देश
के संविधान के भाग-9 और भाग 9-ए के अंतर्गत
गठित राज्य चुनाव आयोगों पर भारतीय निर्वाचन आयोग की तरह पंचायतों और शहरी स्थानीय
निकायों के चुनाव की जिम्मेदारी है। लेकिन राज्य चुनाव आयोगों को भारतीय
निर्वाचन आयोग की तरह मजबूत नहीं बनाया गया है। स्थानीय स्वायत्त शासन के लिए
स्वतंत्र, निष्पक्ष और नियमित रूप से चुनाव कराने के लिए
इन्हें मजबूत बनाया जाना बहुत जरूरी है।
इस
दिशा में पहल के लिए पंचायती राज्य मंत्रालय द्वारा एक कार्य दल का गठन किया गया।
कार्य दल ने राज्य चुनाव आयोगों को मजबूत बनाने के संबंध में 14
अक्तूबर 2011 को अपने रिपोर्ट सौंपी। राज्य चुनाव आयोगों
की स्थायी समिति में 9 दिसंबर, 2011 को कार्य दल के
सुझावों पर विचार किया गया। स्थायी समिति द्वारा सौंपी गई सिफारिशों में से
पंचायती राज्य मंत्रालय द्वारा स्वीकार की गई कुछ महत्वपूर्ण सिफारिशें इस
प्रकार हैं:-
·
कानून के अंतर्गत राज्य चुनाव आयोग को
चुनाव की तारीख तय करने, आचार संहिता लागू करने, नामांकन
पत्र भरने, नाम वापस लेने, उम्मीदवारों की
अंतिम सूची तय करने आदि के बारे में अधिसूचना जारी करने का अधिकार होगा। राज्य
चुनाव आयोग मतदान कर्मचारियों की स्वयं या अधिकार प्राप्त प्राधिकरणों के जरिए
नियुक्ति करेगा।
·
राज्य चुनाव आयुक्तों को हाई-कोर्ट
के न्यायाधीश का दर्जा दिया जाना चाहिए। उन्हें हाई-कोर्ट न्यायाधीश की तरह
वेतन, भत्ता, सुविधाएं और सेवाकाल/अवकाश काल के सभी लाभ दिये
जाने चाहिएं।
·
राज्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल
पांच/छह वर्ष या 65 वर्ष तक का होना चाहिए, जो अवधि पहले
पूरी हो और कार्यकाल का विस्तार नहीं होना चाहिए।
·
पंचायत चुनाव कराने के लिए प्रदेश में
स्थित सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और केंद्र सरकार के कार्यालय के कर्मचारियों
को लगाया जाना चाहिए और पंचायत चुनावों के दौरान कई बार उठने वाली कानून और व्यवस्था
की स्थितियों के लिए केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को तैनात किया जाना चाहिए, जैसा
कि विधानसभा और संसदीय चुनावों में किया जाता है।
·
राज्य चुनाव आयुक्तों को उपलब्ध
धनराशि को अपनी प्राथमिकताओं के अनुरूप खर्च करने की आजादी होनी चाहिए और इसके लिए
हर बार राज्य सरकार के वित्त विभाग से मंजूरी लेना जरूरी नहीं होना चाहिए। चुनाव
के मामले में फरवरी और मार्च में गैर-योजना पर लगने वाला प्रतिबंध राज्य चुनाव
आयुक्तों पर लागू नहीं होना चाहिए और वित्त वर्ष के अंत में आयुक्तों की धनराशि
निरस्त नहीं की जानी चाहिए, जैसा कि सरकारी विभागों के मामले में
होता है, क्योंकि इससे अप्रैल और मई में होने वाली चुनावों के लिए गंभीर
मुश्किलें पैदा हो सकतीं हैं।
·
12वीं पंचवर्षीय योजना में अगर योजना के
दूसरे वर्ष तक कम से कम निम्नलिखित शर्तें पूरी हो गईं हों, तो
राज्य चुनाव आयोगों को पंचायत सशक्तिकरण अभियान की प्रस्तावित योजना से अनुदान
दिया जाना चाहिए:- राज्य चुनाव आयुक्त पूर्णकालिक हो, उसका कार्यकाल
पांच/छह वर्ष या 65 वर्ष तक का होना चाहिए, जो अवधि पहले
पूरी हो और कार्यकाल के विस्तार की कोई व्यवस्था न हो, अनुच्छेद 243के
अंतर्गत राज्य चुनाव आयुक्तों को मिली सुरक्षा राज्य चुनाव आयोगों को संचालित
करने वाले राज्य के कानून या नियमों के अंतर्गत भी उपलब्ध होनी चाहिए, राज्य
चुनाव आयुक्त को हाई कोर्ट के न्यायाधीश का दर्जा दिया गया हो।
·
आम चुनाव जब होने हैं, इसकी
तारीख पहले पता होती है, इसलिए स्थानीय निकायों के चुनाव पर
होने वाले खर्च और प्रशासनिक खर्च सहित राज्य चुनाव आयोग के लिए धनराशि का आवंटन
राज्य के मुख्य बजट में स्पष्ट रूप से किया जाना चाहिए और राज्य चुनाव आयुक्तों
को चुनाव से संबंधित खर्च के लिए धनराशि एक मद से दूसरे मद में खर्च करने की आजादी
होनी चाहिए। खरीद आदि के मामले में भी भारतीय निर्वाचन आयोग के मापदंडों के अनुरूप
लचीलापन होना चाहिए।
·
उपरोक्त अनुसार राज्य चुनाव आयोग की
संरचना की शर्तें और निम्नलिखित शर्तें पूरी होने पर केंद्रीय वित्त आयोग से
