रविवार, 1 दिसंबर 2013

एड्स/एचआईवी में गिरावट का रुख जारी

एचआईवी/एड्स महामारी विकास एवं सामाजिक प्रगति के लिए बहुत बड़ी चुनौती बनी हुई है। यह बीमारी गरीबी और असमानता के चलते होती है। समाज के बहुत दुर्बल वर्गों यानी वयोवृद्ध, महिलाओं, बच्‍चों और गरीबों को यह अपना शिकार बनाती है। जो देश समय रहते इसकी प्रतिक्रिया में कुछ नहीं कर पाते, उन्‍हें इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है और इसके परिणामस्‍वरूप उत्‍पादकता, कुशल और तजुर्बेकार श्रम की कमी तथा इलाज पर भारी खर्च और अन्‍य प्रकार के व्‍यय के रूप में उठानी पड़ती है। कारण यह है कि सार्वजनिक सेवाओं की मांग बढ़ जाती है। इसका प्रभाव करीब-करीब राष्‍ट्रीय अर्थव्‍यवस्‍था के हर क्षेत्र पर पड़ता है। चालू वर्ष के विश्‍व एड्स दिवस का विषय रखा गया है साझी जिम्‍मेदारी: एड्स मुक्‍त पीढ़ी के  सशक्‍तीकरण परिणाम।

विश्‍व परिदृश्‍य

अब जबकि इस भयानक छूत की बीमारी के खिलाफ लड़ाई जारी है, अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2012 में 23 लाख वयस्‍क और बच्‍चे इस बीमारी की चपेट में आये। इसकी तुलना में वर्ष 2001 में 33 प्रतिशत कम लोग इस बीमारी से ग्रस्‍त हुए थे। वर्ष 2001 के मुकाबले नये एचआईवी मरीजों की संख्‍या 52 प्रतिशत कम हुई है। मरीजों में बच्‍चे शामिल हैं। एड्से जुड़ी हुई मौतों में भी 30 प्रतिशत कमी आई है। 2005 में जब इस बीमारी का जोर सबसे ज्‍यादा था, इसके इलाज की सुविधाएं बढ़ा दी गईं। टीबी के मरीजों की जरूरतें पूरी की जा रही हैं और उसके महत्‍वपूर्ण परिणाम दिखाई दिये हैं। एचआईवी संक्रमण के साथ जिंदा मरीजों की संख्‍या और इस बीमारी के कारण मरने वाले लोगों की संख्‍या में भी 2004 से 36 प्रतिशत कमी हुई है।

2012 के अंत तक कम और मध्‍यम आय वर्ग वाले देशों में 97 लाख लोग इस बीमारी से मुक्‍त होने के लिए इलाज करा रहे थे। एक वर्ष में भी तब 20 प्रतिशत वृद्धि हुई थी। वर्ष 2011 में संयुक्‍त राष्‍ट्र सदस्‍य देश 2015 तक 1.5 करोड़ एचआईवी मरीजों को चिकित्‍सा सुविधाएं देने का लक्ष्‍य प्राप्‍त करने पर सहमत हुए लेकिन इन देशों ने जैसे-जैसे अपने यहां इलाज की सुविधाएं बढ़ाईं, नये तरीके से इलाज के लाभों से वंचित करने की रूझानें दिखाई दीं। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने इस बीमारी के इलाज के लिए नये मार्ग दर्शक नियम तय किये और इस बीमारी का इलाज चाहने वाले जरूरतमंद लोगों की संख्‍या का अनुमान बढ़ाकर एक करोड़ कर दिया।

