बेंगलूर स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल एवं
इकोनॉमिक चेंज द्वारा 2012 में कांपेटेटिव असेसमेंट ऑफ ओनियन
मार्केट्स इन इंडिया नामक शोध किया गया था। इसके प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं:
कृषि विपणन
निजी खिलाड़ियों का वर्चस्व है। कृषि बाजारों की
हालत खस्ताहाल है। उनके आस-पास के आधारभूत ढांचे का स्तरीय विकास नहीं हुआ है।
निगमित बाजार के असमान विकास, व्यवसायियों के निजी हितों के खिलाफ
लड़ाई में अक्षमता और निगमित बाजारों में व्यापारियों की आपसी साठगांठ की वजहों से
उपभोक्ताओं के लिए निर्धारित कीमत में वास्तविक हक किसान को नहीं मिलता। कृषि
विपणन पर प्रमुख रूप से बिचौलियों का कब्जा है।
सुझाव
1. नए कमीशन एजेंट और व्यापारियों की फ्री एंट्री
को प्रोत्साहन मिले।
2. नियमों को कठोर कर और नियमन तंत्र को मजबूत कर
जानबूझकर जमाखोरी करने वाले बिचौलियों पर अंकुश लगे।
3. कृषि उत्पाद मार्केट कमेटी में सुधार की जरूरत
है:
·
ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि
एपीएमसी और अन्य थोक बाजार गुप्त निविदाओं की अनुमति नहीं दे क्योंकि यह निगमित
बाजार एक्ट के खिलाफ है ।
·
व्यापारियों के बीच साठगांठ रोकने के
लिए एपीएमसी अधिकारियों को नीलामी में शामिल होने की अनिवार्यता सुनिश्चित करनी
चाहिए।
·
एपीएमसी एक्ट में बाजार को एकाएक बंद
करने से रोकने के लिए प्रावधान किया जाना चाहिए।
·
एपीएमसी द्वारा एकत्र किए जाने वाले
चार्जेज का प्रभावी इस्तेमाल होना चाहिए ताकि किसानों समेत सभी को बेहतर सुविधाएं
मिल सकें।
4. प्याज के निर्यात पर पाबंदी और एकपक्षीय एमईपी
के निर्धारण को हतोत्साहित किया जाए।
5. नैफेड को बाजार से प्याज के प्रसंस्करण और किसानों
से सीधे खरीदने का अधिकार मिले।
6. किसानों द्वारा थोक व्यापारियों तक सीधे बिक्री
को प्रोत्साहित करना चाहिए।
7. प्याज उत्पादन वाले इलाकों में आर्थिक और मौसम
गतिविधियों के मद्देनजर कुल उत्पादन का पूर्वानुमान व्यक्त करने का तंत्र विकसित
हो।
·
अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय प्याज
की बढ़ती मांग के बीच कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए प्याज के
निर्यात पर विचार किया जाना चाहिए।
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प्रमुख बाजारों में प्याज कीमतों के
डाटा की रिकॉर्डिग के लिए ई-टेंडरिंग अथवा नेशनल मार्केट इंफार्मेशन सिस्टम को
विकसित किया जाना चाहिए।
·
ग्राम और तालुका स्तर पर मार्केटिंग की
समस्याओं के समाधान के लिए पंचायतों को शामिल करने के लिए 73वें संविधान
संशोधन में प्रावधान किए गए हैं। प्रभावी क्त्रियान्वयन के लिए सरकार को जरूरी कदम
उठाने चाहिए।
·
महाराष्ट्र और कर्नाटक में सप्लाई चेन
में व्याप्त अक्षमता से निपटने की व्यवस्था हो
·
2002 के प्रतिस्पर्धा एक्ट में जिस तरह
बदलाव किए गए उसी तरह एपीएमसी एक्ट में भी बदलाव की जरूरत है।
कीमतों का खेल
देश में प्याज के कुल उत्पादन का करीब 40
फीसद अकेले महाराष्ट्र करता है। यहां से प्याज की आपूर्ति देश के बाकी हिस्सों में
की जाती है।
1. महाराष्ट्र का कोई व्यापारी वहां के किसान से
औसतन 4000-4500 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से प्याज की
खरीदारी करता है।
2. किसानों से प्याज खरीदने के क्रम में व्यापारी
द्वारा अलग-अलग कीमतें अदा की जाती हैं। मान लीजिए इस तरह से 20
क्विंटल माल व्यापारी के पास जमा हो जाता है। इसमें से 19 क्विंटल का
खरीद दाम 4000-4500 के बीच था जबकि एक क्विंटल को 5600-5800
रुपये की दर से खरीदा गया।
3. जब यह व्यापारी दूसरे बाजार के किसी और
व्यापारी को अपना माल बेचता है तो यह पूरे माल यानी 20 क्विंटल के लिए
ऊंचे दाम (5600-5800) से अधिक वसूल करता है।
4. कीमतें तब और ऊंची हो जाती हैं जब इसे खुदरा
बाजार में बेचने की बजाय छोटे थोक बाजारों में अधिक कीमतों में बेचते हैं।
5. यहां से प्याज एक बार फिर छोटे कारोबारी और थोक
विक्रेताओं से होते हुए खुदरा विक्रेताओं तक पहुंचती है।
6. इस तरह से एक किग्रा प्याज जिसे 40-50 रुपये
में उपभोक्ताओं को मिलनी चाहिए, 70-80 यानी दोगुनी कीमत पर मिलती है।
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