सोमवार, 14 अक्तूबर 2013

दृष्टिबाधित लोगों का सशक्तिकरण

सदियों से दृष्टिबाधित लोग चलने फिरने के लिए लाठी का उपयोग करते रहे हैं लेकिन प्रथम विश्‍व युद्ध के बाद से वह सफेद रंग की छड़ी का उपयोग करते हैं। जेम्‍स बिग्‍स नामक फोटोग्राफर एक दुर्घटना में अपनी आंखें खो बैठे और उसके बाद 1921 में जब उन्‍हें अपने घर के आस-पास चलने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा तो उन्‍होंने अपनी छड़ी को सफेद रंग से रंग दिया। दस वर्ष बाद फ्रांस में गुली द हरर्बेमोंट ने दृष्टिबाधित लोगों की सहायता के लिए एक सफेद रंग की छड़ी की शुरुआत की।

दुनिया भर में प्रतिवर्ष्‍ 15 अक्‍टूबर को 'सफेद छड़ी दिवस' मनाया जाता है। इसका उद्देश्‍य विश्‍व को दृष्टिहीनता के बारे में शिक्षित करना और यह बताना दृष्टिबाधित लोग अपना जीवन और कार्य किसी पर निर्भर हुए बिना स्‍वयं कर सकते हैं।

पिछले कुछ सालों में दृष्टिबाधित लोगों की मदद के लिए विभिन्‍न उपकरणों के शोध और उत्‍पादन के क्षेत्र में क्रांति आई है ताकि दृष्टिबाधित लोग चलने-फिरने, काम करने, पढ़ने और अपना जीवन बिना किसी सहारे के बिता सके। सूचना का प्रसार, गतिशीलता और कंप्यूटर तक पहुंच शोध के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं।

सफेद छड़ी में भी कई बदलाव किए गए हैं। आजकल मोड़कर रखली जाने वाली और हल्‍की छडि़यां उपलब्‍ध हैं यहां तक कि संवेदकी लगे इलैक्‍ट्रॉनिक छडियां भी उपलब्‍ध हैं।

दृष्टिबाधित लोगों को कम्‍पयूटर के प्रति आकर्षित करने के लिए कई उपकरण विकसित किए गए हैं, जिनमें आवाज वाला सिंथेसाइजर्स, बातचीत करने वाला सॉफ्टवेयर और स्‍क्रीन मैग्निफायर, और ब्रेल लिपि की कीज़ शामिल हैं। भारत सरकार ने दृष्टिबाधित लोगों के सशक्तिकरण के लिए कई कदम उठाए गए हैं। उनकी मदद के लिए उपकरण विकसित किए हैं, ताकि उन्‍हें शिक्षा, रोजगार और गतिशील बनाने में आत्‍मनिर्भर बनाया जा सके।

निशक्‍त लोगों की सहायता के लिए उपकरण खरीदने/लगवाने की योजना एडीआईपी के जरिए उपकरणों को खरीदने के लिए वित्‍तीय सहायता दी जाती है। इस योजना के तहत विकलांग मामलों के विभाग द्वारा स्‍वयं सेवी संस्‍थाओं को टिकाउ, संवेदनशील और उच्‍च तकनीक वाले आई एस आई स्‍तर के उपकणों के लिए वित्‍तीय सहायता दी जाती है।

सरकार ने देश में दृष्टि बाधित लोगों को शिक्षा, रोजगार, चलने-फिरने और उन्‍हें आत्‍म  निर्भर बनाने की दिशा में कई कदम उठाए हैंजिनमें रोजाना के कार्यक्रमों तथा गतिविधियों में सहायक उपकरणों का विकास तथा उन्‍हें पहुंच के दायरे में लाना शामिल है।

