गुरुवार, 7 नवंबर 2013

भारत से प्रतिभा का पलायन

प्रतिवर्ष भारत से एक लाख के करीब युवा अमेरिका की ओर प्रस्थान करते हैं, ताकि वहां के कार्यों को संभाल सकें। इनमें से कई अति उच्च कौशल वाले प्रतिभाशाली लोग होते हैं जो आई.आई.टी, आई.आई.एम. अथवा एम्स जैसे चोटी के शैक्षणिक तथा शोध संस्थानों में पढ़ चुके हैं। ऐसे संस्थानों में, पहले तो प्रवेश पाना ही कितना कठिन है इसे हम सब जानते हैं, और फिर उच्चतर अंक पाकर सफलतापूर्वक वहां के कोर्स पूरे करना, वहां से व्यावहारिक अनुभव लेना (जिसमें वहां की मूल्यवान अधोसंरचना का फायदा उठाना भी आता है), और फिर उस सारी योग्यता का लाभ किसी और ही देश के लोगों को पहुंचाना- यह देखने-सुनने में कष्टकारी लगता है।

भारत में विज्ञान संबंधी नीतियों के प्रभारी डॉ. आर.ए. मशेलकर कहते हैं कि ऐसे लोगों का चला जाना, उनकी योग्यता से लोगों को वंचित रखना तो है ही, साथ ही, वे जो उस विषयक उत्पादन बढ़ाने में सहायता करते अथवा उद्योगों को या भेषजीय क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाते, उसका मूल्य कहीं अधिक है, चूंकि ऐसे प्रतिभाशाली लोग पूरे देश में बहुत ही विरले होते हैं और एक इंजिन के समान, अपने क्षेत्र में क्रियाकलाप को गति प्रदान करते हैं। वैसे, प्रतिभा पलायन एक विश्वव्यापी समस्या है, जिससे चीन, ताईवान, कोरिया आदि, कई देश जूझ रहे हैं। इनमें से कुछ ने अमेरिका, यूरोप आदि से प्रतिभाओं को वापस बुलाने के लिए कुछ प्रयास भी किए हैं, जिनमें अफ्रीका ने एक अन्तरराष्ट्रीय संस्था बनाई है। इसके प्रयासों से पिछले 20 वर्षों में 100 व्यक्ति प्रतिवर्ष स्वदेश लौटे। ताइवान ने एक राष्ट्रीय युवा आयोग बनाया है। कोरिया ने अपने यहां की अनुसंधान प्रणाली को चुस्त-दुरुस्त बनाया है तथा उसका पुर्ननवीनीकरण किया है, तथा अपने यहां के वेतनों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले गए हैं।

जाने वाले अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, जापान आदि जाने को क्यों उत्सुक होते हैं? इसका उत्तर कुछ लोगों ने इस प्रकार दिया है, कि जैसे माइकेल एंजेलो को अपने चित्र बनाने के हुनर का प्रदर्शन करने के लिए एक दीवार चाहिए थी, उसी प्रकार इन लोगों को वहां वे अवसर और परिस्थितियां मिलती हैं, जिनके कारण वे निर्बाध रूप से अपना काम कर सकते हैं। आधारभूत संरचना मजबूत होने के कारण, बिजली गुल होना, सड़कें जाम होना, समय पर आवश्यक उपकरण, राशि या सामग्री न मिलना- ऐसी चीजें वहां नहीं होतीं। वैसे यह तो मानना होगा कि वहां सामान्य कर्मचारी में कर्तव्यबोध हमसे कहीं यादा है। यदि प्रोफेसर 30 मिनिट के लिए भी अपने कमरे से बाहर जा रहा है तो वह कमरे के बाहर स्लिप चिपका कर जाता है कि मैं इतने समय तक वापस आ जाऊंगा। और निश्चित है कि वह आ भी जाएगा। मौसम की यादतियों को भी वहां आसानी से झेली जाने लायक व्यवस्था मौजूद है। दूसरा बड़ा कारण पलायन है। वहां की बड़ी-बड़ी तनख्वाहों की उपलब्धता। यह सामान्य अनुभव है कि वहां- यहां से 4 गुना वेतन मिलता है (यद्यपि वे लोग दोगुना काम भी लेते हैं)। इस जगह आकर हम पस्त हो जाते हैं। संभवत: अभी भारत में हम उतनी बड़ी तनख्वाह नहीं दे पाएंगे।  इस संदर्भ में एक वर्ग यह भी मानता है कि हम सवा अरब जनसंख्या वाले देश हैं- हम में से एकाध लाख लोग प्रतिवर्ष बाहर चले भी गए तो क्या हुआ? लेकिन यह सही नहीं है। एक जर्नल के होने से एक लाख लोगों की भीड़ सेना में बदल जाती है। इस तरह प्रतिभाशाली लोग हमारी प्रगति के अमूल्य साधन हैं। यद्यपि अभी उन्हें वापस लाने के लिए भारत ने विशेष प्रयास नहीं किए हैं, परन्तु यह अवश्य है कि भारत सरकार के विविध अन्य तथा विज्ञान और तकनीक मंत्रालय ने प्रतिभा ने प्रतिभा के प्रोत्साहन और विकास की बहुत सी योजनाएं बनाई हैं। इनमें से कुछ का विवरण नीचे है।

