बुधवार, 17 जुलाई 2013

मनोरोगियों के गरिमामय जीवन के लिए उनका सशक्तिकरण

मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य, मावन विकास के महत्‍वपूर्ण विकास को दर्शाता है। यह तंदरूस्‍ती और जीवन की गुणवत्‍ता का मुख्‍य निर्धारक होने के साथ सामाजिक स्थिरता का आधार है। खराब मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य का सामाजिक और आर्थिक स्‍तर पर व्‍यापक और दूरगामी प्रभाव पड़ता है जो कि गरीबी, बेरोज़गारी की उच्‍च दर, खराब शैक्षिक और स्‍वास्‍थ्‍य परिणाम की वजह बनता है। मानसिक और भावनात्‍मक तंदरूस्‍ती को मानव विकास के मुख्‍य संकेतक के रूप में पहचानने की ज़रूरत है। मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य और मनोसामाजिक दृष्टिकोण को सभी विकासात्‍मक तथा मानवीय नीतियों, कार्यक्रमों में शामिल करने की आवश्‍यकता है।
मानसिक और मनोसामाजिक रूप से विकलांग व्‍यक्ति विश्‍व की जनसंख्‍या के एक महत्‍वपूर्ण अनुपात को दर्शाते हैं। विश्‍व में चार में से एक व्‍यक्ति अपने जीवनकाल में मानसिक रोग से गुज़रता है। लगभग एक मिलियन लोग हर साल आत्‍महत्‍या करते हैं। बीमारियों की बढ़ती संख्‍या में अवसाद को तीसरा स्‍थान दिया गया है जिसके 2030 तक पहले स्‍थान पर पहुंचने की उम्‍मीद है। भारत में सामान्‍य मनोविकार के 6-7 प्रतिशत मामले हैं और गंभीर मानसिक विकार के 1-2 प्रतिशत मामले हैं। करीब 50 प्रतिशत लोग गंभीर मानसिक विकार से जूझ रहे हैं जिन्‍हे इलाज नहीं मिल पाता और सामान्‍य मानसिक विकार के मामले में यह आंकड़ा 90 प्रतिशत से अधिक है। मानसिक विकारों के इस प्रतिशत को देखते हुए यह ज़रूरी है कि मनोरोग के लिए इलाज उपलब्‍ध कराने के साथ आम लोगों के कल्‍याण के लिए मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं को बढ़ावा दिया जाए।

मानसिक और मनोसामाजिक रूप से विकलांग व्‍यक्तियों को अक्‍सर गलत धारणाओं की वजह से भेदभाव का सामना करता पड़ता है। मानसिक और मनोसामाजिक विकार से पीडि़त व्‍यक्तियों का शारीरिक शोषण भी किया जाता है। इस धारणा के कारण कि ऐसे व्‍यक्ति अपनी जिम्‍मेदारियों का निर्वहन नहीं कर सकते और अपने जीवन के बारे में फैसले नहीं ले सकते, अधिकांश देशों में उन्‍हें अपने सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक अधिकार इस्‍तेमाल करने में दिक्‍कत आती है।
हालांकि मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य स्थितियां, विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक हैं। मानसिक और मनोसामाजिक विकार से पीडित व्‍यक्तियों को जीने की मूलभूत आवश्‍यकताओं को बनाए रखने के लिए संसाधनों की कमी से जूझना पड़ता है। इसके अलावा विकास संबंधी नीतियों और कार्यक्रमों में यह सबसे ज्‍यादा उपेक्षित समूहों में से एक है। विकास प्रयासों में मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को शामिल करना एक किफायती रणनीति है और गरीबों के हित में है।  अधिकांश मनोरोगों के लिए किफायती दर पर प्रभावी इलाज उपलब्‍ध हैं। बाल विकास, शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, सामाजिक कल्‍याण नीतियों और कार्यक्रमों में मानसिक और मनोसामाजिक पहलुओं को शामिल किया जाना चाहिए।

भारत में राष्‍ट्रीय मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम (एनएमएचपी) की शुरूआत 1982 में हुई थी। इसका उद्देश्‍य सभी को न्‍यूनतम मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल उपलब्‍ध और सुलभ कराना, मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी ज्ञान के बारे में जागरूकता लाना और मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवा के विकास में सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना तथा समुदाय में स्‍वयं-सहायता को प्रोत्‍साहित करना है। धीरे-धीरे मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के दृष्टिकोण को अस्‍पताल आधारित देख-भाल (संस्‍थागत) को सामुदायिक आधारित देखभाल में बदल दिया गया है क्‍योंकि मनोरोगों के अधिकांश मामलों में अस्‍पताल की सेवाओं की ज़रूरत नहीं होती और इन्‍हें सामुदायिक स्‍तर पर ठीक किया जा सकता है।

