सोवियत संघ के पतन के बाद से भारत-रूस
रिश्तों में कुछ समय के लिए संक्रमण की स्थिति रही और उसी दौरान कुछ समय के लिए यह
आरोप भी लगे कि भारत अपने परम्परागत मित्र रूस को छोड़कर अमेरिकी खेमें की ओर सरक
गया है। यद्यपि कुछ समय के लिए ऐसा महसूस जरूर किया गया, लेकिन अब पुन: यह महसूस किया जा सकता
है कि भारत-रूस सम्बंध पुन: खु्रश्चेवव और ब्रेझनेव युग के निकट पहुंच रहे हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपनी पांच
दिवसीय यात्रा पर पहले रूस पहुंचे जहां उन्हें 20 से 22 अक्टूबर परमाणु सहयोग, व्यापार और रक्षा जैसे महत्वपूर्ण मामलों
पर वार्ता करनी थी। मास्को में संपन्न हुई भारत-रूस अंतरसरकारी आयोग की बैठक के
बाद यह संकेत मिल रहा था कि दोनों देशों ने परमाणु दायित्व मामले के सम्बंध में
प्रगति की है जो कुडनकुलम परमाणु बिजली परियोजना (केएनपीपी) की तीसरी और चौथी इकाई
के लिए रूसी रियेक्टर की आपूर्ति अनुबंध के लिए महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री के
क्रेमलिन पहुंचकर रूसी राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात करने के पश्चात दोनों नेताओं
ने अपने अधिकारियों को निर्देश दिया कि कुडनकुलम परियोजना के उत्तरदायित्व से जुड़े
उन मुद्दों को जल्द से जल्द सुलझाया जाए जिसके कारण संयंत्र की तीसरी और चौथी इकाई
पर काम रुका हुआ है। विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के बाद दोनों नेताओं की तरफ
निष्कर्ष निकाला गया कि रणनीतिक साझेदारी में रक्षा सहयोग महत्वपूर्ण तत्व
है। इस दृष्टि से उन्होंने रॉकेट, मिसाइल, नौसैन्य तकनीकों और हथियार प्रणाली के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का
फैसला किया। अपनी 14वीं वार्षिक शिखर वार्ता में मनमोहन और पुतिन ने आतंकवाद के
क्षेत्र में सहयोग और कारोबार तथा निवेश के तरीकों सहित कई विषयों पर चर्चा की।
भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग तथा रूस के शिक्षा एवं विज्ञान मंत्रालय
के बीच 2014-17 के लिए विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवीकरण के क्षेत्रों में सहयोग के कार्यम से जुड़े
समझौते पर भी हस्ताक्षर हुए, जो रक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
स्टेट इंस्टीटयूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस
द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि हासिल करने के दौरान अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा
कि जब भारत के सामने गंभीर अंतरराष्ट्रीय चुनौतियां थीं, संसाधन व दोस्त सीमित थे, वैसे समय में रूस ने भारत की भरपूर मदद
की। भारतीय इसे कभी भूल नहीं सकते। उनका
कहना था कि पिछले छह दशकों में भारत का रूस के मुकाबले किसी अन्य देश से नजदीकी
संबंध नहीं बने और न ही किसी देश ने भारत के लोगों में भरोसा और आत्मविश्वास पैदा
किया। दरअसल दोनों देशों ने 1990 के दशक में थोड़ी दूरी बनाई या रिश्तों में
उदासीनता आई। लेकिन वर्ष 2000 से सक्रियता का दौर आरम्भ हुआ। वास्तव में शीत युध्द
की समाप्ति और साम्यवादी सोवियत की इमारत के ढहने के बाद अधिकांश दुनिया पूंजीवादी
नेतृत्व के अधीन आ गई। भारत इन वैश्विक परिवर्तनों से परे नहीं था इसलिए वह रूस की
बाजारवादी अमेरिकी खेमें की ओर बढ़ा। लेकिन अब स्थितियां बदलती दिख रही हैं।
अक्टूबर 2000 में 'डिक्लरेशन ऑफ स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप' के साथ दोनों देशों के मध्य फिर से
भरोसे की साझेदारी का युग शुरू हुआ। रूस ने भारत को परमाणु ऊर्जा, तकनीक, सैन्य सहयोग और रणनीति सहयोग के मोर्चे पर बढ़-चढ़कर सहयोग दिया।
विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में 16 मार्च, 2006 को रूसी प्रधानमंत्री मिखाइल फ्रादकोव की भारत यात्रा के साथ ही
एक नये युग की शुरूआत हुई। दोनों देशों के बीच सात समझौतों पर हस्ताक्षर हुए जिनके
तहत रूस ने भारत को यह आश्वासन दिया कि वह भारत के तारापुर परमाणु संयंत्र को
तुरंत आवश्यक 60 मीट्रिक टन यूरेनियम की आपूर्ति करेगा। उस समय तारापुर परमाणु
बिजलीघर ईंधन की कमी के कारण बंद होने के कगार पर पहुंच गया था। इसके साथ ही भारत
