बुधवार, 30 अक्तूबर 2013

खाद्य सुरक्षा पर डब्लूटीओ का साया

देश के नागरिकों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने का यूपीए ने संकल्प लिया है। देश की कुल आबादी लगभग 120 करोड़ है। इसमें लगभग 70 करोड़ खाद्य सुरक्षा कानून के तहत सस्ते खाद्यान्न को पाने के हकदार होंगे। देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन में लगभग आधा सरकार द्वारा किसानों से खरीद कर गरीबों को वितरित किया जायेगा। डब्लूटीओ के वर्तमान नियमों के अनुसार कोई भी देश अपने घरेलू उत्पादन का अधिकतम 10 प्रतिशत वितरित कर सकता है। सरकार द्वारा 50 प्रतिशत उत्पादन को सस्ते दाम पर उपलब्ध कराना इस नियम का उलंघन होगा।

सरकार ने इस समस्या का रुचिकर हल निकाला है। अमीर देशों की मांग थी कि सदस्य देशों द्वारा माल का आवागमन सुलभ बनाना चाहिये। ज्ञात हो कि भारत द्वारा माल के निर्यात कम और आयात यादा किये जाते हैं। भारत द्वारा भारी मात्रा में साफ्टवेयर जैसी सेवाओं का निर्यात किया जाता है। इनका लेनदेन मुख्यत: इंटरनेट के माध्यम से हो जाता है। साफ्टवेयर को बंदरगाह से नहीं गुजरना होता है। इसके अतिरिक्त भारत द्वारा अप्रवासियों द्वारा रेमिटेन्स भेजी जाती है। इसका उपयोग माल के आयात के लिए किया जाता है। इन कारणों से भारत के बंदरगाहों परआयात जादा और निर्यात कम होते हैं। अमीर देशों की मांग है कि भारत के बंदरगाहों पर माल का आवागमन यानि आयातों का प्रवेश सरल बनाया जाए।

खाद्य सुरक्षा के संदर्भ में भारत ने हल निकाला है कि बंदरगाहों के सम्बन्ध में वार्ता तब ही की जाएगी जब अमीर देश खाद्यान्न वितरण को डब्लूटीओ से बाहर करेगें। दिसम्बर में इंडोनेशिया में डब्लूटीओ की मंत्रीस्तरीय वार्ता सम्पन्न होने को है। संकेत मिल रहे हैं कि अमीर देश कुछ वर्षों के लिये खाद्यान्न वितरण को छूट दे देंगे। इसके बदले में भारत द्वारा बंदरगाहों पर आयातों को सरल बनाया जायेगा। अमीर देशों ने इस छूट को तीन वर्षों तक देने की पेशकश की है जबकि भारत नौ वर्षों की छूट के लिये मांग कर रहा है।

मुद्दा है कि खाद्य सुरक्षा कानून ईद का चान्द है। इसे शीघ्र ही बन्द करना पड़ेगा चूंकि अमीर देश कुछ वर्षों के लिये ही छूट देने को तैयार हैं। अत: इस कार्यम के पीछे भागने के स्थान पर दूसरे विकल्प खोजने चाहिये। यूं भी खाद्य सुरक्षा कानून में कई समस्यायें हैं। पहली समस्या है कि जनता का स्वास्थ स्वच्छ पेयजल के कारण यादा प्रभावित होता है। प्लानिंग कमीशन के पूर्व सदस्य अरविन्द विरमानी के अनुसार रायों के बीच कुपोषण का अन्तर मुख्यत: सेनीटेशन के अभाव एवं शुध्द पेयजल की अनुपलब्धता के कारण है। बच्चे के पेट में कीड़े हों तो शरीर की पौष्टिक भोजन को पचाने की ताकत नहीं रह जाती है और वह कमजोर बना रहता है। पेचिश से ग्रस्त व्यक्ति को हलवा खिलाने से स्वास्थ लाभ नहीं होता है। अत: सरकार को चाहिये था कि गरीब को सर्व प्रथम सफाई की व्यवस्था और स्वच्छ पेय जल मुहैया कराती। इसके बाद खाद्यान्न उपलब्ध कराने थे।

दूसरी समस्या प्रशासनिक तंत्र की है। खाद्य सुरक्षा कानून को वर्तमान सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा ही लागू की जायेगा। वर्तमान सार्वजनिक वितरण प्रणाली में अधिकतर सब्सीडी फू ड कार्पोरेशन की अकुशलता और भ्रष्टाचार में खप जाती है। मनरेगा का हाल सर्वविदित है। आज सरपंच से मंत्री तक का हिस्सा निर्धारित हो चुका है। यही स्थिति कुछ समय में खाद्य सुरक्षा की हो जायेगी। तुलना में छत्तीसगढ़ की व्यवस्था उत्तम है। वाल स्ट्रीट जर्नल को दिये गये साक्षात्कार में मुख्य मंत्री रमन सिंह ने बताया कि उन्होंने प्राइवेट दुकानों के स्थान पर वितरण का काम ग्राम पंचायतों, सहायता समूहों एवं सहकारी समीतियों को दिया है। इससे रिसाव में कमी आयी है। खाद्य सुरक्षा कानून में ऐसी सोच का अभाव है।

