शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

वर्ष 2013 में विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय की उपलब्‍धियां

केंद्रीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा वर्ष 2013 में की गई पहलकदमियों की प्रमुख विशेषताएं निम्‍नलि‍खि‍त हैं:-

भारतीय विज्ञान कांग्रेस के शताब्‍दी सत्र में प्रधानमंत्री द्वारा नई विज्ञान, प्रौद्योगिकी व आविष्‍कार नीति जारी। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 3 जनवरी 2013 को भारतीय विज्ञान कांग्रेस के शताब्‍दी अधिवेशन के उद्घाटन सत्र में विज्ञान, प्रौद्योगिकी व आविष्‍कार नीति (एसटीआई) 2013 को जारी किया व इसकी पहली प्रति राष्‍ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी को भेंट की। एसटीआई नीति भारतीय वैज्ञानिक समुदाय को सरकारी व निजी दोनों क्षेत्रों में विज्ञान, प्रौद्योगिकी व आविष्‍कार द्वारा लोगों को तेज, निरंतर व समावेशी विकास पर ध्‍यान दिए जाने पर केंद्रित है। इसी के साथ ही इस नीति में जनसाधारण के लिए एसटीआई व एसटीआई के लिए जनसाधारण, दोनों पर ध्‍यान दिया जाएगा। इसका उद्देश्‍य विज्ञान, प्रौद्योगिकी वह आविष्‍कारों के संपूर्ण लाभों का प्रयोग राष्‍ट्रीय प्रगति व निरंतर और अधिक समावेशी विकास के लिए करना है इससे अनुसंधान व विकास, प्रौद्योगिकी व आविष्‍कार गतिविधियों के क्षेत्र में भागीदारों प्रोत्‍साहन देकर अनुसंधान व विकास पर सकल खर्च को तय करने का प्रावधान है।

इस नीति के अंतर्गत विभिन्‍न हि‍तधारकों के बीच भागीदारी और आविष्‍कारों में निवेश के लिए उद्यमों को प्रोत्‍साहित करके विकसित होने के लिए नवीन क्षमताओं के लिए आर्थिक प्रणाली प्रारंभ हो सकेगी। इस नीति में अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग व गठजोड़ द्वारा एसआईटी गतिविधियों में लैंगिक समानता लाने व चुनिंदा तकनीकी क्षेत्रों में वैश्‍विक प्रतिस्‍पर्धा तक पहुंचने पर भी ध्‍यान दिया गया है। इस नीति का उद्देश्‍य तेज, निरंतर व समावेशी विकास के लिए भारत के महत्‍वाकांक्षी लक्ष्‍यों को ध्‍यान में रखते हुए विज्ञान की प्रमुखता वाले उपायों की खोज, प्रसार और इन्‍हें पूरा करने की गति में तेजी लाना है। एसटीआई नीति का उद्देश्‍य भारत (सृष्‍टि) के लिए उच्‍च तकनीकी नेतृत्‍व वाले एक मजबूत और व्‍यावहारिक विज्ञान, अनुसंधान व आविष्‍कार प्रबंध विकसित करना है।

‘‘नई औषधियों के लिए उन्‍न्‍त रसायन-सूचना विज्ञान’’ के क्षेत्र में सीएसआईआर- ओएसडीडी की रॉयल सोसाईटी ऑफ केमिस्‍ट्री की सहभागिता

तपेदिक व मलेरिया जैसी नजरअंदाज की गई बीमारियों के लिए नए इलाज के अनुसंधान में तेजी लाने में रसायन-सूचना वि‍ज्ञान की महत्‍ता के बारे में जागरूकता पैदा करने और आम उद्देश्‍यों को पूरा करने की प्रक्रिया में भारतवासियों को मिलने वाली आर्थिक, पर्यावरण मुखी व सामाजिक लाभों में अधिकाधिक वृद्धि लाने के लिए वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिसर (सीएसआईआर) ने अपनी ओपन सोर्स ड्रग डिस्‍कवरी (ओएसडीडी) पहलकदमी व रसायन विज्ञानों के आधुनिकीकरण के लिए सबसे बड़ी यूरोपीय संस्‍था रॉयल सोसाईटी ऑफ केमि‍स्‍ट्री (आरएससी) के बीच एक समझौते पर हस्‍ताक्षर किए गए हैं।
   
