शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

उच्च न्यायपालिका में न्यायधीशों की नियुक्ति और तबादले की व्यवस्था में बदलाव के प्रयास

उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति और उनके तबादले की वर्तमान व्यवस्था में बदलाव के लिये पिछले दो दशक से प्रयास किये जा रहे हैं। वर्तमान व्यवस्था के अंतर्गत उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के चयन का काम न्यायाधीशों की समिति ही करती है जबकि सरकार महसूस करती है कि इस प्रक्रिया में उसकी भूमिका भी होनी चाहिए। यही वजह है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान प्रक्रिया में बदलाव लाने और इसे अधिक पारदर्शी बनाने की लंबे समय से उठ रही मांग के मद्देनजर न्यायिक नियुक्ति आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का प्रयास किया जा रहा है।

चूंकि नयी व्यवस्था को संवैधानिक संरक्षण प्रदान करने के लिये संविधान संशोधन की आवश्‍यकता है,इसलिये केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति और तबादले के लिये प्रस्तावित आयोग को संवैधानिक संरक्षण प्रदान करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। मंत्रिमंडल के निर्णय के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 124 मे दो नये उपबंध अनुच्छेद 124-क और अनुच्छेद 124-ख जोड़ने का प्रस्ताव है।

सरकार संसद के विस्तारित शीतकालीन सत्र में इस संविधान संशोधन को पारित कराने का प्रयास करेगी। यदि यह विधेयक पारित हो गया तो इसे राष्ट्रपति की संस्तुति मिलने के बाद उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति की जिम्मेदारी न्यायिक नियुक्ति आयोग को सौंप दी जायेगी और इसके साथ ही उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति और तबादले से संबंधित प्रक्रिया में एक नया अध्याय जुड़ जायेगा।

प्रस्तावित न्यायिक नियुक्ति आयोग का अध्यक्ष देश के प्रधान न्यायाधीश होंगे। इस आयोग में छह सदस्य होंगे। इसमें उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीशों के साथ ही कानून मंत्री, विधि सचिव और दो बुद्धिजीवी होंगे। इन बुद्धिजीवियों के नामों का चयन प्रधान मंत्री, प्रधान न्यायाधीश और संसद में प्रतिपक्ष के नेता करेंगे। न्याय विभाग के सचिव इस आयोग के संयोजक होंगे।

यह आयोग न्यायाधीशों की नियुक्ति, तबादले और इस पद के दावेदारों की गुणवत्ता से संबंधित कामकाज करेगा। आयोग देश के प्रधान न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों तथा न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये सिफारिश करने के साथ ही उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों की किसी दूसरे उच्च न्यायालय में तबादले की सिफारिश करेगा।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी प्रक्रिया में राज्यपाल,मुख्यमंत्री और संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की लिखित में राय प्राप्त करना भी आयोग के काम में शामिल है। यह सारी कार्यवाही आयोग द्वारा कामकाज के लिये बनाये गये नियमों के अनुसार ही की जायेगी।

उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के पद रिक्त होने की स्थिति में इस बारे में केन्द्र सरकार आयोग के पास सूचना भेजेगी। न्यायालयों में वर्तमान रिक्त स्थानों के बारे में यह कानून बनने की तारीख से तीन महीने के भीतर सूचना देनी होगी। यदि किसी न्यायाधीश का कार्यकाल पूरा हो रहा हो तो ऐसी स्थिति में यह पद रिक्त होने की तारीख से दो महीने पहले ही आयोग को सूचित करना होगा। किसी न्यायाधीश का निधन होने के कारण रिक्त हुए पद के बारे में भी दो महीने के भीतर ही आयोग को सूचित करने का प्रावधान किया गया है।

न्यायिक नियुक्ति आयोग में प्रावधान है कि इसके न्यायाधीशों के चयन की प्रक्रिया आयोग के संयोजक उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों, केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों से पात्र उम्मीदवारों के बारे में सिफारिशें आमंत्रित करके शुरू करेंगे।

इस समय उच्चतम न्यायालय में प्रधान न्यायाधीश सहित न्यायाधीशों के 31 और 24 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के 906 स्वीकृत पद हैं। एक अनुमान के अनुसार इस समय विभिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के करीब 275 पद रिक्त हैं। उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के रिक्त पदों का सीधा प्रभाव लंबित मुकदमों के निबटाने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है।

न्‍यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान व्यवस्था को लेकर उठ रहे सवालों के संदर्भ में ही उच्च्तम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश डॉ ए. आर. लक्ष्मणन की अध्यक्षता वाले 18वें विधि आयोग ने 2008 में अपनी 214वीं रिपोर्ट में भारत में 1993 से प्रभावी न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव पर विचार का सुझाव दिया था।

आयोग की राय थी कि संविधान के अनुच्छेद 124 :2: और 217 :1: न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में कार्यपालिका और न्यायपालिका की भूमिका में बहुत खूबसूरती से संतुलन कायम किया गया था। लेकिन 1993 के उच्चतम न्यायालय के निर्णय और राष्ट्रपति को इस मसले पर दी गयी सलाह ने इसमें असंतुलन पैदा कर दिया। विधि आयोग का सुझाव था कि इस मामले में कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच मूल संतुलन बनाने के लिए इसकी नये सिरे से समीक्षा की जाए।

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी मद्रास उच्च न्यायालय की 150वीं जयंती समारोह में न्यायाधीशों की भूमिका के बारे में निर्णय को बेहद संवदेनशील विषय बताते हुये न्यायपालिका की स्वतंत्रता और इसकी विश्‍वसनीयता बनाये रखने पर भी जोर दिया। साथ ही राष्ट्रपति ने यह कहने में भी संकोच नहीं किया था कि न्यायपालिका की विश्‍वसनीयता उन न्यायाधीशों के स्तर पर निर्भर करती है जो देश की तमाम अदालतों को संचालित करते हैं। इसलिए न्यायाधीशों के चयन और उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया  ही न सिर्फ उच्च मानदंडों के अनुरूप होनी चाहिए बल्कि यह प्रतिपादित सिद्धांतों पर आधारित होनी चाहिए।


न्यायाधीशों की नियुक्ति वर्तमान व्यवस्था में संविधान संशोधन के जरिए बदलाव के लिए 1990 और फिर 2003 के लिए प्रयास किये गए थे लेकिन दोनों ही अवसरों पर लोकसभा भंग हो जाने के कारण यह प्रक्रिया आगे नहीं बढ सकी थी। सरकार एक बार फिर इस दिशा में प्रयास कर रही है। उम्मीद है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान व्यवस्था में बदलाव के लिये न्यायिक नियुक्ति आयोग गठित करने और इसे सांविधानिक संरक्षण प्रदान करने संबंधी संविधान संशोधन विधेयक संसद के विस्तारित सत्र के दौरान पारित करा लिया जायेगा।

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