धनराशि के आवंटन की सिफारिश की जा सकती है:- पंचायतों और नगरपालिकाओं का अधिक्रमण
नहीं किया जाना चाहिए, महिलाओं के लिए कम से कम एक तिहाई आरक्षण होना
चाहिए, राज्य वित्त आयोग का गठन होना चाहिए और प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष
दोनों चुनाव राज्य चुनाव आयोगों के जरिए होने चाहिएं।
·
राज्य चुनाव आयुक्तों को पंचायती
राज्य मंत्रालय शहरी विकास मंत्रालय तथा कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग से पंचायतों
और नगरपालिकाओं के चुनावों के लिए पर्यवेक्षक बुलाने चाहिएं, जो
भारतीय निर्वाचन आयोगों की तरह राज्य चुनाव आयोगों के नियंत्रण और निगरानी में
काम करेंगे।
·
राज्य चुनाव आयोगों को वॉर्डों के
सीमांकन, सीटों के आरक्षण और वर्तन (रोटेशन) का अधिकार होना चाहिए। लेकिन
सीमांकन की नीति का निर्धारण राज्य सरकार द्वारा किया जाना चाहिए।
पश्चिम
बंगाल, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश,
कर्नाटक,
अरूणाचल
प्रदेश, हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र
ओडिशा, पंजाब, सिक्किम और उत्तराखंड में राज्य चुनाव आयुक्तों
को पहले ही हाई-कोर्ट के न्यायाधीश का दर्जा दिया जा चुका है। यह उत्साहजनक बात
है कि मिज़ोरम जैसे राज्य में भी जहां ग्राम-परिषदों और जिला परिषदों के चुनावों
के लिए राज्य चुनाव आयोग की व्यवस्था नहीं है, राज्य चुनाव
आयोग का गठन किया गया है और उसे उपरोक्त अधिकार दिये गये हैं।
पंचायती
राज्य प्रणाली को मजबूत बनाने के लिए और इसके रास्ते की मुश्किलों को दूर करने
के लिए पंचायती राज्य मंत्रालय ने राजीव गांधी पंचायत सशक्तिकरण अभियान की योजना
तैयार की है, जिसे 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान लागू
किया जाएगा। इस अभियान का उद्देश्य राज्यों को अधिकार देना है, ताकि
वे विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में से अपने राज्य के अनुरूप गतिविधियां चुनकर
अपनी पंचायती राज्य प्रणालियों को मजबूत बना सकें। इस योजना के अंतर्गत तैयार की
गई वार्षिक योजनाओं और संभावित योजनाओं के आधार पर राज्यों को धनराशि का आवंटन
किया जाएगा। इसके लिए राज्य को निम्नलिखित शर्तें पूरी करनी होंगी:-
·
राज्य चुनाव आयोग की निगरानी में
पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों के नियमित सुझाव
·
पंचायतों या अन्य स्थानीय निकायों
में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण
·
हर पांच वर्ष में राज्य वित्त आयोग
का गठन और आयोग की सिफारिशों पर की गई कार्यवाही की रिपोर्ट को राज्य विधानसभा
में रखना
·
सभी जिलों में जिला योजना समितियों का
गठन
राजीव
गांधी पंचायत सशक्तिकरण अभियान के अंतर्गत 2014-15 से कार्य निष्पादन
के आधार पर धनराशि दी जाएगी। इस अभियान के अंतर्गत जो गतिविधियां चलाई जाएंगी वे
हैं: राज्य चुनाव आयोग को सुदृढ़ बनाना, ग्राम पंचायत स्तर पर प्रशासनिक और
तकनीकी सहायता उपलब्ध कराना, ग्राम पंचायत भवनों का
निर्माण/नवीनीकरण, निर्वाचित प्रतिनिधियों और संबंधित अधिकारियों
का क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण, राज्य, जिला और खंड स्तर
पर प्रशिक्षण के लिए संस्थागत ढांचा, पंचायतों में ई-प्रशासन को बढ़ावा देना
आदि।
राज्यों
की योजनाओं में राजीव गांधी पंचायत सशक्तिकरण के लिए राशि की व्यवस्था केंद्र और
राज्य सरकारों के बीच 75:25 के आधार पर होगी। पूर्वोत्तर राज्यों
के लिए यह अनुपात 90:10 का होगा। योजना आयोग ने 12वीं
पंचवर्षीय योजना अवधि के लिए 6437 करोड़ रूपये का कुल बजट रखा है,
जिसमें
से राजीव गांधी पंचायत सशक्तिकरण अभियान के लिए केंद्र सरकार के हिस्से के रूप
में 6200 करोड़ रूपये की राशि खर्च की जाएगी। 2013-14 से राष्ट्रीय
ग्राम स्वराज योजना, ई-पंचायत, पंचायत
सशक्तिकरण और जवाबदेही प्रोत्साहन योजना तथा पंचायत महिला एवं युवा शक्ति अभियान
की योजनाएं राजीव गांधी पंचायत सशक्तिकरण अभियान में शामिल होंगी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें