Q. रीयल एस्टेट क्षेत्र के विनियमन की
ज़रूरत क्यों है ?
Ans.रीयल एस्टेट क्षेत्र देश में आवासीय
और अवसंरचना की ज़रूरत और मांग को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है लेकिन व्यावसायिकता और
मानकीकरण नहीं होने तथा उपभोक्ता को पर्याप्त संरक्षण देने में कमी के कारण यह मुख्य रूप से अनियंत्रित क्षेत्र
रहा है जिसने इस उद्योग की स्वस्थ्ा और व्यवस्थित वृद्धि को अवरूद्ध किया है।
साथ ही इस क्षेत्र के विनियमन पर
विभिन्न मंचों, फोरम तथा मीडियों रिपोर्टों में ज़ोर दिया गया
है। हाल के समय में उपभोक्ता कार्य मंत्रालय, प्रतिस्पर्धा
आयोग तथा टैरिफ आयोग ने भी इसके विनियमन के लिए बार-बार कहा है।
Q. इस विधेयक के सबसे महत्वपूर्ण
प्रावधान क्या हैं?
Ans. प्रस्तावित विधेयक रिहायशी रीयल एस्टेट
यानी आवास तथा कोई अन्य आनुषांगिक आवासीय के स्वतंत्र उपयोग पर लागू होता है।
हालांकि यह समझना जरूरी है कि इस विधेयक के तहत केवल ‘लेन-देन’
यानी
रिहायशी रीयल एस्टेट को खरीदने तथा बेचने के कार्य को ही विनियमित करना है न कि ‘निर्माण
कार्य’ को जो कि राज्यों/यूएलबी का अधिकार है।
इस
विधेयक का उद्देश्य इस क्षेत्र में पारदर्शिता लाना है। इसमें प्रमोटर के
उल्लिखित कामकाज तथा कार्यों के साथ परियोजना की सभी जानकारी को अनिवार्य रूप से
सार्वजनिक करने का प्रावधान है।
इस विधेयक में त्वरित विवाद निवारण व्यवस्था
के लिए रीयल एस्टेट प्राधिकरण और अपीलीय न्यायाधिकरण की स्थापना का प्रावधान
है।
इसके
प्रावधानों में से एक स्पष्ट उत्तरदायित्वों और कामकाजों के साथ रीयल एस्टेट
एजेंटों का रजिस्ट्रेशन करना है जिन पर अभी तक नियंत्रण नहीं था। इससे दो पक्षों
के बीच लेन-देन का प्रमाण मिलेगा तथा मनी लांड्रिंग पर काबू पाया जा सकेगा।
सभी विनियामक विधेयकों के जैसे विधेयक
के प्रावधानों का अनुपालन नहीं करना तथा उसे लागू न करने पर दंडात्मक प्रावधान भी
हैं। दंडात्मक प्रावधानों के तहत परियोजना का रजिस्ट्रेशन रद्द करना तथा
प्राधिकरण या न्यायाधिकरण के आदेशों या विधेयक के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर
जुर्माना लगना भी शामिल है।
Q. कुछ
लोग इसे लोकवादी कदम बता रहे हैं, रीयल एस्टेट के संगठन क्रेडाई
(सीआरईडीएआई) ने कहा है कि प्रस्तावित कानून के ज़रिए केवल डेव्लपर्ज़ को ही
नहीं बल्कि उद्योग के सभी हितधारकों को शासित किया जाना चाहिए ?
Ans. टेलीकॉम, प्रतिभूमि,
बीमा,
बिजली
आदि की तर्ज पर रीयल एस्टेट के क्षेत्र में भी विनियामक की काफी ज़रूरत है। इस
क्षेत्र में विनियामक सूचकांक में भारत का स्थान काफी नीचे है। इसमें घरेलू और
विदेशी निवेश होने पर गतिविधियां बढ़ाने के साथ सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि की
जा सकती थी।
प्रस्तावित विधेयक में इस क्षेत्र में
‘लेन-देन’ को विनियमित किया गया है तथा ‘लेन-देन’
में
शामिल सभी हितधारकों यानी प्रोमोटरों/विक्रेता, आवंटी/खरीदार
तथा रीयल एस्टेट एजेंट को उल्लिखित कामकाज और कार्य के साथ विनियमित किया गया है।
इस विधेयक में ‘निर्माण कार्य’
पर
विनियमन नहीं है। यह राज्यों/यूएलबी का अधिकार है। डेव्लपर्ज़ की मुख्य चिंता
परियोजना संबंधी मंज़ूरी के मामले में एक ही जगह सुविधा की ज़रूरत है। इसके लिए
मेरे मंत्रालय ने एक विशेषज्ञ समिति गठित की है जिसमें उद्योग संगठनों के
प्रतिनिधि भी होंगे जो राज्यों को ऐसी व्यवस्था लागू करने की सिफारिश करेंगे।
जहां तक रीयल एस्टेट विधेयक का सवाल
है इसका दायरा केवल लेन-देन को देखना हैा अत: यह इसमें शामिल सभी पक्षों को
विनियमित करता है।
Q. रीयल एस्टेट नियामक विधेयक के तहत इस
क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही लाना है, लेकिन ऐसा दावा
किया जा रहा है कि संसद में इस विधेयक के पारित हो जाने से कीमतें 30
प्रतिशत तक बढ़ेंगी ?