शारीरिक रूप से विकलांग लोगों को ऐसे उपकरणों की खरीद के लिए वित्‍तीय सहायता उपलब्‍ध कराई जाती है। इस योजना के तहत विकलांग मामलों का मंत्रालय ऐसे बेहतर उपकरण उपलब्‍ध कराने के लिए विभिन्‍न गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) को अनुदान राशि देता है। इन विकलांग लोगों की श्रेणी में दृष्टि बाधित विकलांग भी है। इस योजना में सहायता राशि तथा आय की सीमा को भी ध्‍यान में रखा जाता है। जिन व्‍यक्तियों की मासिक आयु 6500 रूप्‍ए प्रतिमाह है उन्‍हें ऐसे उपकरणों के लिए पूरी लागत राशि प्रदान की जाती है और 6501 रूपये से 10 हजार रूपए प्रतिमाह आय वाले विकलांग व्‍यक्तियों की उपकरण की कुल राशि की 50 प्रतिशत सहायता राशि दी जाती है। इस योजना को विभिन्‍न गैर-सरकारी संगठनों, मंत्रालय के विभिन्‍न संस्‍थानों तथा कृत्रिम बाहं निर्माण निगम (एलिम्‍को) क्रियान्वित करती है।

हालांकि इन उपकरणों की लागत के खर्चे के लिए सहायता राशि दिए जाने की स्‍वीकृत सीमा काफी कम है और सरकार इसे बढ़ाए जाने की दिशा में प्रयत्‍न कर रही है। सामाजिक न्‍याय एवं आधिकारिता मंत्रालय के तहत ''विकलांग मामलों के विभाग'' की स्‍थापना पिछले वर्ष की गई थी। इसके गठन का मुख्‍य मकसद मौजूदा योजनाओं को मजबू‍ती प्रदान करना तथा नई नीतियां बनाना है। इसमें तकनीकी नवाचार तथा विभिन्‍न संगठनों के साथ सामंजस्‍य स्‍थापित करना भी है। इसमें केन्‍द्रीय मंत्रालयों के अलावा राज्‍य सरकारें और अंतर्राष्‍ट्रीय संगठन भी शामिल है।

''साइंस एंड टेक्‍नालाजी प्रोजेक्‍ट इन मिशन मोड'' योजना का लक्ष्‍य तकनीकी पहलुओं के इस्‍तेमाल से कम लागत पर प्रभावी सहायता उपकरण उपलब्‍ध कराना है ताकि समाज के साथ जोड़कर उनके लिए रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जा सके। इन योजना के तहत शोध एवं विकास परियोजनाओं की पहचान कर ऐसे उपकरणों के विकास के लिए उन्‍हें धनराशि उपलब्‍ध कराई जाती है। यह योजना भारतीय प्रौद्योगिकी संस्‍थान, शैक्षिक संस्‍थाओं, शोध एजेंसियों एवं स्‍वैच्छित संगठनों के जारिये लागू की जाती है।

आई आई टी दिल्‍ली ने एक ''स्‍मार्ट केन'' विकसित की है जिसिमें विद्युत सेंसर लगे है और यह जमीन पर किसी भी अवरोध का आसानी से पता लगा सकता है। राष्‍ट्रीय परियोजना ''इंफार्मेशन टेक्‍नालाजी फार द ब्रेल लिटरेसी इन इंडियन लेंग्‍वेजज'' में पश्चिम बंगाल सरकार के उपक्रम ''वेबल मीडियाट्रानिक'' ने देशभर के 190 विशेष दृष्टिबाधित स्‍कूलों में सूचना प्रौद्योगिकी आधारित ''ब्रेल प्रणाली'' लगाई है। इसने इंटरनेट ऐक्‍सेसे एंड रिहेबिलीटेशन टूल्‍स'' भी विकसित किया है। इसमें इलैक्‍ट्रानिक्‍स ब्रेल डिस्‍पले, आटोमेटिक ब्रेलर एम्‍ब्रोसर और कई साफ्टवेयर है।

