मंगलवार, 30 जुलाई 2013

आंतरिक सुरक्षा के बढ़ते खतरे

आज देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था चरमराई और बाहरी सुरक्षा पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। इन हालात के लिए मुख्य रूप से राष्ट्र में अंदरुनी बढ़ती हिंसा, जेहादी उग्रवाद, माओवाद, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, आर्थिक असमानता, नेताओं की वोट की राजनीति उत्तरदायी है। पड़ोसी देशों से हो रही घुसपैठ, चीनी अतिक्रमण से भी राष्ट्र की सीमा को खतरा पैदा हो गया है।
बंगाल के एक गांव से शुरू हुआ नक्सलवाद का तांडव आज राष्ट्र के 22 राज्यों में फैल चुका है। किसी भी समस्या का निदान कभी बंदूक की नाल से नहीं निकलता। निदान के लिए जरूरी है कि समस्या की जड़ तक जाया जाए। भटके नवयुवा को राहे रास्ते लाने के लिए उसे रोजगार के अवसर, न्याय, विकास की सीढ़ी उपलब्ध करवाकर मानवता का रास्ता दिखाया जाए। लेकिन हमारे राजनैतिक दल स्वार्थवश ऐसा नहीं होने देते।
हाल ही में छत्तीसगढ़ में घटी घटना जिसमें प्रदेश के दरभा क्षेत्र में 26 कांग्रेस नेताओं की जघन्य हत्या हुई, इसका एक ज्वलंत उदाहरण है। यह हमला इस तथ्य को रेखांकित करता है कि आज राष्ट्रीय आतंक विरोधी केंद्र बेहद जरूरी है।
राष्ट्र में हो रही जातीय व सांप्रदायिक हिंसा में भी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था प्रभावित हो रही है, जिसको पाकिस्तानी कट्टरपंथियों व दलगत राजनीति का पूर्ण सहयोग प्राप्त है। राजनीतिक हस्तक्षेप सुरक्षा बलों को अक्षम बना रहा है। वर्ष 1994 तक अकेले जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों के खिलाफ 988 शिकायतें दर्ज करवाई गईं, जिसमें से 965 शिकायतों की जांच के बाद 940 आरोप गलत साबित हुए। नेताओं द्वारा अपने स्वार्थ के लिए इस प्रकार की सुरक्षा बलों की कार्रवाई पर की जाने वाली बयानबाजी आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न कर रही है।
राष्ट्र में निरंतर बढ़ रही बेरोजगारी युवा वर्ग में भविष्य के प्रति असुरक्षा व निराशा की भावना उत्पन्न कर रही है। नक्सलवाद से प्रभावित बिहार, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में बढ़ती हुई बेरोजगारी के साथ-साथ आर्थिक विकास का अभाव व भुखमरी भी माओवाद का मुख्य कारण है। आज भी इन क्षेत्रों में 70 प्रतिशत जवान अनपढ़ व बेरोजगार हैं। इनकी दयनीय आर्थिक स्थिति व अशिक्षा का लाभ उठाकर माओवादी इन्हें अपने गिरोह में शामिल कर रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार आज अधिकतर राज्यों में माओवादी संगठनों ने लगभग 40 हजार स्थायी सदस्य व 1 लाख अतिरिक्त सदस्य बना रखे हैं। अब महिलाएं भी आंतकवादी सगंठनों में शामिल हो रही हैं।
आंतरिक सुरक्षा के अन्य पहलू आर्थिक अव्यवस्था व आर्थिक असमानता में भी सुधार किया जाना बहुत जरूरी है। देश में बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार भी राष्ट्रीय सुरक्षा, अमन व स्वतंत्रता के लिए खतरे का संदेश है। भारतीय सैन्य व सुरक्षा बलों में आज युवा वर्ग का लगाव काफी कम हो गया है। देश की सुरक्षा में लगे सात केंद्रीय सुरक्षा बलों में तकरीबन 1 लाख सैनिकों तथा सैन्य सेवाओं में करीब 12 हजार अफसरों की कमी है। युवाओं का घटता रुझान भी आंतरिक सुरक्षा के लिए बेहद चिंता का विषय है।
