शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

स्थिर मुद्रा

अपनी मौद्रिक नीति की तिमाही समीक्षा में ब्याज दरों को स्थिर रख कर रिजर्व बैंक ने सचमुच उद्योग जगत को हैरान कर दिया। थोक मूल्य आधारित महंगाई की दर पिछले चौदह महीनों के सबसे ऊंचे स्तर तक पहुंच चुकी है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे थे कि रिजर्व बैंक अपनी ब्याज दरों में चौथाई फीसद तक की बढ़ोतरी कर सकता है। मगर रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने तर्क दिया कि पिछले कुछ समय से सब्जियों आदि की कीमतों में कमी आने से महंगाई की दर में गिरावट दर्ज हो सकती है। मगर साथ ही उन्होंने आगाह किया कि अगर महंगाई पर लगाम नहीं लगी तो आने वाले दिनों में बैंक दरों में बढ़ोतरी का फैसला किया जा सकता है। फिलहाल रिजर्व बैंक के इस कदम से उपभोक्ता को कर्जों पर अतिरिक्त बोझ नहीं उठाना पड़ेगा। बैंक दरों में बढ़ोतरी की वजह से बैंकिंग क्षेत्र को स्वाभाविक रूप से अपनी ब्याज दरें बढ़ानी पड़ती हैं, जिसका भार उद्योग समूहों और आखिरकार उपभोक्ता को वहन करना पड़ता है। ब्याज दरें बढ़ाने के पीछे तर्क है कि इससे लोगों की अनावश्यक खरीदारी और खर्च पर अंकुश लगता है। इस तरह महंगाई को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। मगर इसका दूसरा पहलू यह भी है कि कर्ज लेकर कारोबार करने वाले उद्योगों की उत्पादन लागत बढ़ती है, इस तरह महंगाई भी बढ़ती है। फिर बाजार में पैसे की तरलता घटने से उत्पादन की दर पर असर पड़ता है, जिससे अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी होती है। इसके अलावा नौकरीपेशा लोगों को बढ़ी दर से गृह, वाहन आदि ऋण चुकाना पड़ता है, जो एक तरह से उस पर महंगाई की मार ही साबित होता है।

फिलहाल, सामान्य उपभोक्ता, उद्योग जगत और बैंकों को राहत देकर रिजर्व बैंक ने उम्मीद जताई है कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार कम नहीं होगी। उसने आर्थिक विकास दर का लक्ष्य पहले जैसा ही पांच से छह फीसद तक रखा है। साथ ही उसने सरकार को सुझाव दिया है कि वह रुकी हुई परियोजनाओं में तेजी लाने का प्रयास करे। परियोजनाएं चलती रहती हैं तो उससे अर्थव्यवस्था को भी गति मिलती है। इस लिहाज से रिजर्व बैंक का ताजा फैसला विकास दर और महंगाई के बीच संतुलन बनाए रखने की मंशा से किया गया है। स्वाभाविक ही इसका सभी उद्योग समूहों ने स्वागत किया और शेयर बाजार के सेंसेक्स में अचानक उछाल दर्ज हुआ। महंगाई बढ़ने की वजह केवल बाजार में पैसे का प्रवाह नहीं है। खाने-पीने की वस्तुओं के दाम बढ़ने का कारण कृषि उत्पाद के विपणन आदि से जुड़ी नीतियों में कई गंभीर खामियां हैं। सामान्य आदमी को सबसे अधिक परेशानी रोजमर्रा की उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें बढ़ने की वजह से उठानी पड़ती है। इसलिए भंडारण की उचित व्यवस्था करने, कालाबाजारी रोकने और वायदा कारोबार को नियंत्रित करने जैसे पहलुओं पर विशेष ध्यान देने की जरूरत लंबे समय से रेखांकित की जाती रही है। मगर इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति नहीं हो पाई है। इस बात का जवाब अभी तक नहीं तलाशा जा सका है कि किसान को मिलने वाली कीमत और बाजार में पहुंचने के बाद हो चुकी कीमत के बीच भारी अंतर के पीछे क्या कारण है। रिजर्व बैंक ने सिर्फ सब्जियों की कीमत में कमी आने से महंगाई पर काबू पाए जा सकने की उम्मीद जताई है, अगर दूसरी उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों को भी तार्किक स्तर तक लाने के उपाय तलाशे जाएं तो महंगाई शायद इतनी भयावह न रहे। इस तरह बैंक दरों में बढ़ोतरी के बजाय कटौती का फैसला भी किया जा सकता है।

  

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