कुछ
यही स्थिति आज हमारे देश में भ्रष्टाचार की भी है. कहना मुश्किल है कि इस बीमारी
की जड़ें ऊपर से हैं या नीचे से. यदि चोटी के कुछ लोग टू जी स्पेक्ट्रम और
कॉमनवेल्थ खेलों जैसे घोटालों में फंसे दिख रहे हैं तो हममे से शेष लोग अपने
रोजमर्रा के छोटे-छोटे जगहों पर इस खेल को खेल रहे हैं. अतः आप या तो अपना टिकट
कन्फर्म नहीं होने की दशा में ट्रेन के टीटी को पैसे दे रहे हैं या एक सिपाही के
रूप में बिना कागज़ पकडे गए आदमी से पैसे ले रहे हैं. आप या तो अपनी बेटी का
इंजिनीयरिंग में एडमिशन कराने के लिए पैसे दे रहे हैं या फिर एक अच्छे स्कूल के
प्रिंसिपल के तौर पर डोनेशन के पैसे ले रहे हैं. ऐसे हज़ारों-लाखों उदाहरण हमें
अपने ही चरों तरफ मिल जायेंगे जहां यह खेल छोटे-छोटे रूपों में नित प्रति खेला जा
रहा है. यह भी साफ़ है कि इन खेलों के लिए कहीं से कोई संचार मंत्री या टेलिकॉम
सचिव या बड़ा उद्यमी नहीं आया रहा है, यह सब तो हम अपनी मर्जी से कर रहे हैं.
ऐसे में यदि कोई आ कर कह देता है कि मेरे पास इस बीमारी का शर्तिया इलाज है और वह
इलाज लोकपाल है तो हम यही समझते है कि कैंसर के इलाज के लिए बेबी टॉनिक सामने ला
कर रख दिया गया है.
हमारी
निगाह में लोकपाल जैसी किसी एक संस्था के आ जाने मात्र से भ्रष्टाचार पर कोई
प्रभाव नहीं पड़ने वाला है. भ्रष्टाचार एक भयानक समस्या है और अत्यंत दुरूह. इसे
इसकी पूर्णता में समझना और तदनुरूप हर प्रकार से इसे दूर करने के लिए बहु-आयामी
प्रयास करने की जरूरत है, ना कि एक जादुई चिराग को ले आने के
भ्रम को फैलाने की. कोई एक संस्था अकेले दम पर भ्रष्टाचार के दानव का अंत कर ही
नहीं सकती. अंत तो बहुत दूर की बात है, ऐसी संस्थाएं अकेले दम इस भ्रष्टाचार
को ठीक से छु तक नहीं सकेंगी.
तो
फिर भ्रष्टाचार का इलाज क्या है? हम यहाँ कुछ संभव उपाय प्रस्तुत कर रहे
हैं जिनके पालन से भ्रष्टाचार से कुछ हद तक छुटकारा मिल सकता है. पर हम यह स्पष्ट
कर देना चाहते हैं कि ये उपाय अपने आप में पूरे नहीं हैं और ना ही सम्पूर्ण हैं.
इनके अलावा कई सारे उपाय संभव हैं और आप सभी लोग अपनी ओर से ये उपाय सोच सकते हैं
तथा इस सूची में शामिल कर सकते हैं. तभी जा कर भ्रष्टाचार से कोई प्रभावी मुकाबला
करने की बात सोची जा सकती है.
