शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

बालिका - भविष्‍य का आभूषण

भारत का इतिहास सफल महिलाओं के उदाहरणों से भरा पड़ा है जिन्‍होंने जीवन के विभिन्‍न क्षेत्रों में ऊंचाइयों को छुआ है। लेकिन विडंबना यह है कि अनेक सांस्‍कृतिक वजहों से बालिकाओं को आज भी अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

इस बात को समझते हुए भारत सरकार ने समय-समय पर अनेक योजनाओं को लागू किया। लेकिन अभी भी काफी कुछ किए जाने की जरूरत है। इस तरह की एक पहल यूपीए सरकार ने 2008 में की जिसके तहत हर वर्ष 24 जनवरी का दिन राष्‍ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन 1966 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री का पद संभाला था।

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी का करीब 15 करोड़ 80 लाख बच्‍चे 0-6 वर्ष की आयु के हैं तो फिर सिर्फ राष्‍ट्रीय बालिका दिवस ही क्‍यों मनाया जाता है? इसका कारण स्‍पष्‍ट है: बालिकाएं भारतीय समाज का सबसे नाज़ुक हिस्‍सा है।

2011 की जनगणना से पता चलता है कि सामाजिक संकेतकों, जैसे साक्षरता में सुधार हुआ है और कुल लिंग अनुपात 933 से बढ़कर 940 हो गया है। लेकिन आयु वर्ग के हिसाब से जनगणना से पता लगता है कि 0-6 वर्ष के आयु वर्ग में 1000 लड़कों के पीछे लड़कियों के अनुपात में गिरावट आई है यानी बच्‍चों का लिंग अनुपात जो 2001 में 927 था वह 2011 में 914 हो गया।

नवीनतम जनगणना से स्‍पष्‍ट है कि 22 राज्‍यों और 5 संघ शासित क्षेत्रों में बच्‍चों के लिंग अनुपात में गिरावट आई है। 5 वर्ष से कम उम्र के बच्‍चों में पोषण की कमी के बारे में  राष्‍ट्रीय परिवार स्‍वास्‍थ्‍य सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार 43 प्रतिशत लड़कियां कुपोषित है।

राष्‍ट्रीय बालिका दिवस : उद्देश्‍य

सरकार अन्‍य हितधारकों के साथ यह प्रयास करती है कि बालिकाएं जीवित रहें और पुरूष प्रधान समाज में गरिमा और सम्‍मान से जिएं।
  • जागरूकता बढ़ाने और बालिकाओं को नए अवसरों की पेशकश
  • लड़कियों के सामने आने वाली सभी असमानताओं को समाप्‍त करना
  • यह सुनिश्‍चित करना की प्रत्‍येक बालिका को उचित सम्‍मान, मानवाधिकार और भारतीय समाज में मूल्‍य मिले
  • बालिकाओं पर लगे सामाजिक कलंक से मुकाबला करने और बच्‍चों के लिंग अनुपात को खत्‍म करने के विरूद्ध काम करना
  • बालिकाओं की भूमिका और उनके महत्‍व के बारे में जागरूकता बढ़ाना
  • बलिकाओं के स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा, पोषण आदि से जुड़े मुद्दों का निपटारा
  • लिंग समानता को बढ़ावा देना

राष्‍ट्रीय बालिका दिवस समारोह से क्‍या हासिल होगा?

इसका उद्देश्‍य वर्तमान मानसिकता को खत्‍म करके यह सुनिश्‍चित करना है कि लड़की के जन्‍म से पहले ही उसे बोझ न समझा जाए और वह हिंसा अथवा भ्रूण हत्‍या का शिकार न बने।

विधायी उपाय

इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार 3पर जोर दे रही है जिनमें एडवोकेसी यानी रक्षा, जागरूकता और सकारात्‍मक कार्य शामिल है। कुछ महत्‍वपूर्ण विधायी उपाय जो अब तक किए गए है उनमें शामिल है:

  • गर्भावस्‍था के दौरान लिंग का पता लगाने पर रोक और बालिकाओं को पारितोषिक देने के लिए नीतियां और कार्यक्रम
  • बाल-विवाह पर रोक
  • सभी गर्भवती महिलाओं की प्रसव-पूर्व देखभाल में सुधार
  • ‘‘बालिका बचाव योजना’’ शुरू करना
  • 14 वर्ष की उम्र तक लड़के और लड़कियां दोनों के लिए नि:शुल्‍क और अनिवार्य प्राइमरी स्‍कूल शिक्षा
  • महिलाओं के लिए स्‍थानीय निकायों में एक-तिहाई सीट आरक्षित करना
  • स्‍कूली बच्‍चों को वर्दी, दोपहर का भोजन और शिक्षण सामग्री दी जाती है और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की लड़कियों के लिए उच्‍च शिक्षा की योजनाएं
  • बालवाड़ी और पालना-घर
  • पिछड़े इलाकों की लड़कियों की सहूलियत के लिए ओपन लर्निंग प्रणाली स्‍थापित
  • विभिन्‍न राज्‍यों में स्‍व-सहायता समूह ग्रामीण इलाकों में लड़कियों की मदद के लिए ताकि उन्‍हें बेहतर जीवन-यापन के अवसर मिल सके


