शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

लोकपाल तथा लोकायुक्‍त विधेयक

                                       
संसद द्वारा पारित ऐतिहासिक लोकपाल तथा लोकायुक्‍त विधेयक, 2011 (राज्‍यसभा द्वारा 17 दिसम्‍बर, 2013 तथा लोकसभा द्वारा 18 दिसम्‍बर, 2013 को पारित) ने केन्‍द्र में लोकपाल तथा राज्‍यों में इस कानून के प्रभावी होने के एक वर्ष के अंदर राज्‍यों के  विधान मंडलों द्वारा पारित किये जाने पर लोकायुक्‍त संस्‍था के गठन का मार्ग प्रशस्‍त कर दिया। दोनों सदनों द्वारा पारित यह विधेयक राष्‍ट्रपति की स्‍वीकृति के लिए भेजा जाएगा और राष्‍ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून का स्‍वरूप ले लेगा। नया कानून ऊंचे पदों पर आसीन लोगों सहित सार्वजनिक पदों पर आसीन लोगों के विरूद्ध भ्रष्‍टाचार की शिकायतों से निपटने के तौर तरीके प्रदान करता है।

विधेयक का महत्‍व  :

संसद के दोनों सदनों द्वारा इस बिल को पारित किया जाना  स्‍वयं में महत्‍वपूर्ण है। इस दृष्टि से कि अतीत में लोकपाल कानून बनाने के सभी प्रयास विफल रहे। लोकसभा में लोकपाल पर आठ विधेयक पेश किये गये थे, लेकिन 1985 के विधेयक को छोड़कर विभिन्‍न लोकसभाओं के भंग होने के कारण ये विधेयक अधर में रह गये। वर्तमान विधेयक को सदन के दोनों सदनों से मिली मंजूरी कारगर भ्रष्‍टाचार विरोधी ढांचा बनाने के संसद तथा सरकार की प्रतिबद्धता का संकेत देती है।
इस विधेयक की अन्‍य महत्‍वपूर्ण विशेषता यह है कि सिविल सोसायटी सहित सभी हितधारकों से लगातार विचार-विमर्श के बाद इसको वर्तमान रूप दिया गया। लोकपाल और लोकायुक्‍त विधेयक स्‍वतंत्र भारत के इतिहास में एकमात्र विधेयक है, जिस पर संसद और संसद से बाहर व्‍यापक चर्चा हुई। इस चर्चा से लोगों में भ्रष्‍टाचार से निपटने के लिए लोकपाल की कारगर संस्‍था की जरूरत महसूस हुई।

संदर्भ

सरकार ने 8 अप्रैल, 2011 को लोकपाल विधेयक का प्रारूप तैयार करने के लिए एक संयुक्‍त प्रारूप समिति का गठन किया। विधेयक के मूलभूत सिद्धान्‍तों पर व्‍यापक चर्चा हुई। सिविल सोसायटी के प्रतिनिधियों तथा सरकार के प्रतिनिधियों की राय भिन्‍न होने के कारण लोकपाल विधेयक के दो अलग-अलग मसौदे बने। सिविल सोसायटी के प्रतिनिधियों ने जन लोकपाल विधेयक का मसौदा बनाया और सरकार की तरफ से विधेयक का प्रारूप तैयार किया गया। सरकार तथ सिविल सोसायटी के प्रतिनिधियों की राय में भिन्‍नता होने के कारण संयुक्‍त प्रारूप समिति का विधायी कार्य कठिन हो गया, क्‍योंकि संविधान बुनियादी ढांचे से छेड़छाड़ किये बगैर संवैधनिक प्रावधानों के तथा प्रस्‍तावित विधेयक के प्रावधानों के बीच संतुलन बनाने की आवश्‍यकता पड़ी। इसलिए प्रस्‍तावित विधेयक पर सभी राजनीतिक दलों तथा राज्‍य सरकारों के बीच विचार-‍विमर्श हुआ। 3 जुलाई, 2011 को सर्वदलीय बैठक हुई। इसके बाद 4 अगस्‍त, 2011 को सरकार ने लोकसभा में लोकपाल विधेयक, 2011 पेश किया। विधेयक को समीक्षा और रिपोर्ट के लिए कार्मिक, जन शिकायत, विधि और न्‍याय वि‍भाग की स्‍थायी समिति को भेजा गया। फिर 27 अगस्‍त, 2011 को एक साथ संसद के दोनों सदनों में विचार-विमर्श के दौरान तत्‍कालीन वित्‍तमंत्री ने सदन की भावना निम्‍न शब्‍दों में व्‍यक्‍त की :
'‘यह सदन सिटीजन चार्टर, उचित तरीके से निचले स्‍तर के अफसरों को लोकपाल के दायरे में लाने तथा राज्‍यों में लोकायुक्‍त संस्‍था बनाने के बारे में सिद्धान्‍त रूप में सहमत है। मैं सदस्‍यों से आग्रह करूंगा कि आप विभाग से जुड़ी स्‍थायी समिति को इसे आगे विचार के लिए भेजें''

