तेजी
से हो रहे औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के साथ-साथ प्रति व्यक्ति को उपलब्ध पेयजल की
लगातार गिरती मात्रा के कारण देश में उपलब्ध जल-संसाधन पर दबाव बढता ही जा रहा है।
देश में विभिन्न प्रयोगों के लिए जल की आवश्यकता और उपलब्धता के आकलन के लिए बनी
स्थायी उप-समिति की रिपोर्ट के अनुसार देश में विभिन्न भागों के लिए वर्ष 2025 तक
1093 बीसीएम और 2050 तक 1447 बीसीएम जल की
आवश्य़कता होगी। पेयजल की उपलब्धता और इसकी मांग के बीच बढते अंतर से जल संरक्षण की
आवश्यकता महसूस की जा सकती है। इसके साथ ही पानी का सभी रूपों में किफायती इस्तेमाल
और इसके एक दुर्लभ संसाधन होने संबधी जागरूकता को बढाने की आवश्यकता है।
प्रति
व्यक्ति पानी की उपलब्धता तेजी से घटने के बीच सरकार ने वर्ष 2013 को
जल संरक्षण वर्ष घोषित किया। इसके
अंतर्गत आम जनता विशेष रूप से बच्चों के बीच जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
जल
संरक्षण राष्ट्रीय जल मिशन के प्रमुख उद्देश्यों में एक है और यह जलवायु
परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के अंतर्गत 8 राष्ट्रीय
मिशनों में से एक है। इसके अंतर्गत एकीकृत जल संसाधन विकास और प्रबंधन के द्वारा
राज्यों और राज्यों से बाहर भी संरक्षण, नुकसान को कम करना और सभी के बीच समान
वितरण की परिकल्पना की गई है। जल संरक्षण की आवश्यकता न सिर्फ तेजी से खत्म हो
रहे देश के पर्यावरण प्रणाली को बचाने के लिए है बल्कि निकट भविष्य में पीने और
घरेलू उपयोग के लिए पानी की अपरिहार्य आपात कमी को दूर करने के लिए भी है।
·
जल एक सीमित संसाधन है और इसे बदला या
दोहराया नहीं जा सकता है।
·
जल संसाधनों को नवीनीकरण किया जा सकता
है लेकिन नवीनीकरण सिर्फ मात्रा का हो सकता है। प्रदूषण, मिलावट, जलवायु
परिवर्तन, अस्थायी और मौसम अंतर पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं और
पुन: प्रयोग किये जाने वाले पानी की मात्रा को कम कर देते हैं।
·
पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का 2.7
प्रतिशत जल ही स्वच्छ हैं।
·
भूमिगत जल का स्तर तेजी से घट रहा है।
·
शहरी क्षेत्रों में जल संसाधन अपना कर
पानी की मांग को एक-तिहाई तक कम किया जा सकता है और इसके साथ भू-जल और धरातल पर
उपलब्ध जल संसाधनों के प्रदूषित होने को कम किया जा सकता है।
जल
संरक्षण के लिए कार्य योजना
धरातल
पर उपलब्ध जल संसाधनों का संरक्षण
बारिश
के दौरान छतों पर उपलब्ध पानी को संभावित भंडारण जगहों पर संरक्षित करने और इसका
पूर्ण प्रयोग करने के प्रयास किये जाने चाहिए। नये भंडारण स्थान बनाने के साथ-साथ
पुरानी टंकियों की मरम्मत और इन से रेत हटाने का काम किया जाना चाहिए। परंपरागत
जल भंडारण तकनीकों और ढांचों पुन: प्रयोग में लाये जाने के प्रयासों को वरीयता की
जानी चाहिए।
भू-जल
संसाधनों का संरक्षण
भू-जल
जल विज्ञान प्रणाली का एक महत्वपूर्ण भाग है। यह पहाड़ी क्षेत्रों में गर्मियों
में और मैदानी क्षेत्रों में वर्षा समाप्त होने के समय में नदियों के प्रवाह में
मदद करता है।
जल
की गुणवत्ता
शहरीकरण
और औद्योगिकीकरण के कारण देश के कुछ हिस्सों
में तेजी से बढ़ रही जनसंख्या से भूमि के ऊपर और भू-जल संसाधनों की गुणवत्ता पर
प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। जहां एक ओर पानी की मांग बढ़ रही है, वहीं
दूसरी ओर प्रदूषण और मिलावट के कारण उपयोग किये जाने जल संसाधनों की गुणवत्ता
तेजी से घट रही है। इसलिए वर्तमान में सतह पर उपलब्ध और भू-जल संसाधनों को
प्रदूषण और मिलावट से बचाना जल संरक्षण का एक अहम भाग है।
जल
संरक्षण के लिए कार्य-बिन्दू
जल
संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण भागों में पानी के नुकसान को कम करना और पानी का
प्रयोग कुशलतापूर्वक करना शामिल है। विभिन्न क्षेत्रों में जल संरक्षण के लिए
