छह साल तक की उम्र जीवन
की आधारशिला होती है। यदि इस शैशवकाल में बच्चों को सही शिक्षा और संस्कार मिलें
तो जीवन की राह में उनका व्यक्तित्व पुष्पित व पलल्वित हो सकता है। लेकिन आज के
परिवेश पर नजर डालें तो पिछले एक दशक से महानगरों में माता-पिता अपने बच्चों के
नर्सरी में दाखिले को लेकर इतने परेशान और बदहवास से दिखाई देते हैं, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा
सकती। इससे एक बात साफ है कि देश में ज्यादातर अभिभावक
अपने मासूम बच्चों की शिक्षा को लेकर बेहद संवेदनशील होते जा रहे हैं। अच्छे स्कूलों
में दाखिले का एकमात्र रास्ता नर्सरी कक्षा से ही शुरू होता है। शायद यही सोचकर
ही ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को बिना सोचे-समझे और जांचे शिक्षा के लिए
किसी भी नजदीकी नर्सरी स्कूल या क्रैच में दाखिला दिला देते हैं। देश की शिक्षा
व्यवस्था अभी भी पहली कक्षा से बारहवीं कक्षा तक के छात्र-छात्राओं तक ही ध्यान
केंद्रित करने पर आधारित रही है। लेकिन अभी भी 0-6 उम्र के मासूमों की शिक्षा
पर ध्यान नहीं दिया गया।
केन्द्रीय महिला एवं
बाल विकास मंत्रालय की ओर से हाल ही में 'नेशनल अर्ली चाइल्डहुड एंड एडुकेशन (एनईसीसीई)'
पॉलिसी तैयार की गई है जिसे पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन
सिंह की अध्यक्षता वाली केन्द्रीय कैबिनेट ने मंज़ूरी दे दी है। भारतीय शिक्षा
व्यवस्था में यह नई पॉलिसी एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। एनईसीसीई पॉलिसी
देश में मौजूद 0-6 उम्र के 158.7 मिलियन बच्चों का भविष्य दुरुस्त करने की
राह में एक कदम है।
पॉलिसी पर ज्यादा विस्तार
से चर्चा करने से पहले इन आंकड़ों पर ध्यान दीजिए : भारत में प्री-स्कूल या
नर्सरी तक की शिक्षा समेकित बाल विकास सेवाएं (आईसीडीएस) के तहत आंगनवाड़ी सेंटरों
की मदद से दी जाती हैं। 2005 में हुए सातवें अखिल भारतीय ऑल इंडिया शिक्षा सर्वे
के अनुसार भारत में कुल 4,93,700 प्री-प्राइमरी संस्थाएं हैं। इनमें से 4,56,994
सेंटर ग्रामीण इलाकों में हैं। भारत में अभी भी पहली कक्षा में दाखिला लेने वाले
बच्चे नर्सरी शिक्षा प्राप्त होते हैं। 2005-06 में कराए गए राष्ट्रीय परिवार
स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार मात्र 56 प्रतिशत बच्चे ही आंगनवाड़ी सेंटरों में
पंजीकृत हैं। इनमें से भी मात्र 31 प्रतिशत बच्चे ही लगातार इन सेंटरों में आते
हैं। योजना आयोग ने 12वीं पंचवर्षीय योजना के मसौदे में इस बात का जिक्र साफ तौर
पर किया है कि स्वास्थ्य और भोजन से जुड़े मामलों समेत अन्य बुनियादी सुविधाओं
की कमी के कारण अभी भी ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को आंगनवाड़ी सेंटर में
प्री-नर्सरी शिक्षा के लिए नहीं भेजते हैं, जो चिंता का विषय है।
देश के हर गांव और शहर
में कुकुरमुत्ते की तरह उग आए अनगिनत नर्सरी और केजी स्कूलों के लिए यह एक दिशा-निर्देश
तय करने में मदद करेगा। अभी तक आपके पड़ोस में चलने वाले नर्सरी स्कूलों की व्यवस्था
पर सरकार और शिक्षा निदेशालयों का कभी हस्तक्षेप नहीं रहा है। जिसकी वजह से