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद तथा भारतीय आयुर्विज्ञान एवं अनुसंधान परिषद। इनमें इनके नामों में निर्दिष्ट विषयों पर अनुसंधान किए जाते हैं। इनके अलावा उनकी अधीनस्थ प्रयोगशालाओं में अनुसंधान होते हैं। इसके अतिरिक्त, राय सरकारों तथा उच्चतर शैक्षणिक क्षेत्र, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के उद्योगों और बिना लाभ के कार्य करने वाले संस्थानोंसंघों समेत, एक विस्तृत ढांचे के अंतर्गत संचालित हैं। कुछ अन्य महत्वपूर्ण विभाग हैं, परमाणु ऊर्जा विभाग, इलेक्ट्रानिक्स विभाग, अन्तरिक्ष विभाग, महासागर विकास विभाग, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन, अक्षय ऊर्जा स्रोत तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय। इसके अतिरिक्त डी.एन.ए, मस्तिष्क, जैव प्रौद्योगिकी जैसे विषयों पर भी व्यापक अनुसंधान व्यवस्थाएं स्थापित की गई हैं। मौसम के सही पूर्वानुमान के लिए मानसून मिशन की स्थापना की गई है। प्रौद्यागिकी में उद्यमिता को प्रोत्साहित करने और नए विचारों वाले आविष्कारकों को आर्थिक मदद देने के लिए और उन्हें काम लायक प्रादर्शों, प्रारूपों आदि में बदलने के लिए केन्द्र सरकार ने टी.ई.पी.पी कार्यक्रम चलाया है। परमाणु ऊर्जा की समझ विविधि क्षेत्रों में बढ़ाने के लिए इसके विभाग ने युवाओं को प्रशिक्षित करने का महत्वपूर्ण कार्यक्रम बनाया है। मुंबई स्थित बोर्ड ऑफ रिसर्च इन न्यूक्लियर साइंसेज् ा सुसंगत विश्वविद्यालयों में अपने शोध प्रबंधों को भेजता है ताकि उनके साथ और उनमें आपसी तालमेल बना रहे। यह युवा वैज्ञानिकों को शोध के विषय चुनने में सहायता तथा आर्थिक मदद देता है एवं अनुभवी वैज्ञानिकों से उनका सम्पर्क  कराता है। यह उत्कृष्ट वैज्ञानिकों को होमी भाभा चेयर से सम्मानित करता है। विज्ञान के अग्रणी क्षेत्रों के लिए मुंबई, पूना, बैंगलोर, दिल्ली तथा तमिलनाडु आदि आते हैं। शिक्षा की प्रशाखाएं तथा उत्कृष्टता संस्थान अन्य प्रदेशों में भी स्थापित हों ऐसा दबाव बनाया जाना चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में सर्वोच्च शिक्षक, सर्वोत्तम पुस्तकें पहुंचाता है। शासन के कर्णधारों से यही अपेक्षा है कि इन बातों के हित में निम्नतर से समझौता न करें।


मूल विषय पर लौटें- तो प्रतिभा उत्पन्न हो और उसके विकास की व्यवस्था की जाए, तो वह पलायन भी करे, तो वैकल्पिक प्रतिभा उपलब्ध होगी। एक मत तो यह है कि ये लोग भारत को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा उपलब्ध कराते हैं। ये लोग विदेश (अमेरिका) में राजनीति के महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित करते हैं तो वहां की भारत के प्रति नीति में भी सुधार आता है। विश्व का वातावरण सुधरता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कुल पेज दृश्य