कार्य-बिन्दू निम्नलिखित है:-
सिंचाई
क्षेत्र
·
सिंचाई प्रणाली और पानी के उपयोग की
कार्य क्षमता में सुधार:
·
सही और समयानुसार उपकरणों की मरम्मत
·
क्षतिग्रस्त और गाद से भरी नहरों की
मरम्मत करना
·
जल बचाने वाली कम लागत की तकनीकों को
अपनाना
·
वर्तमान में चल रही सिंचाई प्रणालियों
का आधुनिकीकरण और पुनरुद्धार करना
·
पानी की उपलब्धता में परिवर्तन होने
पर फसलों की बुवाई में फेरबदल करना
·
सिंचाई के लिए अधिक जल का उपयोग करने
से होने वाले परिणामों से किसानों को प्रशिक्षित करना
·
रात में सिंचाई कर पानी के भाप बन कर
उड़ने से होने वाले नुकसान को कम करना
·
भूमि का उपजाऊपन और कीड़ों पर
प्राकृतिक रूप से नियंत्रण रखने के लिए फसलों को अदला-बदली कर बोना
·
नहरों के टुटने और उनकी मरम्मत करने
के साथ-साथ अचानक हुई बारिश के बाद संबंधित क्षेत्रों में जल वितरण रोकने के लिए
आधुनिक, प्रभावी और भरोसेमंद संचार प्रणाली की स्थापना करना
·
यह देखा गया है कि खेती में सड़ी गली
घास के वैज्ञानिक प्रयोग से जमीन में नमी बनाये रखने को 50 प्रतिशत तक
बढ़ाया जा सकता है, जिससे पैदावार में 75 प्रतिशत तक की
वृद्धि हो सकती है।
घरेलू
और नगर निगम क्षेत्र में जल संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण कार्य बिन्दू निम्नलिखित
है:-
·
पानी के वितरण के दौरान होने वाले
नुकसान में कमी लाने के प्रयास करना
·
मांग के अनुरूप पानी का वितरण मीटरों
के द्वारा प्रबंधित करना
·
वितरण प्रणाली को दीर्घकालिक और नुकसान
को कम करने के लिए आवश्यकता अनुसार शुल्क
लगाना
·
बगीचे में पानी प्रयोग करने और शौचालय
आदि में प्रयोग हो रहे पानी के दुबारा इस्तेमाल करने की संभावना का पता लगाना
औद्योगिक
क्षेत्र
·
पानी का इस्तेमाल सावधानी पूर्वक करने
के लिए नियम बनाना
·
पानी की आवश्यकता को कम करने के लिए
औद्योगिक प्रणाली का आधुनिकीकरण करना
·
औद्योगिक आवश्यकताओं के लिए पानी की
जरूरत को उचित मूल्य द्वारा नियंत्रित करना ताकि जल संरक्षण को बढ़ावा दिया जा
सके
जल
संरक्षण के लिए नियामक प्रणाली
भू-जल
एक ऐसा स्रोत है जिसका कोई मूल्य नहीं लगाया जा सकता। केवल भू-जल एकत्र करने के
लिए बनाई गई प्रणाली ही एक मात्र निवेश होता है। कई क्षेत्रों में बिना रोकथाम के
पानी निकालने से भू-जल के स्तर में गिरावट आती है। भू-जल के नियंत्रित प्रयोग के
लिए इसका वितरण प्रबंधन करना बहुत महत्वपूर्ण है।
·
शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पानी के
मूल्य में राशनिंग करना। औद्योगिक क्षेत्रों के लिए भूमिगत जल के प्रयोग करने पर
अधिक शुल्क लगाना
·
वर्षा जल के संचयन के लिए प्रोत्साहन
देना
·
शहरी क्षेत्रों में वर्षा जल के संचयन
को प्रोत्साहन देने के लिए भवन निर्माण संबंधी कानूनो में बदलाव करना ताकि इसे
अनिवार्य रूप से लागू किया जा सके
जल
संरक्षण एक महत्वपूर्ण चुनौती है। देश में जल संरक्षण के लिए कई प्रकार की
प्रणाली उपलब्ध है। जहां एक ओर वैज्ञानिक इस क्षेत्र में नयी तकनीकों को विकसित कर
रहे हैं वहीं इनके प्रयोग में कमी साफ देखी जा सकती है। इस अंतर को दूर करने की
आवश्यकता है। सिंचाई, औद्योगिक और घरेलू जल वितरण प्रणालियों में
संचालन और मरम्मत सही रूप से नहीं होने के कारण बड़ी मात्रा में जल का नुकसान होता
है, इसलिए इन कमियों को दूर करने की आवश्यकता है।
जल
संसाधानों का विकास करने के लिए परंपरागत तकनीकों का आधुनिक संसाधन तकनीकों के साथ
विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग करने की आवश्यकता है।
जल
संरक्षण करने के लिए सिंचाई, घरेलू और औद्योगिक क्षेत्र में इसके
उपयोग कर्ताओं को जागरूक करने की आवश्यकता है। इस दिशा में विशेष ध्यान दिया जाए
ताकि इस अभियान का लाभ बच्चों, गृहणियों एवं किसानों तक प्रभावी ढंग
से पहुंच सके।
(पसूका)
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