सभी हितधारकों से व्‍यापक विचार-विमर्श के बाद स्‍थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में विधेयक में प्रमुख संशोधनों का सुझाव देते हुए अनेक सिफारिशें की। यह सिफारिशें विधेयक की सीमा और विषय वस्‍तु के बारे में थी। समिति ने यह सिफारिश भी की कि केन्‍द्रीय विधेयक में राज्‍यों में लोकायुक्‍त गठन के लिए आवश्‍यक प्रावधान किये जाएं, ताकि राज्‍य के लोकायुक्‍तों से जुड़े कानून में एकरूपता आ सके। स्‍थायी समिति की सिफारिशों पर विचार करने के बाद सरकार ने लोकसभा में विचाराधीन लोकपाल विधेयक, 2011 को वापस ले लिया और 12 दिसम्‍बर, 2011 को एक नया तथा व्‍यापक लोकपाल और लोकायुक्‍त विधेयक, 2011 प्रस्‍तुत किया। 27 दिसम्‍बर, 2011 को लोकसभा ने इस विधेयक को पारित किया। राज्‍यसभा ने 21 मई, 2012 को राज्‍यसभा की प्रवर समिति को भेजने संबंधी एक प्रस्‍ताव स्‍वीकार किया। हितधारकों के साथ वि‍चार-वि‍मर्श के बाद प्रवर समिति ने राज्‍यसभा को अपनी रिपोर्ट सौंपी। प्रवर समिति ने विधेयक में अनेक संशोधनों की सिफारिश की। निरंतर वि‍चार-वि‍मर्श की प्रक्रिया से इस विधेयक के गुजरने के कारण यह कहना असंगत नहीं होगा कि वर्तमान विधेयक में भारत के लोगों की व्‍यापक सहमति हैं

विधेयक की प्रमुख विशेषताएं -

संसद द्वारा पारित विधेयक की प्रमुख विशेषताएं निम्‍न है :-

(क) केंद्र में लोकपाल तथा राज्‍य के स्‍तर पर लोकायुक्‍त संस्‍था का गठन कर देश के लि‍ए एक रूप नि‍गरानी तथा भ्रष्‍टाचार वि‍रोधी मानचि‍त्र प्रस्‍तुत करना।

केंद्र और राज्‍य दोनों ही स्‍तर पर
(ख) लोकपाल संस्‍था में एक अध्‍यक्ष तथा 8 सदस्‍य होंगे इनमें से 50 प्रति‍शत सदस्‍य न्‍यायि‍क क्षेत्र के होंगे। लोकपाल के 50 प्रति‍शत सदस्‍य अनुसूची जाति, अनुसूचि‍त जनजाति, अन्‍य पि‍छड़े वर्गों , अल्‍प संख्‍यकों तथा महि‍लाओं का प्रति‍नि‍धि‍त्‍व करेंगे।

(ग) लोकपाल के अध्‍यक्ष और सदस्‍यों का चयन एक चयन समि‍ति‍ करेगी। इसके नि‍म्‍न सदस्‍य होंगे:-

  • प्रधानमंत्री
  • लोकसभा अध्‍यक्ष
  • लोकसभा में वि‍पक्ष के नेता
  • भारत के प्रधान न्‍यायाधीश या भारत के प्रधान न्‍यायाधीश द्वारा मनोनीत उच्‍चतम न्‍यायालय का वर्तमान न्‍यायाधीश
  • भारत के राष्‍ट्रपति‍ द्वारा मनोनीत प्रख्‍यात न्‍यायवि‍द


(घ) चयन प्रक्रि‍या में चयन समि‍ति‍ को खोज समि‍ति‍ मदद देगी। खोज समिति‍ के 50 प्रति‍शत सदस्‍य अनुसूची जाति,अनुसूचि‍त जनजातिअन्‍य पि‍छड़े वर्गों , अल्‍प संख्‍यकों तथा महि‍लाओं का प्रति‍नि‍धि‍त्‍व करेंगे।

(ड़) प्रधानमंत्री का पद लोकपाल के दायरे में आया। प्रधानमंत्री के वि‍रूद्ध शि‍कायतों की सुनवाई की वि‍शेष प्रक्रि‍या होगी।

