मंगलवार, 28 जनवरी 2014

ई-कचरे से निपटने की जिम्मेदारी किसकी

संयुक्त राष्ट्र ने एक बार फिर इलेक्ट्रानिक कचरे (ई-कचरे) की बढ़ती मात्रा पर दुनिया भर के देशों को सचेत किया है। ई-कचरे की बढ़ती हुई मात्रा से निपटने के लिए शुरू किए गए अपने स्टेप इनीशिएटिवमें संयुक्त राष्ट्र ने कहा है- आने वाले चार सालों में ई-कचरा अपनी वर्तमान मात्रा का 33 प्रतिशत बढ़ जाएगा। क्रिसमस पर इलेक्ट्रानिक सामानों की भारी खरीददारी के चलते ई-कचरे की मात्रा में उछाल आने का अनुमान है। इस दिन विकासशील देशों में अवैध रूप से निस्तारित किए जाने वाले ई-कचरे से सावधान रहने के जरुरत है। वैसे संयुक्त राष्ट्र की इस चिंता को इंटरपोल की एक जांच से भी बल मिला है। कुछ ही दिनों पहले इंटरपोल ने यूरोप में विकासशील देशों को रवाना होने वाले कुछ जहाज़ों में अवैध ई-कचरे पाया, लगभग चालीस कंपनियों के खिलाफ जांच के आदेश भी जारी किए।

हालांकि इंटरपोल के अधिकारियों ने साफ किया कि किन्हीं वजहों से खारिज किए गए सामान का निर्यात किया जाना अवैध नहीं है, लेकिन ऐसा तभी किया जा सकता है जब रिसाइकलिंग कर उनका उपयोग दोबारा संभव हो। अगर इसकी कोई संभावना नहीं बची है तो ऐसे सामानों को निर्यात किया जाना अवैध है। ऐसे सामानों की बिक्री सामान्यतः चोरी-छिपे होती है और जिसके पर्यावरण पर घातक प्रभाव पड़ते हैं। जाहिर है कि इन सभी चेतावनियों और पहलकदमियों में जो मुख्य मुद्दा है- वह ई-कचरे के सुरक्षित निस्तारण से जुड़ा है। बीते सालों में संयुक्त राष्ट्र के सभी प्रयास इसी दिशा में केंद्रित रहे हैं। हालांकि आरंभ से ही विकासशील देशों में ई-कचरे के निस्तारण को लेकर संयुक्त राष्ट्र ज्यादा गंभीर रहा है।

इस समय चीन ई-कचरे का उत्पादन करने का मामले में पहले स्थान पर आता है जबकि इसके बाद अमेरिका का नंबर है। यूरोप में जर्मनी सबसे ज्यादा ई-कचरा पैदा करता है तो ब्रिटेन इस मामले में पूरी दुनिया में सातवें पायदान पर है। दिलचस्प बात ये है कि यूरोप और अमेरिका से अफ्रीका और एशिया को निर्यात किए जाने वाले ई-कचरे की मात्रा के आंकड़ें अब तक उपलब्ध नहीं हैं। यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी (ईईए) ये अनुमान जरूर व्यक्त करती है कि यूरोप से कुल 2,50,000 से लेकर 13  लाख टन के बीच  इस्तेमाल किया हुआ ई-कचरा पश्चिमी अफ्रीका और एशिया के देशों को निर्यात किया जाता है, लेकिन अलग-अलग देशों से संबंधित आंकड़ें उसके पास भी उपलब्ध नहीं हैं। इस बात को प्रमाणित करने वाले तमाम आंकड़ें मौजूद हैं, जिनसे पता चलता है कि विकसित देशों की ओर से बगैर रिसाइकल किया गया ई-कचरा चीन और भारत जैसे विकासशील देशों के कई हिस्सों में निर्यात कर दिया गया।


ऐसे में सवाल यही है कि क्या ई-कचरे के सुरक्षित निस्तारण की पूरी जिम्मेदारी विकासशील देशों पर डाली जा सकती है, जबकि विकसित देशों के पास इनके निपटारे की क्षमता और तकनीकें ज्यादा हैं। अवैध रूप से निर्यात किए जाने वाले ई-कचरे के पूरे तंत्र से निपटने की संयुक्त राष्ट्र के पास क्या व्यवहारिक योजना है? निश्चित तौर पर विकासशील देशों में इसके निस्तारण की सुरक्षित तकनीकें विकसित करना आवश्यक है, लेकिन ई-कचरे के अवैध स्त्रोतों पर नियंत्रण स्थापित करना भी जरूरी है।

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