एचआईवी के लिए निधियों का दान करने वाले दाताओं की संख्‍या बढ़ रही है। वर्ष 2008 तक यह उतनी ही थी जितनी हर देश में एचआईवी के इलाज पर निधियों की जरूरत पड़ती है। अनुमान लगाया गया कि 2012 में दुनियाभर में एचआईवी संसाधनों के यह 53 प्रतिशत के बराबर थी। अनुमानों के अनुसार वर्ष 2012 में एचआईवी चिकित्‍सा के लिए दुनिया भर में 18.9 अरब अमरीकी डॉलर के संसाधन उपलब्‍ध थे जो जरूरत से तीन से पांच अरब अमरीकी डॉलर कम थे। यह भी अनुमान लगाया गया है कि 2015 तक दुनियाभर में 22 से 24 अरब अमरीकी डॉलर तक एचआईवी मरीजों के इलाज पर खर्च आएगा।

भारत में स्थिति
 
राष्‍ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम संयुक्‍त राष्‍ट्र द्वारा तय ''सहस्राब्‍दी विकास लक्ष्‍य'' पूरा करने की तरफ बराबर प्रगति कर रहा है तथा एचआईवी बीमारी घट रही है। राष्‍ट्रीय स्‍तर पर वयस्‍कों में एड्स की बीमारी में बराबर गिरावट आ रही है और 2001 की तुलना में यह स्‍तर 0.41 प्रतिशत कम हुआ है। 2006 में यह इस स्‍तर में 0.35 प्रतिशत गिरावट आई और वर्ष 2011 में यह स्‍तर 0.27 प्रतिशत कम हुआ। राष्‍ट्रीय स्‍तर पर वयस्‍कों (15-49 वर्ष) एचआईवी अनुमान के अनुसार 2007 में 0.33 प्रतिशत था। वर्ष 2011 में घटकर यह 0.27 प्रतिशत के स्‍तर पर आ गया। वयस्‍कों में एचआईवी की बीमारी कम होने का रुख लगातार बना रहा और जिन राज्‍यों में इसका प्रकोप ज्‍यादा है यानी आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्‍ट्र, मणिपुर, नागालैंड और तमिलनाडु में यह बीमारी अधिक है। अन्‍य राज्‍य हैं मिजोरम और गोवा। लेकिन जिन राज्‍यों में इसका प्रकोप कम है यानी असम, अरुणाचल प्रदेश, चंडीगढ़, छत्‍तीसगढ़, मेघालय, ओडिशा, पंजाब, त्रिपुरा और उत्‍तराखंड-उनमें वयस्‍कों में एचआईवी की बीमारी बढ़ी है।

भारत ने दिखा दिया है कि हर साल एचआईवी संक्रमण के जितने मरीज होते हैं उनमें 57 प्रतिशत कमी आई है। यह कमी पिछले दशक के दौरान आई और वर्ष 2000 में जहां ऐसे मरीजों की संख्‍या 2.74 लाख थी वहीं 2011 में घटकर यह 1.16 लाख के स्‍तर पर आ गई। यह राष्‍ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत किये गये उपायों का परिणाम है। अन्‍य कार्य नीतियां भी बढ़ाई जा चुकी हैं। इस बीमारी के मरीजों की संख्‍या में महत्‍वपूर्ण कमी का कारण उन राज्‍यों से आया है जहां ये बीमारी ज्‍यादा है और जहां पर उक्‍त अवधि में मरीजों की संख्‍या 76 प्रतिशत घटी है। एचआईवी/एड्स के भारत में जितने जिंदा मरीज हैं, उनकी संख्‍या 2011 में 21 लाख आंकी गई है। इनमें 15 वर्ष के कम आयु के बच्‍चे (1.45 लाख) सात प्रतिशत जबकि 15 से 49 वर्ष आयु वर्ग की 46 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं। जितने भी एचआईवी मरीज हैं, उनमें 39 प्रतिशत (8.16 लाख) महिलाएं हैं। भारत में एचआईवी जिंदा मरीजों की संख्‍या लगभग स्थिर बनी हुई है। यह जहां 2006 में 23.2 लाख थी, वहीं 2011 में 21 लाख थी।
कार्यक्रम के आंकड़ों से संकेत मिलता है कि 2009-10 और 2010-11 के बीच में इलाज की सुविधाएं वयस्‍कों के लिए 30 प्रतिशत बढ़ गई। इससे अनुमान है कि एड्स से ग्रस्‍त लोगों की वार्षिक मृत्‍यु संख्‍या में 29 प्रतिशत कमी आई। यह एनएसीपी-3 अवधि (2007-2011) के दौरान हुआ। उन राज्‍यों में मृत्‍यु संख्‍या में खासतौर से कमी दिखाई दी जहां नये ढंग से इलाज की सुविधाएं बढ़ाने का कार्यक्रम पूरा कर लिया गया। जिन राज्‍यों में एड्स के कारण मृत्‍यु दर अधिक है, वहां भी एड्स से मरने वालों की संख्‍या में 42 प्रतिशत कमी आई। 2007 से 2011 के बीच 42 प्रतिशत गिरावट देखी गई। जुलाई 2013 की स्थिति के दौरान देश में एचआईवी के 6.76 लाख जिंदा मरीज हैं, जो नये ढंग की चिकित्‍सा से लाभ उठा रहे हैं।