नौंवी पंचवर्षीय योजना के दौरान जिला मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम की शुरूआत 1996 में हुई थी और वर्तमान में 30 राज्‍यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 123 जिलों में चल रही है। इसके अतिरिक्‍त मनोरोगियों की पूर्व जांच और उनके इलाज के लिए जिला मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम में अब उन्‍नयाक और निवारक गतिविधियों को शामिल किया गया है जिसमें स्‍कूल मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं, कॉलेज परामर्श सेवाएं, कार्यस्‍थल पर तनाव कम करने और आत्‍महत्‍या रोकथाम सेवाएं शामिल हैं। मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र में मानव संसाधन की उपलब्‍धता बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं ताकि मनोरोगियों पर पूरा ध्‍यान दिया जाए और जो व्‍यक्ति मनोरोग का शिकार हैं उन्‍हें शुरूआती चरण में ही सही सलाह और परामर्श मिल सके। एनएचएमपी के घटकों को राष्‍ट्रीय ग्रामीण स्‍वास्‍थ्‍य मिशन के दायरे में लाया जा रहा है ताकि राज्‍य मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं संबंधी आवश्‍यकताओं के अनुसार योजना बना सके। राष्‍ट्रीय मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम के लिए ग्‍यारहवीं पंचवर्षीय योजना खर्च (2012 तक) में 623.45 करोड़ रूपए की स्‍वीकृति दी गई है।

हालांकि मनोरोगियों की समस्‍याओं को पहचानते हुए सरकार ऐसे मरीज़ों के लिए मानवीय, इन पर केंद्रित कानूनी ढांचा उपलब्‍ध कराने की प्रक्रिया में है। प्रस्‍तावित मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल विधेयक लाखों मनोरोगियों की जिंदगियों में परिवर्तन ला सकता है जिनके साथ अक्‍सर सामुदायिक स्‍तर और स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल संस्‍थागत प्रतिष्‍ठानों दोनों में अमानवीय और अपमानजनक बर्ताव होता है तथा उनका उपहास उड़ाया जाता है।
प्रस्‍तावित मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल विधेयक अधिकारों की दृष्टि से महत्‍वपूर्ण है जिसमें काफी हद तक मनोरोगी की पसंद और राय को प्रमुखता दी गई है।  'अग्रिम निर्देश' जैसे प्रावधान हर व्‍यक्ति को अधिकार देते हैं कि वह यह निर्णय ले सके कि वह किस तरह अपनी देखभाल और इलाज चाहते हैं। इसके अन्‍य प्रावधान इस प्रकार हैं:

  • मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र में दाखिल मनोरोगी के पास आगंतुकों से मिलने, फोन कॉल उठाने या मेल आदि का जवाब देने या उसे इंकार करने का अधिकार होगा।
  • मनोरोगी को अपने इलाके/निवास पर इलाज कराने का अधिकार होगा तथा मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों में वह केवल न्‍यूनतम इलाज/देखभाल ले सकता है। इसका उद्देश्‍य मरीज़ को समाज में रहने, उसका हिस्‍सा बने रहने तथा जहां तक मुमकिन हो सके उससे अलग नहीं करना है।
  • हर मरीज़ को निर्दयी, अमानवीय तथा अपमानजनक व्‍यवहार से सुरक्षा पाने का अधिकार है और मानव स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र में शिक्षा, विश्राम, धार्मिक कार्य की सुविधाएं होंगी और वह सुरक्षित तथा साफ होंगे।
  • किसी भी मरीज़ को कोई काम करने तथा बाल कटाने और वहां की पोषाक पहने के लिए विवश नहीं किया जाएगा।
  • मनोरोगियों को मेडिकल बीमा के लिए पात्र बनाया जाएगा।
  • सरकार मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के कार्यक्रमों संबंधी योजना बनाने तथा उसे लागू करने और मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य और रोगों के बारे में जागरूकता लाने की अपने जिम्‍मेदारी के प्रति वचनबद्ध है।
  • हर व्‍यक्ति को किफायती दर पर ,उत्‍तम और अपेक्षित मात्रा में मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी देखभाल और इलाज उपलब्‍ध होगा।
  • सरकार को सभी स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रमों के हर स्‍तर पर सामान्‍य स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी देखभाल सेवाओं में मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के बारे में बताना चाहिए।


मानसिक रूप से स्‍वस्‍थ व्‍यक्ति एक स्‍वस्‍थ्‍य समाज और विकसित देश का प्रतीक होता है। केवल बेहतरीन स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं उपलब्‍ध कराना, सुरक्षा के लिए कानून बनाना काफी नहीं है इसके लिए मनारोगियों के प्रति भेदभाव, भ्रमों को खत्‍म करना और समाज का ऐसे व्‍यक्तियों के जज्‍बात को सही से समझना भी ज़रूरी है।

  

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