गुरुवार, 9 जनवरी 2014

बिजली संकट की असली वजह

देश में बिजली की खपत जाड़े और गर्मी में अचानक हर साल बढ़ जाती है। इसकी वजह से ग्रिड भी फेल हो जाते हैं। पिछले जाड़े में ग्रिड फेल होने से सारा उत्तर भारत गहरे अंधकार में डूब गया था जिससे रेल परिचालन में ही नहीं बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी में भी अवरोध उत्पन्न हो गया था। इससे बचने के लिए सरकार ने अभी तक क्या कोई उपाय किये हैं? गौरतलब है, ग्रिड पर अधिक बोझ पडऩे पर अमूमन ऐसी समस्या आया करती है। लेकिन सवाल महज ग्रिड फेल होने कम उत्पादन का ही नहीं है। सवाल, वितरण और चोरी का भी है। बिजली के असमान वितरण और चोरी के कारण आमतौर पर घरों में बहुत कम वोल्टेज की बिजली रहती है। आने वाले वक्त में जब ठंड अधिक पड़ेगी तब यह समस्या और भी विकट हो जाएगी। इससे अनेक इलाकों में बिजली उपगृहों को बिजली की अनचाही कटौती के लिए मजबूर होना पड़ता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या से निपटने के लिए जहां बिजली का उत्पादन बढ़ाने की जरूरत है वहीं पर इसका वितरण सही ढंग से करने और चोरी रोकने की भी जरूरत है। गौरतलब है, देश में हर साल हजारों मेगावाट बिजली की चोरी होती है। यह चोरी आम आदमी तो करता ही है, कारखानों और अन्य प्राइवेट संस्थानों में बड़े पैमाने पर की जाती है। यदि केवल बिजली की चोरी ही रोक दी जाए तो देश के हर गांव और शहर में जरूरत के मुताबिक बिजली पहुंचाई जा सकती है। अभी देश में 1.14 लाख मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है। लेकिन यह देशभर की जरूरत से लगभग आधा है। ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक 2 लाख मेगावाट देश की पूरी आबादी के लिए बिजली चाहिए। अभी जो बिजली पैदा होती है उसमें 66 फीसदी बिजली थर्मल पावर से, 19 फीसदी हाइड्रो पावर से, 12 फीसदी सौर ऊर्जा से और 03 फीसदी बिजली अन्य स्रोतों से पैदा होती है।

गांवों में बिजली की समस्या सबसे ज्यादा है। आजादी के 65 वर्षों के बाद भी महज 82 फीसदी गांवों में ही बिजली पहुंचाई जा सकी है। एक आंकड़े के मुताबिक 31 मार्च, 2008 तक 4,88, 435 गांवों में ही बिजली पहुंचाई जा सकी थी। 1,25,000 गांव आज भी अंधेरे में रहने के लिए अभिशप्त हैं। यानी लगभग 30 करोड़ आबादी अभी भी बिजली से वंचित है। जहां तक खपत की बात है महज 96 यूनिट प्रति व्यक्ति हर साल बिजली की खपत गांव में होती है और 288 यूनिट प्रति व्यक्ति हर साल शहरों में । जबकि दुनिया के सबसे बड़ी आबादी वाले देश चीन में बिजली की खपत सालाना प्रति व्यक्ति 1247 यूनिट है।

केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक बीते एक दशक से विद्युत उत्पादन में 5.5 प्रतिशत की सालाना बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन यह जरूरत के मुताबिक बहुत कम है। सोचा जाना चाहिए कि जब एक दशक से 5.5 प्रतिशत की दर से बिजली के उत्पादन में बढ़ोतरी होने के बावजूद बिजली की किल्लत देशभर में एक चिंता का विषय बना हुई है, यदि इस बढ़ोतरी का समुचित उपयोग किया जाता तो देश में बिजली की ऐसी समस्या न दिखाई देती जैसे की आज है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक बिजली की चोरी पर पूरी तरह से अंकुश नहीं लग जाता है तब तक बिजली के बढ़े उत्पादन का फायदा आमजन को नहीं मिल सकता है। शहरों में बिजली की खपत गांवों की अपेक्षा कई गुना ज्यादा है। वहीं पर बिजली की चोरी भी गांवों की अपेक्षा शहरों में सैकड़ों गुना ज्यादा होती है। इसलिए बिजली की चोरी को रोकने के लिए शहरों पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है।

यूपीए सरकार ने 2012 तक बिजली के उत्पादन में 78,500 मेगावॉट इजाफा करने की बात कही थी लेकिन आज की तारीख तक सिर्फ 52 हजार मेगावॉट और बिजली बनाने का ही इंतजाम हो पाया। पिछले अक्तूबर, 2012 में प्रधानमंत्री डॉ$ मनमोहन सिंह ने घोषणा की थी कि 2017 तक हर घर में बिजली पहुंचा दी जाएगी। उन्होंने बताया था कि राष्ट्रीय कार्य योजना के तहत जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन के तहत 2022 तक ग्रिड से जुड़े 20,000 मेगावॉट बिजली पैदा करने का लक्ष्य रखा गया है।

देश में 60 प्रतिशत बिजली का उत्पादन जीवाश्म कोयले के जरिए होता है। लेकिन कोयले का घटता उत्पादन और बढ़ती मांग के मद्देनजर आने वाले वक्त में बिजली का संकट और भी गहराने की संभावना है। इसलिए आने वाले वक्त में बिजली के दाम प्रति यूनिट और भी बढ़ेंगे। एटमी बिजलीघरों का प्रयोग अभी परीक्षण के दौर में है। इससे पर्यावरण को ही नहीं, इंसान के लिए भी एक बड़ा खतरा माना जा रहा है। थोड़े से रिसाव से लाखों लोगों की जान पलक झपकते जा सकती है। ऐसे में आने वाले वक्त में न्यूक्लियर पावर से बिजली का उत्पादन कितना हो पाएगा, कह पाना जरा मुश्किल है। फिर ले-देकर एक ही रास्ता बचता है कि बिजली की चोरी रोकी जाए और सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन पर अधिक जोर दिया जाय।


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