शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

भ्रष्टाचार निवारण की जिम्मेदारी

हमारी व्यवस्था में भ्रष्टाचार एक ऐसे घुन की तरह है जो भीतर ही भीतर सब कुछ खोखला कर रहा है। हमारी सरकारें यदि भ्रष्टाचामुक्त प्रशासन दे पाने में सफल हुई होती तो आज की तस्वीर कुछ और होती। गरीबी और अव्यवस्था पर हम शायद पार पा गए होते। पिछले कुछ वर्षों में इस घुन को खत्म करने की इच्छाशक्ति सरकारों ने दिखाई है। प्रशासन में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए नए कानून लाए गए हैं। लोकपाल जैसी संवैधानिक संस्था का गठन किया जा चुका है। सरकारों पर जनमानस का दबाव बढ़ा है कि वे भ्रष्टाचारमुक्त प्रशासन देने के लिए काम करें। छत्तीसगढ़ में शिकायतें सुनने सरकार हेल्पलाइन नम्बर जारी कर चुकी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ 'जीरो टालरेन्स' पर जोर दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने कलेक्टरों से कहा है कि पूरी सख्ती से काम लें ताकि भ्रष्टाचार को रोका जा सके। काम आसान नहीं है फिर भी जिला स्तर पर कलेक्टर ऐसे वातावरण का निर्माण कर सकते हैं, जिसमें भ्रष्टाचार करने वाले पकड़े जाएं और उन्हें कड़ा से कड़ा दंड दिलाया जाए। जिस व्यवस्था में स्वच्छ प्रशासन की कल्पना की जा रही है उसमें, प्रशासनिक अधिकारियों के हाथ भी बंधे होते हैं। भ्रष्टाचारियों को राजनीतिक संरक्षण मिलता है और चाहकर भी अधिकारी कार्रवाई नहीं कर पाते। कई बार अधिकारी को ईमानदारी की सजा भुगतनी पड़ जाती है। मुख्यमंत्री ने अपने गणतंत्र दिवस संदेश में कामकाज में पारदर्शिता और शुचिता पर जोर देकर यह रेखांकित करने की कोशिश की थी कि सरकार इस मामले में पूरी संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ना चाहती है। कलेक्टर कांफ्रेन्स में भी उन्होंने इसे दोहराया, जिसका संकेत साफ है कि सरकार भ्रष्टाचार के मामलों में कड़े फैसले लेने से नहीं हिचकेगी। भ्रष्टाचारियों को राजनैतिक संरक्षण देने वालों को इसके निहितार्थों को समझ लेना चाहिए। स्वच्छ प्रशासन के लिए राजनैतिक स्वच्छता पहली शर्त है और इसके बिना भ्रष्टाचार उन्मूलन की बातें फिजूल हैं। मुख्यमंत्री ने कहा भी है 'जीरो टालरेंस' कोई नरा नही है, यह प्रशासन के कामकाज में दिखाई देना चाहिए। आने वाले समय में देखा जा सकेगा कि राज्य में स्वच्छ प्रशासन की मजबूत नींव रखने में कैसी सफलता मिल पाती है।

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