ने रूस से निर्माणाधीन कुडनकुलम परमाणु परियोजना के लिए सामग्री एवं उपकरणों की
आपूर्ति तेज करने की बात भी की थी। 2007
में 58वें गणतंत्र दिवस पर जब पुतिन भारत आए तो रक्षा क्षेत्र में नये आयाम जुड़े
जिन्हें दिमित्री मेदनेदेव ने अपने काल में और विस्तार दिया। उस समय कुछ अन्य
समझौतों सहित बहुउद्देश्यीय परिवहन विमानों के विकास और निर्माण के सम्बंध में
प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर हुए। उस समय रूस ने भारत को आरडी 33 सीरीज के एयरो इंजन के
उत्पादन का लाइसेंस देने के साथ-साथ आरडी 33 इंजन और एसोसिएट प्रोडक्ट के निर्माण
को मंजूरी दी गई। साथ ही मिग-35 युध्दक विमान भारत को देने की संभावनाओं पर भी
विचार-विमर्श हुआ जबकि भारत ने ऐसे 126 युध्दक विमान वायुसेना के लिए खरीदने की
इच्छा जाहिर की थी। मेदनेदेव के राष्ट्रपतित्व में भारत को 42 सुपर सुखोई-30
एमकेआई लड़ाकू विमान मुहैया करवाने के लिए रूस ने प्रतिबध्दता जाहिर की। उल्लेखनीय
है कि इससे सम्बंधित करार का यिान्वयन सन् 2014 में प्रारम्भ होगा और इसी वर्ष
भारत को पहला सुपर सुखोई विमान प्राप्त होगा। उस समय हुए समझौते के मुताबिक सभी 42
विमान 2018 तक प्राप्त हो जाएंगे। नया सुपर सुखोई विमान शत्रु सेना के राडारों की
आंख से बच निकलने में माहिर होगा। उल्लेखनीय है कि सुपर सुखोई को भारत-रूस द्वारा
संयुक्त रूप से विकसित की गई सुपर सोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस के हवाई संस्करण से
भी सुसजित किया जाएगा। समझौते के मुताबिक भारत में मौजूद 120 सुखोई विमानों को
निकट भविष्य में इन्हीं क्षमताओं से लैस करने के लिए उन्नत किया जाएगा। भारत व रूस
द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया जा रहा पांचवीं पीढ़ी का युध्दक विमान भी 2018
में बाहर आने की उम्मीद जताई गई। भारत इस
परियोजना के तकरीबन 300 विमान खरीदेगा। ये विमान स्टील्थ तकनीक से लैस और राडारों
की पहुंच से बाहर होंगे। अनेक प्रकार की खूबियों वाले इन विमानों में नेटवर्क
केन्द्रित युध्द-कलाएं मौजूद होंगी। पांचवीं पीढ़ी के ये आधुनिक विमान टी-50
विमानों के नये प्रारूप में होंगे। ये विमान अमेरिका के एफ-22 रैप्टर व एफ-35 का
बेहतर जवाब होंगे।
भारत की उभरती हुई अर्थव्यवस्था के लिए
ऊर्जा जरूरतों का पूरा होना जरूरी है और रूस प्राकृतिक गैस के लिहाज से दुनिया का
सबसे समृध्द देश है। कच्चे तेल के निर्यात में भी सऊदी अरब के बाद उसी का स्थान है
जो भारत की बढ़ती तेल और गैस जरूरतों को पूरा कर सकता है। रूस के तेल व गैस क्षेत्र
में पश्चिमी कम्पनियों के साथ भारत की ओएनजीसी विदेश सेवा लिमिटेड (ओवीएल)ने भी
निवेश किया है। यही नहीं, रूस में भारत के लिए एक विशाल उपभोक्ता बाजार है जिस पर भारत के
व्यापारियों की निगाहें हैं। जिसे 'इंडो-रूस फोरम ऑन ट्रेड एण्ड इनवेस्टमेंट' प्रोत्साहित कर रहा है। फिलहाल विदेश
मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गये आंकड़ों के हिसाब से भारत-रूस द्विपक्षीय व्यापार
इस समय लगभग 11 बिलियन डॉलर के आसपास है जिसके 2015 तक 20 बिलियन डॉलर होने की
सम्भावना है।
बहरहाल, भारत-रूस साझेदारी केवल कुछ आर्थिक या तकनीकी मुद्दों तक ही सीमित
नहीं है बल्कि रणनीतिक होने के साथ-साथ बेहद उद्देश्यपूर्ण हैं। सम्भव है कि इस नई
साझेदारी से भारत एशिया में अपनी नई भूमिका का निर्वहन कर सके। अहम् बात तो यह है
कि पाकिस्तान पर इसका दबाव अपेक्षाकृत अधिक पड़ेगा और चीनी ताकत को भी काउंटर करने
का अवसर प्राप्त होगा। चूंकि रूस भी आतंकवाद से पीड़ित है इसलिए वह भारत को आतंकवाद
से लड़ने की लिए सैनिक हथियारों की आपूर्ति करता है। चूंकि अमेरिका के मुकाबले रूस
भौगोलिक दृष्टि से भारत के यादा निकट है इसलिए भू-सामरिक दृष्टि से भारत के लिए
अमेरिका की अपेक्षा रूस अधिक लाभ हो सकता है। आज रूस को भारत की जरूरत है और भारत
को रूस की, हमें इस तथ्य को बेहद गम्भीरता के साथ
समझने की जरूरत है। यदि ऐसा हुआ तो दोनों देश मिलकर दुनिया को एक नई दिशा देने में
कामयाब होंगे।
देशबन्धु
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