तीन साल के अवधि वाले इस समझौते का उद्देश्‍य रसायन-सूचना वि‍ज्ञान के विकास के जरिए तपेदिक व मलेरिया के नए, तेजी से काम करने वाले व ज्‍यादा असरदार इलाज का पता लगाने के लक्ष्‍य को पूरा करना है। इस गठजोड़ द्वारा इस सहभागिता से आने वाले सालों में विशेषज्ञों व नेतृत्‍वकारियों के बीच संपर्क बनाने के लिए कार्यशालाओं व सम्‍मेलनों के आयोजन पर विचार किया जाएगा और दवाओं की खोज और उन्‍हें विकसित करने के लिए नि:शुल्‍क प्रयोग वाले सॉफ्वेयर उपकरण विकसित करने के साथ-साथ वास्‍तविक व वर्चुअल सूक्ष्‍म आण्‍विक संरचना के ऑनलाईन निदान का साझा तौर पर निर्माण करने पर ध्‍यान केंद्रित किया गया है। इस भागीदारी का उद्देश्‍य विद्यार्थियों के लिए ओएसडीडी के ई-लर्निंग कार्यक्रम विकसित करना भी है।

केंद्रीय बजट में विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग को 6,275 करोड़ रूपए प्रदान किए गए

आण्‍विक ऊर्जा विभाग को वित्‍त वर्ष 2013-14 के लिए 6,275 करोड़ रूपए दिए गए। इसकी घोषणा 28 फरवरी 2013 को लोकसभा में पेश किए गए केंद्रीय बजट में वित्‍त मंत्री श्री पी चिदंबरम द्वारा की गई। उन्‍होंने कहा कि विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय व प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की मदद से कुछ अद्भुत विज्ञान व प्रौद्योगिकी आविष्‍कार संभव हो सके हैं। उन्‍होंने संस्‍थाओं के लिए 200 करोड़ रूपए की रकम अलग से रखने का प्रस्‍ताव किया है जिससे इन उत्‍पादों का स्‍तर बढ़ाया जा सकेगा। उन्‍होंने अनुदान के प्रबंधन व प्रयोग के लिए राष्‍ट्रीय अभिनव परिषद से एक योजना बनाए जाने के प्रस्‍ताव के बारे में भी जानकारी दी।

विज्ञान व प्रौद्योगिकी को प्रोत्‍साहित करने के लिए उच्‍च स्‍तरीय अनुसंधान के लिए उठाए गए कदम

सरकार ने भारतीय विश्‍वविद्यालयों व संस्‍थानों में विज्ञान व प्रौद्योगिकी से संबंधित उच्‍च स्‍तरीय अनुसंधान को प्रोत्‍साहित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) उच्‍च स्‍तरीय अनुसंधान में कार्यरत है व इसने एरोस्‍पेस, स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल औषधियों, खाद्य व खाद्य प्रसंस्‍करण व ऊर्जा सहित कई क्षेत्रों में महत्‍वपूर्ण योगदान दिया है। जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) ने कृषि, स्‍वास्‍थ्‍य, पर्यावारण व औद्योगिक विकास के क्षेत्रों में जैव प्रौद्योगिकी को प्रयोग में लाने संबंधी कई संगठित अनुसंधान कार्यक्रम लागू किए हैं।

विज्ञान व प्रैद्योगिकी विभाग (डीएसटी) ने नैनोसाइंस, नैनोटेक्‍नोलॉजी, ढांचागत जैव-विज्ञान, कम्‍प्‍यूटेशनल और अणु-भौतिकी, ग्रीनकेमिस्‍ट्री, खनन व खनिज इंजिनियरिंग, मॉलीक्‍यूलर पदार्थों, सौर ऊर्जा व जल आदि सहित कई क्षेत्रों में अनुसंधान को प्रोत्‍साहित किया है। डीएसटी के आधारभूत ढांचे के सहायक कार्यक्रमों जैसे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (एफआईएसटी) की आधारभूत संरचना को मजबूत बनाने के लिए पूंजी व विश्‍वविद्यालय अनुसंधान और वैज्ञानिक उत्‍कृष्‍टता (टीयूआएसई) के प्रोत्‍साहन, महिला विश्‍वविद्यालयों के लिए नवीन खोजों व उत्‍कृष्‍टता (सीयूआरआईई) और अनुसंधान इन विकास की आधारभूत संरचना (उत्‍तरपूर्व, जम्‍मू-कश्‍मीर, बिहार आदि के लिए) के क्षेत्रीय संतुलन के लिए विशेष पैकेजों ने उच्‍च स्‍तरीय अनुसंधान में अनुसंधान क्षमता को बढाने व इस जोड़ने में कई विश्‍वविद्यलयों व संस्‍थानों की सहायता की है। पिछले वर्षों में वैज्ञानिक प्रकाशनों में विश्‍वविद्यालय क्षेत्र का राष्‍ट्रीय भाग 15 प्रतिशत से बढ़कर 31 प्रतिशत हो गया है। भू-विज्ञान मंत्रालय ने ध्रुवीय विज्ञान, क्रायोस्‍फेयर, वातावरण में परिवर्तन और महासागरीय तकनीक आदि में उच्‍च क्षमता वाले कई अनंसुधानों को प्रोत्‍साहन दिया है।

