समग्र
विकास रणनीति के संदर्भ में जनसंख्या से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर तत्काल ध्यान
केंद्रित करने के क्रम में वर्ष 1989 से प्रत्येक वर्ष 11
जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष इसका शीर्षक ''किशोर
गर्भावस्था'' इस उद्देश्य से रखा गया है, जिसमें
एक ऐसी दुनिया का निर्माण करना है जहां प्रत्येक गर्भावस्था की चाह है, हर
बच्चे का जन्म सुरक्षित है, साथ ही हर युवा व्यक्ति की क्षमता
पूरी हो रही है।
किशोरावस्था
विश्व भर में बालिकाओं के लिए एक निर्णायक उम्र है। बालिकाओं को किशोरावस्था में
जो कुछ अनुभव होता है वह उनके जीवन और उनके परिवार को संवारने में मुख्य भूमिका
अदा करता है। विकासशील देशों में कई लड़कियों में किशोरावस्था एक ऐसा पड़ाव है
जहां उन्हें जोखिम का सामना करना पड़ता है जिनमें, स्कूल छोड़ना,
बाल-विवाह
और समय से पहले गर्भधारण करने जैसी समस्याएं शामिल हैं। गर्भावस्था एवं प्रसव के
दौरान किशोर बालिकाओं को अधिक उम्र की महिलाओं की अपेक्षा यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य
सुविधाएं अपेक्षाकृत कम उपलब्ध हो पाती हैं, जिनमें आधुनिक
गर्भ निरोध एवं कौशल सहायता शामिल हैं। इनमें से कई गरीब हैं साथ ही पारिवारिक आय
में उनका नाममात्र का नियंत्रण है। उनमें यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं
के बारे में उपयुक्त जानकारी का अभाव है और वे अपने स्वास्थ्य के बारे में स्वतंत्र
निर्णय लेने में अक्षम होती हैं।
किशोर
गर्भावस्था एक बालिका, उसके परिवार, उसके समुदाय और
उसके राष्ट्र के लिए सामाजिक एवं आर्थिक दुष्परिणाम का कारण होता है। कई
लड़कियां गर्भवती होने के बाद स्कूल नहीं जा पाती और भविष्य निर्माण के लिए
उपलब्ध अवसरों का लाभ नहीं उठा पाती। महिला शिक्षा काफी मजबूती से उनकी अर्जन
क्षमता, उनके स्वास्थ्य और उनके बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़ा होती
है। इस प्रकार किशोर गर्भावस्था, गरीबी चक्र एवं खराब स्वास्थ्य से
जुड़ा होती है। युवा बालिका चाहे वह विवाहित हो या नहीं, गर्भावस्था के
दौरान उसके स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। विवाहित किशोरों पर समाज का यह दबाव
होता है कि वह बच्चों को जन्म दे और इस प्रकार परिवार नियोजन सेवाओं से वंचित रह
जाती है। वहीं अविवाहित किशोर बालिकाओं में समाज की इस बात का डर होता है कि उन्हें
समाज में स्वीकार किया जायेगा या नहीं।
लगभग
16 मिलियन बालिकाएं प्रतिवर्ष 18 वर्ष से कम
उम्र में ही मां बन जाती हैं, जबकि अन्य 3.2 मिलियन
बालिकाओं को असुरक्षित गर्भपात से गुजरना पड़ता है। विकासशील देशों में लगभग 90
प्रतिशत किशोर गर्भावस्था विवाहितों की है, लेकिन इनमें से
कई लड़कियों के लिए गर्भावस्था के बारे में उनकी इच्छा है या नहीं इसका विकल्प
नहीं होता और अक्सर भेदभाव, अधिकारों का उल्लंघन (बाल-विवाह सहित)
या अपर्याप्त शिक्षा जैसे परिणाम देखने को मिलते हैं।
किशोर
गर्भावस्था एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्या है और एक युवा माता को अपने बच्चों
के साथ-साथ कई मातृत्व समस्याओं, मृत्यु एवं अक्षमता जैसे जोखिम का
सामना करना पड़ता है। यह एक मानवाधिकार से भी जुड़ी समस्या है जिसमें किशोर
गर्भावस्था के कारण उनका बचपन खत्म हो जाता है और उन्हें पर्याप्त शिक्षा का
अवसर उपलब्ध नहीं होता। इसलिए हमें किशोरों को उचित उम्र का अवसर और यौन शिक्षा
के बारे में उचित जानकारी देनी चाहिए। यह युवा महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए
काफी महत्वपूर्ण है ताकि वह इस बात का निर्णय कर सकें कि उन्हें मां बनने की
जरूरत कब है? इसके अतिरिक्त हमें विस्तृत यौन एवं प्रजनन
स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए जिसमें परिवार नियोजन एवं एचआईवी जैसे
