भारत में पारिस्थितिकी संतुलन के लिहाज
से एक बेहद संवेदनशील क्षेत्र के रूप पश्चिमी घाट का महत्त्व किसी से छिपा नहीं
है। लेकिन विचित्र है कि सरकार को जहां इसके संरक्षण के लिए खुद आगे आना चाहिए था, उसने इस समूचे क्षेत्र में प्राकृतिक
संसाधनों के दोहन की व्यापक पैमाने पर अनदेखी की। यहां तक कि इस क्षेत्र के
पारिस्थितिकी संकट पर गठित माधव गाडगिल समिति की रिपोर्ट को भी लंबे समय तक दबा कर
रखा गया। मगर पिछले साल जब संयुक्त राष्ट्र ने पश्चिमी घाट को विश्व धरोहरों की
सूची में शामिल किया, उसके
बाद इस मसले पर स्पष्ट नीति की घोषणा का दबाव सरकार पर बढ़ गया। शायद यही वजह है कि
अब पर्यावरण मंत्रालय ने वन संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत छह राज्यों के लगभग साठ हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में
फैले पश्चिमी घाट इलाके को पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील घोषित करते हुए
उसमें किसी भी तरह के खनन, तापविद्युत संयंत्र और प्रदूषण फैलाने वाली अन्य औद्योगिक इकाइयां
संचालित करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। हालांकि पिछले कुछ सालों में कई अदालतों के
फैसलों के चलते इस इलाके में खनन और दूसरी पर्यावरण गतिविधियों पर लगाम लगी है।
फिर संयुक्त राष्ट्र के विश्व धरोहरों में पश्चिमी घाट को शामिल करने के बाद यों
भी किसी परियोजना को मंजूरी दिला पाना थोड़ा मुश्किल काम हो गया था। मगर सरकार के
ताजा फैसले के बाद अब कोई भी परियोजना लगाने की इजाजत तभी दी जाएगी, जब इसके लिए इलाके की ग्राम सभाओं की
पूर्व सहमति ले ली गई हो।
पर्यावरण मंत्रालय का ताजा फैसला
पारिस्थितिकी विशेषज्ञ माधव गाडगिल और योजना आयोग के सदस्य के कस्तूरीरंगन की
अगुआई में हुए दो अलग-अलग अध्ययन के आधार पर आया है। अब दक्षिण में कन्याकुमारी से
लेकर उत्तर में ताप्ती नदी तक करीब डेढ़ हजार किलोमीटर का पश्चिमी घाट का दायरा देश
का सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र हो जाएगा। गौरतलब है कि
कस्तूरीरंगन समिति ने इलाके की जैव विविधता को समृद्ध करने,
मानव
आबादी के घनत्व को नियंत्रित करने और वनक्षेत्र को नुकसान से बचाने के मकसद से ‘लाल सूची’
में
शामिल औद्योगिक इकाइयों के साथ-साथ खनन और विद्युत परियोजनाएं लगाने पर पाबंदी की
सिफारिश की थी। हालांकि पर्यावरण सचिव ने विनियमित क्षेत्र से आम आबादी को बाहर
रखने के मसले पर अपनी अलग राय दी थी, लेकिन इसके उलट मंत्रालय ने पुराने
नियम को बहाल रखा है। अगर पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचे तो पवनचक्की लगाने के
मामले में सरकार ने रियायत देने का फैसला किया है। इसी तरह,
सख्त
नियम-कायदों के पालन की शर्त पर पनबिजली परियोजना लगाने की भी इजाजत दी जाएगी।
पश्चिमी घाट जैव विविधता के मामले में
समूचे विश्व में एक खास स्थान रखता है। यहां फूलों की पांच हजार से ज्यादा किस्में
हैं। स्तनपायी जीवों की एक सौ चालीस, पक्षियों की लगभग पांच सौ,
उभयचर
जीवों की पौने दो सौ प्रजातियां हैं, जिनमें से अधिकतर दुनिया में कहीं और
नहीं पाए जाते। खासतौर पर केरल का ‘साइलेंट वैली राष्ट्रीय पार्क’
भारत
का ऐसा उष्णकटिबंधीय हरित वन है, जो अभी तक अछूता है। इसके अलावा,
देश
में नदियों के कम से कम चालीस फीसद हिस्से का पोषण पश्चिमी घाटों से ही होता है।
लेकिन अतिक्रमण, वन माफिया, अवैध खनन और विद्युत परियोजनाओं के
कारण पश्चिमी घाट अपनी करीब तीन चौथाई से ज्यादा जैव संपदा खो चुका है। देर से ही
सही, पश्चिमी
घाट को बचाने की सरकारी स्तर पर पहल हुई है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इसके संरक्षण
के लिए तय किए गए नियम-कायदों पर सख्ती से अमल होगा।
जनसत्ता
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