अंतरि‍क्ष के क्षेत्र में देश में ही तैयार क्रायोजेनि‍क इंजन, हवा में सांस लेने में सहायक प्रॉपलजन, माइक्रोवेब रि‍मोट सेंसिंग, गहरे अंतरिक्ष में सहायक खोजी एंटीना प्रबंध तथा रि‍येक्‍टर प्रौद्योगि‍की जैसी महत्‍वपूर्ण तकनीकों के वि‍कसि‍त होने से वि‍श्‍ववि‍द्यालयों व संस्‍थानों में हो रहे भारतीय अनुसंधान की ध्‍येय केंद्रि‍त दि‍शाओं का प्रदर्शन होता है। उच्‍च स्‍तरीय अनुसंधान को और अधि‍क प्रोत्‍साहि‍त करने के लि‍ए सरकार की कई योजनाएं हैं। 12वीं योजना में अनुसंधान व वि‍कास में नि‍वेश के लि‍ए नि‍जी क्षेत्र को प्रोत्‍साहन देने, अनुसंधान व वि‍कास में सरकारी- नि‍जी सहभागि‍ता को प्रोत्‍साहन व साफ-सुथरी ऊर्जा और वि‍श्‍ववि‍द्यालय क्षेत्र में अनुसंधान के प्रसार को वरीयता दी गई है। उच्‍च गुणवत्‍ता के शोध की संभावना बढाने के लि‍ए सुपर कम्‍प्‍यूटिंग सुवि‍धाओं सहि‍त जैव तकनीक, स्‍वास्‍थ्‍य, खेतीबाड़ी व राष्‍ट्रीय वरीयता के अन्‍य वि‍षयों को लागू करने के लि‍ए व्‍यापक मि‍शन मोड जारी करने के लि‍ए कदम उठाए जा रहे हैं। विज्ञान व प्रौद्योगि‍की के लि‍ए बजट का आवंटन जो 10वीं योजना में 25,301 करोड़ रूपए व 11वीं योजना में 25,304 करोड़ रूपए था वह 12वीं योजना में बढ़कर 1,20,430 करोड़ रूपए हो गया।

डीबीटी द्वारा भारत में बनी रोटावायरस टीके की तीसरे स्‍तर की डॉक्‍टरी जांच के परि‍णामों की घोषणा

भारत सरकार के जैव प्रौद्योगि‍की वि‍भाग के सचि‍व डॉ. के. वि‍जयराघवन द्वारा भारत में नि‍र्मि‍त व वि‍कसि‍त रोटावायरस दवा की तीसरे स्‍तर की डॉक्‍टरी जांच के सकारात्‍मक परि‍णामों की घोषणा की गई। 14 मई 2013 को पत्रकारों को संबोधि‍त करते हुए उन्‍होंने कहा कि‍ जांच में रोटावैक के काफी सकारात्‍मक परि‍णाम सामने आए हैं।

डॉक्‍टरी जांच में यह पहली बार पाया गया है कि‍ सरकारी-नि‍जी सहभागि‍ता के अंतर्गत भारत बॉयोटेक के सहयोग से भारत में वि‍कसि‍त की गई रोटावायरस दवा रोटावैक भारत में संसाधन वि‍हीन क्षेत्रों में काफी कारगर साबि‍त हुई है। रोटावैक से जन्‍म के पहले वर्ष में गंभीर रोटावायरस हैजे से 56 प्रति‍शत बचाव प्राप्‍त हो सका जबकि‍ जन्‍म के दूसरे वर्ष में भी यह सुरक्षा प्रभावी रही है। इसके साथ ही यह दवा कि‍सी भी कारण से हुए हैजे में असरदार साबि‍त हुई है।

