एक दूसरे के पड़ोसी होते हुए भी भारत और
पाकिस्तान के बीच कारोबार काफी सिमटा रहा है। कुछ समय पहले तक दक्षिण एशिया में
श्रीलंका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था, अवामी लीग सरकार के कार्यकाल में अब बांग्लादेश उससे थोड़ा आगे निकल
गया है। पाकिस्तान इन दोनों से पीछे है। इसकी वजह भारत से उसके रिश्तों में आते
रहे उतार-चढ़ाव के अलावा कारोबार के लिए ढांचागत सुविधाओं की कमी भी है। दोनों के
बीच बहुत सारा व्यापारिक लेन-देन तीसरे देश के जरिए होता रहा है, जो कि दोनों के हित में नहीं है। देर
से ही सही, अब आपसी व्यापार की संभावनाएं बढ़ाने की
कोशिश चल रही है। इस सिलसिले में सोलह महीने बाद दोनों तरफ के वाणिज्यमंत्रियों की
बातचीत हुई और कई अहम फैसले किए गए। वाणिज्यमंत्री आनंद शर्मा और पाकिस्तान के
व्यापारमंत्री खुर्रम दस्तगीर खान की बैठक के बाद घोषणा की गई कि वाघा सीमा बारहो
महीने चौबीसो घंटे कारोबार के लिए खुली रहेगी। कंटेनर के जरिए भी सामान की निर्बाध
आवाजाही हो सकेगी।
दोनों देशों ने एनडीएमए यानी
भेदभाव-रहित बाजार प्रवेश कार्यक्रम अपनाने का निर्णय किया है। अगर पाकिस्तान ने
मोस्ट फेवर्ड नेशन यानी कारोबार के लिहाज से सर्वाधिक तरजीही मुल्क का दर्जा भारत
को दे दिया होता,
तो
शायद ऐसे किसी कार्यक्रम की जरूरत न पड़ती। लेकिन सैद्धांतिक तौर पर रजामंदी जताने
के बाद पाकिस्तान पीछे हट गया। दरअसल, पाकिस्तान को यह डर सताता रहा है कि भारत के बड़ी अर्थव्यवस्था होने
के कारण आयात-निर्यात को अधिक खुला करने से उसे नुकसान उठाना पड़ सकता है।
सैद्धांतिक सहमति को लागू न करने के पीछे शायद घरेलू राजनीति का भी कुछ दबाव रहा
हो।
बहरहाल, खान ने भरोसा दिलाया है कि एनडीएमए से भी वे मकसद हासिल किए जा सकते
हैं जो व्यापार के लिए सबसे पसंदीदा मुल्क की अवधारणा में निहित हैं। आपसी व्यापार
बढ़ाने के लिए दोनों देश अपने यहां एक दूसरे के बैंकों की शाखाएं खोलने की इजाजत
देने को तैयार हैं। दोनों तरफ के केंद्रीय बैंकों को तय करना है कि किस-किस बैंक
को इस तरह की अनुमति दी जाए। इसके अलावा सीमा शुल्क और कई दूसरी प्रक्रियाओं से संबंधित
महकमों को भी आपसी व्यापार की सुविधाएं बढ़ाने की तैयारी में जुटना होगा। वीजा
नियमों को खासकर कारोबारियों के लिए और उदार बनाने पर भी दोनों देशों ने सहमति
जताई है।
पाकिस्तान से कारोबार बढ़ाने की दिशा
में यूपीए सरकार का यह आखिरी बड़ा प्रयास होगा। इसलिए उम्मीद है कि अगले महीने के
अंत तक इसे अमली जामा पहना दिया जाएगा, क्योंकि उसके बाद कभी भी चुनावी आचार संहिता लागू हो सकती है।
वाजपेयी सरकार के समय ही सर क्रीक का विवाद निपटाने की दिशा में काफी प्रगति हो गई
थी। पर खुद भाजपा की गुजरात सरकार का रवैया इस मामले में सकारात्मक नहीं रहा है।
अगर सर क्रीक से जुड़े मतभेद सुलझा लिए जाएं तो जहां दोनों तरफ के मछुआरों के लिए
सहूलियत होगी, वहीं आपसी कारोबार की संभावनाओं को भी
और बल मिलेगा। इस सिलसिले में दोनों देशों के बीच समुद्री आर्थिक सहयोग समझौता
होना चाहिए, जिसका सुझाव हाल में दोनों तरफ के
मछुआरा संगठनों और शांति के लिए प्रयासरत समूहों ने दिया है।
- साभारः जनसत्ता
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