भारत सरकार के वित्त मत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग द्वारा 11 व 12 दिसम्बर को दिल्ली इकोनोमिक कॉनक्लेव के नाम से चौथा अंतर्राष्ट्रीय
आर्थिक सम्मेलन आयोजित किया गया । विश्व
अर्थव्यवस्था तथा भारतीय अर्थव्यवस्था में आगे आने वाले वर्षों में बदलाव एवं उससे
उत्पन्न चुनातियों को ध्यान में रखकर इस
वर्ष सम्मेलन में चर्चा का विषय- अगले पांच सालों की कार्यसूची रखा गया था । इस दो दिवसीय सम्मेलन का उद्धाटन 11 दिसम्बर को वित मंत्री पी. चिदम्बरम द्वारा किया गया तथा 12 दिसम्बर के समापन समारोह के मुख्य
अतिथि केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री ऑस्कर फ र्नाडीज थे । इस सम्मेलन के वक्ताओं में डॉ. सी. रंगाराजन, डॉ. रघुराम राजन, डॉ. मोंटेकसिंह अहलुवालिया, डॉ. विमल जालान, डॉ. जगदीश भगवती, डॉ. एच.ए.सी. प्रसाद, केन्द्रीय उद्योग मंत्री सचिन पायलट, सी.आई.आई अध्यक्ष एस. गोपाल कृष्णन, डॉ. अरविन्द मायाराम तथा प्रो. रथ कोट्टुमुरी उल्लेखनीय थे ।
वित्तमंत्री पी चिदम्बरम ने अपने उद्धाटन उद्बोधन में जो महत्वपूर्ण बात कही वह यह कि हाल ही में
सम्पन्न विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार का मुख्य कारण बढ़ती हुई
महंगाई है। वे महंगाई को काबू में लाने का प्रयास करेंगे किन्तु उनकी सर्वोच्च
प्राथमिकता राजकोषीय स्थिति को मजबूत बनाने की है। श्री चिदम्बरम राजकोषीय घाटा को जीडीपी के 3 प्रतिशत की सीमा में लाना चाहते हैं ।
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ. रघुराम राजन ने अन्य बातों के अलावा अपने उद्बोधन
में एक ध्यान देने योग्य बात यह कही कि
आर्थिक विकास हेतु संसद में लंबित
पड़े विधेयकों को वर्तमान सत्र में ही
पारित करना जरूरी है, क्योंकि
चुनाव के बाद किसी भी एक दल या गठबंधन को बहुमत मिलने की क्षीण संभावना होने के
कारण उस समय विधेयकों का पारित होना आसान
नही होगा । भारतीय उद्योग परिसंघ के अध्यक्ष एस. गोपालकृष्णन ने भी अपने उद्बोधन
में डॉ. रघुराम राजन का समर्थन किया
।
वैसे तो भाजपा ने बिलों को पारित करवाने में
सहयोग का संकेत दिया है, फि
र भी यह देखना है कि वर्तमान सत्र में संसद कितना कामकाज कर पाती है, कितने
बिल पारित हो पाते हैं तथा सरकार
कितने निर्णय क्रियान्वित करवा पाती है ।
पुरातन काल में राय की अर्थव्यवस्था से संबंधित सभी फैसले राजाओं तथा
लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनेताओं द्वारा लिए जाते थे, इसीलिए अंग्रेज अर्थशास्त्रियों द्वारा 19वीं सदी तक अर्थशास्त्र को पॉलीटिकल इकोनोमी अथवा राजनैतिक अर्थव्यवस्था
नाम से संबोधित किया जाता था । दरअसल
राजनैतिक व्यवस्था के ढांचे के अंतर्गत ही अर्थव्यवस्था संचालित होती है । इसीलिए
अर्थव्यवस्था तथा आर्थिक घटनाक्रम के अध्ययन के लिए राजनैतिक हालात का अध्ययन जरूरी
माना जाता है । आगे आने वाले पांच वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था की दशा तथा
दिशा क्या होगी,
वह