श्रीनगर में सीएसआईआर- आईआईआईएम की प्रयोगशाला की शाखा राष्‍ट्र को पुन: समर्पि‍त

केंद्रीय वि‍ज्ञान व प्रौद्योगि‍की और पृथ्‍वी-वि‍ज्ञान मंत्री श्री एस. जयपाल रेड्डी ने 29 जुलाई 2013 को इंडि‍यन इंस्‍टी‍ट्यूट ऑफ इंटरग्रेटि‍व मेडि‍सीन (सीएसआईआर-आईआईआईएम)सीआईएसआर की प्रयोगशाला को राष्‍ट्र को पुन: समर्पि‍त कि‍या। इस अवसर पर जम्‍मू-कश्‍मीर के मुख्‍यमंत्री उमर अब्‍दुल्‍ला, जम्‍मू-कश्‍मीर के वि‍ज्ञान व प्रौद्योगि‍की राज्‍य मंत्री तथा वि‍ज्ञान व औद्योगि‍क अनुसंधान परि‍षद (सीएसआईआर) और आईआईआईएम के वरि‍ष्‍ठ अधि‍कारी उपस्‍थि‍त थे।

उद्योग जगत और सरकार की संयुक्‍त समि‍ति‍ द्वारा अनुसंधान और वि‍कास के क्षेत्र में नि‍जी क्षेत्र के नि‍वेश को प्रोत्‍साहि‍त करने के बारे में डीएसटी-सीआईआई श्‍वेत पत्र

वि‍ज्ञान एवं प्रौद्योगि‍की वि‍भाग डीएसटी और भारतीय उद्योग संघ (सीआईआई) द्वारा अनुसंधान व वि‍कास में नि‍वेश में नि‍जी क्षेत्र को प्रोत्‍साहि‍त करने के लि‍ए एक श्‍वेत पत्र जारी कि‍या गया है। केंद्रीय वि‍ज्ञान व प्रौद्योगि‍की तथा पृथ्‍वी वि‍ज्ञान मंत्री श्री एस. जयपाल रेड्डी इस अवसर पर उपस्‍थि‍त थे।

इस अवसर पर उन्‍होंने कहा कि‍ व्‍यापार उमक्रम आवि‍ष्‍कारों का मुख्‍य स्रोत है। यह ज्‍यादातर देशों में अनुसंधान व वि‍कास गति‍वि‍धि‍यों व इन्‍हें पूंजी प्रदान करने में महत्‍वपूर्ण भूमि‍का नि‍भाते हैं। वैश्‍वि‍क स्‍तर पर प्रति‍स्‍पर्धा में व्‍यापार क्षेत्र को नवीन आवि‍ष्‍कारों की क्षमता को बढाने के लि‍ए इन्‍हें अग्रणी बनाया जा रहा है।

मंत्री महोदय ने कहा कि‍ 12वीं पंचवर्षीय योजना के समाप्‍त होने से पहले अनुसंधान व वि‍कास में सरकारी नि‍वेश (जो कि‍ सरकार व उद्योग प्रत्‍येक का एक प्रति‍शत है) के बराबर नि‍जी क्षेत्र से नि‍वेश को आकर्षि‍त करने पर भारत सरकार काफी जोर दे रही है। मंत्री महोदय ने अनुसंधान व वि‍कास में नि‍जी क्षेत्र को नि‍वेश करने व इस संबंध में इसे सरकारी पूंजी नि‍वेश के बराबर लाने के लि‍ए प्रधानमंत्री द्वारा की गई अपील का उल्‍लेख कि‍या। उन्‍होंने कहा कि‍ इस साल भारतीय वि‍ज्ञान कांग्रेस के दौरान प्रधानमंत्री द्वारा जारी की गई वि‍ज्ञान, प्रौद्योगि‍की व आवि‍ष्‍कार नीति‍ 2013 अनुसंधान व वि‍कास में नि‍जी क्षेत्र से नि‍वेश आकर्षि‍त करने पर भी जोर देती है। मंत्री महोदय ने भारतवासि‍यों के सार्वजनि‍क हि‍त व सुरक्षा के लि‍ए पीपीपी द्वारा सरकारी क्षेत्र के साथ मि‍लकर काम करने के लि‍ए नि‍जी क्षेत्र का आह्वान कि‍या।

भारत सरकार के वि‍ज्ञान व प्रौद्योगि‍की मंत्रालय और जापान के रि‍केन ने संयुक्‍त अनुसंधान संबंधी पहलों की शुरूआत के लि‍ए सहमति‍ पत्र पर हस्‍ताक्षर कि‍ए