(च) समूह ए, बी, सी तथा डी के अधि‍कारि‍यों तथा सरकार के कर्मचारि‍यों सहि‍त सभी श्रेणी‍यों के लोकसेवक, लोकपाल के क्षेत्राधि‍कार में आएंगे। लोकपाल द्वारा मुख्‍य सर्तकता आयुक्‍त को शि‍कायत भेजे जाने पर मुख्‍य सतर्कता आयुक्‍त समूह ए तथा बी के अधि‍कारि‍यों के मामले में अपनी प्रारंभि‍क जांच रि‍पोर्ट आगे नि‍र्णय के लि‍ए लोकपाल को वापस भेजेगें। समूह सी तथा डी कर्मचारि‍यों के मामले में मुख्‍य सतर्कता आयुक्‍त अपनी शक्‍ति‍यों का उपयोग करते हुए सीवीसी कानून के तहत आगे बढेगे। उनकी कार्रवाई की रि‍पोर्टिंग  तथा समीक्षा लोकपाल द्वारा की जाएंगी।

(छ) वि‍देशी चंदा (योगदान) नि‍यमन कानून (एफसीआरए) के संदर्भ में 10 लाख रूपए से अधि‍क का दान (चंदा) प्राप्‍त करने का मामला लोकपाल के क्षेत्राधि‍कार में लाया गया।

(ज) लोकपाल द्वारा सीबीआई सहि‍त कि‍सी अन्‍य जांच एजेंसी को सौंपे गए मामले में अधीक्षण तथा नि‍र्देशन का अधि‍कार लोकपाल के पास होगा।

(झ) सीबीआई नि‍देशक के चयन की अनुशंसा प्रधानमंत्री की अध्‍यक्षता वाली उच्‍च स्‍तरीय समि‍ति‍ करेगी।

(ट) लोक सेवकों द्वारा भ्रष्‍ट साधन से प्राप्‍त संपत्‍ति‍ की कुर्की जब्‍ती मामले के वि‍चाराधीन होने पर होगी।

(ठ) स्‍पष्‍ट समय-सीमा:-

  • प्रारंभि‍क जांच- तीन महीनें के भीतर, तीन महीनें तक वि‍स्‍तार संभव। 
  • जांच 6 महीनें की अवधि‍ में जि‍से एक समय में 6 महीनें और बढाई जा सकती है। 
  • सुनवाई एक साल में, सुनवाई अवधि‍ का वि‍स्‍तार एक साल और संभव। इसके लि‍ए वि‍शेष अदालतों का गठन।


(ड) भ्रष्‍टाचार रोधी कानून के अंतर्गत अधि‍कतम सज़ा सात वर्ष से बढाकर 10 वर्ष करने का प्रावधान। भ्रष्‍टाचार रोधी कानून की धारा 7 ,8,9 तथा 12 के तहत न्‍यूनतम सज़ा 3 वर्ष की होगी तथा धारा 15 के तहत न्‍यूनतम सज़ा अब 2 वर्ष की होगी।

राज्‍य सभा की प्रवर समि‍ति‍ की सुधार अनुशंसा वि‍धेयक में शामि‍ल

राज्‍य सभा की प्रवर समि‍ति‍ ने अपनी रि‍पोर्ट में वि‍धेयक के वि‍भि‍न्‍न अनुच्‍छेदों में संशोधन का सुझाव दि‍‍या। इनमें से अधि‍क सि‍फारि‍शों को माना गया और अब यह सि‍फारि‍शें संसद द्वारा पारि‍त वि‍धेयक का हि‍स्‍सा बन गई है। वि‍धेयक में कुछ प्रमुख संशोधन इस प्रकार हैं:-

(क) राज्‍यों को अपने-अपने लोकायुक्‍तों के स्‍वरूप के बारे में नि‍र्णय लेने की स्वतंत्रता

प्रवर समि‍ति‍ ने राज्‍यों में लोकायुक्‍त संस्‍थान गठि‍त करने वाले वि‍धेयक के भाग 3 को समाप्‍त करने की सि‍फारिश की। समि‍ति‍ ने सुझाव दि‍या कि‍ वि‍धेयक के इस भाग को नई धारा 63 को शामि‍ल कर खत्‍म कि‍या जा सकता है।  इस धारा में कानून के प्रभाव में आने के 365 दि‍नों के अंदर राज्‍य वि‍धानमंडल द्वारा कानून बनाकर लोकायुक्‍त संस्‍था गठन का प्रावधान है। सरकार ने यह स्‍वीकार कर लि‍या इस तरह संसद द्वारा पारि‍त वि‍धेयक में लोकायुक्‍त के स्‍वरूप तय करने में राज्‍यों को दी गई स्‍वतंत्रता से संघीय भावना का सम्‍मान होता है। वि‍धेयक में एक साल के अंदर लोकायुक्‍त गठन का अधि‍कार राज्‍यों को प्रदान कि‍या गया है।