Ans. यह सच नहीं है और ऐसे अनुमान न जाने
कहां से लगाए गए हैं। विधेयक का उद्देश्य सूचना के आदान-प्रदान के लिए ऑनलाइन व्यवस्था
बनाकर उपभोक्ता का संरक्षण करना है ताकि डेव्लवर्ज़ और खरीदारों के बीच आपसी
विश्वास हो और परियोजनाओं को समय पर लागू किया जा सके।
इस विधेयक के लागू होने से इस क्षेत्र
में गतिविधि बढ़ेगी जिससे बाज़ार में और अधिक आवासीय इकाइयां आएंगी। इससे निवेश के
लिए ज़रूरी विश्वास पैदा होगा तथा बेचे जा रहे घरों की कीमतों में स्थिरता आएगी।
इस विधेयक का उद्देश्य उपभोक्ताओं और
प्रोमोटरों को फायदा पहुंचाने के साथ समग्र रूप से इस क्षेत्र को लाभ पहुंचाना
है।
Q. सरकारी
एजेंसियों से मंज़ूरी मिलने के कारण देरी। केवल रिहायशी परियोजनाओं का ही नियमन क्यों
तथा व्यावसायिक रीयल एस्टेट को इसके तहत क्यों नहीं लाया गया?
Ans. सरकारी एजेंसियों से मंज़ूरी मिलने
के कारण देरी होने के मुद्दे पर आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय सभी राज्यों
को परियोजनाओं की मंज़ूरी के लिए एक ही जगह सुविधा उपलब्ध कराने की व्यवस्था
अपनाने की सलाह दे रहा है जो विधेयक के प्रावधानों में शामिल नहीं है और यह एक अलग
कार्य है।
एक बिंदू जिसे अक्सर छोड दिया जाता है
कि प्रस्तावित विधेयक के तहत केवल रिहायशी रीयल एस्टेट की बिक्री का नियमन होगा
और न कि उसे विकसित करने का। प्रमोटर विकास कार्य करने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन
इस विधेयक के तहत जो प्रावधान है कि वह उसे तभी बेच सकता है जब उसके पास हर तरह से
मंज़ूरी हो और उसने इस विधेयक के तहत विनियामक के पास परियोजना का पंजीकरण कराया
हो।
विधेयक
का दायरा रिहायशी संपत्तियों तक सीमित रखने से विनियामक का इस पर पूरा ध्यान
रहेगा तथा इसमें उपभोक्ताओं की ज़रूरत पर भी गौर किया जाएगा।
Q. जो
परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं या उसमें निर्माण कार्य चल रहा है, 4000 वर्ग
मीटर से कम की परियोजनाओं के लिए विनियामक के पास पंजीकरण कराना अनिवार्य नहीं है।
तो अनेक छोटे डेव्लपर्ज पंजीकरण तथा नियमन के नियंत्रण में नहीं आएंगे?
Ans.
प्रारंभिक मसौदे में 4000 वर्ग मीटर का प्रावधान था जिसे राज्यों
और अन्य हितधारकों के साथ विचार-विमर्श के बाद घटाकर 1000 वर्ग मीटर या 12
अपार्टमेंट कर दिया गया है (जो भी लागू हो)। साथ ही यह विधेयक विशेष रूप से प्रत्याशित
विनियमन होगा।
Q. वास्तविक कार्पेट एरिया का उल्लेख
करना अनिवार्य हो गया है, डेव्लर्ज सुपर बिल्ट एरियों के आधार
पर फ्लैट बेच रहे हैं जिसमें आने-जाने के लिए सामान्य रस्ता, सीढियां
तथा अन्य क्षेत्र शामिल है यानी वास्तविक फ्लैट एरिया से 20-30
प्रतिशत अधिक?
Ans. विधेयक के अनुसार प्रमोटरों को,
बिक्री
के लिए अपार्टमेंट की संख्या कार्पेट एरिया के आधार पर बतानी होगी। कार्पेट एरिया
को परिभाषित किया गया है। खरीदार को मालूम होना चाहिए कि वो वास्तव में किसके लिए
भुगतान कर रहा है और उसे क्या मिल रहा है। सुपर बिल्ट आदि जैसे विषय भ्रमित करने
वाले है और विधेयक का उद्देश्य आवश्यकताओं का मानकीकरण करना है। इससे रीयल एस्टेट में लेन-देन में व्याप्त
विषमताओं में कमी आएगी।
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