सोमवार, 2 सितंबर 2013

राष्‍ट्र के विकास में सड़कों का योगदान

सड़क परिवहन किसी भी राष्‍ट्र की जीवन रेखा मानी जाती है। आसानी से पहुंच संचालन में लचीलापन, घर-घर तक सेवा और विश्‍वसनीयता के कारण सड़क ढांचे का परिवहन प्रणाली में प्रमुख स्‍थान है। आर्थिक विकास के लिए यह महत्‍वपूर्ण है और समावेशी विकास का भी यह महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है। भारत में सड़क परिवहन में काफी विकास हुआ है और यह परिवहन का सबसे बेहतर तरीका बन गया है। यात्रियों की कुल संख्‍या में से 80 प्रतिशत से ज्‍यादा सड़क परिवहन से यात्रा करते हैं और माल की आवा-जाही 60 प्रतिशत से ज्‍यादा सड़क परिवहन से होती है।

सड़क नेटवर्क

भारत में लगभग 46.90 लाख किलोमीटर लंबाई की सड़कों का विशाल नेटवर्क है। भारत में सड़क घनत्‍व इस समय लगभग 1.43 किलोमीटर प्रति वर्ग किलोमीटर है, जो कई देशों से बेहतर है। सड़कों के नेटवर्क के विकास की जिम्‍मेदारी केंद्र सरकार, राज्‍य सरकारों और स्‍थानीय प्रशासन की होती है। राष्‍ट्रीय राजमार्गों की कुल लंबाई 82,803 किलोमीटर है, जो सड़कों के कुल नेटवर्क के दो प्रतिशत से कम है। लेकिन इन मार्गों से कुल सड़क परिवहन का 40 प्रतिशत से अधिक परिवहन होता है। राष्‍ट्रीय राजमार्गों की विकास की जिम्‍मेदारी केंद्र सरकार की है।

किसी भी देश के आर्थिक विकास की पहली जरूरत अच्‍छा और सुचारू परिवहन ढांचा होती है। सरकार की यह हमेशा कोशिश रही है कि वह त्‍वरित, सुरक्षित और कुशल सड़क‍ परिवहन नेटवर्क की व्‍यवस्‍था करे। समझा जाता है कि सड़क अवसंरचना के आधुनिकीकरण से उच्‍च सकल घरेलू उत्‍पाद को बढ़ाया जा सकता है। भारत के परिवहन क्षेत्र का सकल घरेलू उत्‍पाद में लगभग 5.5 प्रतिशत का योगदान है, जिसमें सड़क परिवहन का बड़ा हिस्‍सा है। भारत विश्‍व की तेजी से उभरती अर्थव्‍यवस्‍था के रूप में सामने आया है। विशेषज्ञों के अनुसार भारत अपनी पूरी क्षमता से तभी विकास कर सकेगा, जब बुनियादी ढांचा सुविधाओं में सुधार हो, जो इस समय बढ़ रही अर्थव्‍यवस्‍था की आवश्‍यकता के अनुरूप नहीं है। देश के आर्थिक और सामाजिक विकास की आवश्‍यकता के अनुरूप एक विशाल सड़क विकास कार्यक्रम की शुरूआत की गई है।

राष्‍ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना

राष्‍ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना कम विकसित क्षेत्रों के विकास के लिए एक फ्लैगशिप कार्यक्रम है। समर्पित क्षेत्रीय कार्यक्रमों जैसे पूर्वोत्‍तर के लिए विशेष त्‍वरित सड़क विकास कार्यक्रम और नक्‍सलवाद से प्रभावित क्षेत्रों के लिए विशेष कार्यक्रम शुरू किये गये हैं। अब देश में एक्‍सप्रेस-वे बनाने की योजना है। चालू वित्‍त वर्ष में तीन परियोजनाएं-राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पूर्वी सीमावर्ती एक्‍सप्रेस-वे, मेरठ एक्‍सप्रेस-वे और लगभग छह सौ 50 किलोमीटर लंबा मुंबई-वडोदरा एक्‍सप्रेस-वे शुरू करने की योजना है। बंगलुरू-चेन्‍न्‍ई और दिल्‍लीजयपुर एक्‍सप्रेस-वे मार्गों का निर्माण भी प्रगति पर है। ये सभी एक्‍सप्रेस-वे मार्ग हरित परियोजनाएं हैं।

धनराशि की विशाल आवश्‍यकता को पूरा करने के लिए वित्‍त-पोषण और वित्‍तीय नीतियों के नए तरीकों जैसे ईंधन पर उप-शुल्‍क, विदेशी निवेश सहित निजी क्षेत्र की भागीदारी, बाजार से ऋण तथा बजट में व्‍यवस्‍था जैसे नए तरीके अपनाये गए हैं। इनमें एक बड़ा कदम सरकार-निजी क्षेत्र भागीदारी के जरिए विदेशी तथा घरेलू निवेश को आकर्षित करना है। निजी क्षेत्र में भागीदारी से आधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्‍तेमाल बढ़ेगा, जिससे कार्य कुशलता बढ़ेगी। निजी क्षेत्र में खरीद के लिए और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में अधिक लचीली व्‍यवस्‍था है। इसलिए योजनाओं को तेजी से पूरा किया जा सकेगा। निजी क्षेत्र से पूंजी जुटाने के कारण सरकार के लिए अपने सीमित संसाधनों को अधिक कुशलता और कारगर ढंग से इस्‍तेमाल करने का मार्ग प्रशस्‍त हो गया है। सड़क निर्माण में कई नई प्रकार की सामग्री भी आ रही है, इसकी कम लागत को ध्‍यान में रखते हुए इसे बढ़ावा देना होगा।

देश में राष्‍ट्रीय राजमार्गों के विकास के लिए 12वीं पंचवर्षीय योजना में बजट में 1,44,769 करोड़ रूपये की व्‍यवस्‍था रखी गई है, 64,834 करोड़ रूपये आईईबीआर से और 1,87,995 करोड़ रूपये निजी क्षेत्र की भागीदारी से जुटाये जाएंगे।

राष्‍ट्रीय राजमार्गों के विकास के लिए देश में राष्‍ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम की 1998 में शुरूआत की गई थी, जो सड़क विकास की अब तक की सबसे बड़ी परियोजना है। इस कार्यक्रम का उद्देश्‍य लगभग 50 हजार किलोमीटर लंबाई के राजमार्गों का निर्माण करना है। चार महानगरों के बीच चार लेन वाले राजमार्ग की कंनेक्‍टीविटी वाली स्‍वर्ण चतुर्भुज परियोजना पूरी हो गई है, जबकि उत्‍तर-दक्षिण-पूर्व-पश्चिम कॉरीडोर परियोजना पूरी होने वाली है। भूमि अधिग्रहण की रूकावटों, पर्यावरण और वन संबंधी आपत्तियों और उच्‍च लागत वाले ऋण आदि बाधाओं के बावजूद कई स्‍थानों पर राजमार्गों को चार लेन और छह लेन का करने का कार्य प्रगति पर है। अब तक 21 हजार किलोमीटर से अधिक मार्ग पर काम पूरा हो चुका है और लगभग 12,350 किलोमीटर मार्ग पर काम चल रहा है। अन्‍य फ्लैगशिप क्षेत्रीय कार्यक्रमों में एसएआरडी-एनए और नक्‍सवाद प्रभावित क्षेत्र में लगभग 12 हजार किलोमीटर लंबाई की सड़कें बनाने के कार्यक्रम हैं, जिनमें से लगभग 3800 किलोमीटर लंबी सड़कें बनाई जा चुकी हैं।

परियोजना की प्रणाली

अधिक से अधिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को सरकार-निजी क्षेत्र की भागीदारी से निर्माण-संचालन-हस्‍तांतरण (बीओटी) आधार पर पूरा करने पर जोर दिया गया है, ताकि स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा आदि जैसे सामाजिक क्षेत्रों के लिए अधिक से अधिक सार्वजनिक धन उपलब्‍ध रहे। लेकिन व्‍यावहारिक रूप से अधिकतर परियोजनाओं को बीओटी प्रणाली से बनाना संभव नहीं होगा। हाल में जो बोलियां हुईं हैं, उनके रूझान से पता चलता है कि अधिकतर सड़क परियोजनाओं के लिए अनुकूल बोलियां नहीं मिली हैं। इसलिए हाल में मंत्रालय ने सड़क परियोजनाओं को टर्न-की इंजीनियरिंग प्रोक्‍योरमेंट कनसट्रक्शन (ईपीसी) अनुबंध आधार पर पूरा करने का फैसला किया है। इससे निर्माण में कम समय लगेगा और कार्य की गुणवत्‍ता भी बेहतर होगी। इसमें एक लाभ यह है कि निजी क्षेत्र की कार्यकुशलता भी बरकरार रहेगी और निजी उद्यमी अपने काम को तेजी से पूरा करने के लिए नई टेक्‍नोलॉजी का भी इस्‍तेमाल कर सकेंगे।