राष्ट्र के खुफिया तंत्र के अनुसार नक्सलियों के लश्करे-तोएबा तथा अन्य इस्लामी आतंकवादी संगठनों से संबंध बढ़ते जा रहे हैं और इसे चीन का पूर्ण संरक्षण प्राप्त है। पशुपति से तिरुपति तक रैड-कारीडोर स्थापित करने की चीन की मंशा है। पाकिस्तान की आईएसआई इन्हें पूरा सहयोग दे रही है। गत 5 वर्षों में सुरक्षा बलों सहित 3836 निर्दोष व्यक्ति नक्सली हिंसा का शिकार हो चुके हैं। इससे पता चलता है कि इसमें हमारे खुफिया तंत्र की नाकामी और केंद्र व राज्यों के बीच तालमेल की कमी है।
नक्सलियों की आंतकी कार्रवाई के दौरान गत पांच वर्षों में 260 स्कूल ध्वस्त किए गये। माओवादियों द्वारा वर्ष 2011 में ही 124 सुरक्षा बलों के जवानों सहित 500 से अधिक आमजनों की हत्या की गई। इसी प्रकार वर्ष 2010 में 626 लोगों की हत्या माओवादियों ने की। इस खूनी संघर्ष में 277 जवान व 277 ही नक्सली भी मारे गए। सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई पर राजनैतिक छींटाकशी के अलावा मानवाधिकार जैसी संस्थाएं भी सक्रिय हो जाती हैं।
आज राष्ट्र की बाहरी सीमाओं को सबसे अधिक खतरा चीन की तरफ से लगातार हो रही घुसपैठ से है। आज़ाद कश्मीर में भी चीन की गतिविधियां लगातार बढ़ रही हैं। चीन अब भारत के अटूट हिस्से अरुणाचल प्रदेश पर भी हक जताने लगा है। पाकिस्तान और बंगलादेश से भी भारतीय सीमा में अवैध घुसपैठ जारी है। वर्ष 2001 की जनगणना के एक अनुमान के अनुसार केवल बंगलादेश से ही 30 लाख व्यक्ति गैर कानूनी ढंग से देश में प्रवेश कर चुके हैं, जिसमें से 20 लाख से अधिक देश के महानगरों में पूर्णतया स्थायी तौर से निर्वाह कर रहे हैं।
वर्ष 2005 में सर्वोच्च न्यायालय ने गैर कानूनी माइग्रेट अधिनियमको असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि अवैध ढंग से प्रवेश करने वाले बंगलादेशियों ने असम व उत्तरी-पूर्वी राज्यों के नागरिकों में असुरक्षा व भय का माहौल उत्पन्न कर दिया है। इससे भारत की आंतरिक सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया है। महिला व बाल अध्ययन केंद्र के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 1998 में 27 हजार बंगलादेशी औरतों को देश के विभिन्न भागों में देह व्यापार के लिए धकेल दिया गया।
पाकिस्तान के प्रमुख जेहादी संगठन जम्मू-कश्मीर व राष्ट्र के अन्य हिस्सों में अपनी विध्वंसक कार्रवाइयों को अंजाम दे रहे हैं। आईएसआई राष्ट्र की आंतरिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के लिए तस्करी, नकली करंसी व ड्रग्स आदि भी पहुंचा रही है। वर्तमान नवाज शरीफ सरकार द्वारा वर्ष 2008 के नरसंहार के लिए उत्तरदायी जमात-उद-दावा को 6.1 करोड़ की राशि इनाम के तौर पर दी गई और इस आतंकी सगठन को आतंकवादियों की यादगार में नालेज पार्कबनाने तथा अन्य लाभ प्रदान करने हेतु 35 करोड़ रुपये दिए गए। आज भी जमात-उद-दावा पर कोई प्रतिबंध नहीं है और इसके मुख्य तथा 26/11 हमलों के मुख्य आतंकी हाफिज सैयद आज़ादी से घूम रहे हैं।

आज आर्थिक दृष्टि से पिछड़े आदिवासियों को मुख्यधारा से जोडऩे की जरूरत है। इसके साथ ही राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा, अखंडता व आन-बान को बनाए रखने के लिए संघर्षरत सुरक्षा बलों व सैन्य कर्मियों के कल्याण व विकास हेतु राष्ट्रीय नीति बनाई जानी चाहिए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कुल पेज दृश्य