शनिवार, 16 नवंबर 2013

तालिबान से भयभीत पाकिस्तान

भारत के साथ लगातार खुराफात करने वाला पाकिस्तान आजकल काफी डरा हुआ दिख रहा है। हालांकि ऐसा किसी बाहरी ताकत द्वारा भय दिखाने की वजह से नहीं हुआ है बल्कि तालिबान के नये कमाण्डर की धमकियों से। कारण यह है कि तहरीक ए तालिबान अथवा पाकिस्तान तालिबान अपने पूर्व कमाण्डर हकीमुल्ला महसूद की ड्रोन हमले हुयी मृत्यु के लिए बहुत हद तक पाकिस्तान को भी गुनहगार मानता है। स्वाभाविक तौर पर इसके लिए पाकिस्तान दण्ड का भागीदार होगा। हालांकि यह दण्ड कैसा होगा या कितना प्रभावशाली होगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है लेकिन पाकिस्तान को यह भय तो सता ही रहा है कि तालिबान पाकिस्तान के साथ कोई समझौता नहीं बल्कि उसे सबक सिखाने की जरूरत है। तो क्या पाकिस्तान उस स्थिति में पहुंच चुका है, जहां से उसके पतन का काउंटडाउन शुरू होना तय होता है?

मुल्ला फजलुल्लाह अथवा 'मुल्ला रेडियो' एक ऐसा नाम जिसे मनुष्य की श्रेणी में रखते यह अपने आपसे यह सवाल करने का मन करता है कि क्या यह सही है? पाकिस्तान तालिबान कमाण्डर हकीमुल्ला की ड्रोन हमलों में हुयी मौत के बाद इसी को तालिबान प्रमुख घोषित किया गया है। स्वात घाटी का यह एक ऐसा नाम है जो सम्भवत: क्रूरता की सभी सीमाएं पार कर चुका है। यह वही है जिसने स्वात घाटी में केवल मलाला को जान से मारने की कोशिश नहीं की है बल्कि शरिया को लागू करने के दौरान बहुत से लोगों के साथ क्रूर व्यवहार और बहुतों की क्रूर हत्याएं की हैं। यद्यपि हकीमुल्ला महसूद पाकिस्तान की नयी सरकार के साथ बातचीत चाहता था, लेकिन फजलुल्लाह खुले तौर पर इसका विरोधी रहा है। ऐसे व्यक्ति के तालिबान प्रमुख बनने के बाद इस बात की सम्भावनाएं बढ़ गयी हैं कि पाकिस्तान सरकार और पाकिस्तान तालिबान के मध्य टकराव और बढ़ेगा, अशांति और अधिक पनपेगी और यह भी सम्भव है कि अफ गानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी के बाद न केवल अफगानिस्तान में बल्कि पाकिस्तान में भी कुछ समीकरण बदलें।