भारत सरकार के वि‍ज्ञान व प्रौद्योगि‍की मंत्रालय (डीबीटी एवं डीएसटी) और जापान की सबसे बड़ी अनुसंधान संस्‍था रि‍केन के बीच जैव-वि‍ज्ञान, जीवन-वि‍ज्ञान व पदार्थ वि‍ज्ञान के क्षेत्रों में संयुक्‍त अनुसंधान कार्यक्रम शुरू करने के लि‍ए 14 सि‍तंबर 2013 को एक सहमति‍ पत्र पर हस्‍ताक्षर कि‍ए गए। जीनोम संबंधी अनुसंधान ने जैव-वि‍ज्ञान, कम्‍प्‍यूटेशनल-वि‍ज्ञान सहि‍त बॉयोइंफोरमेटि‍क्‍स उपकरणों का वि‍कास और सुरक्षा के लि‍ए उपकरणों की खोज (जैसे स्‍पेक्‍ट्रोस्‍कोपी) व साझा हि‍त के अन्‍य क्षेत्र शामि‍ल हैं। सहमति‍ पत्र पर रि‍केन के अध्‍यक्ष प्रोफेसर नोयोरी और वि‍ज्ञान व प्रौद्योगि‍की वि‍भाग के सचि‍व डॉ. टी. रामासामी और जैव-प्रौद्योगि‍की वि‍भाग (डीएसटी) के सचि‍व डॉ. के. राघवन द्वारा हस्‍ताक्षर कि‍ए गए। इससे रि‍केन-डीबीटी एवं डीएसटी की संयुक्‍त अनुसंधान गति‍वि‍धि‍यां औपचारि‍क रूप से शुरू हो सकेंगी।

इस सहयोग से इन क्षेत्रों में भारत व जापान के बीच वि‍नि‍मय आसान हो सकेगा व सहभागि‍ता प्रोत्‍साहि‍त होगी।

वि‍ज्ञान व प्रौद्योगि‍की मंत्रालय ने इंस्‍पायर पुरस्‍कार योजना के ई-प्रबंधन की शुरूआत की

वि‍ज्ञान व प्रौद्योगि‍की मंत्रालय ने भवि‍ष्‍य में इंस्‍पायर पुरस्‍कार के लि‍ए ई-एमआईएएस की नई परि‍योजना जारी की है। इसे केंद्रीय वि‍ज्ञान व सूचना प्रौद्योगि‍की एवं पृथ्‍वी वि‍ज्ञान मंत्री द्वारा 10 अक्‍टूबर 2013 को वि‍ज्ञान व प्रौद्योगि‍की मंत्रायल की इंस्‍पायर पुरस्‍कार योजना के अंतर्गत हो रही तीसरी राष्‍ट्रीय स्‍तर की प्रदर्शनी व परि‍योजना प्रति‍स्‍पर्धाओं के दौरान शुरू कि‍या गया। यह एप्‍लीकेशन सॉफ्टवेयर सभी राज्‍यों/केंद्रशासि‍त प्रदेशों, जि‍लों और स्‍कूलों व तीन केंद्रीय संस्‍थाओं- केंद्रीय वि‍द्यालय, नवोदय वि‍द्यालय स्‍कूलों व सैनि‍क सोसाईटी स्‍कूलों में प्रयोग कि‍ए जाने के लि‍ए तैयार है। सभी संबंधि‍त अधि‍कारि‍यों से अनुरोध है कि‍ वह नए एप्‍लीकेशन सॉफ्टवेयर का प्रयोग करना शुरू करें और वि‍भि‍न्‍न स्‍तरों पर प्रति‍योगि‍ताएं आयोजि‍त करने के लि‍ए पुरूस्‍कारों व पूंजी के लि‍ए ऑनलाइन प्रस्‍ताव भेजें।

ई-एमआईएएस क्‍या है


इंस्‍पायर पुरस्‍कार योजना के अंतर्गत लाखों की संख्‍या में नामांकनों में से पुरस्‍कृत कि‍ए जाने वाले वि‍द्यार्थि‍यों का चयन कि‍या जाता है। सूचना व प्रौद्योगि‍की वि‍भाग (डीएसटी) द्वारा पूरी इंस्‍पायर पुरस्‍कार योजना का अत्‍याधुनि‍क सूचना-प्रौद्योगि‍की का प्रयोग करते हुए ई-प्रबंधन करने की योजना है जि‍ससे देश भर में स्‍कूलों से नामांकनों की ई-फाईलिंग हो सकेगी, योजना के मानदंडों के अनुसार सूचना-प्रौद्योगि‍की के साथ ही जि‍ला और राज्‍य के अधि‍करि‍यों द्वारा इसकी प्रक्रि‍या, बैंकों को चुनिंदा वि‍द्यार्थि‍यों का वि‍वरण भेजने, पुरस्‍कार राशि‍ को पुरस्‍कार वि‍जेताओं के खाते में जमा करना अथवा बैंकों द्वारा इंस्‍पायर पुरस्‍कार वारंट तैयार करना और चुने हुए पुरस्‍कार वि‍जेताओं ऐसी संबंधि‍त गति‍वि‍धि‍यों के लि‍ए उन्‍हें भेजना भी संभव हो सकेगा।      

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