भारत का हस्तशिल्प उद्योग सच्ची भावना
के साथ हमारी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है क्योंकि भारतीयों की जीवन शैली की
झलक उन उत्पादों से मिलती है जो बड़ी सादगी और देशज औजारों के साथ यहां के दस्तकार
बनाते हैं। इन उत्पादों में भारतीय परंपरा और कलात्मक निपुणता समाहित रहती है।
भारतीय हस्तशिल्प उद्योग की परंपरा बहुत व्यापक है क्योंकि यह देश की सांस्कृतिक
विविधता का प्रतिनिधित्व करती है। यह उद्योग वर्षों से रोजगार और विदेशी मुद्रा की
कमाई में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। इतने बड़े उत्पादन के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय
बाजार में इसकी संभावनाएं नहीं तलाशी गई हैं। विश्व के हस्तशिल्प निर्यात उद्योग
में भारत का हिस्सा 2 प्रतिशत से भी कम है। लघु और कुटी उद्योग क्षेत्र शिल्पकारों
की सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं को हल करने में मदद करता है। यह क्षेत्र 60 लाख से
अधिक दस्तकारों को रोजगार उपलब्ध कराता है जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं और
समाज के कमजोर वर्ग के लोग शामिल हैं। उपभोक्ता की बदलती रुचि और रुझानों से यह
क्षेत्र प्रभावित हुआ है।
उत्पादन और निर्यात
भारतीय हस्तशिल्प उद्योग में करीब 5
अरब 60 करोड़ अमरीकी डॉलर का उत्पादन होता है। भारत ने वित्त वर्ष 2012-13 में 3
अरब 30 करोड़ 40 लाख अमरीकी डॉलर के हस्तशिल्प का निर्यात किया। पिछले वर्ष की
तुलना में निर्यात में 22.15 प्रतिशत वृद्धि हुई। 2012-13 के दौरान कुल हस्तशिल्प
निर्यात में से सबसे अधिक योगदान कसीदाकारी और कांटे से बुने गए सामान का योगदान
रहा और इससे करीब 858.08 मिलियन अमरीकी डॉलर की विदेशी आय हासिल हुई। इसके बाद
कृत्रिम मृण्पात्रों को योगदान रहा जिससे 612.17 मिलियन अमरीकी डॉलर की विदेशी मुद्रा हासिल हुई। तीसरे स्थान
पर 506.78 मिलियन अमरीकी डॉलर की विदेशी मुद्रा के साथ विविध हस्तशिप रहे। काष्ठ
मृण्पात्रों से 505.01 मिलियन अमरीकी डॉलर की आय हुई। हस्तशिल्प क्षेत्र देश के 74
लाख लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार देता है। देश में अनुमानित 2 अरब 30 करोड़ अमरीकी
डॉलर के हस्तशिल्प की खपत है।
भारतीय हस्तशिल्प में बहुत अधिक
विविधता है। इनमें बिदरी,
बेंत एवं बांस, कार्पेट, कॉन्च-शेल, कॉयर ट्विस्टिंग, गुड़िया एवं खिलौने, जरी का काम एवं चांदी का काम, लोक चित्रकला, फर्नीचर, घास, पत्ती, रीड एवं फाइबर, सींग
एवं हड्डी, आभूषण, चमड़ा (फुटवीयर), चमड़ा
(अन्य वस्तुएं), धातु मृण्पात्र, धातु छवियां (क्लासिकल), धातु छवियां (फॉक), संगीत उपकरण, मिट्टी की वस्तुएं और भांडकर्म, ग़लीचे और दरियां, पत्थर (नक्काशी), पत्थर (पच्चीकारी), टेराकोटा, थियेटर, वेशभूषा एवं कठपुतली, वस्त्र
(हथकरघा), वस्त्र (हाथ की कसीदाकारी), वस्त्र (हाथ का छापा), लकड़ी (नक्काशी), लकड़ी (पच्चीकारी), लकड़ी (टर्निंग एवं लैकक्वेर वेयर), जरी, विविध शिल्प पेंटिंग्स शामिल हैं।
किसी एक देश की बात करें तो भारत ने
हस्तशिल्प का सबसे अधिक निर्यात अमरीका को किया। 2012-13 में देश के कुल निर्यात
में से 26.29 प्रतिशत संयुक्त राज्य अमरीका को किया गया। ब्रिटेन को 9.57 प्रतिशत