राजनैतिक परिस्थितियों एवं राजनेताओं के फैसले और उनको अमलीजामा पहनाने पर निर्भर करेगी । विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के समाचार से 9 दिसम्बर को शेयर बाजार में 329 अंकों की उछाल के बारे में कहा गया था
कि बाजार इसका श्रेय नरेन्द्र मोदी को देते हुए यह मानता है कि उनके
प्रधानमंत्री बनने पर देश में
औद्योगिक निवेश को बढ़ावा मिलेगा तथा
अर्थव्यवस्था मजबूत होगी । लेकिन
बाजार की चाहत से वास्तविकता बहुत दूर है।
सच पूछा जाय तो हाल के विधानसभा चुनावों ने यह साबित किया है कि जिन राज्यों
में भाजपा और कांग्रेस पार्टी का सीधा मुकाबला होगा, वहीं पर भाजपा की जीत की संभावनाएं है, किन्तु जहां पर वर्तमान में क्षेत्रीय
दल सत्तारूढ़ हैं या जहां पर क्षेत्रीय दल बहुत मजबूत हैं, उन
राज्यों में कांग्रेस की हार के
बावजूद लोकसभा में भाजपा को अधिक सीटें
मिलने की संभावनाएं कम हैं । कुल मिलाकर लोकसभा क्षेत्रीय दलों की जीत की
अधिक संभावनाएं हैं। इस प्रकार कहा सकता
है कि डॉ. रघुराम राजन व एस. गोपालकृष्णन ने राजनैतिक स्थितियों का बहुत सही आकलन
किया है ।
जहां तक अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति का सवाल
है, यह तसल्ली की बात है कि पिछले कुछ महीनों में विदेशी मुद्रा भंडार में
बढ़ोतरी हुई है तथा अब चालू खाता का घाटा
कम होकर जीडीपी के तीन प्रतिशत तक आ गया
है। किन्तु चिन्ता की बात यह है कि खुदरा महंगाई दर जो अक्टूबर 2013 में 10 प्रतिशत थी, नवम्बर 2013
में बढ़कर 11 प्रतिशत हो गई है, जिसमें खाद्य पदार्थों की कीमतें पिछले
साल की तुलना में 14
प्रतिशत बढ़ी हैं । दूसरी ओर चालू वित्तीय
साल में आर्थिक विकास दर लगभग 5.0 प्रतिशत रहने का अनुमान है । सही मायनों में आर्थिक विकास की आदर्श स्थिति के लिए जीडीपी वृध्दि दर 11 प्रतिशत तथा खुदरा महंगाई दर 5 प्रतिशत हानी चाहिए । किन्तु अभी तो
सब कुछ उल्टा - पल्टा हो रहा है। विकास का इंजन कही जाने वाली औद्योगिक
वृध्दि दर जो जीडीपी वृध्दि दर से अधिक होनी चाहिए, वह जीडीपी वृध्दि दर से नीची चल रही है ।
लोकसभा चुनाव के पूर्व वर्तमान सरकार
महंगाई नियंत्रण के लिए अपनी ओर से भरसक प्रयास करेगी, किन्तु खुदरा महंगाई कम होगी इसकी
संभावना कम है । वर्तमान महंगाई को देखते
हुए रिजर्व बैंक अपनी 18 दिसम्बर की समीक्षा बैठक में ब्याज दर
में बढ़ोतरी का ऐलान कर सकता है। किन्तु ब्याज दर बढ़ोत्तरी से महंगाई पर शायद ही
लगाम लग पाए। चुनाव के बाद वामपंथी दलों के बाहर से समर्थन से क्षेत्रीय दलों के
गठबंधन की खिचड़ी सरकार बनने की अधिक संभावनाएं हैं । उस सरकार से आर्थिक विकास के लिए
ठोस फैसले लेकर काम करने की उम्मीद कम है, क्योंकि उस गठबंधन सरकार का प्रधानमंत्री अपनी कुर्सी बचाने की जुगत
में सभी दलों को खुश करने के प्रयास में
लगा रहेगा तथा लोकलुभावन घोषणाएं करके काम चलाता रहेगा । इस प्रकार 2014 के चुनाव के बाद भी 10 प्रतिशत की उच्च मुद्रा स्फीति दर तथा
5 प्रतिशत की निम्न जीडीपी वृध्दिदर की
प्रवृत्ति बने रहने की सम्भावनाएं हैं ।
देशबंधु
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