जिन लोगों को इस बीमारी से ज्‍यादा खतरा है उनके लिए चिकित्‍सा सेवाएं देने में महत्‍वपूर्ण सुधार आया है। फिलहाल, 84 प्रतिशत महिला सेक्‍स वर्करों में 87 प्रतिशत पुरूषों के साथ सहवास करती हैं और 84 प्रतिशत सूईयों के जरिए नशा करने वालों को चिकित्‍सा उपलब्‍ध है। 2011 में इसके प्रभाव के मूल्‍यांकन से पता चला कि महिला सेक्‍स वर्करों में एचआईवी में गिरावट राष्‍ट्रीय कार्यक्रम के कारण आई और अनुमान लगाया गया है कि इस राष्‍ट्रीय कार्यक्रम के कारण 2015 तक महिला सेक्‍स वर्करों में इस बीमारी के प्रचलन में गिरावट आई और अनुमान के अनुसार एचआईवी के 30 लाख मामले रोके जा सके। इसका कारण 2015 तक इस राष्‍ट्रीय कार्यक्रम के अंतर्गत लक्ष्‍य समूहों में बीमारी रोकने का अभियान था।

विश्‍व बैंक और नॉको
भारत को राष्‍ट्रीय एड्स नियंत्रण परियोजना के लिए 1991 से विश्‍व बैंक से निधियां प्राप्‍त होनी शुरू हुईं और तब से राष्‍ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम चल रहा है। 1990 से शुरू दशक के शुरूआती वर्षों में एनएसीपी में रक्‍त की सुरक्षा पर ध्‍यान दिया जाता था। जिन समूहों में एड्स का खतरा ज्‍यादा तथा उनमें इसे रोकने के कदम उठाये गये। आम जनता में चेतना लाई गई। राष्‍ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के दूसरे चरण (1999-2006) में भारत में इस कार्यक्रम का विस्‍तार किया गया और इसे राज्‍य स्‍तरों पर शुरू किया गया। एड्स मरीजों पर खासतौर से ध्‍यान दिया गया। एचआईवी निरोधक कार्यक्रम में एनजीओ को शामिल किया गया। तीसरे चरण में इस बीमारी को रोकने के लक्ष्‍य बढ़ा दिये गये और इसमें उन सभी लोगों को शामिल किया गया जो इस खतरे के दायरे में थे। ऐसा जागरूकता तंत्र का विस्‍तार करके किया गया। इससे सरकार को यह मालूम करने में सहायता मिली कि यह बीमारी कितनी बढ़ चुकी है, किन राज्‍यों में यह ज्‍यादा प्रचंड है और आबादी के वे कौन-कौन से समूह हैं, जो इसके खतरे के दायरे में हैं। 

एनएसीपी के चौथे चरण के लक्ष्‍य दीर्घकालीन निरंतरता के लिए भारत सरकार की 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) के समावेशी वृद्धि और विकास के लक्ष्‍य से जुड़ी हुई है। अगले पांच वर्ष के दौरान राष्‍ट्रीय कार्यक्रम का लक्ष्‍य एचआईवी संक्रामक रोग को समाप्‍त करने में तेजी लाना है। नवाचार पहुंच के जरिए कार्यक्रम का मकसद सर्वाधिक जोखिम वाले आबादी समूह के पास लक्षित निवारक हस्‍तक्षेप करना है, जिसमें व्‍यापक हिफाजत को बढ़ाना, सहायता और इलाज, जानकारी का विस्‍तार, व्‍यवहार में बदलाव पर ध्‍यान देने के साथ शिक्षा और संचार, मांग बढ़ाना और कलंक को मिटाना, एकीकरण की प्रक्रिया और संस्‍थागत क्षमता को और बढ़ाना, समूचे कार्यक्रम घटकों में नई राहें तलाशने जैसी मुहिम जारी रखना शामिल है।

राष्‍ट्रीय एड्स नियंत्रण समर्थन परियोजना (एनएसीएसपी) परिणामों पर ध्‍यान देते हुए एनएसीपी 2012-2017 के चौथे चरण की सामरिक योजना में सहयोग करेगी। परियोजना के तीन घटक होंगे :

घटक एक : लक्षित निवारक हस्‍तक्षेपों को बढ़ाना (कुल अनुमानित लागत 440 मिलियन अमरीकी डॉलर)।

घटक दो : संचार व्‍यवहार बदलाव (कुल अनुमानित लागत 40 मिलियन अमरीकी डॉलर)।

घटक तीन : संस्‍थागत सुदृढता (कुल अनुमानित लागत 30 मिलियन अमरीकी डॉलर)।

एनएसीएसपी के ढांचागत क्रियान्‍वयन और संस्‍थागत व्‍यवस्‍थाएं एनएसीपी तीन की तरह ही होगी। इसके कार्यक्रमों का प्रबंधन केन्‍द्रीय स्‍तर पर एड्स नियंत्रण विभाग, राज्‍य स्‍तर पर राज्‍य एड्स नियंत्रण सोसयटियों (एसएसीएस) और जिला स्‍तर पर जिला एड्स निवारक नियंत्रक इकाईयां करेंगी। तकनीकी समर्थन इकाइयों को एनएसीपी-तीन के दौरान एसएसीएस के साथ राज्‍यों में लक्षित हस्‍तक्षेपों को सहयोग देने, गुणवत्‍ता, निगरानी के लिए गठित किया गया था।

हालांकि समग्र एचआईवी के फैलाव की दर सर्वाधिक जोखिम समूह के बीच घट रही है। यह 2010-11 के दौरान मादक द्रव पदार्थ लेने वालों के बीच 7.14 प्रतिशत, पुरुषों के साथ यौन संबंध बनाने वाले पुरुषों के बीच 4.43 प्रतिशत और महिला सेक्‍स वर्करों के बीच 2.6 प्रतिशत दर थी। राज्‍यों में काफी फेरबदल हुआ है। इन क्षेत्रों की आबादी तक पहुंच बढ़ाने के प्रयास बहुत आवश्‍यक हो गए हैं। राष्‍ट्रीय कार्यक्रम विश्‍व एड्स दिवस वर्ष 2013 के विषय के साथ दुनियाभर में अपने शानदार प्रदर्शन, प्रबंधन प्रणाली और उत्‍कृष्‍ट कार्यों से प्राप्‍त अनुभवों के साथ कार्य करना जारी रखेगा। विश्‍व एड्स दिवस का विषय है साझी जिम्‍मेदारी : एड्स मुक्‍त पीढ़ी के सशक्‍तीकरण परिणाम।



PIB

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