निर्यात किया गया। इसके बाद जर्मनी का स्थान रहा जहां 7.82 प्रतिशत निर्यात किया
गया। फ्रांस को 4.25 प्रतिशत तो इटली को 3.34 प्रतिशत निर्यात किया गया।
नीदरलैंड्स को 2.97 प्रतिशत, कनाडा
को 2.29 प्रतिशत, आस्ट्रेलिया को 1.70 प्रतिशत और जापान
को 1.63 प्रतिशत निर्यात किया गया। अन्य देशों का योगदान 26.61 प्रतिशत रहा।
भारतीय हस्तशिल्प की ताकत
देश में स्थानीय स्तर पर कच्चा माल
अर्थात प्राकृतिक रेशों, बांस, बेंत, सींग, पटसन, चमड़े इत्यादि की अनोखी प्रचुर उपलब्धता
है। यहां की संस्कृति बहुत समृद्ध और विविधतापूर्ण है जो व्यापक एवं विशिष्ट
हस्तशिल्प उपलब्ध कराती है। यहां अनेक कुशल शिल्पी मौजूद हैं। देशज ज्ञान से
प्राप्त कौशल के कारण पारंपरिक हस्तशिल्प का असीम भंडार है। महिलाओं, युवाओं और विकलांगों के रोजगार के लिए
इस क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं। भारत के हस्तशिल्प की उत्पादन लागत कम है।
हस्तशिल्प उद्योग में अवसर
देश के हस्तशिल्प उद्योग में असीम अवसर
विद्यमान हैं। उत्पाद विकास एवं डिजाइन को उन्नत बनाने पर अब अधिक ध्यान दिया जा
रहा है। घरेलू और पारंपरिक बाजार में भारतीय हस्तशिल्प की मांग बढ़ रही है। विकसित देशो
में उपभोक्ता यहां के हस्तशिल्प की सराहना करते हैं और यह रुझान बढ़ता जा रहा है।
सरकार अब इस उद्योग को समर्थन दे रही है और हस्तशिल्प के संरक्षण में दिलचस्पी ले
रही है। लातिन अमरीका, उत्तरी अमरीका और यूरोपीय देशो में
उभरते बाजारों ने इस क्षेत्र में अवसर बढ़ा दिए हैं। हस्तशिल्प के व्यापार में
निष्पक्ष परिपाटियां भी इस क्षेत्र में अवसर बढ़ा रही हैं। भारत में अब ज्यादा
पर्यटक आने लगे हैं जिससे उत्पादों के लिए बड़ा बाजार उपलब्ध हो रहा है।
हस्तशिल्प उद्योग में खामियां
देश के हस्तशिल्प उद्योग में हालांकि
विकास के असीम अवसर मौजूद हैं लेकिन इसमें कुछ खामियां भी हैं जिन्हें तत्काल दूर
करने की जरूरत है। डिजाइन,
नवाचार और प्रौद्योगिकी उन्नयन का अभाव
इस क्षेत्र की बहुत बड़ी कमजोरी है। यह उद्योग अत्यधिक बंटा हुआ है। उत्पादन और
उत्पाद निर्माण प्रणाली अत्यधिक व्यक्तिगत है और समुचित सरंचना का अभाव है। इस
क्षेत्र की रक्षा के लिए सशक्त मुख्य संगठनों का अभाव है। पूंजीकरण बहुत सीमित है
और निवेश भी कम किया जाता है। निर्यात के रुझान, अवसरों एवं कीमतों के बारे में बाजार की जानकारी पर्याप्त नहीं होती।
कर्ज की उपलब्धता बहुत सीमित है। उत्पादन, वितरण
और विपणन के लिए सीमित संसाधन उपलब्ध हैं। उत्पादक समूहों में ई-कॉमर्स दक्षता
सीमित है। पर्याप्त बुनियादी ढांचे की कमी है और आधुनिक प्रौद्योगिकी का अभाव है।
हस्तशिल्प क्षेत्र में विद्यमान खतरे
किसी भी उद्योग में यदि अवसर विद्यमान
होते हैं तो उसमें कुछ कमजोरियां और खतरे भी मौजूद होते हैं। हस्तशिल्प क्षेत्र
में भी अनेक खतरे मौजूद हैं। अनेक राज्य सरकारों की प्राथमिकता वाली योजनाओं में
यह क्षेत्र शामिल नहीं है। एशियन बाजारों से स्पर्द्धा बढ़ती जा रही है। अच्छे
कच्चे माल की आपूर्ति कम होती जा रही है। अन्य देशों में बेहतर क्वालिटी के घटक, फाइंडिंग्स और पैकेजिंग भी इस क्षेत्र
में नई चुनौती पेश कर रही हैं। इस क्षेत्र में क्वालिटी मानकीकरण प्रक्रिया की कमी