अन्‍य सकारात्‍मक कार्य

महिला और बाल विकास मंत्रालय ने धनलक्ष्‍मी नाम की एक योजना लागू की है ताकि टीकाकरण, जन्‍म पंजीकरण, स्‍कूल में दाखिला और आठवी कक्षा तक देखभाल जैसी मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए लड़की के परिवार को नकद धनराशि हस्‍तांतरित की जा सके।
केन्‍द्र प्रायोजित एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण योजना 2010-11 में शुरू की गई। 11-18 वर्ष की किशोर लड़कियों का सर्वांगीण विकास करने के उद्देश्‍य से राजीव गांधी अधिकारिता योजना-सबला शुरू की गई और इसे सभी राज्‍यों/संघ शासित क्षेत्रों के 205 जिलों में लागू किया जा रहा है।
केन्‍द्र प्रायोजित समन्वित बाल विकास सेवा योजना के अंतर्गत 2006-07 में किशोरी शक्ति योजनालागू की गई, जिसका उद्देश्‍य किशोर लड़कियों को पोषण, स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार की देखभाल, जीवन कौशल और स्‍कूल जाने का अधिकार प्रदान करना है। इसे देश के 6,118 खण्‍डों में लागू किया गया है।

वित्‍तीय अधिकार प्रदान करना

2014 में राष्‍ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर भारतीय डाक ने प्रत्‍येक बालिका के नाम पर नया बचत खाता खोलने का एक विशेष अभियान शुरू किया है। ये अभियान 24 जनवरी से शुरू होकर 28 जनवरी तक चलेगा। इसका उद्देश्‍य बालिकाओं को लघु बचत खाता खोलने के लिए प्रेरित करके उनका भविष्‍य सुरक्षित करना है।

यह सुविधा उत्‍तरी कर्नाटक क्षेत्र के सभी गांवों के 4,480 डाकघरों में उपलब्‍ध होगी, इस योजना के अंतर्गत प्रत्‍येक खाते में चार प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्‍याज दिया जाएगा और जमाकर्ता अनगिनत लेन-देन कर सकता है। अधिकारी सभी स्‍कूलों में जाकर प्रत्‍येक बालिका को अपने नाम से एक बचत खाता खोलने में मदद करेंगे।

यौन उत्‍पीड़न से बचाव

समन्वित बाल संरक्षण योजना 2009-10 में लागू की गई और चाइल्‍डलाइन सेवाभारत में लड़कियों की सुरक्षा का मुद्दा देख रही है। 2005 में महिला और बाल विकास मंत्रालय ने यह पता लगाने के लिए एक अध्‍ययन किया कि भारत में किस हद तक बच्‍चों का उत्‍पीड़न होता है। उसके परिणामस्‍वरूप संसद ने मई 2012 में एक विशेष कानून यौन अपराधों से बच्‍चों की रक्षा अधिनियम 2012पारित किया।

बच्‍चों के लिए बजट

यूपीए सरकार ने 2008-09 के केन्‍द्रीय बजट में बच्‍चों के लिए बजट की व्‍यवस्‍था शुरू की, जिसे बच्‍चों के कल्‍याण की योजनाओं के लिए प्रदान किया गया। शुरू में इसमें महिला और बाल विकास मंत्रालय, मानव संसाधन विकास, स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण, श्रम और रोजगार, सामाजिक न्‍याय और अधिकारिता, आदिवासी मामले, अल्‍पसंख्‍यक मामले, युवा मामले और खेल आदि मंत्रालयों की बच्‍चों से जुड़ी विशेष के साथ अनुदान मांगोंको शामिल किया गया। इस समय बच्‍चों के लिए बजट में परमाणु ऊर्जा, औद्योगिक नीति, डाक, दूरसंचार तथा सूचना और प्रसारण आदि के केन्‍द्रीय मंत्रालयों/विभागों की 18अनुदान मांगोंको शामिल किया गया है और आरंभिक बजट में पर्याप्‍त वृद्धि की गई है। इससे बालिकाओं को बेहतर अवसर दिए जा सकेंगे।

राष्‍ट्रीय बाल नीति प्रस्‍ताव को मंजूरी

बच्‍चों के सामने उत्‍पन्‍न चुनौतियों से निपटने के लिए अधिकारों पर आधारित दृष्टिकोण की अपनी प्रतिबद्धता पर अमल करते हुए सरकार ने बच्‍चों के लिए राष्‍ट्रीय नीति, 2013 के बारे में प्रस्‍ताव को स्‍वीकार किया। इसमें बच्‍चों सहित सभी हितधारकों के साथ पांच वर्ष में एक बार सलाह मशविरा करके इस नीति की व्‍यापक समीक्षा करने की व्‍यवस्‍था है। महिला और बाल विकास मंत्रालय समीक्षा की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगा।

निष्‍कर्ष

भारत में बालिकाओं को संरक्षण देने का काम हर वर्ष राष्‍ट्रीय बालिका दिवस मनाने तक ही सीमित नहीं होना चाहिए बल्कि मजबूत विधायी उपायों के साथ सरकार और अन्‍य हितधारक-समुदाय, सिविल सोसायटी, औद्योगिक घराने, पड़ोसी और माता-पिता को लड़कियों के सुरक्षित जीवन के लिए एक मजबूत और अहम भूमिका निभानी चाहिए, ताकि बेहतर समाज, बेहतर भविष्‍य और बेहतर भारत का निर्माण हो सके।
(पसूका)


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