मुल्ला फजलुल्ला पाकिस्तान तालिबान का पहला प्रमुख है जिसका सम्बंध दक्षिणी वजीरिस्तान के महसूद कबीले से नहीं है। इसका सम्बंध स्वात घाटी से है और यही कारण है कि महसूद कबीले के कुछ लोग फजलुल्लाह के नाम से खुश नहीं हैं लेकिन वरिष्ठ सदस्यों के दबाव में उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया है। इससे पूर्व यह स्वात तालिबान प्रमुख के रूप में कई बार सूचनाओं में उपस्थिति हुआ है। मुल्ला फजलुल्लाह उर्फ रेडियो मुल्ला अथवा मुल्ला रेडियो, मूलत: एक प्रतिबंधित चरमपंथी आतंकी समूह और पाकस्तान तालिबान के सहयोगी तहरीक-ए-नफ़ ज-ए-शरीयत-ए-मोहम्मदी (टीएनएसएम) का नेता है जिसका उद्देश्य पाकिस्तान में शरीया को लागू कराना है। युसुफजाई जनजाति के पख्तून बाबुकरखेल कबीले में 1974 में जन्मा मुल्ला फजलुल्ला 12 जनवरी 2002 में टीएनएसएम का नेता तब बना जब राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने उसे प्रतिबंधित कर दिया था। इस प्रतिबंध के बाद दरअसल सूफ ी मुहम्मद (संस्थापक टीएनएसएम) की गिरफ्तारी हुयी और फजलुल्ला को नेतृत्व प्राप्त हो गया। यह संगठन ढीले-ढाले ढंग से अक्टूबर 2005 तक चलता रहा लेकिन इसी समय भूकम्प ने मुल्ला के लिए शक्ति ग्रहण करने का एक अवसर उपलब्ध करा दिया। स्वात घाटी में आए भूकम्प के बाद उत्पन्न अराजकता और भुखमरी ने फजलुल्ला के लिए बड़े पैमाने पर नये कैडर उपलब्ध करा दिए जिनकी भर्ती कर उसने स्वात घाटी में अपने प्रभाव के विस्तार का कार्य आरम्भ किया। 2007 में लाल मस्जिद पाकिस्तानी फ ौज की कार्रवाई ने उसे ताकत ग्रहण करने का दोबारा मौका दिया। इस बार फजलुल्ला की आर्मी और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के बैतुल्ला महसूद के बीच एक गठबंधन निर्मित हो गया। अब फजलुल्ला और उसकी आर्मी महसूद से निर्देश प्राप्त करने लगी। मई से सितम्बर 2007 के दौरान स्वात में अस्थायी सीज फ ायर ने उसे एक और अवसर दिया और इस समय का प्रयोग उसने स्वात घाटी में अपनी राजनीतिक ताकत के निर्माण और उसे स्थायित्व देने के लिए किया। अक्टूबर 2007 के बाद फ जलुल्ला ने लगभग 4500 आतंकियों की मदद से स्वात घाटी के के 59 गांवों में शरिया लागू करने के लिए इस्लामी अदालतों की स्थापना कर 'समांतर सरकार' की स्थापना कर ली।

मुल्ला फजलुल्ला के नाम से स्वात घाटी में कई रेडियो प्रसारण हो चुके हैं। यहां तक कि तालिबान के अंदर भी उसे एक कट्टर चेहरे के रूप में देखा जाता है। वह 2004 में उस वक्त सुर्खियों में आया, जब उसने स्वात में अचानक एफ एम रेडियो स्टेशन स्थापित कर लिया। इस स्टेशन से पश्चिमी देशों के खिलाफ  आग उगलने का काम किया जाने लगा। वर्ष 2009 तक उसने आर्मी की बदौलत स्वात घाटी पर कब्जा कर लिया और वहां शरीया कानून लागू कर दिया। मुल्ला रेडियो पोलियो टीकाकरण का भी विरोध करता है और इसे ईसाई और यहूदी साजिश बताता है। इसके साथ ही वह महिलाओं की शिक्षा का कट्टर विरोध करता है। कुल मिलाकर मुल्ला फजलुल्ला न पाकिस्तान की शांति के लिए बेहतर है, न पाकिस्तान के लोकतंत्र के लिए और न ही पाकिस्तान के लोगों के अधिकारों के लिहाज से। अब तो तालिबान प्रवक्ता ने स्पष्ट रूप से कहा है कि पाकिस्तान सरकार के साथ शांति वार्ता तालिबान की सम्भवानाएं शून्य से भी कम हो गयी हैं। तहरीके तालिबान पाकिस्तान के शीर्ष नेता एहसानुल्ला एहसान ने न्यूज वीक पाकिस्तान को दिए गए साक्षात्कार में कहा, 'पिछले सप्ताह महसूद की हत्या से पख्तून संस्कृति का उल्लंघन हुआ है। इस घटना के बाद सरकार के साथ किसी तरह की कोई शांति वार्ता नहीं हो सकती। वार्ता की संभावना शून्य से भी कम हो गई है।' एहसान ने दावा किया कि शांति वार्ता की चाल तालिबान नेताओं को एक-एक कर मारने के लिए चली जा रही है। इसके साथ ही तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान की तरफ से पाकिस्तान सरकार को बदले की कार्रवाई की चेतावनी भी दी गयी है, खासतौर पर पंजाब को निशाना बनाने की। तालिबान की तरफ से कुछ मीडिया सूत्रों से कहा गया है कि उनके पास एक खास योजना है। हालांकि तालिबान की तरफ से कहा गया है कि वे नागरिकों को निशाना नहीं बनाएंगे। वे नवाज शरीफ के गढ़ पंजाब में सेना और सरकारी संस्थानों को लक्ष्य बनाकर बम धमाके और आत्मघाती हमले करेंगे।