छोटे-छोटे कमरों में चलाए जा रहे ऐसे स्कूलों में मासूम बच्चों की बुनियादी शिक्षा
और मानवीय अधिकारों की अवहेलना होती रही है।
हम पिछले सालों में 6
साल तक के छोटे बच्चों पर होने वाले शिक्षकों के अतिवाद और शिकायतों के बारे
में मीडिया के माध्यम से सुनते आए हैं। एक दशक पहले बच्चों को स्कूलों में
अनुशासन के नाम पर प्रताड़ित करना या सजा देना मौन रूप से स्वीकार माना जाता था।
लेकिन अब अध्यापकों के ऐसे बर्ताव को अभिभावक बर्दाश्त नहीं करते हैं। कई बार
ऐसे मामलों में स्कूलों के बाहर अभिभावकों के गुस्सा फूटने के वाकये भी देखने
को मिलते रहे हैं। ज़रा सोचिए उन 6 साल से कम उम्र के बच्चों पर होने वाले अत्याचारों
के बारे में जिसे डर या किसी अन्य कारण से वे अपने माता-पिता को बता भी नहीं
पाते। ठीक इसी तरह स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं जैसे साफ पीने का पानी, शौचालय और खेलने का मैदान आज अहम
पहलू माने जाते हैं। देश में ज्यादातर नर्सरी स्कूल मात्र एक या दो कमरों में
चलाए जा रहे हैं। नई पॉलिसी में इन सभी मुद्दों पर ध्यान दिया गया है। नर्सरी
स्कूल खोलने के लिए बुनियादी ढांचे, बच्चों-अध्यापक के
अनुपात और अभिभावकों के जुड़ाव को ध्यान में रखा गया है, ताकि
बुनियादी शिकायतों व जरूरतों का निपटान किया जा सके।
मौजूदा नए एनईसीसीई पॉलिसी
में ऐसी ही बुनियादी जरूरतों को पूरा करने की कोशिश की गई है। मसलन, 0-6 साल तक के बच्चों की शिक्षा
के लिए एक राष्ट्रीय स्तर के आयोग का गठन किया जाएगा। यह आयोग बदलते समय के
साथ इन बच्चों के विकास से जुड़े मामलों पर नई नीतियां तैयार किया करेगा। ठीक
इसी तरह राज्यों में भी ऐसे आयोगों का गठन किया जाएगा। अगले 6 महीने के भीतर
छोटे बच्चों की शिक्षा पाठ्यक्रम को तैयार कर अधिसूचित करने की योजना है।
विभिन्न शोधों से यह
भी पता चला है कि बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास 0-6 वर्ष की उम्र तक
सबसे ज्यादा होता है। ऐसे में उनकी बेहतर शिक्षा, नैतिकता और अन्य सामाजिक सरोकारों के बारे में
बुनियादी जानकारी अगर इसी उम्र सीमा के दौरान मुहैया करा दी जाए तो इनका सबसे
बेहतर विकास हो सकता है। नई पॉलिसी में इस विषय पर भी विस्तार से दिशा-निर्देश
तैयार किए गए हैं। जैसे, अध्यापकों को अलग-अलग विषयों से
जुड़ी बातें समझाने का तरीका, बच्चों से संवाद करने और उनके
आचरण से जुड़ी बातें और बच्चों की मानसिक प्रवृत्ति का भी विस्तार से ज़िक्र
किया गया है, ताकि बच्चों को सही और सुगम तरीके से
पढ़ाया-सिखाया जा सके।
केन्द्रीय महिला एवं
बाल विकास मंत्रालय को 12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत समेकित बाल विकास सेवाएं
(आईसीडीएस) कार्यक्रम के लिए 2500 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। मंत्रालय ने
नई पॉलिसी के तहत देश के विभिन्न आंगनवाड़ी सेंटरों को बच्चों की किताबों, रिपोर्ट कार्ड पत्र और अन्य
खर्चों के लिए हर महीने 3000 रूपए देने का प्रस्ताव किया है। उम्मीद की जा
सकती है कि इस नई पॉलिसी के लागू होने के बाद 0-6 वर्ष के ज्यादातर बच्चों का
शारीरिक व मानसिक विकास बेहतर ढंग से हो सकेगा।
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