(ख) लोकपाल के अध्‍यक्ष तथा सदस्‍यों के चयन के लि‍ए चयन समि‍ति को व्‍यापक बनाना‍

लोकपाल चयन के लि‍ए बनी चयन समि‍ति‍ का 5वां सदस्‍य प्रख्‍यात न्‍यावि‍द होगा 5वें सदस्‍य का मनोनयन प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्‍यक्ष, लोकसभा में वि‍पक्ष के नेता तथा भारत के प्रधान न्‍यायाधीश की अनुशंसा से प्रधानमंत्री करेंगे। इससे यह सुनि‍श्‍चि‍त हुआ कि‍ चयन मंडल में सरकार के प्रति‍नि‍धि‍यों की बाहुल्‍यता नहीं होगी।

(ग) सरकार द्वारा आंशि‍क या पूर्ण रूप से वि‍त्‍त पोषि‍त संस्‍थान लोकपाल के क्षेत्राधि‍कार में

सरकार द्वारा आंशि‍क या पूर्ण रूप से वि‍त्‍तयी सहायता प्राप्‍त करने वाले संस्‍थान लोकपाल क्षेत्राधि‍कार में आएंगे। लेकि‍न वैसे संस्‍थान इसके दायरे से बाहर होगे जो सरकारी सहायता से चलते हैं। इससे सुनि‍श्‍चि‍त हुआ कि‍ लोकपाल की परि‍धि‍ में कि‍सी न कि‍सी रूप सरकारी सहायता प्राप्‍त स्‍कूलों तथा सोसायटि‍यों जैसे छोटे संस्‍थान नहीं आएंगे और लोकपाल को कारगर तीरके से भ्रष्‍टाचार के बड़े मामलों से नि‍पटने की स्‍वतंत्रता होगी।

(घ) ईमानदार लोक सेवकों के लि‍ए पर्याप्‍त सुरक्षा

वि‍धेयक में यह सुनि‍श्‍चि‍त कि‍या गया है कि‍ अनावश्‍यक रूप से जांच के मामले में लोक सेवक को परेशान नहीं कि‍या जाएगा।

(ड़) सरकार/सक्षम अधि‍कारी के स्‍थान पर लोक सेवकों के वि‍रूद्ध जांच की अनुमति‍ का अधि‍कार लोकपाल के पास

वि‍धेयक में सरकार/सक्षम अधि‍कारी के स्‍थान पर लोक सेवकों के वि‍रूद्ध जांच की अनुमति‍ का अधि‍कार लोकपाल को दि‍या गया है लेकि‍न लोकपाल ऐसा नि‍र्णय लेने से पहले सक्षम अधि‍कारी तथा लोक सेवक की टि‍प्‍प्‍णी प्राप्‍त करेंगे। मामले में आरोप पत्र दाखि‍ल करने के बारे में नि‍र्णय लेने के बाद लोकपाल अपनी अभि‍योजन शाखा या जांच एजेंसी को वि‍शेष न्‍यायाल में सुनवाई आरंभ करने के लि‍ए अधि‍कृत करेंगे। लोकसभा द्वारा पारि‍त मूल विधेयक में लोकपाल की अभि‍योजन शाखा द्वारा मुकदमा चलाने की व्‍यवस्‍था थी।

(च) सीबीआई का सुदृढ़ीकरण 

वि‍धेयक में केंद्रीय अन्‍वेषण ब्‍यूरों को मजबूत बनाने के अनेक प्रावधानों में नि‍म्‍न प्रमुख हैं:-

  • सीबीआई के नि‍देशक के पूर्ण नि‍यंत्रण में अभि‍योजन नि‍देशक के नेतृत्‍व में अभि‍योजन नि‍देशालय की स्‍थापना। 
  • केंद्रीय सतर्कता आयोग की अनुशंसा पर अभि‍योजन नि‍देशक की नि‍युक्‍ति। 
  • लोकपाल द्वारा नि‍र्देशि‍त मामलों के लि‍ए लोकपाल की सहमति‍ से सरकारी वकीलों के अलावा सीबीआई द्वारा अधि‍वक्‍ताओं का पैनल रखना। 
  • लोकपाल द्वारा प्रेषि‍त मामलो में जांच करने वाले सीबीआई के अधि‍कारि‍यों का स्‍थानांतरण लोकपाल की सहमति‍ से। 
  • लोकपाल द्वारा सौंपे गए मामलो की जांच के लि‍ए सीबीआई को पर्याप्‍त धन उपलब्‍ध कराने का प्रावधान।



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