो अब तक संभव नहींहुआ, किंतु पिछले कुछ वर्षों में राष्ट्रीय विज्ञान और अभियांत्रिकी बोर्ड नामक संगठन की स्थापना, जैव प्रौद्योगिकी में अनुसंधान व विकास के लिए सार्वजनिक व निजी क्षेत्र की भागीदारी, आठ नए आईआईटी एवं विज्ञान व अनुसंधान में 5 संस्थानों का खोला जाना स्वागतेय कदम है।


 इस विज्ञान कांग्रेस में तमिलनाडु में न्यूट्रीनो आधारित वेधशाला और 'नेशनल मिशन ऑन हाई परफार्मेंस कंप्यूटिंग' सहित करीब नौ हजार करोड़ रुपए की कई परियोजनाओं का ऐलान प्रधानमंत्री ने किया। इस बार विज्ञान कांग्रेस की थीम 'समग्र विकास के लिए विज्ञान व प्रौद्योगिकी में नवाचार' रही। आशय यह कि विज्ञान व प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल व लाभ सीमित वर्ग तक न रहे बल्कि समाज का हर तबका इससे वैसे ही लाभान्वित हो, जैसे सूचना व संचार क्रांति से हर वर्ग को उन्नयन का अवसर मिला। विज्ञान के क्षेत्र में अपनी प्रगति पर हम खुश हो सकते हैं, लेकिन अगर यूरोप, अमरीका की छोड़े, एशिया में ही चीन, जापान, दक्षिण कोरिया जैसे देशों से तुलना करें, तो पता लगेगा कि अभी हमें और कितना, कुछ करने की आवश्यकता है। समाज में विज्ञान की शिक्षा के प्रति बहुत उत्साहजनक माहौल नहींहै। विद्यार्थी विज्ञान पढ़े, उसमें शोधकार्य के लिए आगे बढ़ें, इसकी जगह इस बात पर बल दिया जाता है कि वह वाणिज्य प्रबंधन जैसे क्षेत्र में ऊंची डिग्री हासिल करे और किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में आकर्षक पैकेज की नौकरी हासिल कर ले। विद्यालयों, महाविद्यालयों में विज्ञान की शिक्षा में नवाचार बहुत कम अपनाया जा रहा है और शिक्षक पुराने ढर्रे पर अपना काम निबटा रहे हैं। इलेक्ट्रानिक मीडिया में अब भी रोजाना ग्रहों, नक्षत्रों, भूत-प्रेतों, दैवीय चमत्कारों से जुड़े समाचार आते हैं। दिव्य शक्ति से संपन्न बाबाओं के दरबार अब भी सज रहे हैं, उनका आडंबर दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। अभी ज्यादा समय नहींहुआ, जब एक साधु के सपने के कारण सोने की खोज में खुदाई की गई और एक बाबा के मृत हो जाने के बाद भी उसके अनुयायी यही कह रहे थे कि वे समाधि लगाए हुए हैं और इस बार शायद इसमें कोई रिकार्ड बना लें। भारतीय समाज ने देखा है कि किस तरह वैज्ञानिक तरक्की का लाभ उड़ीसा में आए चक्रवात के वक्त मिला, जब पहले से लोगों को वहां से हटाया गया और जान-माल की हानि नहींहुई, ऐसे और बहुत से उदाहरण हैं, पर न जाने क्यों हम अंधविश्वास के चक्र से मुक्त नहींहो रहे हैं। समाज इस जकड़न को तोड़ेगा, तभी सही अर्थों में वैज्ञानिक प्रगति होगी। सरकार नयी परियोजनाएं प्रारंभ करने के साथ भारत रत्न डा.सी.एन.आर.राव की उस खीझ को संदर्भ सहित समझने की कोशिश करे, जिसमें उन्होंने कहा था कि वैज्ञानिक बिरादरी की जरूरतों को राजनेता समझ नहींपाते हैं। उम्मीद है अगली विज्ञान कांग्रेस तक जरूरत को समझने का यह दायरा और बढ़ेगा, नकारात्मक सोच से घटेगा नहीं।

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