सामाजिक न्‍याय एवं आधिकारिता मंत्रालय के तहत दृष्टिबाधितों के क्षेत्र में कार्यरत अग्रणी संस्‍थान ''द नेशनल इंस्‍टीट्यूट फार द विजुअली हैंडीकैप्‍पड'' भी शोध एवं विकासात्‍मक गतिविधियों में हिस्‍सा ले रहा है। इसने दृष्टिबाधितों के लिए कई लाभदायक उपकरण एवं तकनीक विकसित की हैं।

देश में ब्रेल साहित्‍य और उपकरणों के निर्माण एवं वितरण के क्षेत्र में यह सबसे बड़ा संस्‍थान है। कई स्‍थानीय भाषाओं में ब्रेल आधारित इसकी एक आनलाइन लाइब्रेरी  भी है।

विकलांग मामलों के मंत्रालय ने एक और पहल करते हुए हाल ही में राजधानी  दिल्‍ली में इस तरह के सहायक यंत्रों तथा उपकरणों पर राष्‍ट्रीय मेले स्‍वावलंबन का  आयोजन किया था। इस मेले का मुख्‍य लक्ष्‍य निर्माताओं, आपूर्तिकर्ताओं, शोध एवं विकास से जुड़े संगठनों को आपस में विचार विमर्श करने का एक अवसर प्रदान करना और ऐसा रास्‍ता निकालना था ताकि इन आधुनिक सहायक उपकरणों को जरूरतमंदो को सस्‍ती दरों पर उपलब्‍ध कराया जा सके।

विश्व के 20 प्रतिशत दृ‍ष्टिबाधित लोग भारत में हैं। उनके विकास से जुड़ी कई सुविधाओं और सहायक मशीनों के बावजूद भी दुर्भाग्‍यवश देश में नेत्रहीन विद्यार्थियों के लिए ब्रेल लिपि में लि‍खी पुस्तकों की कमी है। उनके चलने में सहायक यंत्र (सफेद छड़ी) की आपूर्ति भी निर्माता मांग के हिसाब से पूरी नहीं कर पा रहे हैं।
हालांकि अनेक स्‍पर्शी यंत्र उनके पढ़ने, खेलने और मनोरंजन के लिए बनाए गए हैं लेकिन अभी भी उचित दामों पर कई यंत्रों को बनाने की जरूरत है जैसे कि बोलने वाला थर्मामीटर, रक्‍तचाप मापक, रंगों की पहचान कराने वाला और फिल्‍मों के दृश्‍यों को बताने वाला यंत्र।
अखिल भारतीय नेत्रहीन परिसंघ के अध्‍यक्ष श्री ए के मित्‍तल ने कहा कि उन्‍हें आशा है कि सरकार से उन्‍हें मिलने वाली सहायता राशि बढ़ेगी और भुगतान प्रक्रिया में भी तेजी आएगी। श्री मित्‍तल वर्ल्‍ड ब्रेल काउंसिल के सदस्‍य भी हैं, उनका कहना है कि नेत्रहीनों की शिक्षा के लिए बहुत कुछ किया गया है और अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। उनका कहना है कि उच्‍च तकनीक से महंगे उपकरणों को बनाने की जरूरत है जैसे कि ब्रेल नोट टेकर और देश में ही विकसित एवं जोड़े जाने वाले अन्‍य सहायक उपकरण ताकि वे सस्‍ती दरों पर उपलब्‍ध हो सकें।

हालांकि ब्रेल लिपि ने दृ‍ष्टिबाधितों के पढ़ने और लिखने में काफी मदद की और सफेद छड़ी ने उनको गतिशीलता दी, फिर भी कई सहायक उपकरणों को उचित दामों पर उपलब्‍ध कराने की जरूरत है जिससे दृ‍ष्टिबाधित लोग दूसरों पर निर्भर न होकर सशक्‍त व आत्मनिर्भर बनें।



(पसूका फीचर)



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कुल पेज दृश्य