साक्षरता
एक मानव अधिकार है, सशक्तिकरण का मार्ग है और समाज तथा व्यक्ति के
विकास का साधन है। शिक्षा के अवसर साक्षरता पर निर्भर करते हैं। गरीबी उन्मूलन के
लिए, बाल मृत्युदर को कम करने के लिए, जनसंख्या
वृद्धि को नियंत्रण में रखने के लिए, स्त्री-पुरुष में समानता को बढ़ावा
देने के लिए तथा सतत विकास, शांति और लोकतंत्र की सुनिश्चितता के
लिए साक्षरता आवश्यक है।
1966 से
8 सितंबर का दिन अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस के रूप में मनाया जाता
है। इसका उद्देश्य व्यक्तियों, समुदायों और समाजों में साक्षरता में
महत्व का प्रचार करना है। इस वर्ष का अंतर्राष्ट्रीय दिवस ''21वीं
शताब्दी के लिए साक्षरता'' को समर्पित है। इसका उद्देश्य सभी के
लिए बुनियादी साक्षरता कौशलों की आवश्यकता तथा सभी को अधिक उन्नत साक्षरता
कौशलों में प्रशिक्षण देना है, ताकि वे जीवन पर्यन्त शिक्षा ग्रहण कर
सकें।
हमारी
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा की भूमिका और महत्व को दर्शाया गया है और वह
आज भी प्रासंगिक है। इसमें कहा गया है कि शिक्षा सभी के लिए जरूरी है और हमारे
चहुंमुखी विकास का मूल आधार है। शिक्षा से अर्थव्यवस्था के विभिन्न स्तरों के
लिए मानव शक्ति को विकसित किया जाता है और यह एक ऐसा मंच है, जिससे
अनुसंधान और विकास आगे बढ़ता है, जो राष्ट्र को स्वावलंबन की दिशा में
ले जाता है। सारांश में शिक्षा, वर्तमान और भविष्य के लिए एक अद्वितीय
निवेश है।
पिछले
एक दशक में भारत में साक्षरता की दर काफी बढ़ी है। विशेष रूप से गांवों में
नि:शुल्क शिक्षा लागू होने के बाद हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में साक्षरता की दर
काफी ज्यादा हो गई है। भारत जैसे देश में सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए
साक्षरता मूल आधार है। 1947 में भारत में ब्रिटिश शासन की समाप्ति
के समय साक्षरता दर केवल 12 प्रतिशत थी। उसके बाद के वर्षों में
भारत में सामाजिक, आर्थिक और वैश्विक दृष्टि से बदलाव आया है। 2011 की
जनगणना के अनुसार भारत में साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत पाई
गई। हालांकि कि यह बहुत बड़ी उपलब्धि है, लेकिन यह चिंता की बात है कि अभी भी
भारत में इतने ज्यादा लोग पढ़ना-लिखना नहीं जानते। जिन बच्चों को शिक्षा नहीं
मिली है, विशेष रूप से ग्रामीण इलाक़ों में, उनकी संख्या
बहुत ज्यादा है। हालांकि सरकार ने कानून बनाया है कि 14 वर्ष से कम
उम्र के हर बच्चे को नि:शुल्क शिक्षा मिलनी चाहिए, फिर भी
निरक्षरता की समस्या बनी हुई है।
अगर
हम भारत में महिला साक्षरता की दर को देखें, तो यह पुरुष
साक्षरता दर से कम बैठती है क्योंकि माता-पिता अपनी लड़कियों को स्कूल जाने की
अनुमति नहीं देते, बल्कि छोटी उम्र में ही उनकी शादी कर दी जाती
है। हालांकि बाल-विवाह की उम्र काफी कम कर दी गई है, लेकिन फिर भी
बाल-विवाह होते है। जनगणना 2011 की साक्षरता दर के अनुसार आज महिलाओं
में साक्षरता दर 65.46 प्रतिशत है और पुरुषों में साक्षरता दर 80
प्रतिशत से अधिक है। भारत में साक्षरता दर हमेशा चिंता का विषय रही है, लेकिन
बड़ी संख्या में स्वयंसेवी संगठनों के प्रयासों और सरकार के विज्ञापनों, अभियानों
और अन्य कार्यक्रमों से लोगों में साक्षरता के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा
की जा रही है। सरकार ने महिलाओं के समान अधिकारों के लिए भी कड़े नियम बनाएं है।
पिछले
10 वर्षों में भारत में साक्षरता दर में पर्याप्त वृद्धि हुई है। केरल
भारत का एक मात्र राज्य है, जहां साक्षरता दर 100
प्रतिशत है। उसके बाद गोवा, त्रिपुरा, मिजोरम, हिमाचल
प्रदेश, महाराष्ट्र और सिक्किम का स्थान आता है। भारत में सबसे कम साक्षरता
दर बिहार में है। साक्षरता के महत्व को समझते हुए भारत सरकार के विद्यालय शिक्षा
और साक्षरता विभाग ने कई उपाय किए हैं, जैसे प्रारंभिक स्तर पर सभी बच्चों
को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना, शिक्षा के राष्ट्रीय
और समग्र स्वरूप को लागू करने के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ
भागीदार बनना, गुणवत्तापूर्ण विद्यालय शिक्षा और साक्षरता की
सहायता से संवैधानिक मूल्यों के प्रति समर्पित समाज का निर्माण करना, गुणवत्तापूर्ण
माध्यमिक शिक्षा के लिए सभी को अवसर उपलब्ध कराना तथा पूर्णरूप से साक्षर समाज
का निर्माण करना।
वर्ष
2010 में जब बच्चों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का कानून 2009
लागू हुआ, तो यह देश के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी। सभी के लिए प्रारंभिक
शिक्षा की दिशा में देश के प्रयासों को इस कानून के लागू होने से जबर्दस्त बढ़ावा
मिला। इस कानून के उद्देश्यों को केंद्र सरकार के निम्नलिखित कार्यक्रमों के
माध्यम से प्राप्त किया जा रहा है:
·
प्राथमिक स्तर पर सर्वशिक्षा अभियान
और दोपहर का भोजन
·
माध्यमिक स्तर पर राष्ट्रीय माध्यमिक
शिक्षा अभियान और मॉडल स्कूल
·
व्यावसायिक शिक्षा, छात्राओं
के लिए होस्टल और विकलांगों के लिए समावेशी शिक्षा
·
प्रौढ़ शिक्षा के लिए साक्षर भारत
कार्यक्रम
·
महिला शिक्षा के लिए महिला समाख्या
·
अल्पसंख्यक संस्थाओं का ढाँचागत
विकास, अल्पसंख्यकों की शिक्षा के लिए मदरसों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा
प्रदान करने की योजना
एक
अच्छी गुणवत्तापूर्ण बुनियादी शिक्षा से बच्चों में जीवन के लिए और आगे की
शिक्षा प्राप्त करने के लिए साक्षरता कौशलों का विकास होता है, साक्षर
माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को स्कूल भेजे जाने की अधिक संभावना होती है,
साक्षर
व्यक्ति आगे की शिक्षा के अवसरों का लाभ उठाने के योग्य हो जाता है और साक्षर
समाज चुनौतियों का सामना करने के लिए बेहतर ढंग से तैयार होता है।
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