उच्चतम
न्यायालय देश में महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों में किशोर लडकों की बढ़ती
भागीदारी के मद्देनजर किशोर न्याय कानून के तहत किशोर की आयु घटाकर 16
साल करने से इंकार करते हुये फिलहाल इस मांग और विवाद पर विराम लगा दिया है।
बलात्कार और बलात्कार के प्रयास तथा महिलाओं का शील भंग करने के प्रयास जैसे संगीन
अपराधों में किशोरों की भूमिका के मद्देनजर ऐसे मामलों में लिप्त होने की स्थिति
में 18 से 16 साल की आयु के किशोर को किशोर न्याय कानून के
दायरे से बाहर रखने की मांग की जा रही थी।
पिछले
एक साल की घटनाओं पर यदि नजर डालें तो पता चलता है कि महिलाओं के प्रति होने वाले
यौन अपराधों में 16 से 18 साल की आयु के किशोरों की भूमिका में
तेजी से वृद्धि हुई है। लेकिन मौजूदा आंकडों के आलोक में देश की शीर्ष अदालत की
राय है कि ऐसे अपराधों में किशोरों की भागीदारी में जबरदस्त बढोत्तरी होने का तर्क
सही नहीं है क्योंकि इनमें करीब दो फीसदी की ही वृद्धि हुई है।
किशोर
बच्चों को अपराधियों के बीच रखने की बजाए उन्हें सुधारने की उम्मीद से ही वर्ष 2000
में किशोर न्याय: बच्चों की देखभाल और संरक्षण कानून बनाया गया था। किशोर न्याय
कानून के प्रावधानों के तहत किशोर की परिभाषा अलग है, इसलिए संगीन
अपराध के बावजूद भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत उन्हें दंडित नहीं किया
जाता। किशोर न्याय कानून के तहत किसी अपराध में 18 साल से कम आयु
के किशोर के शामिल होने पर उसे बाल सुधार गृह भेजा जाता है। इसी कानून के तहत ही
उसके खिलाफ किशोर न्याय बोर्ड में कार्यवाही होती है।
उच्चतम
न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि किशोर न्याय: बच्चों की देखभाल और संरक्षण कानून 2000 की
धारा 15:1::जीः के तहत जघन्य अपराध में दोषी पाये जाने के
बावजूद एक किशोर 18 साल का होते ही रिहा कर दिया जाता था लेकिन इस
कानून में 2006 में संशोधन के बाद स्थिति बदली है। अब यदि कोई
किशोर ऐसे अपराध में दोषी पाया जाता है तो उसे तीन साल की सजा काटनी ही होगी भले
ही वह 18 साल का हो चुका हो।
न्यायालय
की इस व्यवस्था से स्पष्ट है कि यदि किसी किशोर ने 17 साल की आयु में
अपराध किया है तो उसे दोषी पाये जाने की स्थिति में 18 साल की उम्र के
बाद भी दो साल सलाखों के पीछे गुजारने ही होंगे।
दिल्ली
में पिछले साल दिसंबर में चलती बस में 23 वर्षीय युवती से सामूहिक बलात्कार की
घटना में शामिल छह व्यक्तियों में एक किशोर था और इस समय उस पर किशोर न्याय कानून
के तहत अलग मुकदमा चल रहा है। इसी तरह मेघालय में पिछले साल हुए सामूहिक बलात्कार
की घटना में गिरफ्तार 16 युवकों मे से आठ 13 से 18
साल की आयु के थे। इसी तरह मेघालय के बिर्नीहाट में सामूहिक बलात्कार की घटना के
सिलसिले में गिरफ्तार तीन आरोपियों में कम से कम एक नाबालिग था।
राष्ट्रीय
अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार 2012 में भारतीय दंड
संहिता के तहत अपराधों के आरोपों में 18 साल से कम आयु के 35465
किशोर गिरफ्तार किये गये थे। इनमें 33793 लड़के और 1672 लड़कियाँ थीं।
ब्यूरो के आँकड़ों के मुताबिक भारतीय दंड संहिता के तहत हुए अपराधों में किशोरों
की भागीदारी 1.2 फीसदी थी जबकि प्रत्येक एक लाख किशोरों में
इनकी अपराध दर 2.3 फीसदी थी।
यदि
पिछले एक दशक के आँकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाये तो पता चलता है कि इस
दौरान इसमें काफी वृद्धि हुई है। वर्ष 2011 की तुलना में 2012
में किशोरों द्वारा किये गए अपरधों में भी 11.2 फीसदी की
वृद्धि हुई है।
इन
आँकड़ों से यह भी पता चलता है कि 2002 से यौन अपराधों में किशोरों की
संलिप्तता में वृद्धि हो रही है। पिछले साल ऐसे अपराधों में 2239
किशोर गिरफ्तार किये गये थे। इनमें से 1316 किशोरों पर बलात्कार के आरोप थे जबकि 2011