·
सबसे पहली बात यह कि भ्रष्टाचार का एक
दिन में इलाज संभव ही नहीं है. यह बात छोटी और सीधी जरूर लगती है पर इसके गंभीर
मायने हैं. इसका सबसे पहला मतलब तो यही है कि हम इसे दूर करने के लिए किसी भी
उलटे-सीधे उपाय के चक्कर में नहीं पड़ जाएँ. दूसरी बात यह कि हम अल्प अवधि में
भ्रष्टाचार के दूर नहीं होने से अकारण परेशान नहीं हों. एक दिन में शर्तिया इलाज
की बातें अक्सर ऐसा नहीं होने पर गलत इशारा कर देती हैं और लोगों में दुगुना
हतोत्साह भर देती हैं. हमें ऐसी किसी भी स्थिति से पूरी तरह बचना होगा
·
हमें यह समझना होगा कि हमारे देश में
भ्रष्टाचार किसी क़ानून की कमी या किसी प्रक्रिया की कमी के कारण नहीं है और ना ही
हमारे पास संस्थाओं की कमी है. जहां तक निष्पक्ष संस्थाओं की बात है, सामाजिक-राजनैतिक
सन्दर्भों में किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में पूर्णतया निष्पक्ष संस्थाएं कागज़
पर अधिक होती हैं, व्यवहार में बहुत कम. सभी जानते हैं कि कई सारी
उच्च संवैधानिक पदों की नियुक्ति सिद्धान्ततया राजनैतिक हस्तक्षेप से पूर्णतया
विलग मानी जाती है पर सच्चाई यही है कि अक्सर इन स्थानों पर भी अलग-अलग किस्म के
प्रभावों की बात कही-सुनी जाती है. सिविल सेवा के अधिकारी तो एक अलग परीक्षा से
चयनित हो कर आते हैं और अपने कैरियर में इस कदर सुरक्षित होते हैं कि कोई भी
राजनैतिक शक्ति उनका अकारण बाल बांका नहीं कर सकती पर वे कई बार अपनी पहल पर,
अपने
लालच के लिए, अपनी ओर से कोशिश कर के राजनेताओं से सांठ-गाँठ
करते दिख जाते हैं. अतः यह कहना कि लोकपाल पूर्णतया निष्पक्ष ढंग से चुना जा सकता
है और निष्पक्ष बना रहेगा अथवा उस संस्था के कर्मचारी/अधिकारी ऐसा ही आचरण करते
रहेंगे, काफी हद तक बेमानी होगा
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भ्रष्टाचार से मुक्ति पाने के लिए
क़ानून के साथ-साथ लोक-जागरण और लोगों को इस ओर चैतन्य करना नितांत आवश्यक होगा. यह
काम कैसे होगा? यह एक बहुत ही दुष्कर और सतत प्रक्रिया होगी
जिसमे हर उस व्यक्ति को आगे आना होगा जो भ्रष्टाचार के इस दंश का मुकाबला कर रहा
है. इन सभी जागरूक व्यक्तियों को अपने आस-पास अपनी पूरी क्षमता के अनुरूप अधिक से
अधिक संख्या में लोगों को इस ओर उद्धत करना होगा, उन्हें समझाना
होगा और भ्रष्टाचार से होने वाली हानियों से विस्तार में अवगत कराना होगा.
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भ्रष्टाचार की समस्या और इससे निदान को
हमारी शिक्षा व्यवस्था का अनिवार्य अंग बनाना होगा. इस तरह से कक्षा एक से ही
हमारी शिक्षा प्रणाली में एथिक्स और मोरल वैल्यू को महत्वपूर्ण स्थान देते हुए उस
पर विषद चर्चा करना आवश्यक होगा. एथिक्स और मोरल वैल्यू के अतिरिक्त खास कर
भ्रष्टाचार और उससे निदान को भी पाठ्यक्रम में उचित स्थान दिया जाना चाहिए. हम
जानते हैं कि बचपन में यह सब पढ़ा देने से ही हर व्यक्ति इनका पालन नहीं करने लगता
पर सच्चाई यह भी है कि बचपन में पढ़ाई-सिखाई गयी बातें आदमी के जेहन पर सबसे अधिक
असर करती हैं.
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भ्रष्टाचार करने पर पकडे जाने पर
तत्काल दंड दिये जाने की बहुत जरूरत है. यह दंड तीन तरह के हो सकते हैं. इनमे पहला
तरीका है सामाजिक दंड. समाज में इस बात का भरपूर प्रचार होना चाहिए कि जो भी
व्यक्ति भ्रष्टाचार में लिप्त है वह एक प्रकार से सामाजिक भ्रष्टाचार के योग्य है.
इसके लिए समाचार पत्रों और मीडिया को आगे आना होगा और भ्रष्टाचार सम्बंधित
प्रत्येक खबर को उसके सामाजिक आयाम के साथ प्रदर्शित करना होगा. हमारी निगाह में
न्यायिक दंड के साथ सामाजिक दंड का भी अपना विशेष स्थान होता है. इसके लिए भी अन्य
लोगों के अतिरिक्त सामाजिक संगठनों और सामाजिक रूप से जागरूक व्यक्तियों को आने
आते हुए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी
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भ्रष्टाचार करने वाले व्यक्ति को
आधिकारिक/प्रशासनिक दंड दिया जाना. जहां किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध कोई भी शिकायत
आई, उसपर तुरंत जांच हो और जांच के निष्कर्षों के अनुरूप कार्यवाही हो.
जरूरी यह है कि यह कार्यवाही यथाशीघ्र हो ताकि सम्बंधित अधिकारी पर भी इसका सम्यक
प्रभाव पड़े और दूसरों के लिए भी वह एक मिसाल बने. इसके विपरीत यदि यह व्यक्ति
सालों जांच झेलता रहता है और अंत में जांच में निर्दोष हो जाता है तो इसका हर किसी
पर गलत प्रभाव पड़ता है. इस हेतु नितांत आवश्यक है कि प्रत्येक प्रशासनिक कार्यवाही
के पूरा होने लिए अनिवार्यरूप से निश्चित समयावधि नियत कर दी जाए और प्रत्येक दशा
में वह जांच उस समयावधि में ही पूरी हो. ऐसा नहीं होने पर जांचकर्ता अधिकारी दोषी
ठहराए जाएँ और उन पर अलग से विभागीय कार्यवाही हो. यदि ऐसे नियम बना दिये जाएँ तो
उनका पालन शुरू भी हो जाएगा और इससे ऐसे सभी मामलों पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ेगा.
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एक अन्य विषय जिस पर हमें विशेष ध्यान
देने की जरूरत है वह यह कि हमारे सारे वित्तीय लेन-देन, हमारी समस्त
वित्तीय कार्यवाहियां, सभी तरह के आर्थिक और औद्योगिक उत्पादन और सभी
सेवाएं इस तरह से हों कि उनका बकायेदे हिसाब और रिकॉर्ड हो. इसका अर्थ यह हुआ कि
जो भी खरीद-फरोख्त हों, जो भी सामान बेचे और ख़रीदे जाएँ अथवा जो भी
सेवा प्रदान की जाएँ या उपयोग की जाएँ, वे सभी कम्प्यूटरीकृत हों और उनका
डाटाबेस तैयार किया जाए और उन्हें सुरक्षित रखा जाए. यह कोई आसान काम नहीं है और
ना ही एक दिन में होने वाला काम है पर ऐसा भी नहीं है कि यदि गंभीरता से यह कार्य
किया जाए तो इसके अपेक्षित परिणाम नहीं निकलेंगे. जैसे ही हमें इस दिशा में
पर्याप्त सफलता मिलनी शुरू हो जायेगी, उसके साथ ही आर्थिक व्यवस्था में काले
धन का प्रवाह उसी अनुपात में स्वतः ही कम होना शुरू हो जाएगा. अतः हमें ई-गवर्नेंस
के मूल सिद्धांतों का समुचित प्रयोग करते हुए हर दशा में वित्तीय और आर्थिक
आदान-प्रदान का कम्प्यूटरीकरण और डाटाबेस का कार्य हर कीमत पर प्रारम्भ कर देना
चाहिए.
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अगली बात बेनामी संपत्ति अधिनियम का
समुचित प्रयोग करने से सम्बंधित है. यह एक बहुत ही प्रभावी अधिनयम है जिसका हमारे
देश में दुर्भाग्यवश उस हद तक प्रयोग नहीं हो पा रहा है जितनी इसमें संभावनाएं
हैं. इसका कारण यह है कि तमाम लोग अपनी भ्रष्टाचार से अर्जित संपत्ति कई बार
बेनामी संपत्ति के रूप में रखते हैं. अतः यदि एक सिरे से तमाम बड़ी संपत्तियों के
विषय में सर्वे शुरू की जाए और उनके स्वामित्व के विषय में प्रथमद्रष्टया बाह्य
तौर पर भी जांच शुरू कर दी जाए तो कई सारे अत्यंत लाभप्रद परिणाम मिलेंगे. इसका
कारण यह है कि कई सारे लोगों की सम्पत्तियां तो ऐसे नामों से होंगी जो वास्तव में
अस्तित्व में ही नहीं रहे होंगे अथवा जिनके सम्बन्ध में एक बार में ही स्पष्ट हो
जाएगा कि वे इस संपत्ति के मालिक हो ही नहीं सकते. इस तरह के सर्वे कोई बहुत
मुश्किल काम भी नहीं हैं और यदि सरकार मन से चाह ले तो बड़ी संपत्तियों का
सर्वेक्षण निश्चित तौर पर कराया जा सकता है और ऐसा होना भी चाहिए.