नई पहल

ई-टॉलिंग:  इस समय टॉल-प्‍लाजा की जो प्रणाली चल रही है, उसका अनुभव यह है कि प्‍लाजा पर वाहनों की काफी भीड़ हो जाती है और देरी भी होती है। इससे पार पाने के लिए सरकार ने देश भर में राष्‍ट्रीय राजमार्गों पर इलेक्‍ट्रोनिक टॉल-कलेक्‍शन (ईटीसी) प्रणाली अपनाने का फैसला किया है। इसके जरिए टॉल-प्‍लाजा पर चलते वाहनों से इलेक्‍ट्रोनिक तरीके से टॉल-शुल्‍क प्राप्‍त किया जा सकेगा। इस सिलसिले में प्रायोगिक परियोजनाएं हो चुकी हैं। इससे 2014 तक राष्‍ट्रीय राजमार्गों के हर टॉल-प्‍लाजा पर ईटीसी प्रणाली लागू करने का मार्ग प्रशस्‍त हो गया है।

नई सामग्री :  इतने विशाल कार्यक्रम के लिए धन की व्‍यवस्‍था के अलावा बड़ी मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों की भी आवश्‍यकता है। इसलिए निर्माण सामग्री का संरक्षण एक और महत्‍वपूर्ण विषय है। देश में राजमार्गों के निर्माण के विशाल कार्यक्रम को देखते हुए सीमित मात्रा में उपलब्‍ध संसाधनों जैसे रेत, मिट्टी, रोडी, सीमेंट, बिटुमेन आदि को बचाने की आवश्‍यकता है। दूसरी ओर देश के सामने औद्योगिकी कचरे-फ्लाईऐश, तांबे की छीजन, संगमरमर चूरे का गारा आदि जैसे औद्योगिक कचरे को रखने और निपटाने की समस्‍या है। इस बात की कोशिश की जा रही है कि सड़कों के निर्माण में इस्‍तेमाल की जा रही सामग्री के स्‍थान पर इन बेकार पदार्थों का इस्‍तेमाल किया जाए।


दुर्घटना पीडि़त लोगों का बिना भुगतान किये उपचार (सड़क सुरक्षा की पहल) : भारत में सड़क दुर्घटनाओं में हताहतों की संख्‍या सबसे अधिक होती है। वर्ष 2011 में लगभग पांच लाख सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 1.42 लाख से ज्‍यादा लोगों की मौत हुई। हर रोज़ लगभग 390 लोग हमारे देश में सड़क दुर्घटनाओं में मरते हैं। सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों में आधे से ज्‍यादा 20-65 वर्ष में उम्र के होते हैं। घर के कमाऊ सदस्‍य की मौत या विकलांगता से घर में गरीबी आती है और रहन-सहन का स्‍तर बिगड़ जाता है। इसके अलावा घर के सदस्‍य के मरने का दु:ख अलग होता है। बाहर सड़क पर निकलने की इतनी कीमत नहीं दी जा सकती। मंत्रालय ने इस संबंध में बहुसूत्री नीति अपनाई है। इस दिशा में पिछले दिनों एक दुर्घटना पीडि़त लोगों का बिना भुगतान किये उपचार की प्रायोगिक परियोजना शुरू की है, जो दुर्घटना के पहले 48 घंटों में उपयोगी है। इस योजना के अंतर्गत दुर्घटना के शिकार व्‍यक्ति को इन 48 घंटों के दौरान तुरंत नि:शुल्‍क उपचार उपलब्‍ध कराया जाएगा। इससे सड़क दुर्घटना में मरने वालों की संख्‍या में कमी आएगी।


PIB

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