में बलात्कार के आरोप में 1149, 2010 में 858, 2009 में 798 और
2002 में 485 किशोर ही गिरफ्तार किये गये थे।
पिछले
एक दशक में यौन अपराधों में इन किशोरों की भूमिका में तेजी से इजाफा हुआ है। वर्ष 2001
में बलात्कार के आरोप में करीब 400 किशोर पकड़े गये थे जबकि 2011
में इनकी संख्या बढ़कर 1149 तक पहुंच गयी थी।
शायद
यही वजह थी कि दुष्कर्म और जघन्य अपराधों में किशोर लड़कों के शामिल होने की बढ़ती
घटनाओं के कारण किशोर की आयु सीमा को नये सिरे से परिभाषित करने की मांग जोर पकड़
रही थी।
महिलाओं
के साथ यौन अपराधों में किशोरों की बढती भूमिका पर संसदीय समिति ने भी चिंता
व्यक्त की थी। संसद की महिला सशक्तिकरण मामलों पर गठित समिति ने भी महिलाओं के
प्रति यौन अपराधों में 16 से 18 साल की उम्र के
किशोरों की भूमिका के मद्देनजर पुरूष किशोर की आयु 18 साल से घटाकर 16
साल करने की सिफारिश की थी। समिति का मानना था कि किशोर न्याय कानून के तहत लड़के
और लड़कियों की किशोर उम्र एक समान यानी 18 साल करने के अपेक्षित परिणाम नहीं
मिले हैं।
कुछ
समय पहले तक अपराध की दुनिया में किशोरों के शामिल होने का ठीकरा उनकी पारिवारिक
पृष्ठभूमि, गरीबी, निरक्षरता और अभावों पर फोड़ा जाता था
लेकिन अब देखा जा रहा है कि संभ्रांत परिवार के किशोरों में भी इस तरह की आपराधिक
प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है।
मौजूदा
कानून के तहत किसी भी किशोर आरोपी का न तो नाम सार्वजनिक किया जा सकता है और न ही
उसे सामान्य आरोपियों के साथ जेल में रखा जा सकता है। संगीन अपराध में लिप्त होने
के बावजूद नाबालिग को उम्र कैद जैसी सजा भी नहीं दी जा सकती है। किशोर न्याय कानून
के तहत उसे तीन साल तक ही बाल सुधार गृह में रखा जा सकता है और दोष सिद्ध होने के
बावजूद उसे सरकारी नौकरी या दूसरी सेवाओं से न तो वंचित किया जा सकता है और न ही
चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है।
सवाल
यह है कि आखिर अपराध और विशेषकर महिलाओं के प्रति अपराधों में किशोर युवकों की
भूमिका में तेजी से इजाफा कैसे हो रहा है। समाज में ऐसे तत्वों की कमी नहीं है जो
इन किशोरों को पथभ्रष्ट करने और अपनी विकृत मानसिकता से उपजे मंसूबों को पूरा
करने के लिये उन्हें अपराध की दुनिया में ढकेलने से गुरेज नहीं करते है। इसके
अलावा समाज में आ रहे खुलेपन, सिनेमा और टेलिविज़न पर दिखाये जा रहे
विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों और इंटरनेट की दुनिया के कारण किशोरो में बढ़ रही
उत्सुकता को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता।
अकसर
देखा गया है कि गंभीर अपराध में किसी किशोर के गिरफ्तार होने पर सबसे पहले उसके
नाबालिग होने की दलील दी जाती है। इस संबंध में स्कूल में दर्ज आरोपी की उम्र का
हवाला दिया जाता है। कई मामलों में ऐसा भी हुआ है कि स्कूल में कम उम्र दर्ज कराई
गयी लेकिन वैज्ञानिक तरीके से आरोपी की आयु का पता लगाने की कवायद में दूसरे ही
तथ्य सामने आये।
चूंकि
देश की सर्वोच्च अदालत ने जघन्य अपराधों में किशोरों की संलिप्तता के बारे में
उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर किशोर कानून में परिभाषित किशोर की परिभाषा में किसी
प्रकार के हस्तक्षेप से इंकार करते हुए कहा है कि पर्याप्त आँकड़े उपलब्ध होने तक
ऐसा नहीं किया जा सकता है, इसलिए अब महिलाओं के प्रति यौन हिंसा
के अपराधों में किशोरों की संलिप्तता के बारे में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो
के पिछले एक दशक के आँकड़ों के साथ ही तमाम तथ्यों और आँकड़ों तथा संसदीय समिति की
सिफारिश के आलोक में संसद को ही किशोरों की मनःस्थिति में सुधार और उनके कल्याण के
लिये नये उपायों पर विचार करना होगा।
अनूप भटनागर
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