तीसरी समस्या संतुलित आहार की है। स्वस्थ शरीर के लिये कार्बोहाइड्रेट के साथ-साथ दूसरे पोषक तत्व जरूरी होते हैं विशेषकर प्रोटीन। वर्तमान कानून के तहत केवल खाद्यान्न उपलब्ध कराये जायेंगे। फ लस्वरूप घर में सस्ते अनाज के लालच में भोजन में कार्बोहाइड्रेट अधिक और दूसरे पोषक तत्वों का कम उपयोग किया जायेगा। इससे आहार असंतुलित हो जायेगा और जनता के स्वास्थ की हानि होगी। कुछ समय पूर्व देश में नात्रजन फ र्टिलाइजर मात्र पर सब्सीडी दी जा रही थी। पाया गया कि किसानों के द्वारा नात्रजन अधिक एवं पोटाश तथा फ ास्फ ोरस का उपयोग कम किया जाने लगा। इससे भूमि की उत्पादक क्षमता का ह्रास होने लगा। अन्तत: सरकार को तीनों फ र्टीलाइजर पर सब्सीडी देनी पड़ी। इसी प्रकार सस्ते खाद्यान्न की पालिसी से स्वास्थ में गिरावट आयेगी। केवल सस्ता अन्न उपलब्ध कराने के स्थान पर दाल एवं अन्य दूसरे तत्वों को भी उपलब्ध कराना था। सरकार को छत्तीसगढ़ और पंजाब से सबक लेना था। इन रायों द्वारा लागू खाद्यान्न योजना में दाल भी उपलब्ध कराई जाती है। छत्तीसगढ़ में आयोडीन युक्त नमक भी उपलब्ध कराया जाता है। निश्चित ही इससे केन्द्र सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ता। ज्ञात हो कि पंजाब सरकार के लिये बजट की कमी के कारण दाल उपलब्ध कराना कठिन हो रहा है। केन्द्र सरकार ने चतुराई से महंगी और जरूरी दालों को योजना से बाहर रखा है जिससे बजट पर मार भी न पड़े और मतदाता को सरकार द्वारा सस्ते भोजन दिलाये जाने का आभास भी हो।

चौथी एवं प्रमुख समस्या गरीबी की है। सच यह है कि नागरिकों के पास आय हो तो वे स्वच्छ पेयजल एवं संतुलित आहार की व्यवस्था स्वयं कर लेते हैं। वित्त मंत्रालय द्वारा राय की प्रति व्यक्ति आय के आंकड़े प्रकाशित किये जाते हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा पांच वर्ष से कम आयु में मरने वाले बच्चों के आंकड़े दिये जाते हैं। इसे कुपोषण का सूचकांक माना जाता है। 11 रायों के दोनों के आंकड़े उपलब्ध हैं। इनमें उंची आय वाले छह राय हैं कर्नाटक, आन्ध्र, पंजाब, केरल, तमिलनाडु और हरियाणा। इन रायों की औसत बाल मृत्यु दर 45.7 प्रति हजार है। कम आय वाले पांच राय हैं बिहार, उत्तर प्रदेश, आसाम, उड़ीसा एवं पश्चिम बंगाल। इनकी औसत बाल मृत्यु दर 83.4 है। इससे प्रमाणित होता है कि गरीबी दूर हो जाये तो लोग स्वच्छ पेयजल और संतुलित भोजन की व्यवस्था कर लेते हैं।

खाद्य सुरक्षा कानून में कुपोषण की मूल समस्याओं - स्वच्छ पानी, संतुलित आहार एवं आय की समुचित व्यवस्था नहीं है। उपर से इसमें डब्लूटीओ के नियमों का उलंघन होगा। अत: खाद्य वितरण के स्थान पर नगद वितरण के लिये विचार करना चाहिये।

वर्तमान में सार्वजनिक वितरण प्रणाली, फ र्टीलाइजर, स्वास्थ्य एवं शिक्षा तथा मनरेगा पर केन्द्र सरकार द्वारा लगभग 360 हजार करोड़ रुपये प्रति वर्ष खर्च किये जा रहे हैं। इन तमाम कार्यमों को समाप्त करके उपलब्ध रकम से प्रत्येक बीपीएल परिवार को 2000 रुपए प्रति माह नगद दिये जा सकते हैं। 100 दिन मनरेगा में कार्य करने की अनिवार्यता समाप्त करने से इन दिनों में भी आय अर्जित की जा सकती है। डीजल एवं एलपीजी सब्सीडी भी जोड़ दें तो प्रत्येक परिवार को 5,000 रुपए प्रति माह नगद दिये जा सकते हैं। नगद वितरण से हम डबलूटीओ के उलंघन से बच जायेंगे और कुपोषण आदि की समस्याओं से भी।

देशबन्धु

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