दशकों के गृहयुध्द के बाद उत्तरी सूडान
से अलग होकर 2011 में दक्षिण सूडान विश्व का नवीनतम देश बना था। तेल व अन्य
प्राकृतिक संपदा के धनी इस देश की जनता ने यह उम्मीद पाली होगी कि अब कम से कम उसे
शांति से रहने का अवसर मिलेगा, किंतु ऐसा लगता है कि जातीय नस्लीय हिंसा के नाम पर चलने वाले खूनी
खेल को पूंजीवादी ताकतें यहां की नियति बना देना चाहती हैं। यही कारण है कि यह
नवजात देश एक बार फिर भीषण हिंसा के दौर से गुजर रहा है और विश्व की तमाम बड़ी
शक्तियों और संयुक्त राष्ट्र द्वारा चिंता जतलाए जाने के बाद भी यहां के संकट का
समाधान नहींनिकल रहा है। देश में डिंका और नुएर इन दो प्रमुख समुदायों के बीच
हिंसा के चलते गृहयुध्द जैसे हालात बन गए हैं। सैकड़ों लोग मारे गए हैं और हजारों
विस्थापित हो गए हैं। संयुक्त राष्ट्र की ओर से यहां शांति सेना तैनात की गई है और
अब सुरक्षा परिषद ने शांति रक्षकों की संख्या 7 हजार से बढ़ाकर 14 हजार करने का
फैसला लिया है। पिछले हफ्ते भारी हथियारों से लैस करीब 2,000 विद्रोहियों ने
दक्षिण सूडान में जोंगलेई राय के अकोबो स्थित संयुक्त राष्ट्र मिशन परिसर पर हमला
किया था जिसमें दो भारतीय शांति सैनिकों सहित करीब 20 लोग मारे गए थे। संरा
महासचिव बान की मून ने कहा कि, 'मैं लगातार राष्ट्रपति सल्वा कीर सूडान और विपक्षी नेताओं से बाचीत
और संकट से निजात का रास्ता निकालने का आह्वान करता रहा हूं ।'
उन्होंने कहा, 'चाहे जो मतभेद हों, हिंसा को किसी भी तरह से सही नहीं
ठहराया जा सकता है ।' दरअसल
राष्ट्रपति सल्वा कीर जो कि डिंका समुदाय के हैं, ने नुएर समुदाय से आने वाले उपराषट्रपति रायक माचर को बर्खास्त कर
दिया था, उसके बाद जातीय हिंसा की लपटें और भड़क
गईं। कहा जा सकता है कि राजनीतिक कारणों से बड़ा विवाद जातीय हिंसा के रूप में प्रकट
हुआ है। राष्ट्रपति सल्वा कीर के मुताबिक देश में तख्तापलट की कोशिश हुई और इसके
लिए उन्होंने माचर को जिम्मेदार ठहराया है। माचर इन दिनों छिपकर रह रहे हैं, लेकिन उन्होंने आरोपों का खंडन किया है
। ध्यान रहे कि पिछले दिनों उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोपों से निपटने के मामले में
नाकाम रहने के लिए राष्ट्रपति कीर की सार्वजनिक तौर पर आलोचना की थी। माचर ने
जुलाई में कहा था कि वह पार्टी अध्यक्ष पद के लिए भी कीर को चुनौती देंगे।
माचर का समर्थन कर रही सेना ने देश के
मुख्य शहर बोर और तेल उत्पादक प्रांत यूनिटी स्टेट की राजधानी बेंतू पर कब्ज़ा कर
लिया है। राजधानी जुबा में दक्षिण सूडानी सुरक्षा बल नुएर समुदाय के लोगों को
निशाना बना रहे हैं। उन्होंने कइयों को मार दिया गया है और बहुतों को हिरासत में
ले लिया गया है। उनमें सैनिक, नीति-निर्माता, छात्र, मानवाधिकार
कार्यकर्ता और शरणार्थी शामिल बताए जाते हैं। लेकिन राजधानी से बाहर जोंगलेई
प्रांत में इसके उल्ट हो रहा है। नुएर समुदाय की सैन्य टुकड़ियां डिंका समुदाय के
लोगों को निशाना बना रही हैं। वे संयुक्त राष्ट्र के परिसर पर धावा बोल रही हैं, जहां हजारों नागरिक शरण लिए हुए हैं।
उन्होंने तेल संयंत्रों पर भी हमला किया है। सल्वा कीर पर एक ओर तानाशाही
प्रवृत्ति से सरकार चलाने का आरोप लग रहा है, वहींमेचार को अवसरवादी कहा जा रहा है, जिन्होंने गृहयुध्द के वक्त अपने और नुएर समुदाय के फायदे के लिए
पाला बदल लिया था। कहा जा सकता है कि देश के दोनों ही शीर्ष नेताओं की विश्वसनीयता
दांव पर लगी है और उनके निजी स्वार्थ के कारण लाखों लोगों का भविष्य संकट में पड़
गया है। दक्षिण सूडान में गृहयुध्द के गंभीर स्थानीय एवं क्षेत्रीय परिणाम होने की
आशंका जतलाई जा रही है। यहां की सुरक्षा व स्थिरता पर अनिश्चितता के साथ-साथ पड़ोसी
देशों के लिए भी खतरा उत्पन्न हो गया है। यहां से शरणार्थी युगांडा, केन्या व इथोपिया का रुख करेंगे और
वहां तनाव पैदा होगा। पहले से कमजोर अर्थव्यवस्था में और गिरावट होगी, जिसका खामियाजा गरीब जनता को भुगतना
होगा।
दक्षिण सूडान में अकूत तेल संपदा है, राजस्व का 98 प्रतिशत हिस्सा तेल की बिक्री से आता है, फिर भी जनता के पास मूलभूत सुविधाओं की
कमी है। 21वींसदी में भी इस देश में किसी की संपन्नता का पैमाना उसके मवेशियों की
गिनती से होता है। उद्योग, परिवहन, संचार, शिक्षा, स्वास्थ्य तमाम क्षेत्रों में यह देश बेहद पिछड़ा है, इसका लाभ उठाकर अगर यहां की तेल संपदा
का दोहन करने के लिए पूंजीवादी ताकतें करें तो क्या आश्चर्य। विश्व में समानता, स्वतंत्रता, लोकतंत्र जैसे मूल्यों के समर्थक देशों
को चाहिए कि वे दक्षिण सूडान को वर्तमान संकट से उभारने के साथ-साथ उसके बेहतर
भविष्य के लिए मिलकर कार्य करें।
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