सोमवार, 13 जनवरी 2014

माइक्रो ब्लॉगिंग पर चीन का शिकंजा

पूर्वी चीन सागर में चीन का विशेषकर जापान और अमेरिका के साथ टकरावपूर्ण रवैया बेहद चिंताजनक मसला बनता जा रहा है। वह बड़ी शक्ति की दादागिरी की भाषा बोलने लगा है, जिससे उसके सामरिक मंसूबों का स्पष्ट पता चलता है। हाल ही एक वरिष्ठ चीनी सैन्य अधिकारी लीऊ मिंगफु ने कहा कि अमेरिकी सामरिक प्रभाव को प्रशांत महासागर के आधे पूर्वी हिस्से तक सीमित कर दिया जाएगा, क्योंकि चीन की ताकत पूरे ऑस्ट्रेलिया सहित पूर्वी एशिया में उसे मिटा देगी। उधर, जापान का आरोप है कि हथियारों को संचालित करने वाले चीनी रडार जापानी लक्ष्यों पर निशाना साधे हुए हैं।

चीन ने इसका खंडन किया है, पर पश्चिमी सूत्रों का कहना है कि चीन के सैनिक विमानों, जहाजों और पनडुब्बियों ने सेंकाकू द्वीप समूह के इर्द-गिर्द जापान के नियंत्रण वाले समुद्री एवं हवाई क्षेत्रों को चुनौती दी है। हाल के महीनों में चीन के सरकारी मीडिया ने राष्ट्रपति शी जिंगपिंग के 'चीनी सपने' के गुणगान का जोरदार प्रचार अभियान चला रखा है।
पिछले नवंबर में राष्ट्रपति बनने के बाद से शी जिंगपिंग अपने राष्ट्रवादी 'चीनी सपने' पर जोर दे रहे हैं और इसके साथ ही सेनाधिकारी मिंगफु की उग्र-राष्ट्रवादी पुस्तक 'द चाइना ड्रीम' चर्चित हो गई और उसकी बिक्री में भारी वृद्धि हुई है। हालांकि इस सबके बीच चीन घरेलू मोर्चे पर सोशल मीडिया की लोकप्रियता से बहुत घबराया हुआ है। यही वजह है कि उसने सरकार के आलोचकों की धरपकड़ शुरू कर दी।

हाल ही बीजिंग विश्वविद्यालय में कानून के  ख्यात प्रोफेसर हे वेफांग ने कुछ असाधारण-सा काम किया। नए साल पर उन्होंने चीन के सर्वाधिक लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने फॉलोअर्स को अलविदा संदेश दिया। वेफांग उन जनमतकारी नेताओं में एक हैं, जो संवैधानिक अधिकारों का समर्थन करते रहे हैं और चीन में सेंसरशिप कड़ी करने के बाद उन पर ऑनलाइन हमले किए गए। नतीजन, उन्हें अपनी सोशल साइट छोडऩी पड़ी। चीन में संवेदनशील शब्दों की एक लंबी सूची है, जिनका उपयोग निषिद्ध है। काटछांट, सेंसरशिप और यूजर अकाउंट्स पर प्रतिबंध आम बात है। इससे कई लोगों ने सोशल साइट्स का उपयोग छोड़ दिया है और चुप्पी साधे हुए हैं। सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ऑनलाइन अफवाह फैलाने वाले लोगों की धरपकड़ कर रही है, जिसे आलोचकों के दमन के बतौर देखा जा रहा है। उसने असरदार ढंग से सोशल मीडिया को चुप करा दिया है।

संवेदनशील पोस्ट की आड़ में गिरफ्तारी के डर से मशहूर ब्लॉगर पोस्ट करने से बच रहे हैं। अगस्त, 2013 में धरपकड़ अभियान शुरू हुआ था और तब से अब तक देशभर में सैकड़ों लोग हिरासत में लिए गए हैं। इसके अलावा, चीन के सर्वोच्च न्यायालय ने सितंबर में अपने इस फैसले से जनता में डर बढ़ा दिया कि 5,000 से अधिक लोगों द्वारा देखी जानी वाली अफवाह पोस्टिंग या 500 से अधिक लोगों को फारवर्ड की जाने वाली अफवाह पोस्टिंग के लिए यूजर पर मुकदमा चलाया जा सकता है।

