बुधवार, 8 जनवरी 2014

समुद्री घेराबंदी में जुटा चीन

पिछले दिनों चीन के पहले विमानवाहक पोत द लिआओनिंगने दक्षिण चीन सागर में विभिन्न प्रकार के परीक्षणों एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक पूरा किया। इस उपलब्धि के हासिल होने में विशेष बात यह रही कि दक्षिण चीन सागर में चल रहे सीमा विवाद के कारण तनावपूर्ण परिस्थितियों के बावजूद यह परीक्षण पूरा हुआ है। चीन की सरकारी संवाद समिति शिन्हुआ के अनुसार लिआओनिंग की युद्ध प्रणाली का विस्तार से परीक्षण किया गया और 37 दिवसीय परीक्षण अवधि के दौरान युद्ध अभ्यास भी कराया गया। 37 दिनों तक चले इस परीक्षण अभियान और युद्धाभ्यास में विमानवाहक पोत की युद्ध क्षमता, ऊर्जा, शक्ति प्रणाली तथा समुद्र में उसकी गति की क्षमता का भी परीक्षण किया गया। लिआओनिंग के इन परीक्षणों में लड़ाकू विमानों, नौसनिक पोतों और पनडुब्बियों ने भाग लिया।

ऐसा करके चीन ने हिन्द महासागर व प्रशान्त महासागर में अपनी नौसैनिक शक्ति दिखाई थी। चीन ने यह प्रदर्शन तब किया जब चीन और आसियान समूह के कई देशों के बीच दक्षिण चीन सागर के द्वीप समूहों को लेकर विवाद बढ़ चुका है। तब चीन के सैन्य अधिकारियों ने कहा था कि इसका इस्तेमाल अनुसंधान प्रयोग और प्रशिक्षण के लिए किया जाएगा। इस पोत से चीन की नौसेना में एक नया आयाम जुड़ गया जो हिन्द महासागर में भारत सहित अन्य देशों के लिए एक बड़ी चुनौती बनने में सहायक सिद्ध होगा। अगस्त, 2011 में सम्पन्न पोत के पहले पांच दिनों के परीक्षणों के बाद इसमें और उपकरण जोडऩे के उद्देश्य से इसे गोदी में लाया गया था। यह कार्य पूरा हो जाने के बाद इसे पुन: परीक्षण के लिए लिआओनिंग प्रांत के दालियान बन्दरगाह से पानी में उतारा गया। इस पोत पर लड़ाकू विमानों के उतरने के लिए इसके डैक के परीक्षण और इसकी हथियार प्रणाली की जांच के लिए 29 नवंबर, 2011 को इसे प्रशान्त महासागर में उतारा गया। दूसरे दौर के इन परीक्षणों में विमानवाहक पोत के आयुध राडार, हथियार प्रणाली और विमान उतरने में इस्तेमाल किए जाने वाले डैक का परीक्षण किया गया। भारत को सुरक्षा चुनौतियां प्रस्तुत करने वाले चीन ने 25 नवंबर, 2012 को अपने पहले विमानवाहक पोत द लिआओनिंगपर पहली पीढ़ी के बहुउद्देश्यीय लड़ाकू जेट विमान जे-15 को उतारने में सफलता हासिल की। ये लड़ाकू विमान चीन की नौसेना को 25 सितंबर, 2012 को सौंपे गए थे और तभी से पोत पर इनके उड़ान परीक्षण जारी थे। चीन में निर्मित जे-15 लड़ाकू विमान हवा से हवा तथा हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलों को ले जाने में सक्षम हैं। नई उपकरण प्रणालियों से सुसज्जित 300 मीटर लम्बा यह पोत चीन निर्मित 33 जे-15 विमानों व हेलीकाप्टरों को ले जाने में सक्षम है। इस पोत पर 2000 नाविकों के दल को तैनात किया जा सकता है।