है। व्यापक रूप से विकसित अर्थव्यवस्थाओं में इस क्षेत्र में निवेश घटता जा रहा है
और उपभोक्ता परिष्कृत शिल्प को महत्व देने लगे हैं। सांस्थानिक समर्थन का अभाव भी
है। एयर कार्गो और शिपमेंट संबंधी माल ढुलाई की लागत बहुत अधिक है। भारतीय
हस्तशिल्प की बढ़ती लागत बाजारों में इसकी स्पर्द्धा पर बुरा असर डाल रही है।
हस्तशिल्प के प्रमुख केंद्र
देश भर में विविधतापूर्ण हस्तशिल्प का
निर्माण किया जाता है। लेकिन कुछ क्षेत्र अपने विशिष्ट शिल्प के लिए बहुत प्रसिद्ध
हैं। ऐसे ही कुछ क्षेत्रों में शामिल हैं:-
धातु पर शिल्पकारी - मुरादाबाद, संभल, अलीगढ़, जोधपुर, जयपुर, बाड़मेर, दिल्ली, रिवाड़ी, तंजावुर, चेन्नई, मण्डप, बीदर, केरल, जगाधरी और जैसलमेर।
लकड़ी पर शिल्पकला - सहारनपुर, नगीना, जयुपर, जोधपुर, बाड़मेर, होशियारपुर, श्रीनगर, अमृतसर, जगदलपुर, बंगलुरू, मैसूर, चेन्नापटना,
चेन्नई, मण्डप, केरल, बहरामपुर, अहमदाबाद और राजकोट।
हाथ की छपाई वाले वस्त्र - जयुपर, बाड़मेर, बगरू, सांगानेर, जोधपुर, भुज, फर्रुखाबाद और अमरोहा।
कसीदाकारी का सामान - बाड़मेर, जोधपुर, जयुपर, जैसल़मेर, कच्छ-गुजरात, अहमदाबाद, लखनऊ, आगरा, अमृतसर, कुल्लू, धर्मशाला, चम्बा और श्रीनगर।
मार्बल और सॉफ्ट स्टोन शिल्प - आगरा, चेन्नई, बस्तर और जोधपुर।
टेराकोटा ज़री और ज़री का सामान - राजस्थान, चेन्नई, बस्तर, सूरत, बरेली, वाराणसी, अमृतसर, आगरा, जयुपर और बाड़मेर।
फैशन आभूषण - दिल्ली, मुरादाबाद, संभल, जयपुर, कोहिमा (आदिवासी)।
भारतीय हस्तशिल्प बहुत विशाल, व्यापक और विविधतापूर्ण है। इस क्षेत्र
में विकास की असीम संभावनाएं मौजूद हैं। यह क्षेत्र रोजगार करने के मामले में भी
बहुत महत्वपूर्ण है। बड़े पैमाने पर व्यक्तिगत होने के कारण इसे कीमत, फैशन, बाजार की मांग जैसेी जानकारी के अभाव का सामना करना पड़ता है। अन्य
देशों से बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा, सीमित
बाजारों, अपर्याप्त बुनियादी ढांचा और आधुनिक
प्रौद्योगिकी की कमी जैसी चुनौतियों के लिए सरकारी समर्थन के साथ इस क्षेत्र में
जागरूकता बढ़ाने की भी जरूरत है।
भारतीय हस्तशिल्प उद्योग 74 लाख से
अधिक शिल्पकारों को रोजगार उपलब्ध कराता है। इसकी वृद्धि के लिए डिजाइन एवं उत्पाद
के विकास पर ध्यान दिया जा रहा है। एकीकृत और समावेशी समूह के दृष्टिकोण पर अमल
किया जा रहा है। बाजार की मांग के अनुसार उत्पाद डिजाइन किए जा रहे हैं। शिल्प
समूहों में समर्पित बुनियादी ढांचे के विकास पर बल दिया जा रहा है। आजीविका और काम
करने के माहौल को सुधारने के प्रयास किए जा रहे हैं। ब्रैंड निर्माण, भौगोलिक संकेतकों पर ध्यान दिया जा रहा
है। कौशल विकास एवं क्षमता बढ़ाने पर भी बल दिया जा रहा है। कमजोर शिल्पकला के
जीर्णोद्धार की योजना चलाई जा रही है। इस क्षेत्र में ऋण और अच्छा कच्चा माल
उपलब्ध कराने के भी प्रयास किए जा रहे
हैं। संशोधित औजारों की आपूर्ति के जरिए प्रौद्योगिकी उन्नयन और सामान्य सुविधा
केंद्रों की स्थापना की जा रही है। इन सभी उपायों के मद्देनजर यह कहा जा सकता है
कि भारतीय हस्तशिल्प क्षेत्र का भविष्य उज्ज्वल हैं।
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