अब पाकिस्तान सरकार की दुविधा यह है कि आखिर वह किस रास्ते का चुनाव करे। हालांकि ये उसके ही पैदा किए हुए रक्तबीज हैं जो आज उसी को मारने के लिए तैयार हो गये हैं। फजलुल्ला लम्बे समय तक अफगानिस्तान में रहा है और उसके अफगानिस्तान तालिबान के साथ बेहतर रिश्ते रहे हैं इसलिए इस बात की सम्भावना अधिक है कि पाकिस्तान तालिबान और अफगान तालिबान के साथ एक सशक्त गठबंधन तैयार हो। हालांकि पाकिस्तान तालिबान का मुल्ला उमर के नेतृत्व वाले अफगान तालिबान से सीधे जुड़ाव नहीं है, क्योंकि दोनों समूहों का ही इतिहास, रणनीतिक लक्ष्य और अभिरुचियां अलग-अलग है। लेकिन अब जो स्थितियां बनती दिख रही हैं उनमें नया गठबंधन सम्भव है और विशेषकर अमेरिकी सेना की वापसी के पश्चात तो अवश्य ही। दरअसल वजीरिस्तान और स्वात घाटी का कबीलाई संगठन बहुत ही मजबूत है और आजादी के बाद पाकिस्तान की सरकार इन क्षेत्रों में अभियान चलाने या चरमपंथ को खाद-पानी देती रही, लेकिन 911 की घटना के बाद अमेरिकी प्यादा बनकर उसने खैबर ट्राइबल एजेंसी की तीर घाटी को इसलिए निशाना बनाया था क्योंकि उसे मालूम था कि वहां पर बड़े पैमाने पर उबेक, चेचन और अरब आतंकवादी मौजूद हैं जो अल-कायदा का साथ दे रहे हैं। इसके बाद उत्तरी वजीरिस्तान की शावल घाटी और बाद में दक्षिणी वजीरिस्तान में अभियान चलाया गया। इस अभियान के बाद पाकिस्तान जनजातीय नेताओं का दुश्मन बन गया और यह दुश्मनी अब तक नहीं गयी।


बहरहाल मुल्ला फजलुल्ला पाकिस्तान की सरकार और पाकिस्तान की अवाम के लिए एक अभिशाप से कम नहीं है। अब इस बात की सम्भावना अधिक है कि वह अल-कायदा, अफगान तालिबान के बीच उस सम्बियोटिक रिलेशनशिप को ताकत देने का काम करेगा, जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और सम्भव है कि दक्षिण एशिया के अन्य देशों, विशेषकर भारत जैसे देश के लिए भी खतरनाक सिध्द हो। वास्तव में यदि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान अलकायदा, शहीद ब्रिगेड, इस्लामी मूवमेंट ऑफ उबेकिस्तान (आईएमयू), हरकत-उल-जिहाद इस्लामी (हूजी), इलियास कश्मीरी, क़री सैफुल्ला अख्तर, जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-झांगवी, लश्कर-ए-तैयबा, सिपह-ए-सहाबा आदि के साथ रिश्तों को कोई आयाम देने में सफ ल हो गया तो पाकिस्तान को किश्तों में रोना पड़ेगा। 



देशबन्धु


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