चीन ने इस विमानवाहक पोत को यूक्रेन से खरीदा है। यह पहले सोवियत नौसेना का युद्धपोत हुआ करता था। इसे सोवियत नौसेना के लिए 1980 के दशक में बनाया गया था। तब इसका नाम वारयाग था। सन् 1991 में जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तब यह यूक्रेन के शिपयार्ड में खड़ा था और इसमें जंग लग रही थी। जब कुछ सोवियत युद्धपोतों को कबाड़ के तौर पर तोड़ा जा रहा था तो चीन की एक कम्पनी ने इसे खरीद लिया। तब उसने यह कहा था कि वह इसे मकाओ में तैरता हुआ कसीनो बनाना चाहती है। बाद में इसे दालियान शिपयार्ड में तैयार किया गया। आने वाले दिनों में चीन ऐसे छह विमानवाहक पोत तैनात करने की योजना में है।

इस समय चीन के पास एक विमानवाहक पोत, 25 विध्वंसक पोत, 47 जलपोत, 63 पनडुब्बियां, 332 तटवर्ती निगरानी जहाज, 2012 नौ सैनिक बेड़े एवं आठ नौ सैनिक अड्डे हैं। चीन की तुलना में भारत के पास एक विमानवाहक पोत, आठ विध्वंसक, 12 जलपोत, 15 पनडुब्बियां, 31 तटवर्ती निगरानी जहाज, 324 नौ सैनिक बेड़े एवं सात नौसैनिक अड्डे हैं।  अभी तक सुरक्षा परिषद के प्रमुख पांच देशों में चीन ही अकेला ऐसा देश था जिसके पास विमान वाहक पोत नहीं था जबकि अमेरिका, रूस, भारत, जापान व दक्षिण कोरिया के पास यह ताकत थी। चीनी नौसेना में अभी बेइहाई, डोगहाई व ननहाई नामक तीन बेड़े हैं। इन सभी के अपने सपोर्ट अड्डे, छोटे बेड़े, समुद्री गैरिसन कमान्ड, विमान डिवीजन व समुद्री ब्रिगेड हैं। अब चीन ने प्रशांत महासागर के साथ-साथ हिन्द महासागर में भी अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं।

हिन्द महासागर में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए चीन ने म्यांमार को अपना दोस्त बनाकर उससे सैन्य संबंध बढ़ाए। चीन म्यांमार को परमाणु व मिसाइल क्षेत्र में सहयोग प्रदान कर रहा है। चीन ने म्यांमार के द्वीपों पर नौसैनिक सुविधाएं बढ़ा रखी हैं जिससे हिन्द महासागर में भारतीय नौसेना की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। म्यांमार के हांगई द्वीप पर राडार व सोनार जैसी संचार सुविधाओं को स्थापित किया जाना चीन की ही देन है। म्यांमार के क्याकप्यू में भी चीन बन्दरगाह बना रहा है और थिलावा बन्दरगाह पर भी चीन का आवागमन है।

मालदीव व मारीशस के साथ चीन के बेहतर सम्बन्ध बन चुके हैं। मालदीव ने चीन को मराओ द्वीप लीज पर दे रखा है। चीन इसका उपयोग निगरानी अड्डे के रूप में कर रहा है। इसके अलावा चीन बंगलादेश के चटगांव बन्दरगाह का विस्तार कर रहा है। चीनी युद्धपोतों का आवागमन यहां पर होता रहता है। श्रीलंका के हम्बन टोटा में बन्दरगाह बना रहा है। पूरा निर्माण होने के बाद यहां पर चीन का आधिपत्य 85 फीसदी होगा। यहां से मात्र 10 नॉटिकल मील की दूरी पर दुनिया का सबसे व्यस्ततम जल मार्ग है जहां से लगभग 200 जहाज प्रतिदिन गुजरते है। चटगांव व हम्बन टोटा भारत के समुद्री तटों के अति निकट पड़ते हैं। अंडमान निकोबार द्वीप समूह से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कोको द्वीप पर चीन अपनी ताकत बढ़ाकर आधुनिक नौसैनिक सुविधाएं स्थापित कर चुका है। चीन जिबूती, ओमान व यमन जैसे देशों के बन्दरगाहों का इस्तेमाल अपने लिये करने हेतु ताकत बढ़ा चुका है।

  

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