बुधवार, 4 दिसंबर 2013

थाइलैंड और नेपाल

भारत के दो पड़ोसी देश थाइलैंड और नेपाल, इस वक्त राजनीतिक अनिश्चितता के दौर से गुजर रहे हैं। 2006 में नेपाल में 240 साल पुराने राजतंत्र की समाप्ति हुई और लोकतंत्र की ओर इस देश ने पहला कदम बढ़ाया। किंतु बीते सालों में जिस तरह वहां राजनीतिक अस्थिरता का दौर बना रहा, संविधान को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों में मतभेद कायम रहा, उससे ऐसा लग रहा है कि लोकतंत्र की स्थापना के लिए जिस संयम, समझदारी, सहिष्णुता की आवश्यकता है, उसकी वहां फिलहाल कमी है। 10 वर्षों तक चले सशस्त्र संघर्ष और 19 दिनों तक चले जनआंदोलन के बाद साल 2006 में माओवादियों और गिरिजा प्रसाद कोइराला के नेतृत्व वाली सरकार के बीच हुए समझौते के बाद राजतंत्र की समाप्ति और लोकतंत्र की स्थापना का शत प्रतिशत श्रेय माओवादियों को मिला क्योंकि अन्य पार्टियां किसी न किसी रूप में राजतंत्र को बनाए रखना चाहती थीं। माओवादियों ने राजतंत्र के पक्ष में निर्मित लगभग अभेद्य दुर्ग को ध्वस्त कर दिया और जनता की अभूतपूर्व प्रशंसा पाई। साल 2008 के चुनाव में जनता ने इनको जबर्दस्त समर्थन दिया और दक्षिण एशिया में पहली बार किसी ऐसी पार्टी की सरकार बनी जो खुद को घोषित तौर पर माओवादी कम्युनिस्ट कहती थी, जिसकी अपनी निजी जनमुक्ति सेना थी और जो सशस्त्र संघर्ष के बाद चुनाव के जरिए सत्ता में आई। किंतु माओवादियों की आंखों पर इस सफलता की धुंध इतनी गाढ़ी होती गई कि वे जनभावनाओं को पढ़ नहीं पाए। वे लोगों से दूर होते गए और देखते-देखते वही लोग जिन्होंने 2006 में उन्हें ऐतिहासिक जीत दिलाई थी, उनसे दूर हो गए। उस दूरी का अंदाजा शायद अब माओवादियों को ताजा चुनावी परिणाम से हो रहा हो। 19 नवंबर को संविधान सभा के दूसरी बार संपन्न हुए चुनाव में उदारवादी लोकतांत्रिक ताकत नेपाली कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। संविधान सभा की कुल 240 सीटों में से नेपाली कांग्रेस पार्टी को 105 सीटों पर विजय प्राप्त हुई है। नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी-एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी (नेकपा-एमाले, सीपीएन-यूएमएल) ने 91 सीटें जीतकर दूसरा स्थान हासिल किया है, जबकि यूसीपीएन(माओवादी) 26 सीटें जीतकर तीसरे स्थान पर रही है। शेष 18 सीटें मधेसी और अन्य पार्टियों को प्राप्त हुई हैं। इस जनमत का सम्मान करते हुए सभी दल अपनी स्थितियों पर आत्ममंथन कर रहे होंगे, लेकिन फिलहाल जरूरी है कि वहां संविधान सभा का गठन हो। इन चुनावों का उद्देश्य भी यही था। 601 सदस्यीय संविधान सभा का गठन करने के लिए 240 सदस्य प्रत्यक्ष मतदान से आएंगे। आनुपातिक मतदान से 335 सदस्य चुने जाएंगे और शेष 26 सदस्यों को सरकार नामित करेगी। संविधान सभा का गठन होने से वहां लोकतंत्र मजबूत होगा, ऐसी उम्मीद है। इधर थाइलैंड में भी भारी राजनीतिक उथल-पुथल मची है। प्रधानमंत्री यिंगलक शिनवात्रा के खिलाफ प्रारंभ हुआ विरोध प्रदर्शन हिंसक हो चुका है और इसमें 5 लोगों की मौत हो गई है। विरोध प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि यिंगलक शिनवात्रा देश के पूर्व प्रधानमंत्री और अपने भाई ताक्सिन शिनवात्रा के हाथों की कठपुतली बन गई हैं। ताक्सिन थाईलैंड के एक बड़े उद्योगपति हैं और 2006 में एक सैन्य तख्तापलट के जरिए उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया गया था। उन पर भ्रष्टाचार और सत्ता का गलत इस्तेमाल करने का आरोप था। फिलहाल वह निर्वासित जीवन बिता रहे हैं। प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व पूर्व में देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी डेमोक्रेट पार्टी से जुड़े रहे सुदेप थेगसुबान कर रहे हैं और इन लोगों ने यिंगलक पर यह भी आरोप लगाया है कि वह एक ऐसा विधेयक लाने की फिराक में हैं जिससे उनके भाई को माफी मिल जाएगी और उनके सत्ता में लौटने का रास्ता साफ हो जाएगा।


थाईलैंड साल 2010 के बाद सबसे बड़े राजनीतिक विरोध प्रदर्शन का सामना कर रहा है। साल 2010 में थाक्सिन के रेड-शर्ट समर्थक हज़ारों की संख्या में सड़कों पर उतर आए थे और उन्होंने राजधानी बैंकॉक के अहम हिस्सों को अपने नियंत्रण में ले लिया था। अब यही काम विरोधी कर रहे हैं। वे कई सरकारी दफ्तरों के अलावा गर्वमेंट हाउस का घेराव कर भीतर आना चाह रहे थे। प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए सेना भेजी जा रही है। प्रदर्शनकारियों ने रविवार को विजय दिवस घोषित किया, क्योंकि उन्हें यिंगलक को अपदस्थ करने के लिए अपने आंदोलन को तेज करने और थाई राजनीति पर उनके परिवार के एक दशक से अधिक समय के प्रभाव को समाप्त करने की दिशा में आगे बढ़ने में सफलता मिली है। फिलहाल प्रधानमंत्री शिनवात्रा को किसी अज्ञात सुरक्षित स्थान पर रखा गया है। लेकिन थाइलैंड की राजनीति पर असुरक्षा के बादल मंडरा रहे हैं। विरोधियों से सरकार किस तरह निपटेगी, यह बड़ा सवाल है, क्योंकि समय पूर्व चुनाव करवाने से तो प्रधानमंत्री ने इन्कार कर दिया था। अपने दोनों पड़ोसी देशों की राजनैतिक हलचलों पर भारत को पैनी निगाह रखनी होगी।

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