गुरुवार, 16 जनवरी 2014

पोलियोमुक्त भारत

लचर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा भारत के लोगों के लिए हमेशा परेशानी और चिंता का सबब रही है। लेकिन अब एक अच्छी खबर आई है कि भारत पोलियो मुक्त देश घोषित हो गया है। पिछले तीन सालों में भारत में पोलियो का एक भी मामला दर्ज नहींहुआ है। भारत के लिए यह उपलब्धि काफी मायने रखती है, क्योंकि तीसरी दुनिया के देशों में चेचक, पोलियो, मलेरिया, बर्ड फ्लू, टीबी और एड्स जैसी बीमारियों का डर लंबे अरसे कायम है। स्वास्थ्य सेवा का चरमराता ढांचा, गरीबी, कुपोषण, बीमारियों के प्रति अज्ञानता, साफ-सफाई का अभाव ऐसे कई कारणों से इन देशों के निवासी बीमारियों की चपेट में आसानी से आते रहे हैं। भारत की ही बात करें तो बारिश के मौसम में मलेरिया, डेंगू, मस्तिष्क ज्वर फैलते ही हैं। ठंड में फ्लू की शिकायत होती है। आदिवासी व गरीब ग्रामीण अंचलों में महिलाएं व बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। इन बीमारियों से हर साल कई मौतें होती हैं, फिर भी इन पर रोक नहींलगाई जा सकी है। इतना जरूर हुआ है कि इनके कारण मच्छर भगाने के स्प्रे, लोशन आदि का कारोबार खूब बढ़ गया, सफाई के नाम पर शौचालय साफ करने वाले तरल पदार्थों, सेनेटाइजर जैसे उत्पादों की बिक्री बढ़ गई। साबुन की उपयोगिता नहाने से ज्यादा बीमारियों के कीटाणुओं का सफाया करने के लिए साबित की जाने लगी। कहने का आशय यह कि भारत में आमतौर पर पायी जाने वाली बीमारियां कुछ खास उद्योगों के लिए मुनाफे का कारण बन गयीं। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि स्वास्थ्य सेवा का ढांचा मजबूत करने के लिए पर्याप्त कोशिशें नहीं हुईँ।


इस निराशाजनक तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तमाम अड़चनों के बावजूद पोलियो जैसी बीमारी का उन्मूलन करने में सफलता मिली है। यह संभव हो पाया सरकार की इच्छाशक्ति और इसके साथ-साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनीसेफ, और रोटरी इंटरनेशनल आदि के अंतरराष्ट्रीय सहयोग से। कुछ सालों पहले तक भारत से पोलियो उन्मूलन चुनौती बना हुआ था। लगभग 3 दशकों से इस दिशा में प्रयास जारी थे, फिर भी पोलियो के मामले कहींन कहींसे सामने आ जाते। हिंदी पट्टी के कुछ प्रदेशों में इस क्षेत्र में जागरूकता का अभाव था और कुछ धार्मिक अड़चनें पेश आ रही थीं। इसे दूर करने के लिए भी उपाय किए गए। सरकार अगर इस मुकाम तक पहुंची है तो इसमें उनमें लाखों स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का योगदान शामिल हैं, जिन्होंने दो बूंद जिंदगी की पिलाने के लिए घरों-घर संपर्क किया। सरकार ने पोलियो रोकने की दवा पिलाने के लिए सघन प्रचार किया। टीवी, रेडियो, अखबार, विशाल गुब्बारों, पोस्टरों आदि के जरिए देश में भर में संदेश प्रसारित किया जाता रहा है कि अमुक तारीख को पांच साल के बच्चों को पोलियोड्राप्स पिलाना है। अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर जाकर अभिभावक बच्चों को मुफ्त में ये दवा पिलाते रहे हैं। चाहे घर पर हों या प्रवास पर, पोलियो की दवा पूरे देश में कहींभी आसानी से बच्चे को मिल सके, इसका पुख्ता इंतजाम किया गया। इतना ही नहीं दवा पिलाने की तारीख के अगले दिन घर-घर घूम कर स्वास्थ्य कार्यकर्ता पूछताछ करते कि कोई बच्चा दवा पीने से छूट तो नहींगया। इस कड़ी मेहनत का ही नतीजा है कि पिछले तीन साल में पोलियो संक्रमण नहींहो पाया। अन्यथा दूषित पेयजल के सेवन से यह बीमारी नवजातों को आसानी से अपना शिकार बना लेती। अब भी हम निश्ंचितता से नहींबैठ सकते हैं क्योंकि पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों में पोलियो अब भी चिंता का विषय है। पाकिस्तान में तो 2012 के मुकाबले पोलियो के कहींज्यादा मामले 2013 में सामने आए हैं। वहां कुछ कट्टरपंथी ताकतें पोलियो ड्राप्स पिलाने का विरोध करती आयी हैं, जिसका खामियाजा नौनिहालों को जिंदगी भर की विकलांगता के रूप में भुगतना पड़ रहा है। चूंकि भारत में पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आवाजाही बनी हुई है, इसलिए पोलियो वायरस के फैलने की आशंका बनी रहेगी। भारत में अब भी सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। इस बात पर भी विचार होना चाहिए कि जब चेचक, पोलियो जैसी बीमारियों को खत्म किया जा सकता है तो सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा को भी इतना दुरुस्त किया जा सकता है कि मलेरिया, टीबी, फ्लू, डायरिया और कुपोषण खत्म हो सकें।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कुल पेज दृश्य