सर्वोच्च न्यायालय ने मौत की सजा पाये
कैदियों के दया याचिकायों से संबंध दिशा निर्देश 22 जनवरी 2014 को जारी किये. ये
दिशा निर्देश सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पी. सथाशिवम की अध्यक्षता में
तीन जजों की बेंच ने जारी किये. सर्वोच्च न्यायालय ने कैदियों के एकान्त कारावास
को असंवैधानिक कहा है. वर्तमान में राज्य एवं केंद्रीय जेल प्रशासन की नियम
पुस्तिका के बीच कोई समरूपता नहीं है.
सर्वोच्च न्यायालय ने दया याचिकायों से
संबंध नयें दिशा निर्देश
• राष्ट्रपति के समक्ष दया
याचिका देते हुए प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए.
• सभी आवश्यक दस्तावेजों
एवं अभिलेखों को गृह मंत्रालय (एमएचए) भेजा जाना चाहिए.
• गृह मंत्रालय को सभी
विवरण प्राप्त होने के बाद उचित एवं तर्कसंगत अवधि के भीतर राष्ट्रपति को अपनी
सिफारिशें भेज देनी चाहिए.
• यदि राष्ट्रपति के
कार्यालय से कोई जवाब नहीं है, तो गृह मंत्रालय को समय -समय
पर अनुस्मारक भेजने चाहिए.
• राष्ट्रपति या राज्यपाल
द्वारा कैदियों के दया याचिका को अस्वीकार किये जाने पर उनके परिवार को लिखित में
सूचित किया जाना चाहिए.
• मौत की सजा पाये कैदी राष्ट्रपति
एवं राज्यपाल द्वारा दया याचिका की अस्वीकृति की एक प्रति प्राप्त करने के हक़दार
है.
• दया याचिका की अस्वीकृति
का संचार प्राप्त होने एवं फांसी की तारीख के बीच 14 दिनों का अंतराल होना चाहिए.
इस प्रकार से कैदी को फांसी के लिए मानसिक रूप से खुद को तैयार करने की अनुमति
होगी.
• फांसी की निर्धारित तिथि
के पर्याप्त सूचना के बिना न्यायिक उपचार का लाभ उठाने से कैदियों को रोका जायेगा.
• एक ऐसी प्रक्रिया जिसमे
कैदियों एवं उनके परिवार के बीच मानवता और न्याय हेतु अंतिम बैठक का प्रावधान होना
चाहिए.
• मौत की सजा पाये कैदियों
की उचित चिकित्सा देखभाल के साथ नियमित रूप से मानसिक स्वास्थ्य मूल्यांकन किया
जाना चाहिए.
• जेल अधीक्षक कैदी के
फांसी का वारंट जारी होने के बाद सरकारी डॉक्टरों और मनोचिकित्सकों द्वारा मेडिकल
रिपोर्ट के आधार पर कैदी की शारीरिक एवं मानसिक हालत को जांच कर संतुष्ट होने के
बाद ही उसे फांसी दी जाएगी.
• यह आवश्यक है, कि प्रासंगिक दस्तावेजों की प्रतियां दया याचिका बनाने में सहायता करने के
लिए जेल अधिकारियों द्वारा एक सप्ताह के भीतर कैदी को प्रस्तुत किया जाना चाहिए.
• सर्वोच्च न्यायालय ने
फांसी के बाद कैदी का पोस्टमार्टम अनिवार्य कर दिया.
दया याचिकायों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
• भारत के संविधान के
अनुसार, अनुच्छेद -72 में प्रावधान है- किसी भी अपराध के
दोषी व्यक्ति को माफ़ी देने की शक्ति भारत के राष्ट्रपति के पास है.
• राष्ट्रपति को गृह मंत्री
एवं मंत्रिपरिषद द्वारा सलाह दी जाती है. राष्ट्रपति को अपने निर्णय देने के लिए
कोई समय सीमा तय नहीं है क्योंकि वह न्यायिक समीक्षा के अधीन है.
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