बाली में चल रहे विश्व व्यापार संगठन
के मंत्री स्तरीय बैठक में खाद्य सब्सिडी के मसले पर भी चर्चा हो रही है। भारत के
लिए यह मसला अहम है, क्योंकि
इसने एक खाद्य सुरक्षा कानून पास किया है, जिसके तहत किसानों को उनकी उपज का वाजिब मूल्य उपलब्ध कराना है और
उपभोक्ताओं को कम कीमत पर अनाज उपलब्ध कराना है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस
खाद्य सुरक्षा कानून को देश में 2014 लोकसभा चुनाव के पहले लागू करने के सख्त
निर्देश अपनी पार्टी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार को दे रखा है। उनके लिए यह
कानून प्रतिष्ठा का ही सवाल नहीं है, बल्कि जीवन और मौत का सवाल भी बन गया है। कांग्रेस आज विपरीत
स्थितियों का सामना कर रही है और उसके सामने लोकसभा चुनाव एक बार फिर जीत लेने की
गंभीर चुनौती खड़ी है। उसने खाद्य सुरक्षा विधेयक को अपने तुरुप का पत्ता बना रखा
है।
भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस पर चौतरफा
हमला कर रही है। कांग्रेस नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार का अपना रिकार्ड बहुत खराब
हो गया है। भ्रष्टाचार के लगे आरोपों ने उसको नीचे से ऊपर तक हिला रखा है। उसके
ईमानदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर भी भ्रष्टाचार का दाग लग चुका है। अब शायद ही
कोई यह मानने को तैयार होगा कि मनमोहन सिंह भ्रष्ट नहीं हैं। उनकी ईमानदारी को
अपनी ढाल बनाने वाली कांग्रेस आज उस सुरक्षा कवच से हीन हो गई है।
खाद्य सुरक्षा कानून ही अब कांग्रेस और
सोनिया की एक मात्र उम्मीद है, जिसकी सहायता से वह एक बार फिर सत्ता में आने की सोच सकती है।
हालांकि इस कानून को भाजपा का भी समर्थन प्राप्त है। यदि बाली में इस कानून पर कोई
खतरा पैदा हुआ, तो भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस का
जीना हराम कर देगी। इस कानून को खतरे में डालने का आरोप वह कांग्रेस के ऊपर
डालेगी।
विश्व व्यापार संगठन का मंत्री स्तरीय
बाली सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है, जब विदेश व्यापार की बहुपक्षीयता खतरे में पड़ती जा रही है। इससे
विश्व व्यापार संगठन के प्रभुत्व पर ही सवाल खड़ा हो गया है। आज बहुपक्षीय समझौतों
के ऊपर द्विपक्षीय समझौते, क्षेत्रीय व्यापार समझौते और क्षेत्रीय व्यापारिक जोन हावी होते जा
रहे हैं। इसके कारण बहुपक्षीय व्यापार वार्ताओं का दोहा च विफ ल हो गया है।
बाली में हो रहे सम्मेलन की मुख्य
चिंता व्यापार के खर्च को कम करना है। सम्मेलन के पहले इस बात पर सहमति हो गई थी
कि इस सम्मेलन का मुख्य विषय यही रहेगा। इसके साथ विकसित देशों और भारत व चीन जैसे
विकासशील देशों के बीच यह भी सहमति है कि वे बहुत कम विकसित देशों से होने वाले
व्यापार को रियायत देंगे।
लेकिन विकासशील देशों द्वारा कृषि का
दिये जाने वाले समर्थन को भी इस सम्मेलन का मुद्दा बनाया गया है और यह इस सम्मलेन
का सबसे विवादित मुद्दा है। सच कहा जाय, तो इस पर विवाद बहुत समय से चल रहा है। अन्य मसलों पर तो कुछ न कुछ
सहमति भी हो जाती है, पर
इस मसले पर किसी प्रकार की सहमति भी नहीं हो पाती है। इस मसले पर सहमति नहीं होने
के कारण ही दोहा च लकवा से ग्रस्त हो गया है।
बाली सम्मेलन के द्वारा दोहा चक्र को
नई जिंदगी दिए जाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन कृषि पर सहमति हुए बिना इस
सम्मेलन को न तो सफ ल कहा जा सकता है और न दोहा चक्र की वार्ता में जान आ सकती है।
सच कहा जाए, तो विश्व व्यापार संगठन की प्रासंगिकता
पर भी दोहा चक्र की विफ लता के कारण सवाल उठ रहा है।
भारत के वाणिय मंत्री आनंद शर्मा ने
कहा है कि विकासशील देश कृषि सब्सिडी और किसानों को समर्थन देने के मसले पर अपने
रुख से पीछे नहीं हटेंगे।
देशबन्धु
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