बुधवार, 29 जनवरी 2014

राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम में किशोरों की सेहत पर विशेष ध्यान

भारत को युवाओं का देश कहा जाता रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत की लगभग 80 फीसदी आबादी युवा हैं और ऐसे युवा देश को तंदरूस्‍त बनाने और इसे विकास की ओर ले जाने के लिए किशोरों की सेहत पर ज्‍यादा ध्‍यान दिया जाए। आजादी से लेकर अब तक नीति निर्धारण में किशोरों के स्‍वास्‍थ्‍य पर कभी ज्‍यादा ध्यान नहीं दिया गया। इसके पीछे एक बड़ा कारण यह भी रहा है कि इन्‍हें हमेशा सेहतमंद ही समझा गया, लेकिन असल में ऐसा कदापि नहीं है। 2014 की शुरूआत में भारत सरकार की ओर से किया गया राष्‍ट्रीय किशोर स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम (आरकेएसके) असल में मील का पत्‍थर साबित होगा।

इसके पीछे कुछ अहम तथ्‍यों पर पहले गौर किया जाना जरूरी है। मसलन, 10 से 19 वर्ष आयुवर्ग के लड़के/लड़कियों की आबादी देश की कुल जनसंख्‍या की 1/5 है। इसी तरह, अगर 10 से 24 वर्ष के लोगों की बात की जाए तो इनकी कुल संख्‍या देश के आबादी की एक तिहाई है। इसे हम साधारण रूप से यह भी कह सकते हैं कि बिना किशोरों के बेहतर सेहत पर ध्‍यान दिए एक युवा देश की परिकल्‍पना भी नहीं की जा सकती।

पिछले कई दशकों से संयुक्‍त राष्‍ट्र की एजेंसियां 'यूनिसेफ' और 'यूनिफेम' लगातार युवाओं की बेहतर सेहत की वकालत करतीं रही हैं। लेकिन भारत की विशाल आबादी और बीमारियों की चुनौतियों की वजह से युवा वर्ग पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया है। आरकेएसके योजना इस खास वर्ग की बीमारियों, अच्‍छी सेहत और भविष्‍य के चुनौतियों पर खास ध्‍यान देने वाली हैं।

केन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने नये कार्यक्रम को राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मिशन के तहत शुरू करने का फैसला किया है। राष्‍ट्रीय ग्रामीण स्‍वास्‍थ्‍य मिशन और राष्‍ट्रीय शहरी स्‍वास्‍थ्‍य मिशन के तहत सभी उप-स्‍वास्थ्‍य केन्‍द्रों, सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्रों और जन-स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्रों में किशोरों के लिए अलग से सेवाएं शुरू करने का फैसला किया है। इन केन्‍द्रों में 10 से 19 वर्ष के किशोर और किशोरियां अपनी बीमारियों और उपचारों के अलावा सेहत से जुड़े परामर्श के लिए भी संपर्क कर सकेंगे। राष्‍ट्रीय ग्रामीण स्‍वास्‍थ्‍य मिशन को चलाने में जैसे आशा कार्यकर्ता सबसे अहम भूमिका निभाती हैं, उसी तरह हर स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्र के तहत किशोर  कार्यकर्ताओं की भी मदद ली जाएगी। स्‍कूलों में किशोरों को अपने सेहत के प्रति  जागरूक करने के लिए अलग से अभियान चलाया जाएगा। स्‍कूली किशोरों को प्रोत्‍साहित करने के लिए कई तरह के अवार्ड और प्रमाण-पत्र देने जैसी योजनाओं पर भी विचार किया जा रहा है।

इस वर्ग विशेष में खान-पान और सेहत को लेकर कई तरह की भ्रातियां भी रहती हैं। इसको ऐसे भी समझा जा सकता है कि देश में युवाओं में 33 प्रतिशत बीमारियां गलत तथा अनियमित जीवन शैली की वजह से है, वहीं 60 फीसदी असामयिक मौत भी इसी वर्ग में होता है। शोध बताते हैं कि इन दोनों समस्‍याओं का कारण किशोरों के बीच तम्‍बाकू व शराब का सेवन, खराब खानपान शैली, शारीरिक प्रताड़ना और जोखिम वाले काम करना है। नए कार्यक्रम में किशोरों के लिए बेहतर जीवन-शैली से जुड़े परामर्श केन्‍द्रों का भी प्रावधान किया गया है। स्‍कूलों में स्‍वास्‍थ्‍य मिशन के तहत डॉक्‍टर व स्‍वास्‍थ्‍य कर्मी जागरूक करेंगे, जबकि स्‍कूल छोड़ चुके किशोरों तक ऐसी सेवाओं को पहुंचाने के लिए आशा कार्यकर्ता व नए युवा कार्यकर्ताओं की मदद ली जाएगी।

देश में किशोरियों से जुड़ी सेहत को नकारा नहीं जा सकता है। नेशनल फैमिली हेल्‍थ सर्वे-3 के अनुसार 56 प्रतिशत किशोरियां एनीमिया से ग्रसित हैं। इसी तरह 15-19 साल की पचास फीसदी लड़कियां कुपोषण या अतिपोषण की शिकार हैं। भारत में लगभग 2.4 प्रतिशत किशोरियां मोटापे की भी शिकार हैं। राष्‍ट्रीय किशोर स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम इस खास तबके की लड़कियों के लिए वरदान साबित हो सकता है। ज्‍यादातर लड़कियों को अपनी सेहत को लेकर जानकारियां नहीं के बराबर होती हैं। बढ़ती उम्र में शरीर में बीमारियों के प्रतिरोधियों के ज्‍यादा मौजूद होने के कारण ज्‍यादातर लड़कियां गंभीर बीमारियों के प्रति सुस्‍त रवैया अपनाए रहती हैं। इन लड़कियों को अपने शरीर की विभिन्‍न बीमारियों की जांच के लिए सुविधाएं उपलब्‍ध होंगी। घर से बाहर नहीं निकलने वाली किशोरियों तक स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं पहुंचाने और जानकारियां देने के लिए आशा कार्यकर्ताओं की मदद ली जाएगी।

भारत में सेहत सूचकांक को बेहतर करने के लिए मातृ मृत्‍यु दर को कम करना एक बहुत बड़ी चुनौती है। रजिस्‍ट्रार जनरल ऑफ इंडिया के ताजा आंकड़ों के अनुसार देश में अभी भी प्रति एक लाख पैदा होने वाले शिशुओं के दौरान 212 प्रसूताओं की मौत हो जाती है। इसमें किशोरियों की आबादी सबसे ज्‍यादा मानी जाती है। 'यूनिसेफ' के एक ताजा शोध में भी बताया गया है कि 19 वर्ष से कम उम्र की लगभग 40 प्रतिशत लड़कियां शादीशुदा हैं। इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि बाल विवाह और मातृ मृत्‍यु दर में सीधा संबंध है। किशोरों के इस खास कार्यक्रम में केन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय राज्‍यों की मदद से बाल विवाह और जल्‍दी विवाह जैसी प्रथा पर रोक लगाने की कोशिश करेगा। इसके लिए महिला व बाल विकास मंत्रालय और राज्‍यों में इन विभागों के साथ तालमेल बिठाने की भी योजना है।


हालांकि, अभी तक देश में ऐसी कोई स्‍वास्‍थ्‍य योजना नहीं बनी थी जिसमें किशोरों के खास वर्ग पर गौर किया गया हो, लेकिन उम्‍मीद की जा सकती है कि मौजूदा कार्यक्रम से इनका भला होगा। आगामी दशक में एक सशक्‍त देश बनने के लिए एक सेहतमंद युवा समाज के लिए यह कार्यक्रम मील का पत्‍थर साबित हो सकता है।

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