दिल्ली में सोलह दिसंबर को हुए
सामूहिक बलात्कार कांड ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था। विचलित करने वाला एक
पहलू यह भी रहा कि मुजरिमों में एक नाबालिग था। इस पर जहां किशोरों में बढ़ती
अपराध-प्रवृत्ति को लेकर सामाजिक नजरिए से चर्चा शुरू हुई, वहीं यह मुद्दा भी उठता रहा कि क्या
जघन्य अपराधों के मामलों में भी किशोर न्याय कानून लागू होना चाहिए? यह अच्छी बात है कि महिला एवं बाल विकास
मंत्रालय इस कानून में बदलाव के बारे में सोच रहा है। इस बहुचर्चित मामले में
नाबालिग अभियुक्त को छोड़ कर बाकी अभियुक्तों की बाबत अदालत ने मृत्युदंड का फैसला
सुनाया। नाबालिग मुजरिम के खिलाफ मुकदमा अलग से चला और उसे तीन साल के लिए
सुधार-गृह में भेज दिया गया। मौजूदा कानूनों के तहत इससे अधिक सजा उसे नहीं दी जा
सकती थी। अदालत का फैसला आने के बाद अपराध और उम्र को लेकर चली बहस और तेज हुई है।
इसलिए भी कि किसी किशोर के सामूहिक बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में शामिल होने का
यह अकेला मामला नहीं है।
मुंबई में शक्ति मिल्स और हाल में
गुवाहाटी में हुई सामूहिक बलात्कार की घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि इनमें
किशोरों के लिप्त होने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इस तरह के और भी उदाहरण दिए जा
सकते हैं। सोलह दिसंबर कांड के बाद पैदा हुए जनाक्रोश के दबाव में सरकार ने
यौनहिंसा से संबंधित कानूनों की समीक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य
न्यायाधीश जेएस वर्मा की अध्यक्षता में समिति गठित की। समिति की सिफारिशों के आधार
पर पहले अध्यादेश जारी हुआ और फिर एक विधेयक के जरिए उन संशोधनों पर संसद की भी
मुहर लग गई। लेकिन किशोर न्याय कानून अब भी वैसा ही है जैसा एक जमाने से चला आ रहा
है। अगर इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया तो अठारह साल से कम उम्र के आरोपी ने कितना
भी संगीन जुर्म किया हो, उसे
तीन
साल सुधार-गृह में रखने से ज्यादा सजा
नहीं होगी। सुधार-गृहों का रिकार्ड बताता है कि वहां रखे जाने वाले अधिकतर किशोरों
में कोई सुधार नहीं आ पाता; उनके फिर से अपराध की ओर उन्मुख होने की आशंका बनी रहती है। इन सब
कारणों से किशोर न्याय कानून में बदलाव जरूरी हो गया है।
यों दुनिया भर में वयस्कों और अवयस्कों
के लिए अपराध दंड संहिता अलग-अलग है। किशोरों के लिए कहीं भी मृत्युदंड का
प्रावधान नहीं है। पर कई विकसित देशों में अपराध की प्रकृति को ध्यान में रख कर ही
किशोर न्याय कानून लागू किया जाता है। नाबालिग अगर हत्या, सामूहिक बलात्कार जैसे चरम अपराध में
शामिल हो तो उसके साथ कोई रियायत नहीं बरती जाती। ऐसे मामलों में इन देशों ने
नाबालिग माने जाने की उम्र एक-दो साल कम रखी है। भारत में भी यह किया जा सकता है
कि जघन्य अपराधों के मामलों में अठारह साल का प्रावधान छोड़ कर सोलह साल या उससे
ऊपर के आरोपियों पर सामान्य कानूनों के तहत मुकदमा चले। खबर है कि महिला एवं बाल
विकास मंत्रालय ने अब तक विशेषज्ञों से जो सलाह-मशविरा किया है उसमें भी यही राय
उभर कर आई है। इसलिए सरकार को इस दिशा में पहल करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए।
ड्राइविंग लाइसेंस के लिए अठारह साल का होने की शर्त है। इसे भी घटा कर सोलह साल
किया जा सकता है। एक समय मतदाता होने के लिए न्यूनतम इक्कीस वर्ष का होना अनिवार्य
था। इस तर्क पर कि अब शिक्षा और तकनीक आदि के प्रसार जैसे अनेक कारणों से जागरूकता
और समझदारी और पहले आ जाती है, मतदान की उम्र घटा कर अठारह साल कर दी गई। दूसरे कई मामलों में भी
उम्र संबंधी प्रावधान पर पुनर्विचार की जरूरत है।
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