प्रमुख जनमतकारी नेताओं की एक लंबी सूची दी है, जिन पर पिछले कुछ माह में मुकदमा चला और उन्हें उत्पीडि़त किया गया। जैसे ली जियोंग, एक भ्रष्टाचार-विरोधी अभियानकर्ता, जिन्होंने अधिकारियों को अपनी संपत्ति की घोषणा की अपील की थी। उन्हें अगस्त में गिरफ्तार किया गया और उनके वेब अकाउंट को हटा दिया गया। एक मुखर वेंचर केपेटेलिस्ट वांग गोंगक्वान को एक सामाजिक कार्यकर्ता की रिहाई का अभियान चलाने में मदद के बाद सार्वजनिक व्यवस्था भंग करने के आरोप में सितंबर में गिरफ्तार किया गया था। नागरिक अधिकार रक्षा वकील पुजियांग ने एक प्रतिबंधित वेबसाइट को देखा था और उसके बाद उन्हें अपने पोस्ट करने के लिए अपना अकाउंट बदलना पड़ा था। गौरतलब है कि लु, पु और वांग- ये सभी नाम फॉरेन पॉलिसीज गलोबल 100 थिंकर्स ऑफ 2013 की सूची में हैं। आधुनिक चीनी इतिहास के एक प्रमुख अध्येता और माओत्से तुंग के मुखर आलोचक झांग लीफान ने पाया कि कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्ण अधिवेशन के अंतिम दिन बिना किसी चेतावनी के उनके माइक्रोब्लॉग और स्तंभ हटा दिए गए थे। चीनी सोशल मीडिया वेबसाइट्स सरकार-नियंत्रित सीसीटीवी न्यूज चैनल की तरह बनती जा रही हैं। लोकप्रिय ऑनलाइन टिप्पणीकार एवं सिनावेबो के प्रशासक ओल्ड लु ने हाल ही घोषणा की कि इस तरह से ये वेबसाइट्स अंतिम सासें गिन रही होंगी। संवाददाताओं और संपादकों की 'ट्रैनिंग मैन्यूल' में कहा गया है, 'समाचार मीडिया को पार्टी के प्रति वफादार होना चाहिए, वह पार्टी नेतृत्व का अनुसरण करे और पार्टी के प्रति वफादारी के सिद्धांत को पत्रकारिता का सिद्वांत बनाए।' चीनी मीडिया पर पार्टी का नियंत्रण एक जीती-जागती हकीकत है, पर पत्रकारों से पार्टी का आदेश मानने को कहना अजीब बात है।

हैरतअंगेज यह है कि जब संचार क्रांति मानव इतिहास में अभूतपूर्व प्रगति-पथ पर है तो चीन में पत्रकार अत्यधिक दमन के शिकार हो रहे हैं। हम कैसे देखें, समझें और सूचना प्रेषित करें, इन मामलों में डिजिटल क्रांति ने इतना व्यापक असर डाला है कि मुक्त समाज भी उसका प्रभाव महसूस कर रहे हैं। सोशल मीडिया की ऊंची उड़ान, मोबाइल उपकरणों का सैलाब, लोकतंत्र का विखंडन और निगरानी के डर- ये डिजिटल युग में पत्रकारों के लिए वाकई प्रासंगिक मुद्दे हैं। चीनी पत्रकार भी इसके अपवाद नहीं, भले ही उन्हें सरकारी शिकंजे के मद्देनजर परदे के पीछे रहकर सीखना पड़े।

विदेशी निवेशकों को इस गफलत में नहीं रहना चाहिए कि चीन की महा-आर्थिक ताकत को पत्रकारिता पर उसके दमनकारी प्रतिबंधों से अलग रखा जा सकता है। चीन के एक हालिया सेंसर आदेश में पत्रकारों से एक बैंक के डूबने की खबर को दबाकर रखने को कहा गया।  हालांकि किसी अप्रिय खबर को रोकने से हकीकतें नहीं बदलतीं। चीनी नेता सत्ता पर अपने एकाधिकार को बनाए रखने के लिए सूचना और सूचनाकर्ता दोनों का दमन कर रहे हैं। उनको भय है कि खुलापन और स्वतंत्रता उनके अस्तित्व के लिए खतरा हैं। उनका भय सही है, क्योंकि डिजिटल क्रांति जनता को एकजुट करने वाली एक प्रमुख ताकत बन चुकी है। राष्ट्रपति शी जिंगपिंग के लिए बेहतर होगा कि वे चीन के पत्रकारों को माओकालीन युग के अंधियारे में धकेलने की बजाय वैश्वीकृत सूचना क्रांति के उजियारे में उन्हें कुशल होने को प्रोत्साहित करें, लेकिन सवाल यह है कि क्या वे यह साहस दिखा पाएंगे?


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