यौन संचरित संक्रमण की रोकथाम और उपचार शामिल हैं। मातृत्व स्वास्थ्य सुविधा
महिलाओं को हर हाल में उपलब्ध होनी चाहिए।
किशोर
गर्भावस्था में नवजात शिशुओं पर खतरा होता है। किशोर माताओं से जन्म लेने वाले
बच्चों में जीवन के पहले महीने के दौरान मृत्यु का खतरा 50 प्रतिशत से ज्यादा
होता है। किशोर माता की उम्र जितनी कम होगी बच्चे पर खतरा उतना ही ज्यादा होगा।
निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों में असुरक्षित गर्भपात का 15
प्रतिशत 15 से 19 वर्ष आयु वाले किशोर लड़कियों में देखी जाती
है। वर्ष 2008 में, अनुमानत: 3.2 मिलियन
असुरक्षित गर्भपात विकसित देशों में 15 से 19 वर्ष की आयु
वाली लड़कियों में पाए गए जिन्हें अधिक
उम्र वाली महिलाओं की अपेक्षा गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कुल
मातृ-मृत्यु का 13 प्रतिशत असुरक्षित गर्भपात के कारण होता है।
दुनियाभर
में 15 से 24 वर्ष के 41 प्रतिशत
युवा-जन एचआईवी संक्रमण से ग्रस्त हैं। किशोर लड़कों की तुलना में किशोर युवतियों
में एचआईवी से ग्रस्त होने का खतरा अधिक रहता है। दुनियाभर के युवा लोगों में सभी
नए संक्रमणों से ग्रस्त युवा महिलाओं की संख्या 64 प्रतिशत है।
2001 के
जनगणना आँकड़ों के अनुसार देश में 225 मिलियन किशोर हैं, जो
भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 5वां (22 प्रतिशत) हिस्सा
हैं। कुल किशोर जनसंख्या का 12 प्रतिशत 10 से 14
वर्ष आयु वर्ग का हैं और लगभग 10 प्रतिशत 15 से 19
वर्ष की आयु वर्ग का हैं। इस आयु वर्ग में उनका स्वस्थ वयस्कों के रूप में विकास
सुनिश्चित करने के लिए उनके स्वास्थ्य हेतु आवश्यक पोषण, शिक्षा,
परामर्श
और मार्ग-दर्शन के लिए चलायमान चरण शामिल हैं। इस आयु वर्ग के स्वास्थ्य के
बारे में ध्यान केंद्रित करने के लिए विभिन्न राष्ट्रीय सर्वेक्षणों से प्राप्त
किशोरों से संबंधित आँकड़े इस प्रकार हैं:-
·
10 से 15 आयु वर्ग की
आधे से अधिक लड़कियों में खून की कमी है- 56 प्रतिशत
(एनएफएचएस-3)
·
आधे से अधिक भारतीय महिलाओं (58
प्रतिशत) की शादी 18 वर्ष की आयु होने से पहले ही हो जाती है। (एनएफएचएस-3)
·
15 से 19 आयु वर्ग की 16
प्रतिशत लड़कियां मां बन गई और 12 प्रतिशत ने जीवित बच्चों को जन्म
दिया।
·
हाल में विवाहित हुई 62
प्रतिशत किशोरियों को गर्भावस्था के दौरान जटिलताओं का सामना करना पड़ा और 15 से
19 आयु वर्ग की 52 प्रतिशत महिलाओं ने घर पर ही बच्चों
को जन्म दिया।
·
इस आयु वर्ग की सभी गर्भावस्थाओं के 8.3
प्रतिशत मामलों में स्वयं गर्भपात हुआ।
·
सभी मातृ-मृत्यु में 15 से
24 आयु वर्ग की महिलाओं की संख्या 45 प्रतिशत और 15 से
19 आयु वर्ग की महिलाओं में नवजात शिशु मृत्यु-दर (एनएमआर) 54/1000
जैसी अधिक रही।
·
ग्रामीण किशोरियों में नवजात शिशु मृत्यु–दर 60/1000
जैसी ऊंची है।
·
20 वर्ष से कम आयु की माताओं में नवजात
शिशु की मृत्यु का खतरा 50 प्रतिशत अधिक है। (एनएफएचएस-3)
·
20 वर्ष से कम आयु की गर्भवती लड़कियों
में से केवल 66.2 प्रतिशत को प्रसव-पूर्व देख-भाल के रूप में
आयरन या फोलेड गोलियां दी गईं। (एनएफएचएस-3)
·
खून की कमी के कारण हर साल 6
हजार युवा माताएं मर जाती हैं। (एनएफएचएस-3)
·
इस आयु वर्ग की 47
प्रतिशत लड़कियों का वज़न सामान्य से कम है। (एनएफएचएस-3)
तदनुसार
भारत सरकार ने आरसीएच-।। कार्यक्रम में किशोर स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी है।
किशोर प्रजनन और यौन-स्वास्थ्य (एआरएसएच) की कार्यक्रम कार्यान्वयन योजना
(पीआईपी) में किशोरों की सेवा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वर्तमान जन-स्वास्थ्य
प्रणाली के पुर्नगठन पर ध्यान केंद्रित किया गया है। सामान्य उप-केंद्र क्लिनिक
के दौरान किशोरों को बेहतर सेवाएं और पीएचसी व सीएचसी स्तरों पर निर्धारित दिन और
