शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

नौवहन को समर्पित भारत का उपग्रह आईआरएनएसएस-1ए

अपना उपग्रह आईआरएनएसएस-1ए प्रक्षेपित करने के बाद भारत उन देशों के चुनिंदा समूह में शामिल हो गया है, जिनके पास अपनी विकसित नौवहन व्‍यवस्‍था है। पहले नौवहन को समर्पित भारत के उपग्रह आईआरएनएसएस-1ए को भारत के अंतरिक्ष  संगठन इसरो ने विकसित किया है। इसे 1 जुलाई, 2013 को कक्षा में स्‍थापित कर दिया गया है। इस श्रृंखला के सात उपग्रह छोड़ें जाने है जिनमें से यह पहला है।

भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह व्‍यवस्‍था (आईआरएनएसएस) पर एक विहंगम दृष्टि
भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह व्‍यवस्‍था एक स्‍वतंत्र क्षेत्रीय नौवहन व्‍यवस्‍था है जिसका विकास भारत कर रहा है। इसका डिजाइन इस प्रकार से बनाया गया है कि वह भारत में इसे इस्‍तेमाल करने वालों को सही सूचना और एकदम सटीक पोजीशन की जानकारी देता है। इसका क्षेत्र सीमा से 1500 किलोमीटर तक है जिसे प्राइमरी सर्विस एरिया कहा जाता है। विस्‍तारित सर्विस एरिया, प्राइमरी सर्विस एरिया तथा 30 डिग्री अक्षांश दक्षिण से, 50 डिग्री उत्‍तर तक और 30 डिग्री देशांतर पूर्व से 130 डिग्री पूर्व तक के चर्तुभुज से घिरे क्षेत्र के मध्‍य पड़ेगा।

आईआरएनएसएस से दो तरह की सेवाएं मिल सकेंगी। पहली है स्‍टैंडर्ड पोजीशनिंग सर्वि‍स (एसपीएस) जो सभी को उपलब्‍ध होगी। दूसरी सेवा रेस्टिक्‍टिेड सर्विस (आरएस) होगी जो सिर्फ प्राधिकृत
उपभोक्‍ताओं को मिल सकेगी। उम्‍मीद की जाती  है कि आईआरएनएसएस प्राइमरी सर्विस एरिया में 20 मीटर के अंदर बेहतर पोजिशनिंग एक्‍यूरेसी दे सकेगा।

आईआरएनएसएस में दो खंड होंगे। पहला है अंतरिक्ष और दूसरा भू-खंड। आईआरएनएसएस के अंतरिक्ष खंड में सात उपग्रह होंगे इनमें से 3 भू-स्‍थानिक कक्षा में तथा चार जियोसिंक्रोनस कक्षा में झुके होंगे। इस तरह से आईआरएनएसएस के उपग्रह धरती की सतह से 36,000 किलोमीटर ऊँचाई पर पृ‍थ्‍वी का चक्‍कर लगायेंगे।
आईआरएनएसएस का भू-खंड नौवहन  पैरामीटर जनरेंशन और ट्रांसमिशन, सेटलाइट कंट्रोल के लिए जिम्‍मेदार होगा। यह कंट्रोल इंटेग्रिटी मॉनीटरिंग से लेकर टाइम कीपिंग तक होगा।

आईआरएनएसएस का इस्‍तेमाल जमीन, समुद्र और अंतरिक्ष में नौवहन तथा आपदा प्रबंधन और वाहन की ट्रेकिंग (पता लगाने) मोबाइल फोनों के एकीकरण, सही वक्‍त बताने, नक्‍शा बनाने, यात्रियों द्वारा नौवहन में मदद लेने और ड्राइवरों द्वारा विजुअल तथा वॉइस नेविगेशन के लिए किया जा सकेगा। इसके जरिए किसी वाहन पर जा रहे लोगों पर नजर रखी जा सकती है जो उत्‍तराखंड जैसी आपदा की स्थिति में बहुत उपयोगी हो सकता है। यहां तक कि रेलवे इसके जरिए अपने माल डिब्‍बों का पता सकता है। भारत के अलावा यह आसपास के 1500 किलोमीटर तक के इलाके में उपयोगी हो सकता है।

आईआरएनएसएस-1
यह उपग्रह इसरो के 11के सेटेलाइट बस पर आधारित है और इसमें दो सौर पैनल लगे होते हैं। इसमें लगे अल्‍ट्रा ट्रिपल जंक्‍शन सोलर सेल कुल मिलाकर 1660 वॉट बिजली तैयार करते हैं। इसमें 90 एम्‍पीयर प्रति घंटे की क्षमता वाली एक लीथियमन बैटरी लगी होती है जो फिर से चार्ज की जा सकती है। रास्‍ता बताने के लिए सूरज सितारे और जीरोस्‍कोप लगे होते हैं। इस उपग्रह में लगी ऐटमिक घडि़यों को चलाने के लिए जरूरी कई तरह की थर्मल कंट्रोल स्‍कीमें लगाई गई हैं।

आईआरएनएसएस-1ए में कई प्रकार की नियंत्रण प्रणालियां लगाई गई हैं जिनमें लिक्‍विड अपोगी मोटर और 12 थ्रस्‍टर्स प्रमुख है। ये ऊँचाई और संचालन नियंत्रित करते हैं। वृत्‍ताकार जियोसिंक्रोनस कक्षा में स्‍थापित कर दिये जाने के बाद यह उपग्रह विषुवत रेखा से 29 डिग्री पूर्व अक्षांश के झुकाव पर स्‍थापित रहता है। इस उपग्रह की मिशन लाइफ 10 वर्ष बताई गई है।

आईआरएनएसएस-1ए का निर्माण इसरो सेटेलाइट सेंटर बंगलौर में‍ किया गया। इसके निर्माण में  वीएसएससी, एलपीएसयू, आईआईएसयू और इलेक्‍ट्रो-ऑप्टिक सिस्‍टमस की प्रयोगशाला ने योगदान किया। इस उपग्रह का पेलोड स्‍पेस एप्‍लीकेशंस सेंटर, अहमदाबाद ने विकसित किया।

पेलोड
आईआरएनएसएस-1ए में दो प्रकार का पेलोड होता है। नेविगेशन पेलोड और रेंजिंग पेलोड। नेविगेशनल पेलोड से इस्‍तेमाल करने वालों को नेविगेशन सर्विस सिगनल भेजे जाते है। यह पेलोड  1.5 बैंड (1176.45 मेगाहर्ट्ज) और एस बैंड (2492.028 मेगाहर्ट्ज) पर काम कर रहा है। इस उपग्रह पर एक रूबिडियम ऐटमिक घड़ी रखी गई है जो इस उपग्रह के नेवीगेशन पेलोड का हिस्‍सा है।

इस उपग्रह के रेंजिंग पेलोड में एक सी बैंड ट्रांसपोंडर है जो उपग्रह की दूरी बताता है। इसका काम लेजर रेंजिंग के लिए कॉर्नर क्‍यूब रेट्रो रिफलेक्‍टर्स ले जाना भी है।

     

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