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इसके अलावा यही स्थिति न्यायिक मामलों
में भी हो. न्यायिक प्रक्रिया में विलम्ब हमारे देश में एक भारी समस्या के रूप में
विद्यमान है और चूँकि हर प्रकरण अंत में घूम कर न्यायालय में आ ही जाता है,
अतः
यहाँ हुए विलम्ब से पूरी प्रक्रिया बुरी तरह प्रभावित होती है. अतः हमें इस पर
बहुत अधिक ध्यान देना होगा. सबसे जरूरी आवश्यकता जो आज हो गयी है, वह
है शीघ्र न्याय की. न्याय में देरी हुई नहीं कि एक प्रकार से अनाचार और अत्याचार
शुरू हो गया- दोषी व्यक्ति के प्रति भी, निर्दोष के प्रति भी और शेष समाज के
लिए भी. यदि साक्ष्य नहीं मिल रहे हैं तो भी और यदि साक्ष्य मिल रहे हैं तो भी,
उपलब्ध
साक्ष्यों और गवाहियों के आधार पर न्यायालयों को शीघ्र निर्णय लेने ही होंगे.
इसमें किसी प्रकार के विलम्ब की कत्तई गुंजाइश ही नहीं है. हम मानते है कि इसके
लिए तत्काल क़ानून बना कर प्रत्येक मामले के लिए न्याय और निर्णय देने की समयावधि
नियत करनी ही होगी. हमारी निगाह में यह इस पूरी प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण भाग
है. यदि मान भी लिया जाए कि इससे कुछ प्रकरणों में अभियुक्तों को लाभ मिल जाएगा या
दोषी दण्डित नहीं होंगे तब भी यह अकारण मामले को सालों खींचे जाने से बहुत बेहतर
है. इस दिशा में भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित राईट टू जस्टिस एक्ट बहुत
महत्वपूर्ण है और हमें इसका हर तरह से स्वागत करना चाहिए
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साथ ही हमें दहेज और जाति प्रथा जैसी
गंभीर सामाजिक बुराइयों के प्रति भी चैतन्य रहना होगा. हमने जिन दो बुराईयों की
बात यहाँ रखी है वे भी कहीं ना कहीं से भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण
भूमिका निभा रही हैं. जाति प्रथा के कारण लोग सीमित परिधि में शादी व्याह करने को
बाध्य हैं. इसका नतीजा यह है कि दहेज के दर निरंतर बढते जा रहे हैं. हमने कई लोगों
को तो मात्र बेटियों की शादी के लिए आजन्म भ्रष्ट आचरण में लिप्त और परेशान होते
देखा है जो इन तमाम कोशिशों के बाद भी अपनी लड़की के लिए अच्छा वर नहीं ढूंढ पाते.
यहीं यह बात भी साबित होती है कि केवल क़ानून बना देने से सामाजिक बुराईयों का अंत
नहीं हो जाता. दहेज अधिनियम के बने तो जाने कितने साल हो गए हैं, क्या
इसका कोई भी असर दहेज के लेन- देन पर पड़ा है? अतः कानून वही बनें
जो व्यावहारिक हों और जिनका अनुपालन संभव हो.
यदि
हम इन सभी उपायों को गंभीरता से, तन्मयता से, लगन और ईमानदारी
से तथा असीम धैर्य से करेंगे तभी हमें भ्रष्टाचार को रोंक सकने में सहायता और
सफलता मिल सकेगी. अन्यथा तो केवल हल्ला-गुल्ला और नौटंकी ही चलती रहेगी जिसका कोई
खास लाभ नहीं हो सकेगा.
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