समय पर सेवा की उपलब्धि सुनिश्चित कराने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। इसी तरह कुछ
राज्यों में भी ऐसी गतिविधियां शुरू की गई हैं। सेवाओं के महत्वपूर्ण पैकेज में
निवारक, प्रोत्साहन, उपचारात्मक और परामर्श सेवाएं शामिल
हैं। सभी किशोरों, विवाहित-अविवाहित लड़कियों और लड़कों को
क्लिनिक सत्रों के दौरान किशोर-अनुकूल सेवाएं उपलब्ध कराई गई हैं और दिनचर्या समय
के दौरान भी ये सेवाएं प्रदान की गई हैं। सभी राज्यों ने इन्हें राज्यों के
पीआईपी में शामिल किया है। जिला अस्पतालों, सीएचसी और
पीएससी में लगभग 3 हजार किशोर अनुकूल स्वास्थ्य क्लिनिक हैं।
इन क्लिनिकों के साथ-साथ आम ओपीडी में प्रशिक्षित कर्मचारियों की उपलब्धता
सुनिश्चित करने के प्रयास चल रहे हैं। चिकित्सा अधिकारी और
एएनएम/एलएचवी/सलाहकारों को पूरे देश में किशोर अनुकूल स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध
कराने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। किशोरों के लिए आवश्यक गुणवत्तापूर्ण
सेवाओं में वृद्धि करने के लिए इस नेटवर्क का विस्तार करने और इसे अधिक मजबूत
बनाने की आवश्यकता है।
स्वास्थ्य
और परिवार कल्याण मंत्रालय ने ग्रामीण क्षेत्रों में 10-19 साल की उम्र की
किशोरियों में मासिक स्वच्छता के प्रति जागरूकता लाने संबंधी नई योजना भी शुरू
की है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में किशोरियों (10-19
साल) को स्वच्छता और सैनिटरी नैपिकन के इस्तेमाल संबंधी पर्याप्त ज्ञान और
जानकारी देना है। इस योजना को पहले चरण में 20 राज्यों के 152
ज़िलों में यानि देश के 25 प्रतिशत ज़िलों में शुरू किया गया है।
इसके
अतिरिक्त सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में 6-18 साल की उम्र के
बच्चों और किशोर तथा किशोरियों की स्वास्थ्य ज़रूरतों की समस्या के समाधान के
लिए स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम शुरू किया गया है। स्कूली बच्चों पर विशेष
रूप से केंद्रित यह एकमात्र सार्वजनिक क्षेत्र कार्यक्रम है। इसका उद्देश्य बच्चों
की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ज़रूरतों की समस्याओं का समाधान निकालना हे।
इसके अलावा इसमें पोषण संबंधी कार्यक्रमों के साथ शारीरिक गतिविधियों और परामर्श
को भी बढ़ावा दिया जाता है। स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम के घटकों में बीमारी,
विकलांगता
और किसी तरह की कमी की जांच और पूर्व प्रबंधन शामिल है। जांच, स्वास्थ्य
देखभाल, सामान्य स्वास्थ्य, मूल्यांकन और खून की कमी, पोषण
तत्व की स्थिति, दृष्टता तीक्ष्णता, दांतों की जांच,
त्वचा,
हृदय
से जुड़ी जांच, शारीरिक विकलांगता, समझने में
परेशानी, व्यवहार संबंधी समस्याओं हेतु रेफरल के जरिए स्वास्थ्य सेवा
प्रावधान किए गए हैं। इस आयु वर्ग में प्रचलित साधारण बीमारियों के लिए मूलभूत
दवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। इसके अंतर्गत राष्ट्रीय कार्यक्रम के अनुसार तय
दिन पर टीकाकरण के साथ संबंधित मुद्दे पर शिक्षा को भी शामिल किया गया है।
किशोरियों
की यौन और प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य ज़रूरतों के लिए किए गए कार्यों से उनके
अधिकारों की रक्षा होगी तथा यह लड़कियों को काफी जल्दी बहुत सारे बच्चे पैदा
करने से रोकने में मदद करेंगा। जिससे माताओं के साथ बच्चों की जिंदगी को भी खतरा
होता है, अनायास किशोरावस्था में गर्भधारण को रोकना और लड़कियों की शिक्षा,
स्वास्थ्य
और उनके अधिकारों में निवेश करने से उनकी जि़ंदगियों के अन्य पहलुओं में काफी
सकारात्मक प्रभाव डालेंगे। शिक्षित युवा महिला अपने परिवार के कल्याण में काफी
सहयोग देने के साथ पारिवारिक आय और बचत बढ़ाने और भावी पीढ़ियों के लिए बेहतर स्वास्थ्य
और उन्नत अवसर प्रदान में योगदान देती है।
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