महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के
मामले में वर्ष 2013 नई सामाजिक चेतना का संदेश देकर विदा होने जा रहा है। नया
काननू बन गया, पीड़ित महिलाओं की मदद के लिए कोष की
स्थापना कर दी गई,
लेकिन
व्यवस्था में जिस बुनियादी बदलाव की आशा की गई थी, वह आज भी आधी-अधूरी है। बहरहाल, महिलाओं को हौसला मिला है कि वे अपने खिलाफ होने वाले अपराधों पर चुप
रहने की बजाय खुलकर बोल सकती हैं। यह कौन कल्पना कर सकता था कि संत-महात्मा कहलाने
वालों से लेकर जज,
पत्रकार
तक महिला अत्याचार के मामलों में सीखचों के पीछे होंगे। निश्चय ही यह बड़े सामाजिक
बदलाव का संकेत है, मगर
इसके साथ व्यवस्था को बदलने की रफ्तार भी तेज करने की जरूरत है। दुर्भाग्य की बात है कि इसकी इच्छा शक्ति काफी
कमजोर दिखाई दे रही है। 16 दिसम्बर 2012 की घटना के बाद छत्तीसगढ़ में भी महिलाओं
की सुरक्षा के मुद्दें पर काफी चर्चा हुई। पुलिस व्यवस्था को महिलाओं के प्रति
अधिक संवेदनशील बनाने, हर
थाने में महिला डेस्क स्थापित कर पुलिस को सक्रिय बनाने की बात भी कही गई थी।
पुलिस कितनी बदली है इस पर विचार करने की जरूरत है। यानी जब हम आधी आबादी की बात करते हैं तो पूरी
व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी के बारे में सोचा जाना चाहिए। थानों में महिला
डेस्क स्थापित करने की घोषणा तो कर दी गई लेकिन इस डेस्क को चलाने के लिए महिला
पुलिस कर्मी ही नहीं है। डेस्क के नाम पर थाने के गलियारे में एक मेज और कुर्सी
देकर किसी एक महिला पुलिस कर्मी को बैठा देने से तो महिलाओं की सुरक्षा हो नहीं
सकती। जांजगीर थाने के महिला डेस्क का यही हाल है। राज्य के अन्य थानों में भी
स्थिति इससे अधिक अलग नहीं है। इसी जिले
से हाईकोर्ट में दायर एक जनहित याचिका में सवाल किया गया था कि पुलिस में महिलाओं
के मामलों की जांच के लिए महिला पुलिस अधिकारियों की क्या व्यवस्था है। पुलिस ने
जवाब में जो जानकारी दी उससे पता चलता है कि महिला सुरक्षा के मुद्दे को कितनी
गंभीरता से लिया जा रहा है। राज्य में एक महिला आईपीएस अधिकारी तक नहीं है। जाहिर
है महिलाओं की सुरक्षा के लिए पुलिस में ढांचागत सुधार के लिए अभी भी काफी कुछ
किया जाना है। जब तक व्यवस्था नहीं बदलेगी तब तक समाज में आई नई चेतना का
सकारात्मक परिणाम की उम्मीद करना बेमानी होगा। यह व्यवस्था का ही दोष है कि
महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में कोई कमी नहीं आई है। काननू सख्त होने के
बावजूद दुष्कर्म की घटनाएं हो रही है, दहेज प्रताड़ना की घटनाएं भी नहीं रूक रही हैं। पारिवारिक विवादों को
सुलझाने के लिए स्थापित किए गए, पुलिस परामर्श केन्द्र भी प्रभावी ढंग से काम नहीं कर रहे हें। यदि
महिला सुरक्षा के मुद्दे पर आई नई चेतना का लाभ उठाना है तो व्यवस्था को बदलने की
दिशा में भी काम करना होगा।
IAS Charisma is a brainchild of Dr. Kumar Ashutosh, a Ph.D. in History, PGDM(Marketing) and Double M.A.(History and Philosophy), an IAS aspirant himself, he cleared IAS Mains twice and faced IAS interview before starting on this journey of guiding future IAS aspirants to help them in tackling with the problems that he had to face during IAS preparation. IAS Charisma is an endeavor to light a candle for IAS aspirants who sometimes get lost in commercialization of education.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कुल पेज दृश्य
लेबल
- Indian History (1)
- कार्य निष्पादन योजना (1)
- भारतीय रेल (1)
- साफ-सफाई (1)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें